भगवान शिव दुनिया के रखवाले हैं और कण-कण में उनका वास है. उन्हें औघड़ दानी भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि भोले भंडारी बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों का कल्याण करते हैं. शिवलिंग को धरती पर भगवान शिव का साक्षात रूप माना जाता है. शिवलिंग पर मात्र गंगाजल के अभिषेक से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं. पूरे भारत में भगवान शिव के प्रसिद्ध बारह ज्योर्तिलिंग हैं, जिनके दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों के
नाम हैं:-सोमनाथ, मल्किार्जुन, महाकालेश्वर, ओमकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, काशी-विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर एवं घृष्णेश्वर महादेव. ये द्वादश ज्योर्तिलिंग भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में विख्यात हैं. इन बारह ज्योर्तिलिंगों के दर्शन मात्र से अकाल मृत्यु जैसे दोष दूर हो जाते हैं. इस बार हम आपको सोमनाथ ज्योर्तिलिंग के बारे में बताते हैं.
सोमनाथ हिंदुओं का एक प्रसिद्ध मंदिर (तीर्थस्थल) है, जो बारह ज्योर्तिलिंगों में सर्वप्रथम है. शिव महापुराण में कहा गया है कि प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से हुआ था, लेकिन चंद्रमा केवल अपनी पत्नी रोहिणा से अधिक प्रेम करते थे और अन्य पत्नियों की उपेक्षा करते थे. चंद्रमा के इस आचरण से उनकी 26 पत्नियां दु:खी रहती थीं. दक्ष प्रजापति को जब अपनी पुत्रियों के दु:ख के बारे में पता चला, तो उन्होंने चंद्रमा को समझाया कि उन्हें सभी 27 पत्नियों से एक समान प्रेम करना चाहिए, लेकिन चंद्रमा पर इसका कोई असर नहीं हुआ. कुपित होकर और क्रोध में आकर प्रजापति दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग का श्राप दे दिया. चंद्रमा क्षय रोग से ग्रसित हो गए, जिससे चारों तरफ़ आकाश-पाताल में हर जगह हाहाकार मच गया. तब सभी देवगण और ऋषिगण ब्रह्मा जी के पास गए. ब्रह्मा जी ने चंद्रमा को शिवलिंग की स्थापना करके महामृत्युंजय मंत्र का जाप और भगवान शिव की आराधना करने की सलाह दी. चंद्रमा ने भगवान शिव की छह महीने तक कठोर तपस्या कर आराधना की और 10 करोड़ बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया. भगवान शिव चंद्रमा के कठोर तप को देखकर प्रसन्न हो गए. उन्होंने चंद्रमा को क्षय के श्राप से मुक्त कर दिया और शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए. चंद्रमा के नाम पर ही शिवलिंग का नाम सोमनाथ रखा गया.
भगवान सोमनाथ की पूजा, उपासना और दर्शन करने से भक्तों के क्षय एवं त्वचा संबंधी रोग नष्ट हो जाते हैं. सोमनाथ में एक चंद्रकुंड भी है. मान्यता है कि यहां भगवान शिव और ब्रह्मा सदा निवास करते हैं. इस कुंड में छह माह तक लगातार स्नान करने से असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते हैं. यहां देश-विदेश से करोड़ों भक्त बाबा सोमनाथ के दर्शन के लिए पूरे वर्ष आते हैं. महाशिवरात्रि को श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है और मंदिर पूरी रात खुला रहता है. सावन माह में सोमनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. सुबह जैसे ही सूरज की किरणें अपनी यात्रा शुरू करती हैं, अनंत सागर देवाधिदेव महादेव के चरण पखारने के लिए व्याकुल हो उठता है.
गुजरात के सौराष्ट्र के प्रभास क्षेत्र में प्रवेश करते ही दूर से ही दिखाई देने लगता है वह ध्वज, जो हजारों वर्षों से भगवान शिव के यश का गुणगान करता आ रहा है. यहां आने वाले हर शिवभक्त के मन में यह अटूट विश्वास होता है कि उसकी हर मुसीबत का अंत हो जाएगा. मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले दर्शन होते हैं भगवान शिव के प्रिय वाहन नंदी के. सुबह सबसे पहले पंचामृत से शिव जी को स्नान कराया जाता है. स्नान के बाद शृंगार किया जाता है और शिवलिंग पर चंदन से ऊं लिखा जाता है. इसके बाद भोलेनाथ को बेलपत्र अर्पित किया जाता है. शृंगार के बाद पुजारी शिव के हर रूप की आराधना करते हैं. अंत में महासागर की आरती होती है. यहां आने वाले शिवभक्त अपनी मन्नतों की सिफारिश नंदी जी से करना नहीं भूलते. मान्यता है कि भक्तों की प्रार्थना उनके आराध्य तक नंदी जी ही पहुंचाते हैं.
कैसे जाएं
भगवान सोमनाथ का मंदिर जिस स्थान पर है, उसे वेरावल, सोमनाथपाटण, प्रभास और प्रभासपाटण आदि नामों से जाना जाता है. जहां राजकोट-वेरीवाल एवं खिजड़िया, वेरावल रेल लाइनें हैं. देश के किसी भी प्रमुख रेलवे स्टेशन से यहां पहुंचने के लिए पहले राजकोट जाएं और उसके बाद राजकोट से वेरावल जाएं. वहां से प्रभासपाटण पांच किलोमीटर दूर है, जहां बस अथवा टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है. यदि आप हवाई रास्ते जाना चाहते हैं, तो अमरेली एयरपोर्ट जा सकते हैं, उसके बाद वहां से सोमनाथ मंदिर के लिए टैक्सी ले सकते हैं.
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