राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के रिश्तों के बारे में हमेशा यही कहा गया कि भाजपा एक स्वतंत्र संगठन है और संघ इसके आंतरिक मामलों में कोई दखलंदाजी नहीं करता है. जबसे यह बात सामने आई है कि अगले अध्यक्ष महाराष्ट्र के नितिन गडकरी होंगे, तबसे संघ परिवार का यह झूठ लोगों के सामने आ गया.
बचपन में हमने एक कहानी पढ़ी थी कि कबूतर के अंडों को यूं ही पड़े देखकर कुछ बच्चों को लगा कि इन्हें एक घोसले में रखा जाए, ताकि अंडे खराब होने से बच जाएं. फिर बच्चों ने बड़े अरमान से एक घोसला बनाया. उसके बाद अंडों को उठाकर उस घोसले में रख दिया. जब कबूतर वापस लौटा तो उसने अंडों को ज़मीन पर फेंक दिया, जिससे सारे अंडे टूट गए. बच्चे इस बात से अनजान थे कि छूने मात्र से ही वे अंडे खराब हो जाएंगे. इस समय भाजपा की हालत अंडेकी तरह है और संघ बच्चों की तरह उससे खेल रहा है. नतीजा क्या निकलने वाला है, यह भी तय है.
आज की राजनीति का सबसे अहम सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी का नया अध्यक्ष कौन होगा? यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि आने वाले दस सालों की राजनीति इस फैसले से तय होगी. भारतीय जनता पार्टी के अगले अध्यक्ष का सवाल पहले कभी भी इतना महत्वपूर्ण नहीं रहा. यह एक ऐसा सवाल है, जिस पर पूरे देश की जनता की नज़र है. इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी के तमाम कार्यकर्ता और नेताओं की नज़र है, एनडीए में शामिल पार्टियों की नज़र है. सरकार, कांग्रेस और दूसरी भाजपा विरोधी पार्टियों की नज़र है. यह इतना महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि अगले अध्यक्ष की योग्यता और उसकी योग्यता से भारतीय जनता पार्टी की चाल, चरित्र और चेहरा तय होगा और यह भी तय होगा कि क्या भारतीय जनता पार्टी इसके बाद मज़बूत होगी या फिर टूट कर बिखर जाएगी.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के रिश्तों के बारे में हमेशा यही कहा गया कि भाजपा एक स्वतंत्र संगठन है और संघ इसके आंतरिक मामलों में कोई दखलंदाजी नहीं करता है. जबसे यह बात सामने आई है कि अगले अध्यक्ष महाराष्ट्र के नितिन गडकरी होंगे, तबसे संघ परिवार का यह झूठ लोगों के सामने आ गया. संघ परिवार ने लोगों से अब तक यह सच छुपाए रखा था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है, जो भारतीय जनता पार्टी के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करता. लाख कहने के बावजूद देश की जनता सच जानती है कि भाजपा का रिमोट कंट्रोल कहां है. यह बात और है कि मोहन भागवत ने एक टीवी इंटरव्यू में सच का सामना किया और सीधी बात कह दी कि संघ चाहता है कि अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, वैंकेया नायडू या अनंत कुमार में से कोई भाजपा का अध्यक्ष न बने.
भाजपा को बचाने की संघ की मुहिम से पार्टी का जो नुक़सान हुआ है, उसकी भरपाई करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने बयान से एक ही झटके में भाजपा की साख खत्म कर दी. भाजपा संघ की कठपुतली है, यह सा़फ हो गया. अब तक जो नेता पार्टी चला रहे थे, वे अचानक खुद को असहाय महसूस करने लगे. संघ ने देश को यह बता दिया कि उसके मनमुताबिक़ ही अगला अध्यक्ष होगा. इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता है कि भाजपा के नेता, कार्यकर्ता, समर्थक और देशवासी क्या चाहते हैं. भाजपा के अध्यक्ष का चुनाव नहीं होगा. अगर होगा भी तो मात्र दिखावा होना है, क्योंकि चुनाव से पहले ही यह सा़फ हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं में से कोई भी अगला अध्यक्ष नहीं बनेगा. संघ ने यह साबित किया है कि भाजपा के पास चाहे जितना भी जन समर्थन हो, संगठन के मामले में संघ अपनी मनमानी करने के लिए आज़ाद है. अब सवाल यह है कि भाजपा का अगला अध्यक्ष किस मुंह से यह कहेगा कि वह 27 फीसदी लोगों का नेता है. अगले अध्यक्ष का चेहरा जब भी लोगों के सामने आएगा तो यही लगेगा कि यह संघ द्वारा बनाया गया अध्यक्ष है. भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए भी यह शर्मनाक स्थिति होगी, क्योंकि अब उन्हें यह लग रहा है कि पार्टी के लिए काम करने से ज़्यादा जरूरी संघ के नुमाइंदों को खुश रखना है. संघ ने भाजपा के नेताओं की साख भी खत्म कर दी. कार्यकर्ताओं को यह लग रहा है कि भाजपा के नेताओं के बस में कुछ भी नहीं है. भाजपा में अब जो होगा, वह संघ के दिशा-निर्देश पर ही होगा. संघ के सौजन्य से भाजपा संगठन जनता के सामने बेनक़ाब हो चुका है.
यह बात भी सही है कि अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, वैंकेया नायडू और अनंत कुमार जन समर्थन वाले नेता नहीं हैं. आडवाणी जी के सहारे चारों नेताओं ने दिल्ली के मुख्यालय से ही संगठन पर अपनी पकड़ मज़बूत बना ली. यही वजह है कि आज वे संघ के फैसले का विरोध करने में असमर्थ हैं. यह भी याद रखना ज़रूरी है कि इनमें से एक राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं और एक लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने जा रही हैं. अगर अब भी ये जनता के बीच जाते हैं तो संघ की रणनीति को ध्वस्त कर सकते हैं. कल क्या होगा, यह कहना अभी मुमकिन नहीं है. संघ के फैसले का असर भाजपा पर बुरा होगा, यह भी तय है.
जनता को यह जानने का पूरा अधिकार है कि देश की मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता का चुनाव कौन कर रहा है, क्यों कर रहा है और कैसे कर रहा है. विपक्ष किसके दिशा-निर्देश और तर्क पर चलेगा. वह कौन है, जिसके नेतृत्व में सरकार के कामकाज पर नज़र रखी जाएगी. प्रजातंत्र में अगर सरकार मनमानी करती है तो जनता की एकमात्र आशा की किरण विपक्ष है. संघ के संगठनों में प्रजातांत्रिक मूल्यों की कमी है. संघ के संगठनों में चुनाव नहीं होते, लेकिन संघ अपने दूसरे संगठनों में क्या करता है, उससे जनता को सरोकार नहीं है, लेकिन देश की मुख्य विपक्षी पार्टी जो भी होती है, वह जनता के भविष्य से जुड़ी होती है. विपक्षी पार्टी भी सरकार की तरह ही महत्वपूर्ण होती है. विपक्ष का कमज़ोर होना देश में प्रजातंत्र के कमज़ोर होने का संकेत है. इसलिए यह सवाल करना ज़रूरी है कि संघ की मंशा क्या है?