2 अप्रैल को दलितों की तरफ से किए गये भारत बंद के विरोध में आज अाज अारक्षण विरोधियों की तरफ से भारत बंद किया गया है. बता दें कि आज के भारत बंद का मकसद देश से आरक्षण को निकाल फेंकना है, और इसी के विरोध में आज भारत बंद किया जा रहा है जिसमें शामिल होने के लिए देश के युवक और नौजवान सड़कों पर उतर आए हैं.
हाल ही में हुए दलित आन्दोलन को देखकर आपके मन में ये बात ज़रूर आई होगी कि आखिर दलित जब भी विरोध करते हैं तब उनके विरोध प्रदर्शन का रंग नीला क्यों होता है. आप में से ज़्यादातर लोग इस बात से वाकिफ नहीं होंगे कि आखिर क्यों नीले रंग को दलितों से जोड़कर देखा जाता है. तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है.
बता दें कि दलितों के साथ देश में काफी भेदभाव किया जाता रहा है और उनको समाज से बाहर ही रखा जाता रहा है ऐसे में उनमें हमेशा से ये भावना रहती थी कि उनसे भी आम इंसानों की तरह से ही बर्ताव किया जाना चाहिए, ऐसे में उन्होंने आसमान के नीले रंग को चुना. दरअसल दलितों का मानना है कि जिस तरह से सारा आसमान नीला और एक सामान है उसी तरह इस आसमान की नीचे रहने वाले लोगों को भी भी एक सामान ही होना चाहिए.
नीला रंग भेदभाव मुक्त दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है और इसीलिए दलितों ने नीले रंग को अपना रंग बनाया है. हालाकि यह बात पुख्ता नहीं है कि नीले रंग को दलितों से जोड़कर क्यों देखा जाता है लेकिन ये बातें आज भी लोगों के बीच कही जाती हैं. बता दें कि बाबा भीमराव अंबेडकर ने जब अपनी पार्टी इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की नींव रखी तो इसका रंग नीला था. उन्होंने ये रंग महाराष्ट्र के सबसे बड़े दलित वर्ग महार के झंडे से लिया. वर्ष 2017 में अर्थ नाम के जर्नल में ‘फैब्रिक रेनेड्रेड आइडेंटीटी- ए स्टडी ऑफ पब्लिक रिप्रेजेंटेशन इन रंजीता अताकाती’ प्रकाशित शोध पत्र भी यही बात कहता है. अंबेडकर ने तब इसे दलित चेतना का प्रतीक माना था.
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इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि बीआर अंबेडकर को नीले रंग का सूट बहुत पसंद था और वो ज़्यादातर इसी रंग के सूट में रहते थे इसीलिए दलितों ने भी इसी रंग को अपना रंग को अपना रंग बना लिया. दलित बाबा साहब को अपना नायक मानते थे और इसीलिए उन्होंने उनकी बातों से लेकर उनके रंग को भी आत्मसात कर लिया.