माननीय मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय,
सविनय प्रणाम,
क्या याचिकाकर्ता होना भारत के संविधान के अनुसार अपराध है ?
1989 अक्तूबर को भागलपुर के दंगों के बाद कलकत्ता और शांतिनिकेतन के कुछ मित्रों के साथ मै, मई के महिने में 1990 के प्रथम सप्ताह में भागलपुर दंगे के छ महिने के बाद जाने के बावजूद दंगे की विदारकता देखकर मै हिल गया था ! और वहासे एक सप्ताह रहकर लौटने के बाद मैंने लिखा और बोला भी कि ” भारतीय राजनीति का केंद्रबिंदू आने वाले पचास वर्षों तक सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकताही रहेगा ! और हमारे रोजमर्रा के सभी सवाल हाशिये पर डाले जाएंगे !” उसके तेरह साल बाद गुजरात का दंगा हुआ है ! और आज वास्तविकता क्या है ? भारत की आजादी के पचहत्तर साल में हमारी-आपकी गंगा – जमनी संस्कृति के जगह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की वजह से आज 135 करोड़ आबादी का देश हिंदु – मुसलमानों में बट चुका है ! मध्य प्रदेश के खरगोन के 10 अप्रैल में हुए दंगे के बाद वहां के प्रशासन ने दोनों समुदायों के बस्तियों को फिलिस्तीन के तर्ज पर दिवारें खडी करने की कृती को क्या कहेंगे ? (टाईम्स ऑफ इंडिया के खबर के अनुसार ! ) पहले से ही दोनों समुदायों के बीच कुछ घोर सांप्रदायिक शक्तियों के लगातार दुष्प्रचार के कारण, काफी गलत फहमीया फैलाने का काम जारी रहने के कारण ! दोनों समुदायों के बीच की दूरी बढ रही है ! एक दूसरे के बारे में बातचीत और मिलने – जुलने के अभाव में गलतफहमियां बढ रही है ! और उसमें खरगोन मॉडल को देखते हुए, मै प्रार्थना करता हूँ ! “कि इस तरह का दोनों समुदायों को बाटने का काम नहीं किया जाना चाहिए ! क्योंकि हमारे अपने ही देश में एक ही गांव में दिवारों के बीच ! कानून व्यवस्था के नाम पर दोनों समुदाय को बाटने की हरकतों से ! और भी दूरीयां बढने के कारण ! और भी समस्या निर्माण होगी ! पहले ही गलत प्रचार के शिकार लोगों को एक दूसरे से अलग करके क्या हासिल होगा ? उल्टा एक दूसरे के बारे में और अधिक संशय बढ़ाने के लिए काम आने की संभावना है ! पहले ही अपप्रचार के कारण एक दुसरे को शक की निगाह से देखते हैं ! बस्तियों को दिवारों के अंदर कैदखाने जैसा बाटने के कारण और भी गलतफहमियां बढेंगी और भविष्य के दंगों को गृहयुद्ध में तब्दील होने की संभावना है ! जबकि एक दूसरे के साथ संबंध ही नहीं रहेगा तो और भी संशय बढेगा !
शायद 1990 के दिसंबर में मै, महाराष्ट्र में हमारे भागलपुर के मित्र स्वर्गीय मुन्ना सिंह को (जिन्होंने अपने घर में सत्तर से अधिक मुस्लिम समुदाय के लोगों को पनाह देने की पेशकश करने की थी लेकिन उसके बावजूद बीस से अधिक लोगों को दंगाइयों ने मौत के घाट उतार दिया था ! नलिनी सिंह के आंखो देखी दूरदर्शन के कार्यक्रम के कारण मुझे पता चला था !) तो उन्हें भी साथ लेकर भागलपुर के दंगों के बारे मे पहले नागपुर, वर्धा, अमरावती, अकोला, जलगाव, धुलिया, साक्री, मालेगाव, ठाणे, पुणे और मुंबई की यात्रा पर आने के समय ! मुंबई में हमारे पुराने मित्रों में से एक डॉ राम पुनीयानी के कारण सुधींद्र कुलकर्णी (संडे अॉब्झरवर) तथा तिस्ता – जावेद आनंद के जुहू स्थित घर में ! पहली बार भागलपुर के दंगों के बारे में इंटरव्यू के लिए गए थे ! उन्होंने नई – नई कम्यूनॅलिझम कॉमबांत नाम की अंग्रेजी पत्रिका की शुरुआत की थी ! तो उन्होंने लगभग पूरे दिनभर हमारे इंटरव्यू की रेकॉर्डिंग की थी ! क्योंकि हमने दोपहर का भोजन भी उनके साथ किया था ! इसलिए आज तीस – बत्तीस साल बाद भी उनके घर जाने की बात याद है !

उसके बाद और कितने बार गए होंगे ! क्योंकि हमारी बात भारत की आगामी पचास साल की राजनीति सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द रहेगी इस बात पर तिस्ता और जावेद आनंद भी सहमत दिखाई दिए थे ! और मुंबई के 1992 के बमब्लास्ट और उसके बाद के दंगों के दौरान के असरग्रस्त लोग जो मुलतः अपनी अजिविका के लिए मुंबई की झोपडपट्टी के रहने वाले लोगों के लिए बहुत ही अच्छी पहल की थी ! और उसके बाद मुंबई की उस घटना की जांच करने के लिए विशेष रूप से पूर्व न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण के अध्यक्षता में महाराष्ट्र सरकार के तरफसे कोशिश की है !
फिर उसके बाद 2002 के गुजरात के दंगों को लेकर जस्टिस कृष्ण अय्यर कमिटी के द्वारा क्राईम अगेंस्ट ह्युमॅनिटी के नाम से प्रसिद्ध हुआ पाचसौ पन्नौकी रिपोर्ट, आजादी के बाद भारत के किसी भी सांप्रदायिक दंगों के बाद किए गए जांच रिपोर्ट की तुलना में सबसे बेहतरीन रिपोर्ट CJP के तरफसे प्रकाशित किया है ! और शायद यही कारण है की गुजरात की सरकार तिस्ता सेटलवाड से काफी नाराज है ! क्योंकि इस रिपोर्ट के कारण देश और दुनिया को गुजरात के दंगों की सच्चाई पता चली !

 

 

Pic Credit- Aaj Tak

और तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी को कई मुल्कों ने अपने यहां आने के वीसा पाबंदी लगा दी थी !
और महाराष्ट्र के मालेगांव, नांदेड, मुंबई, धुळे,तथा और अधिक जगहों की सांप्रदायिक घटनाएँ और आतंकवादियों द्वारा किये गये बमब्लास्टो की जांच-पड़ताल करने की कोशिश का काम किया है !

और सबसे महत्वपूर्ण बेस्ट बेकरी तथा गुलबर्ग सोसायटी के जैसे जधन्य कांडों को लेकर याचिकाओं को दाखिल करने की कोशिश का काम बहुत ही अच्छी तरह से करने के काम को लेकर वर्तमान समय में उन्हें गिरफ्तार कर के गुजरात की सरकार की कार्यवाही कहा तक ठीक है ?
बीजेपी की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को पर्दाफाश करने के कारण सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की आड़ में तुरत-फुरत गुजरात के एटीएस दस्ते को मुंबई भेजकर गिरफ्तार करने की जल्दीबाजी ही बीजेपी की बेसब्री का लक्षण बता रही है !
जिस सरकारने एक तरफ भारत की सेना को बुलाकर, चौबीस घंटे से अधिक समय तक उसे अहमदाबाद एअरपोर्ट के बाहर नहीं निकलने देना ! यह बात सरकारी मुसलमान नाम की किताब में लेफ्टिनेंट जनरल जमीरूद्दीन शाह ने अपनी किताब में Operation Parakram and Operation Aman Chapter 7 page number 114 to 133 लगभग पंद्रह पन्नौकी सत्यस्तिथी पर रोशनी डाली है !

 

और लेफ्टिनेंट जनरल जमीरूद्दीन शाह के नाम से, यूटूब पर उपलब्ध इंटरव्यू में, उन्होंने साफ-साफ शब्दों में कहा है कि” मुझे अहमदाबाद के कोई भी जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा सहयोग नहीं मिला तो मजबुरी में मै रात को दो बजे अपनी साथ लाई हूई जिप्सी और लोकल गाईड को लेकर मुख्यमंत्री आवास पर गया था ! और वहा रात के दो बजे 1 मार्च को मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडिस खाना खा रहे थे !” अब आगे का मजमून उन्होंने लिखा है कि (” I reached the Chief Ministers residence at 2 PM 1st March, and to my great relief, found Raksha Mantri (RM) Mr. George Fernandes there, Both were having a late dinner and invited me to join them. I did, but immediately got down to ‘ brass tacks ‘. I had a tourist map of Gujarat and asked for the trouble spots. I also gave a list of immediate requirement to enable the Army columns to fan out to restore law and order.
I returned to airport to check out the arrival of the 60 – odd flights of IL – 76s and AN – 32s. By 7 am on 1 March 2002, we had about 3,000 troops landed, but no transport, so they remained at the airport. These were crucial hours lost, our road columns reached us on 2 March and so did the requisitioned civil trucks, magistrates, police guides and maps.”)
भारत की रक्षा के संदर्भ में अगर विरोधी दलों के नेताओं द्वारा, या अन्य किसी ने भी कोई सवाल किया ! तो तुरंत बीजेपी के समस्त नेता गण हमारे सेना का मनोबल कम करने का आरोप लगाया करते हैं ! लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री ने खुद 27 फरवरी 20002 के गोधरा कांड के बाद तुरंत केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर सेना भेजने का अनुरोध किया था ! मतलब एक मुख्यमंत्री के नाते प्रदेश की कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अतिरिक्त फोर्स को बुलाने की खाना पुरी तो की थी ! लेकिन एक मार्च से चौबीसों घण्टे सेना को लॉजिस्टिक्स नही देने के कारणों की जांच हमारे सर्वोच्च न्यायालयाने नियुक्त की हुई एसआईटी ने क्यों नही की ? और उसी एसआईटी ने गुजरात दंगों के भड़काने के लिए ! गोधरा कांड में अधजली लाशों को वीएचपी को सौपने की कानूनी वैधता की जांच क्यों नहीं की ? जिसके कारण भारत के कानून की धज्जियाँ उडाकर ! बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए कारसेवक इकठ्ठे करने का काम 1992 के 6 दिसंबर को करने वाले लोगों के हाथोंमें गोधरा की लाशों को सौपने के निर्देश देने वाला कौन था ? और उन लाशों के संबधीत रिस्तेदारो को छोड़कर ! जयदीप पटेल को गोधरा के मामलेदार श्री महेंद्र नालवाया ने 27 फेब्रुवारी 2002 के रात को चौपन लाशों को सौपने का पत्र ! जयदीप पटेल जॉइंट जनरल सेक्रेटरी अॉफ गुजरात प्रदेश वीएचपी को सौंपने का आदेश किसके कहने पर दिया गया ?

मैं यह उद्धरण The Fiction of Fact – Finding MODI & GODHRA, OTHOR – MANOJ MITTA के किताब के Shifting Bodies, Shifting Facts Chapter 6 pages number 122 to 140, 18 पन्नौका मजमून !

Pic Credit- Aaj Tak

गोधरा कांड की जली हुई लाशों को ! 28 फरवरी को गुजरात बंद वह भी वीएचपी के द्वारा होने के बावजूद ! उनके पदाधिकारी को सौपने के निर्णय की जांच-पड़ताल एसआईटी ने क्यों नहीं की ? जिन्हें लेकर अहमदाबाद की सड़कों पर जुलूस निकाला गया है ! क्या एसआईटी को यह कदम गुजरात की शांति – सद्भावना बनाने के लिए उपयुक्त लगा है ? तिसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात गांधीनगर के केबीनेट मिटिंग में तीन अलग – अलग लोगों के द्वारा मुख्यमंत्री ने कहा कि कल लोगों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया को कोई भी रोकेगा ! नही इसके झूठ होने के कौन-से प्रमाण देखने के बाद क्लिनचिट मिल गई – क्लिन चिट मिलने के कारण स्पष्ट नहीं है ! और यही नरेंद्र मोदीजी ने एक विदेशी मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि ” गाड़ी के निचे कुत्ते का पिल्ला आ जाय तो हम क्या करेंगे ?” यह अमानवीयता किस बात का प्रमाण है ?
मेरे ख्याल से नंबर( 1) हमारे देश की सेना को पहले बुलाया ! और उसे दो दिन बैठाके रखने के लिए कौन जिम्मेदार है ?( 2) गोधरा कांड में अधजली लाशों को वीएचपी जैसे विवादास्पद संघठन के हवाले लाशों को सौपना, और उन्हें जुलूस की शक्ल में अहमदाबाद शहर में प्रदर्शन करने दिया है ! इसलिए जिम्मेदार कौन है ? (3) केबीनेट बैठक 27 फेब्रुवारी 2002 के दिन का इतिवृत्त देखकर और उसमें हाजीर लोगों का बयान दर्ज हुआ था या नहीं ? शायद गुजरात दंगों के असली गुनाहगार का पता लगाना मुश्किल नहीं था ! पर नही नानावटी कमिशन ने इन आरोपों को महत्व दिया ! और जिस एस आईटी के निर्णय को आधार बनाकर हमारे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार याचिका संपूर्ण खंडपीठ के सामने लाने की आवश्यकता है !
मैंने एडवोकेट मुकुल सिन्हा के साथ जस्टिस मेहता – नानावटी कमिशन को अहमदाबाद में पांच बार अटेंड किया है ! और उस कमिशन में जस्टिस नानावटी के कार्यशैली देखने के बाद, मुकुल सिन्हा को कहा था कि “आप अपने किमती वक्त जाया कर रहे हो ! जस्टिस नानावटी ने क्लिनचिट देने के लिए मन बना लिया है !” तो मुकुलभाई ने कहा कि ” मुझे मालूम है कि नानावटी को क्लिनचिट देने की जल्दी पडी है ! मैं नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की समयसीमा बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूँ !” और गुजरात दंगों के पीड़ितों की निशुल्क केसेस लढने वाले मुकुलभाई 13 मई 2014 के दिन कैंसर की बिमारी से हमारे बीच नहीं रहे !आखिरी बात जकियि जाफरी अपने मरहूम शौहर पूर्व सांसद एहसान जाफरी और उनके साथ साठ लोगों को जिंदा जला ने की घटना को लेकर ! गत बीस साल पहले से अदालत में अपनी लड़ाई लड़ रही हैं ! और तिस्ता सेटलवाड या कोई अन्य उसे मदद करते हैं ! तो कौनसी कानून की धारा है ? जिसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने इतनी कड़ी टिप्पणी करने के कारण ! गुजरात एटीएस जीस फुर्तीले अंदाज में मुंबई में आकर तीस्ता को गिरफ्तार कर के अहमदाबाद में ले जाना ! जो कि गुजरात की पुलिस तथा कोर्ट की अविश्वसनीयता के कारण कितने दंगे के केसेस बाहर के राज्यों में स्थानांतरित किये गये हैं ? यह वर्तमान सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भी मालूम है !


अंतमे देश के मुख्य न्यायाधीश महोदय को विनम्र प्रार्थना है ! “कि वह खुद इस बात का सज्ञान लेकर हस्तक्षेप करे और हमारे देश की न्यायिक प्रक्रिया की इज्जत की रक्षा करने का कष्ट करेंगे इस उम्मीद के साथ मेरा निवेदन समाप्त करता हूँ !”
डॉ सुरेश खैरनार संयोजक अॉल इंडिया सेक्युलर फोरम, नागपुर 27, जून 2022

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