बाल ठाकरे द्वारा मध्य मुंबई और फिर उत्तर व दक्षिण मुंबई में मराठियों का समर्थन जुटाने के साथ कांग्रेस अपना प्रभाव खोने लगी. राजनीति के गुरुत्वाकर्षण का केंद्र फोर्ट से बदल कर परेल और लालबाग और फिर उत्तरी इलाका बनता चला गया. मुरली देवड़ा दक्षिण मुंबई में कांग्रेस की ताकत के अंतिम कड़ी थे. उन्होंने पैसे का प्रवाह हमेशा सुचारू रूप से बनाए रखा था. देवड़ा के मन में शीर्ष पद के लिए कोई लालसा नहीं थी. उनका अपना प्रभाव था और उन्हें उसे साबित करने के लिए किसी टॉप पोजीशन की ज़रूरत नहीं थी. वह एक बेहतरीन बॉम्बे वाला थे और भाषा उनकी लोकप्रियता में बाधा नहीं थी. 
mumbai-slumsमुरली देवड़ा की मौत एक दु:खद घटना है. वह एक बेहतर राजनीतिज्ञ तो थे ही, साथ ही एक बहुत दयालु व्यक्ति भी थे. वह एक ऐसे कांग्रेसी नेता थे, जिन्हें अपने क्षेत्र और अपनी सीमा के बारे में पता था, उनकी जड़ें बहुत गहरी थीं. वह मुंबई में हर एक समुदाय से खुद को जोड़ सकते थे, लेकिन आम चुनाव और उसके बाद महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार ने राष्ट्रीय स्तर पर और मुंबई में पार्टी की किस्मत पर एक प्रश्‍नचिन्ह लगा दिया. बंबई पिछले 25 वर्षों में मुंबई बन गया है. यह स़िर्फ नाम का एक परिवर्तन नहीं है, बल्कि राजनीति और संस्कृति का भी एक परिवर्तन है. एक समय था, जब यह बंबई था, द्वीप का आधा दक्षिणी हिस्सा राज्य और उसकी राजधानी को कमांड करता था. कांग्रेस ने हमेशा बंबई को अपने मजबूत गढ़ों में से एक माना. इसकी खुद की एक प्रांतीय कांग्रेस कमेटी थी. बंबई में ही भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ और यहीं पर 1944 में गांधी-जिन्ना वार्ता हुई थी.
कांग्रेस ने बंबई के साथ अपना कनेक्शन बंबई के पैसे वालों और बुद्धिजीवियों के ज़रिये बढ़ाया. केएफ नरीमन को अब एक पर्यटक बिंदु से अधिक और किसी रूप में नहीं जाना जाता है, लेकिन उन्होंने द्वितीय विश्‍व युद्ध से पहले कांग्रेस का नेतृत्व किया था. एक पारसी रूप में उन्होंने बंबई की महानगरीय संस्कृति का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व किया था. प्रतिष्ठित बैरिस्टर भूला भाई

शिवसेना ने दक्षिण मुंबई की उपेक्षा करके मुंबई में अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया. दरअसल, उसने (कांग्रेस) एंटी बॉम्बे व्यवहार किया, जब वह महाराष्ट्र में शासन कर रही थी. 26/11 की घटना हुई दक्षिणी बॉम्बे में, जो महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री के लिए कम जानकारी वाला क्षेत्र था. बंबई ने महसूस किया कि स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने उसे छोड़ दिया है.

देसाई मुंबई कांग्रेस के एक और स्तंभ थे. पारसियों, वकीलों, व्यापारियों और बुद्धिजीवियों का संयोजन ही मुंबई में कांग्रेस की ताकत थी. मुख्य रूप से गुजराती और पारसी ही थे और साथ में एसके पाटिल, जिनके सहारे कांग्रेस बंबई के मराठीभाषी समुदाय में अपने प्रभाव का विस्तार कर सकी. इसके अलावा इन लोगों ने अपने व्यवसाय को भी ऊंचाई तक पहुंचाया. पाटिल ने फिल्म उद्योग से भी (जो तब तक बॉलीवुड नहीं कहा जाता था) अपनी दोस्ती बढ़ाई. यह उद्योग तब चेंबूर एवं अंधेरी में स्टूडियो के साथ जुहू एवं बांद्रा में फल-फूल रहा था. नेहरू जब लोकसभा में वीके कृष्ण मेनन को लाना चाहते थे, तब उत्तर बंबई निर्वाचन क्षेत्र में उनके लिए फिल्मी सितारों ने प्रचार-प्रसार किया था.
फिर भी, कांग्रेस की पकड़ तबसे ढीली होनी शुरू हुई, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू संयुक्त महाराष्ट्र की मांग को बल नहीं दे पाए. 1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को नुक़सान उठाना पड़ा, तबसे उसने अपने नेतृत्व का महानगरीय चेहरा छोड़ना शुरू कर दिया और मराठी बोलने वाले नेताओं को आगे लाना शुरू किया. मोरारजी देसाई को केंद्रीय मंत्रिमंडल में लाया गया. कांग्रेस

कांग्रेस ने बंबई के साथ अपना कनेक्शन बंबई के पैसे वालों और बुद्धिजीवियों के ज़रिये बढ़ाया. केएफ नरीमन को अब एक पर्यटक बिंदु से अधिक और किसी रूप में नहीं जाना जाता है, लेकिन उन्होंने द्वितीय विश्‍व युद्ध से पहले कांग्रेस का नेतृत्व किया था. एक पारसी रूप में उन्होंने बंबई की महानगरीय संस्कृति का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व किया था.

भाग्यशाली थी कि उसे एक बौद्धिक नेता वाईबी चव्हाण मिले और बाद में शरद पवार जैसे नेता लाइन में थे, लेकिन कांग्रेस के पास बंबई में कोई जननेता नहीं था. उसके मुख्यमंत्रियों की ताकत बंबई की बजाय राज्य के सुदूर इलाकों में थी. बंबई स़िर्फ एक कैश काउ (पैसे देने वाली जगह) बनकर रह गई थी.
बाल ठाकरे द्वारा मध्य मुंबई और फिर उत्तर व दक्षिण मुंबई में मराठियों का समर्थन जुटाने के साथ कांग्रेस अपना प्रभाव खोने लगी. राजनीति के गुरुत्वाकर्षण का केंद्र फोर्ट से बदल कर परेल और लालबाग और फिर उत्तरी इलाका बनता चला गया. मुरली देवड़ा दक्षिण मुंबई में कांग्रेस की ताकत के अंतिम कड़ी थे. उन्होंने पैसे का प्रवाह हमेशा सुचारू रूप से बनाए रखा था. देवड़ा के मन में शीर्ष पद के लिए कोई लालसा नहीं थी. उनका अपना प्रभाव था और उन्हें उसे साबित करने के लिए किसी टॉप पोजीशन की ज़रूरत नहीं थी. वह एक बेहतरीन बॉम्बे वाला थे और भाषा उनकी लोकप्रियता में बाधा नहीं थी. वह बेहतरीन बंबइया भाषा बोलते थे, जिसे कई भाषाओं को एक साथ मिलाकर बनाया गया है.
शिवसेना ने दक्षिण मुंबई की उपेक्षा करके मुंबई में अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया. दरअसल, उसने (कांग्रेस) एंटी बॉम्बे व्यवहार किया, जब वह महाराष्ट्र में शासन कर रही थी. 26/11 की घटना हुई दक्षिणी बॉम्बे में, जो महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री के लिए कम जानकारी वाला क्षेत्र था. बंबई ने महसूस किया कि स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने उसे छोड़ दिया है. बंबई को शंघाई बनाने के सपने पर यूपीए या महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन ने कोई ध्यान नहीं दिया. यह उम्मीद करना कुछ ज़्यादा ही होगा कि नई सरकार दक्षिण बंबई के व्यापार और वित्तीय केंद्र को पुनर्जीवित करने को लेकर बहुत कुछ करेगी. दिल्ली और मुंबई की तस्वीर बताती है कि कैसे बंबई कांग्रेस के लिए एक सौतेला बच्चा है. क्या भाजपा कुछ बेहतर करेगी?

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