झारखंड में डोमिसाइल एक की पुनरावृत्ति हो रही है और एक बार फिर यह प्रदेश अशांत होने की कगार पर खड़ा है. आदिवासियों की जमीन को दखल दिहानी को लेकर आदिवासी और गैर आदिवासी आमने-सामने हैं. राज्य सरकार के एक फरमान के बाद आदिवासी जमीन पर वर्षों से रह रहे गैर आदिवासियों को उजाड़ने का काम शुरू हो गया है, वैसे राज्य सरकार इस मामले में कोर्ट के आदेश का पालन करने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ ले रही है. इस मामले को लेकर गैर आदिवासी सड़कों पर उतर आये हैं, जबकि आदिवासी संगठन भी आदिवासियों को जमीन दिलाने के नाम पर खुलकर सामने आ गये हैं, जिससे झारखंड की स्थिति भयावह होने की आशंका दिख रही है. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रशासन को स्थिति स्पष्ट करने को कहा है, वहीं राज्य के भू-राजस्व मंत्री अमर बाउरी ने कहा कि छोटे आदिवासी प्लॉटों पर रह रहे गैर आदिवासियों को उजाड़ने नहीं दिया जाएगा, जबकि बड़े आदिवासी भूखंडों पर विधि सम्मत कार्रवाई करते हुए आदिवासियों को जमीन वापस दिलाने का काम किया जाएगा. आदिवासी जमीन पर बने मकानों को लेकर एक मामला झारखंड उच्च न्यायालय में विचाराधीन है. इसके बाद भी एसएआर कोर्ट के आदेश पर प्रशासन ने आदिवासियों को जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी है.
राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ गैर आदिवासी गोलबंद हो गये हैं. राजधानी में 70 प्रतिशत गैर आदिवासियों ने आदिवासियों की जमीन पर अपना मकान बना लिया है. आदिवासियों को इस जमीन का मुआवजा भी दे दिया गया है. गैर आदिवासियों का मानना है कि उसने तिनका-तिनका जमा कर अपना मकान बनाया. जमीन की कीमत भी आदिवासियों को दे दी गयी और आदिवासी परिवार ने उस जमीन का रजिस्ट्री भी उनके नाम कर दिया है. जमीन का दखल कब्जा (म्यूटेशन) भी हो गया और अब सरकार उनलोगों से जमीन मांग रही है, आखिर वे लोग अब जाएं तो कहां जाएं. इनलोगों ने साफ तौर पर कहा कि वे लोग अपनी जान दे देंगे, पर जमीन नहीं देंगे. इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है, हजारों की संख्या में पुरुषों एवं महिलाओं ने सड़कों पर उतर कर उग्र प्रदर्शन किया, अंततः पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ी. इधर आदिवासियों को जमीन दखल-दिहानी करने जा रहे अधिकारियों ने भी सरकार को यह साफ तौर पर कहा है कि उनकी जान पर खतरा है और वे लोग किसी भी समय जनता के आक्रोश का शिकार हो सकते हैं. गैर आदिवासी जहां एकजुट हो गये हैं, वही आदिवासी भी हथियार-हरवे के साथ सड़कों पर उतरने को तैयार हैं. आदिवासी और गैर आदिवासी के बीच दूरियां लगातार बढ़ रही हैं और एक-दूसरे को लेकर घृणा एवं आक्रोश बढ़ता जा रहा है.
दरअसल, आदिवासी उस समय से ही गोलबंद होने लगे थे, जब भाजपा की रघुवर सरकार ने सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव लाया था. इस संशोधन संबंधी अध्यादेश लाने के बाद आदिवासी संगठन एवं झारखंड की पार्टियां एकजुट हो गईं और इस अध्यादेश को आदिवासी एवं मूलवासी विरोधी बताते हुए इसका विरोध करना शुरू कर दिया. विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि इस अध्यादेश से उद्योगपतियों को फायदा होगा और आदिवासी एवं मूलवासी अपने जमीन से बेदखल हो जाएंगे. विभिन्न संगठनों ने इसे वापस लेने की मांग करते हुए राज्यव्यापी आंदोलन शुरू कर दिया. विपक्षी दलों ने इसे मुद्दा बनाया और आग में घी डालने का काम किया, इस कारण आदिवासियों और मूलवासियों में बाहरी को लेकर आक्रोश बढ़ता गया. परिणाम यह हुआ कि जब दखल दिहानी के नाम पर प्रशासन गैर आदिवासियों से जमीन वापस लेने गये तो गैर आदिवासी उग्र हो गये और पुलिस एवं प्रशासन पर पथराव करना शुरू कर दिया. इधर आदिवासी भी अपनी जमीन को वापस कराने के नाम पर अड़े हुए हैं, जो कभी भी भयानक रूप ले सकता है. इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि झारखंड एक बार फिर बारूद की ढेर पर खड़ा हो गया है.
सीएनटी एसपीटी एक्ट को लेकर आदिवासियों में कितना आक्रोश है, इसका एक उदाहरण देखते हैं. रांची से सटे रामगढ़ जिला के गोला प्रखंड में इनलैंड पावर फैक्ट्री के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया था. इसके लिए जमीन मालिकों को मुआवजा भी दिया गया था, पर कुछ जमीन मालिक इसका विरोध कर रहे थे. जमीन मालिकों ने फैक्ट्री का घेराव किया और विस्थापित हुए लोगों को नौकरी और मुआवजा की मांग करने लगे. बातचीत के क्रम में विस्थापित इतने उग्र हो गये कि उन्होंने अधिकारियों को पीट दिया और अंचलाधिकारी की गाड़ी में आग लगा दी, पुलिस को हालात पर काबू पाने के लिए गोली चलानी पड़ी, जिसमें तीन विस्थापितों की मौत हो गयी, जबकि आधा दर्जन से अधिक लोग घायल हो गये. इससे भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है कि झारखंड किस ओर बढ़ रहा है. वैसे आदिवासियों की जमीन खरीदने के लिए इसमें हमेशा संशोधन होते रहे हैं. इसमें यह प्रावधान है कि 1969 से जो लोग आदिवासी की जमीन पर मकान बनाकर रह रहे हैं एवं इस जमीन की कीमत प्रभावित को दे दिया है, उसे बेदखल नहीं किया जा सकता है, वह जमीन उसकी मानी जाएगी. नेताओं एवं अधिकारियों ने अपने फायदे के लिए हमेशा इस अधिनियम में संशोधन कराए. अविभाजित बिहार में तो आईएएस अधिकारियों ने अपने फायदे के लिए अधिनियम में संशोधन कराकर लगभग दो सौ एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर आईएएस कॉलोनी बना ली. आज रांची का यह सबसे पॉश इलाका अशोक नगर के नाम से जाना जाता है. आदिवासी नेताओं ने भी संशोधन कर आदिवासियों की जमीन अपने नाम से खरीद ली. झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन एवं हेमंत सोरेन ने भी कई एकड़ जमीन खरीदी.
विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने कहा कि सरकार इस पर जल्द कार्रवाई करे, अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने को तैयार रहे. ऊहीं मुख्यमंत्री रघुवर दास का मानना है कि अगर झारखंड के लोग विकास चाहते हैं तो कुछ चीजों पर समझौता करना ही होगा. पर अब देखना है कि राज्य के भोले-भाले आदिवासी अब क्या कदम उठाते हैं, विपक्षी की बातों में आकर राज्य को अशांत करना चाहते हैं या फिर राज्य को समृद्ध. पर अभी जो हालात बने हैं, इससे यह स्पष्ट है कि सरकार अगर इस मामले को कड़ाई से नहीं लेती है तो फिर स्थिति को नियंत्रण में करना मुश्किल हो सकता है और यहां की भी स्थिति पूर्वोत्तर के राज्यों की तरह होने में देर नहीं लगेगी.
द़खल दिहानी नहीं रुकी तो बिगड़ेंगे हालात: खु़फिया विभाग
राजधानी सहित राज्य के अन्य हिस्सों में प्रशासन के नोटिस पर आदिवासी जमीन की दखल-दिहानी को लेकर खुफिया विभाग ने राज्य सरकार को सतर्क किया है. अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा है कि अगर दखल-दिहानी नहीं रुकी तो हालात बिगड़ जाएंगे और राज्य में एक बार फिर आदिवासियों और गैर आदिवासियों के बीच हिंसात्मक घटनाएं घट सकती हैं. ऐसे में प्रशासनिक कदम उठाने के पूर्व तमाम बिंदुओं पर ध्यान रखते हुए फूंक-फूंक कर कदम उठाना होगा. रांची के किशोरगंज और हरमू में इसकी बानगी देखने को मिल चुकी है. जब दखल दिहानी के खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़क पर दिखा. रांची जिला प्रशासन ने राजधानी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर लोगों को नोटिस भेजकर दखल दिहानी की चेतावनी दी है, ऐसे में विधि-व्यवस्था को खतरा पैदा हो सकता है. खासकर अराजक तत्व ऐसे मौके का फायदा उठा सकते हैं और इसका राजनीतिक कुप्रभाव भी पड़ सकता है. राजनीतिक लाभ लेने के लिए दोनों पक्ष इसका लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं और किसी भी घटना को अंजाम दे सकते हैं. खुफिया तंत्र ने सुझाव दिया है कि ऐसे में दखल-दिहानी प्रक्रिया को रोका जाए. प्रशासन को लोगों को विश्वास में लेना चाहिए और अफवाह फैलानेवाले लोगों पर सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए.
रैयतों की मर्ज़ी के बगैर सरकार ज़मीन नहीं लेगी: मंत्री
दशकों से गैर मजरुआ व आदिवासी जमीन पर बसे लोगों की अवैध जमाबंदी रद्द करने के फरमान के बाद आदिवासी भूमि पर दखल दिहानी की प्रशासनिक कवायद से उत्पन्न स्थिति से राज्य के भू-सुधार व राजस्व मंत्री अमर बाउरी खासे चिंतित हैं. वैसे वे सीएनटी व एसपीटी एक्ट संशोधन अध्यादेश को लोक-कल्याणकारी मानते हैं. उनका मानना है कि एसएआर कोर्ट को आदिवासियों ने जमीन हथियाने का हथियार बना लिया है. विपक्षी दलों पर हमला करते हुए मंत्री ने कहा कि सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन को विपक्ष बेवजह तूल दे रहा है.
आदिवासी भूमि पर दखल-दिहानी के खिलाफ लोग गोलबंद हो रहे हैं. विधि-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो गयी है. इस पर सरकार क्या सोच रही है, के सवाल पर चंद्रप्रकाश चौधरी ने कहा कि दखल-दिहानी कानूनी कार्रवाई का एक हिस्सा है, ऐसा कोर्ट के आदेश पर हो रहा है. कुछ लोगों ने एसआर कोर्ट का इस्तेमाल जमीन हथियाने के लिए एक हथियार के रूप में किया. संबंधित जमीन का उपयोग व्यावसायिक रूप में हो रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार जल्द इस मामले में स्थिति स्पष्ट करेगी. जनहित में सारे कानून सम्मत कदम उठाए जाएंगे. किसी के साथ कोई अन्याय नहीं होगा. अवैध जमाबंदी के सवाल पर उन्होंने कहा कि छोटे प्लॉट पर निवास कर रहे गरीबों को नियमित कर देना चाहिए, लेकिन जिन लोगों ने बड़े-बड़े प्लॉट हथिया लिए हैं, उनको किसी भी सूरत में नहीं बख्शा जाएगा. सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन अध्यादेश को लेकर हो रहे विरोध के बारे में बाउरी ने कहा कि विपक्ष बेवजह मामले को तूल दे रहा है. झारखंड की जनता विकास चाहती है, तो विकास हवा में तो नही, जमीन पर ही होगा. ऐसे में हर हाल में जमीन चाहिए. उन्होंने कहा कि रैयतों की मर्जी के बगैर सरकार एक इंच भी जमीन नहीं लेगी. सीएनटी-एसपीटी एक्ट की मूल भावना में बगैर छेड़छाड़ किए सरकार जनहित और आदिवासियों के हित में संशोधन चाह रही है. संशोधन यूं ही नही हो जाएगा और इस पर बहस की गुंजाइश है. झारखंड और झारखंड के निवासी अगर विकास चाहते हैं, तो उसे बदलाव स्वीकार करना होगा, अन्यथा वह कह दे कि वह इसी अवस्था में रहना चाहता है. पहले यही विपक्ष के नेता संशोधन के हिमायती थे, पर अब वे इसका विरोध कर रहे हैं. विरोध की राजनीति का प्रतिरोध करने पर ही विकास के रास्ते खुलते हैं. इसलिए सरकार की मंशा पर बिना संदेह किये लोगों को सहयोग करना चाहिए.
सरकार चेते, नहीं तो सब्र का बांध टूटेगा: हेमंत
विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने कहा कि भाजपा सरकार स्थानीय एवं आदिवासी लोगों का अस्तित्व समाप्त करने की साजिश में लगी हुई है. सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन कर आदिवासी एवं मूलवासी की जमीन हड़पकर उद्योगपतियों को देना चाह रही है. इस कारण कृषि वाली भूमि अधिग्रहण करने का अधिकार भी सरकार चाह रही है और नये संशोधन में इस बात का प्रावधान किया गया है. इससे आदिवासी और मूलवासी जमीन से बेदखल हो जाएंगे. उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि आदिवासी और गैर आदिवासी के बीच विवाद उत्पन्न कराकर अपना हित साधने की कोशिश कर रही है. सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार इस अधिनियम में संशोधन नहीं करे, नहीं तो लोगों के सब्र का बांध टूट जायेगा और इसका गंभीर खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि राजधानी में जिन लोगों ने आदिवासियों की जमीन पर कब्जा जमा लिया है, उसे फिर से आदिवासियों को वापस दिलाने की पहल सरकार को करनी चाहिए. आदिवासी पहले ही राज्य में भूमिहीन हो रहे हैं. इससे आदिवासियों एवं मूलवासियों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है. सरकार आदिवासियों की भावना के साथ खिलवाड़ नहीं करे. उन्होंने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा इस अधिनियम में संशोधन के खिलाफ पूरे झारखंड में आंदोलन छेड़ेगा.
राजधानी से सटे गोला प्रखंड में रैयतों पर हुई गोलाबारी की निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि जमीन अधिग्रहण का ही परिणाम है कि उद्योगपतियों ने जमीन मालिकों पर गोलियां बरसाईं. उन्होंने इस कांड की निंदा करते हुए कहा कि राज्य की स्थिति भयावह होती जा रही है. किसान, मजदूर और रैयतों पर सरकार गोली चलवा रही है. पूरा राज्य अस्त-व्यस्त हो गया है और लोगों से जबरन जमीन ली जा रही है. लोगों के हितों का ख्याल नहीं रखा जा रहा है. सोरेन ने सरकार में शामिल आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो की आलोचना करते हुए कहा कि एक तरफ सुदेश सरकार के समर्थन में है, तो दूसरी ओर जनता के हित की बात कहकर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं. उन्हें जब जनता की इतनी फिक्र है, तो सरकार से समर्थन वापस क्यों नहीं ले लेते?
सरकार आदिवासियों को ज़मीन वापस दिलाए: बंधु तिर्की
राज्य के पूर्व मंत्री व झारखंड जनाधिकार मंच के नेता बंधु तिर्की ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आदिवासियों को झांसा देना बंद करे, अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहे. उन्होंने कहा कि सरकार विकास के नाम पर आदिवासियों को उजाड़ने का काम कर रही है. जल, जंगल और जमीन छिन जाने से आदिवासियों के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है. उन्होंने कहा कि सरकार आदिवासियों की हड़पी गयी जमीन पर फिर से दखल दिहानी दिलाए, अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहे. उन्होंने कहा कि दखल दिहानी सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट में हो रहे संशोेधन के विरोध में 22 अक्टूबर को रांची में एक रैली का आयोजन किया गया है. साथ ही राजभवन का घेराव किया जाएगा. इस महाजुटान में 5 लाख से अधिक आदिवासी भाग लेंगे. साथ ही चालीस से अधिक आदिवासी व स्थानीय संगठनों ने इस रैली को अपना समर्थन देने का ऐलान किया है. बंधु तिर्की ने चेतावनी दी है कि सीएनटी-एसपीटी एक्ट को सरकार खारिज करे अन्यथा आंदोलन और उग्र किया जाएगा. यह संशोधन आदिवासी व मूलवासी के हित में नहीं है. सरकार राजधानी में आदिवासियों की जमीन पर बसे लोगों को जल्द हटाकर आदिवासियों को दखल कब्जा दिलाये.