श्री अमरेद्र धनेश्वर ने 14 नवम्बर के महाराष्ट्र टाईम्स में समाजवादी तारा मतलब समाजवादी सितारा शीर्षक से बैरिस्टर नाथ पै जी के उपर नाथ पै कि भतीजी अदिति पै कि अंग्रेजी किताबकी समिक्षा की है जिसे मै अपने ढंग से हिंदी मे देने की कोशिश कर रहा हूँ !
समाजवादी आंदोलन ने देश को एक से बढकर एक नेता दिये हैं जिनमे डाॅ राम मनोहर लोहिया, मधु लिमये, हरी विष्णु कामत, हेम बरुआ, सुरेन्द्र नाथ द्विवेदी, रवि राय, जार्ज फर्नांडीज, मधु दंडवते, किशन पटनायक, मृणाल गोरे, प्रमिला दंडवते, नाना साहब गोरे, एस एम जोशी जी, तथा बैरिस्टर नाथ पै जी जो 1957 याने दुसरी लोकसभा चुनाव में प्रथम बार उम्र के 35 वे साल पूरे होने पर सतत तीन बार लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के कोंकण विभाग की राजापूर संसदीय क्षेत्र से भारी बहुमत से चुनकर जाते रहे ! 1962 और 67 के भी चुनाव में वह भारी बहुमत से चुनकर गये थे और वह उनके लोकसभा कार्य काल का सबसे बेहतरीन समय रहा है उस समय उनके साथ हिरेन मुखर्जी, इंद्रजित गुप्ता, एके गोपालन, अटल बिहारी वाजपेयी, आचार्य कृपलानी, मिनू मसानी, प्रकाश विर शाश्त्री जैसे दिग्गज लोगों ने विरोधी दलों की तरफ से उस समय की सरकार पर अंकुश रखने का एतिहासिक भुमिका निभाई है !
नाथ पै जी का संसद में का पहला ही भाषण सभापति हुकूमसिह ने भूरी भूरी प्रशंसा की थी; और जवाहरलाल नेहरु जी ने अपने संसदीय भवन के कक्ष में आमंत्रित करके उनका अभिनंदन करके अक्सर अपने तिन मूर्ति आवास पर सुबह के नास्तेके समय बुलाकर उनसे विविध विषयों पर उनके विचार समझने की कोशिश की है !
बैरिस्टर नाथ पै जी की चचेरी नातिन अदिति पै कि अंग्रेजी में लिखा हुआ पहला ही चरित्र वह भी उनकी असामयिक मौत के 49 साल के बाद प्रकाशित हुआ है !
नाथ पै जी का जन्म वेंगुर्ला कोंकण विभाग के अरबी समुद्र के किनारे के एक छोटे से कस्बे में हुआ था लेकिन उनका बाल्यकाल और शुरूआती शिक्षा कर्नाटक के बेलगाँव नामक शहर में हुआ है और वही पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम मे मुख्य रूप से भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के कारण पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर के जूतों के साथ उनके छाती पर चढकर उन्हे यंत्रणा देने के कारण वह हार्ट के मरीज बन गये थे और उसी बेलगाँव शहर की एक जनसभा को संबोधित करते हुए 18 जनवरी 1971 के दिन हार्ट अटेक से मौत हुई है और उस समय उनकी उम्र 49 साल की थी !
वह कानून की पढाई के लिए 1948 से 1952 तक इंग्लैंड में थे और मजदूर पार्टी की सरकार के कामकाज को गौर से देखने के कारण और बचपन से ही राष्ट्र सेवा दल के शाखा में शामिल होने के कारण वह इंग्लैंड से पूर्ण समाजवादी होकर ही लौटे ! और सबसे बड़ी बात भारत को स्वतंत्रता देने की पहल करने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लेमंट अटली से नाथ पै जी का काफी करीब से संबंध आया था और उन्होंने उन्हें कई जिम्मेदारी का पद भी दिया था !
इतिहास प्रसिद्ध गोलकनाथ केस के कारण संसद को भारत के संविधान को बदलने का अमर्याद अधिकार नहीं है ऐसा निर्णय दिया था और उससे न्यायपालिका श्रेष्ठ है या संसद के विवाद की शुरुआत हुई थी और नाथ पै जी ने संसद श्रेष्ठ है का पक्ष मे बोलते हुए और नानी पालखीवाला जैसे वरिष्ठ कानूनी विशेषज्ञ से मुम्बई विश्वविद्यालय के काॅन्हेकेशन हाॅल मे शेकडो लोगों के सामने नाथ पै जी ने अपनी बात प्रभावशाली ढंग से रखने के कारण वह सभा जितनेका विस्तृत जानकारी इस किताब में है !
लेकिन समाजवादी नेता डाॅ राम मनोहर लोहिया और मधु लिमये जीने नाथ पै जी का विरोध संविधान का मूल रूप अपरिवर्तनीय है और भारत के संसदीय लोकतंत्र तथा धर्मनिरपेक्ष शासन के लिए विशेष रूप से जरूरी है !
और आपातकाल मे श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने नाथ पै जी के उदाहरण देते हुए कहा कि आपातकाल कैसा आवश्यक है !
इस किताब में शरद पवार और कर्ण सिंह के पुरस्कार स्वरूप लेख भी है ! यूसुफ मेहेरअली के जैसे ही नाथ पै जी भी अल्पायु रहे हैं लेकिन दोनों ही विलक्षण प्रतिभा के कारण उनके जीवन काल में ही बहुत ही प्रभावशाली थे और आज भी उन्हे समाजवादी आंदोलन के सितारे माना जाता है ! इस किताब में उनकी नातिन ने अपने दादाजी के बारे में और वह भी अंग्रेजी भाषा में लिखकर बहुत ही अच्छा काम किया है !
डाॅ सुरेश खैरनार, नागपुर 15 नवम्बर 2020