मलेशियाई विमान पिछले दिनों लापता हो गया. विमान को खोजने के बहाने चीन ने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह भारतीय जल सीमा में चीन के प्रवेश को अनुमति दे. चीन के तलाशी अभियान के पीछे इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि वह भारतीय नौसेना की ताकत की टोह लेना चाहता है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से भारतीय नौसेना की बढ़ती ताकत से वह परेशान है. लेकिन, भारत सरकार ने चीन के इस आग्रह को अस्वीकार करके जो दूरगामी फैसला लिया है, वह आने वाले दिनों में बहुत बेहतर साबित होगा.
मलेशियाई विमान 8 मार्च से ही लापता है. विमान में कुल 239 यात्री सवार हैं. विश्व के 12 देश विमान के तलाशी अभियान में लगे हुए हैं. अटकलें हैं कि यह विमान हिंद महासागर या अंडमान सागर में हो सकता है. इसे देखते हुए भारत सरकार ने भी अपने युद्धपोतों को तलाशी अभियान में लगा दिया है, लेकिन भारत के सामने उस समय एक धर्मसंकट खड़ा हो गया, जब चीन ने लापता मलेशियाई विमान के तलाशी अभियान के लिए भारत सरकार से अपने युद्धपोतों को भारतीय जल सीमा में प्रवेश की इजाजत मांगी. हालांकि, सेना की आपत्ति के बाद भारत सरकार ने चीन का आग्रह ठुकरा दिया है. भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय विमान और समुद्री जहाज लगातार लापता विमान की खोज में लगे हैं. इसलिए किसी और को भारतीय सीमा में आने की ज़रूरत नहीं है.
भारत सरकार द्वारा चीन को अपनी सीमा में तलाशी अभियान के लिए प्रवेश की इजाजत न देना एक दूरगामी और सराहनीय ़फैसला है. ऐसा करके भारत सरकार ने न स़िर्फ अपनी सेना पर विश्वास किया है, बल्कि सेना को खुद को सक्षम सिद्ध करने का मौक़ा भी दिया है. इसका महत्व दो कारणों से और भी ब़ढ जाता है. पहला यह कि पिछले सात महीनों के दरम्यान नौसेना में कुल 13 हादसे हुए हैं. ऐसे में अगर चीनी नौसेना को तलाशी अभियान के लिए भारत सरकार अनुमति देती, तो इससे अपनी ही सेना के विरुद्ध अविश्वास का माहौल तैयार होता. इसके अलावा सरकार के इस क़दम से भारतीय नौसेना का मनोबल मजबूत हुआ है. भारत सरकार द्वारा चीन को अपने जल क्षेत्र में घुसने की इजाजत देना कहीं से उचित भी नहीं था, क्योंकि फिलहाल अमेरिका सहित विश्व के 12 देश इस तलाशी अभियान में लगे हैं, लेकिन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ. ऐसे में भारत सरकार का यह ़फैसला दूरगामी है. दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हो सकता है कि चीन ने जानबूझ कर भारत सरकार से यह आग्रह किया हो, ताकि भारतीय नौसेना की ताकत की टोह ली जा सके. चीन का भारत के साथ जिस तरह का सामरिक संबंध है, उसे देखते हुए इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता. पूरी दुनिया में भारतीय नौसेना सातवें स्थान पर है, यह बात चीन को पता है. चीन की नज़र भारतीय नौसेना के हाल में लगातार हुए हादसों पर भी है, जिसके कारण चीन भारतीय नौसेना को कमजोर करके आंक रहा होगा. हो सकता है कि एक तरफ़ चीन यह भी सोचता हो कि वह भारतीय नौसेना को आसानी से टक्कर दे सकता है.
ऐसे में चीन के आग्रह को कूटनीतिक दृष्टि से भी देखना चाहिए. चीन के इस आग्रह का मतलब यह भी हो सकता है कि वह भारतीय जल क्षेत्र में अपना हस्तक्षेप ब़ढाना चाहता है, जैसा कि वह अक्सर भारतीय थल सीमा का अतिक्रमण करता रहता है. अंतर केवल इतना है कि इस बार मामला जल का है. चीन के भारतीय जल सीमा में तलाशी अभियान का मतलब उसकी विस्तारवादी नीतियां भी हो सकती हैं. यह भी सत्य है कि भारतीय नौसेना की बढ़ती ताकत से चीन परेशान है. अफ्रीका और अरब देशों की तरफ़ से होने वाले ऊर्जा कारोबार के रास्ते पर चीन अपना दबदबा कायम करना चाहता है. यही वजह है कि समुद्री क्षेत्र में वह भारत को घेर रहा है. आईएनएस विक्रांत, स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत के न्यूक्लियर रिएक्टर जैसी तैयारियां भारतीय नौसेना को धीरे-धीरे स़िर्फ अपने समुद्री किनारों की रक्षा करने वाली ताकत के बजाय तेजी से गहरे पानी की ताकत यानी डीप ब्लू नेवी बनने की तरफ़ बढ़ा रही हैं. चीन को पता है कि भारतीय नौसेना आने वाले दिनों में एक ऐसी समुद्री ताकत बनकर उभरेगी, जो अपने किनारों से बहुत दूर जाकर बड़े ऑपरेशंस को अंजाम दे सकती है. यही नहीं, विक्रांत की लॉन्चिंग ने चीन में खलबली पैदा कर दी है. उस समय चाइना नेवल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसिडेंट जांग उन शी ने कहा भी था कि भारत का पहले स्वदेशी विमान वाहक पोत और भारतीय नौसेना की बढ़ती ताकत से दक्षिण एशिया का सैन्य संतुलन बिगड़ सकता है.
कुछ महीनों पहले भारत की सरकारी कंपनी ओएनजीसी ने वियतनाम के साथ मिलकर साउथ वियतनाम के समुद्र में तेल खोज का अभियान शुरू किया था. चीन ने समुद्र के उस हिस्से को अपना बताकर तेल खोज रोकने की चेतावनी दे दी, लेकिन जिस दिन भारतीय नौसेना मजबूत स्थिति में पहुंच जाएगी, चीन को भारत को किसी भी तरह की चेतावनी देने से पहले सौ बार सोचना होगा. भारत को समुद्र के रास्ते घेरने के लिए चीन स्ट्रिंग ऑफ पर्ल की रणनीति पर काम कर रहा है. भारत के पड़ोसी देशों में बंदरगाह बनाने के समझौते करके वह धीरे-धीरे भारत को घेर रहा है. चीन म्यांमार में सितवे पोर्ट, बांग्लादेश में चटगांव, श्रीलंका में हंबनटोटा, मालदीव में मराओ एटॉल बंदरगाह को विकसित कर रहा है. ब़डी चिंता यह है कि पाकिस्तान ने अपने ग्वादर पोर्ट का मैनेजमेंट चीन के हवाले कर दिया है. पड़ोस की समुद्री सीमा में चीन की मौजूदगी लंबे वक्त से भारतीय रणनीतिकारों के लिए सिरदर्द बनी हुई है. माना जाता है कि भारत को घेरकर चीन स्ट्रेट ऑफ हॉर्मज से होने वाले तेल कारोबार के रूट पर अपना दबदबा कायम करना चाहता है. अगर अपनी ताकतवर नौसेना के जरिये चीन इस रूट पर दबदबा कायम कर लेता है, तो भारत के लिए अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करना आसान नहीं होगा.
ऐसा नहीं कि चीन मलेशियाई विमान की खोज में नहीं लगा है, बल्कि उसके दो युद्धपोत जिनगंगशान और मियानियांग मलेशिया एयरलाइंस के लापता विमान की तलाश में भेजे गए हैं. वियतनाम के तट से सटे जल क्षेत्र में चीनी गोताखोरों का एक दल भी भेजा गया है. चीन का जिनगंगशान युद्धपोत दो हेलिकॉप्टरों के अलावा, बचाव कार्यों के लिए आवश्यक उपकरण, पानी के नीचे वस्तुओं को खोजने के उपकरण और चिकित्साकर्मियों के एक दल को अपने साथ ले गया है. दूसरी तरफ़ मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रजाक ने कहा कि लापता विमान एमएच 370 की गतिविधि विमान में सवार किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझ कर की जाने वाली कार्रवाई जैसी थी. ग़ौरतलब है कि 8 मार्च को यह विमान लापता हो गया था. रजाक कहते हैं कि विमान में लगे ट्रांसपोर्डर को जानबूझ कर बंद कर दिया गया. उन्होंने यहां तक कहा कि विमान जब मलेशिया और वियतनाम के बीच था, तो उसकी संचार प्रणाली निष्क्रिय कर दी गई. जांचकर्ताओं को संदेह है कि विमान को कजाखस्तान-तुर्कमेनिस्तान कॉरिडोर या इंडोनेशिया-दक्षिण हिंद महासागर कॉरिडोर ले जाया गया. हालांकि मीडिया में विमान के अपहरण की भी ख़बरें हैं. यह मलेशियाई विमान कुआलालम्पुर से बीजिंग के लिए रवाना होने के एक घंटे बाद रहस्यमय तरीके से रडार स्क्रीन से गायब हो गया था. इस विमान में पांच भारतीय एवं भारतीय मूल के एक कनाडाई नागरिक समेत 227 यात्री और चालक दल के 12 सदस्य सवार हैं. अभी तक विमान या उसके मलबे का कुछ पता नहीं चल पाया है. भारत ने जेटलाइनर का पता लगाने के लिए चार युद्धपोत भी तैनात किए हैं. ये युद्धपोत हैं आईएनएस सतपु़डा, आईएनएस सहयाद्री, आईएनएस सरयू और बट्टी माल्व. नौसेना के अरक्कोणम स्थित अड्डे आईएनएस रजालि से अत्याधुनिक टोही विमान पी 8 आई एवं वायुसेना के विशेष कार्रवाई में सक्षम विमान सी 130 जे सुपर हरक्यूलिस को दक्षिणी हिंद महासागर भेजा गया है. पी 8 आई विमान की टोही ताकत के बारे में यह धारणा है कि यह विमान 300 किलोमीटर के दायरे में सूई को भी ढूं़ढ लेने में सक्षम है. विमान के बारे में यह भी ख़बरें आती रहीं कि शायद वह अंडमान द्वीप की ओर उड़ा होगा, लेकिन विमानन क्षेत्र के जानकारों ने इस संभावना को खारिज किया. उनका कहना है कि विमान इतनी दूरी तक बिना संपर्क के कैसे उड़ सकता है. मलेशिया ने तलाशी अभियान को हिंद महासागर तक विस्तार दे दिया है. हालांकि मलेशिया सरकार ने लापता विमान के हाईजैक होने से भी इंकार नहीं किया है.
मलेशिया एयरलाइंस के विमान एमएच 370 की तलाश में अभी तक 39 मिलियन डॉलर (तक़रीबन 238 करोड़ रुपये) खर्च किए जा चुके हैं, जो कि 1998 के कनाडा फ्लाइट क्रैश मामले की जांच में हुए खर्च 38 मिलियन डॉलर (232 करोड़ रुपये) से भी ज़्यादा है. तलाशी अभियान में 12 देशों के 42 जहाज और 39 एयरक्राफ्ट तैनात हैं. इस अभियान में मलेशिया, वियतनाम, चीन, भारत एवं अमेरिका सहित ऑस्ट्रेलिया के बचाव दल भी शामिल हैं. अमेरिकी नौसेना ने दो युद्धपोतों, यूएसएस पिंकने और यूएसएस किड सहित दो आधुनिक विमानों को भी मलेशिया की मदद के लिए भेजा है. अमेरिकी वायुसेना के विमान समुद्र के अंदर ऑब्जेक्ट खोजने की तकनीक से लैस हैं.
दु:ख की बात यह है कि मलेशियाई विमान के लापता होने पर विश्व के देश अपने कूटनीतिक स्वार्थों को देख रहे हैं. किसी भी देश को इस बात की चिंता नहीं है कि उसमें सवार 239 यात्रियों पर क्या गुजर रही होगी. कोई भी देश मानवीय आधार पर यह नहीं सोच रहा है कि उन यात्रियों के परिवारों पर क्या बीत रही होगी. किस तरह का मातमी माहौल उनके परिवार में पसरा होगा. चीन हो या अमेरिका या कोई और, हर देश मलेशिया से अपने निजी स्वार्थों को साधने में लगा है. जबकि होना यह चाहिए कि सारे देश मिलकर अपने स्वार्थों से परे हटकर मलेशियाई विमान की खोज में दिन-रात एक कर दें, ताकि समय रहते विमान को खोजकर उन 239 यात्रियों की जानें बचाई जा सकें.
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