पड़ोसी मुल्क़ बांग्लादेश न स़िर्फ एक छोटा देश है, बल्कि कई मामलों में भारत से पीछे है. पिछले साल हुए भूमि सीमा समझौता (एलबीए) की दुनिया भर में तारी़फ हुई. कई दशकों तक स्टेटलेस रहे लोगों को न स़िर्फ अपना वतन हासिल हुआ, बल्कि एक सम्मानजनक ज़िंदगी भी. कूचबिहार में मौजूद 51 बांग्लादेशी छिटमहल (इन्कलेव) जो अब भारतीय भूभाग है, वहां रहने वाले लोगों को अभी तक कोई ख़ास सुविधा नहीं मिल पाई है. यहां न तो सड़कें बनी हैं और न ही लोगों के घरों तक बिजली पहुंची है. वहीं बांग्लादेश में मौजूद 111 भारतीय इन्कलेव, जो अब बांग्लादेशी भूभाग है, वहां शेख हसीना सरकार ने समझौते के तत्काल बाद ही राहत और पुनर्वास कार्यक्रम शुरू कर दिया. वहां गांवों में पक्की सड़कें बन गई हैं, लोगों को बिजली के नए कनेक्शन मिले हैं और गांवों में स्कूल और अस्पताल भी खुल गए हैं. बांग्लादेश सरकार अपने नए नागरिकों को रोज़गार भी मुहैया करा रही है. वहीं पश्र्चिम बंगाल सरकार इस मामले में का़फी पीछे है. समझौते बाद छिटमहल भारतीय नक्शा में शामिल तो हो गया, लेकिन वहां रहने वाले लोगों की ज़िदगी में कोई विशेष बदलाव नहीं आया. मध्य मसालडांगा के सबसे बुजुर्ग वाशिंदा असगर अली को इस बात खुशी है कि अपने जीते जी उन्हें वतन नसीब हुआ. लेकिन छिटमहल में विकास कार्य नहीं होने से वह का़फी दुखी हैं.
उल्लेखनीय है कि भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौते के बाद केंद्र सरकार ने पश्र्चिम बंगाल सरकार को राहत और पुनर्वास के लिए क़रीब 400 करोड़ रुपये की धनराशि मुहैया कराई है. लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि सरकार इन पैसों का सही इस्तेमाल नहीं कर रही है. कुछ ऐसा ही हाल बांग्लादेश से आए लोगों का है. बांग्लादेश के रंगपुर डिवीजन स्थित कुडीग्राम, लालमुनीरहाट और पंचगढ़ ज़िलों में 111 भारतीय छिटमहल थे, जो समझौते के बाद बांग्लादेशी भू-भाग बन गया. वहां रहने वाले करीब 39,000 हज़ार लोगों में से 922 ने भारत आने का ़फैसला किया, इनमें अधिकांश हिंदू थे. भारत आए 922 लोगों को कूचबिहार के दिनहाटा, मेखिलीगंज और हल्दीबाड़ी स्थित अस्थायी राहत शिविरों में रखा गया है. ज़िला प्रशासन की ओर से प्रत्येक परिवार को मुफ्त में राशन मुहैया कराया जा रहा है. दो वर्षों के भीतर इन लोगों को स्थायी घर बनाकर दिए जाएंगे. सरकार और ज़िला प्रशासन भले ही तमाम सुविधाएं देने का दावा कर रही है, लेकिन यहां रहने वाले लोगों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. बांग्लादेश के कुडीग्राम ज़िले से आए उस्मान गनी कूचबिहार ज़िले के दिनहाटा राहत कैंप में रहते हैं. उस्मान के मुताबिक़, प्रशासन एक परिवार को महीने में 30 किलो चावल, पांच किलो दाल, पांच लीटर केरोसिन, दो लीटर सरसों तेल, एक किलो दूध पाउडर और डेढ़ किलो नमक देती है. यह एक छोटे परिवार के लिए मुफीद है, लेकिन जिन परिवारों में सदस्यों की संख्या अधिक हैं, वहां इतने कम राशन से काम नहीं चलेगा. दिनहाटा राहत शिविर में रहने वाले अजीजुल इस्लाम, नरेश वर्मन, सुनीता वर्मन, राशिदा बेगम और सुमित्रा वर्मन की भी यहीं शिकायतें है.
बांग्लादेश के लालमुनीरहाट से आए मोहम्मद उमर ़फारुख यहां आने से पहले का़फी खुश थे, लेकिन यहां की व्यवस्थाओं से वह बेहद निराश हैं. उनके मुताबिक़, एक टिन के घर में रहना और किसी तरह पेट भरना ही ज़िंदगी नहीं है. यहां लोगों को स्थायी घर और रोज़गार चाहिए, ताकि बांग्लादेश से आए भारतीय नागरिक भी एक अच्छा जीवन व्यतीत करें. दरअसल, इन राहत शिविरों में रहने वाले ज्यादातर लोग मज़दूर हैं. दिनहाटा उनके लिए एक नई जगह है. मजदूरी की तलाश में अगर वे लोग बाहर निकलते हैं, तो उन्हें स्थानीय मज़दूरों के गुस्से का शिकार होना पड़ता है. स्थानीय मज़दूरों का आरोप है कि बाहर से आए लोगों की वजह से उनकी रोज़ी-रोटी प्रभावित होगी. राजेश्र्वर अधिकारी बताते हैं, यहां के लोकल मज़दूर काम करने नहीं देते हैं, वे कहते हैं कि तुम सरकार से काम मांगों, जिसने तुम्हें यहां लाया है.
कक्षा नौ में पढ़ने वाली पंद्रह वर्षीय ज्योत्सना वर्मन कैंप से थोड़ी दूर एक स्कूल में पढ़ने जाती है. लेकिन स्कूली बच्चे उसे बांग्लादेशी कह कर तंज कसते हैं. इस वजह से यहां के कई बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया है. दिनहाटा राहत शिविर के सामने एक सरकारी अस्पताल है, लेकिन यहां न तो दवाईयां है और न ही डॉक्टर. यहां काम करने वाले कर्मचारी सजल बोस बताते हैं, गांगुली साहब इस अस्पताल के डॉक्टर है, लेकिन वह हफ्ते में एक दिन आते हैं.
कैसे बना छिटमहल
कूचबिहार के महाराजा और रंगपुर के नवाब की मित्रता उन दिनों का़फी मशहूर थी. दोनों मन बहलाने के लिए अक्सर शतरंज खेला करते थे. शतरंज के इस खेल में दोनों राजा अपनी रियासत के अधीन गांवों को दांव पर लगाते थे. नतीज़तन कूचबिहार के राजा की प्रजा कभी रंगपुर के नवाब की अवाम बन जाती थी तो, कभी रंगपुर के नवाब की अवाम कूचबिहार के राजा की प्रजा हो जाया करती थी. शतरंज के इस खेल में हर दांव के साथ अवाम की हैसियत बदल जाया करती थी. राजा और नवाब तो अपना मन बहलाने के लिए यह जुआ खेलते थे, लेकिन उसकी कीमत दोनों राजाओं के अधीन जनता को चुकानी पड़ती थी. ख़ैर, दोनों राजाओं का यह सामंती खेल इसी तरह चलता रहा और दोनों तऱफ की जनता इससे परेशान होते रहे. वर्ष 1947 में बंटवारे के बाद कूचबिहार के राजा ने अपनी रियासत का विलय भारत में करने की घोषणा की. वहीं रंगपुर के नवाब पूर्वी पाकिस्तान में जाने का ़फैसला किया. इस तरह शतरंज के खेल में दांव पर लगे गांवों की सीमाएं भी रातों-रात बदल गई. बंटवारे की तैयारी के दौरान ब्रिटिश सरकार के निर्देश पर जॉन रेडक्लिफ जब भारत और पाकिस्तान की सरहदों का नक्शा बनाने बैठे तो, भारत में शामिल हुए कूचबिहार और पूर्वी पाकिस्तान में शामिल रंगपुर की सरहद तय नहीं कर पाए. इस तरह उन्होंने बंटवारे का आधा-अधूरा नक्शा ब्रिटिश हुकूमत को सौंप दिया. भारत और पाकिस्तान की सीमाओं की औपचारिक घोषणा तो हो गई, लेकिन नक्शे पर भारत और पूर्वी पाकिस्तान तो दिखा, लेकिन रंगपुर और कूचबिहार के वे लोग जिन्हें शतरंज के दांव पर लगाया गया था, वे देशविहीन होकर रह गए. अब न तो कूचबिहार के राजा ज़िदा हैं, न रंगपुर के नवाब और न ही जॉन रेडक्लिफ, लेकिन उनकी ग़लतियों का ख़ामियाजा भारत और बांग्लादेश में मौजूद छिटमहलों में बसे लोग पिछले 68 वर्षों से भुगत रहे थे.
छिटमहल विवाद सुलझाने की पहल
वर्ष 1958 में पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री फिरोज़ ख़ान नून ने सीमा विवाद सुलझाने की कोशिश की थी. उस वक्त सर्वे मानचित्र को बदलने को लेकर समस्या पेश आई थी. इसके समाधान के लिए संविधान में संशोधन ज़रूरी था. लिहाज़ा वर्ष 1960 में संशोधित संविधान पेश तो हुआ, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच कई मुद्दों पर आम सहमति नहीं बन पाई. इस दौरान वर्ष 1971 में मुक्ति युद्ध के बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर रहमान के बीच 16 मई, 1974 को भूमि सीमा समझौता हुआ था, लेकिन 15 अगस्त 1975 को सैन्य तख्तापलट के दौरान उनकी हत्या कर दी गई्. शेख मुजीब की हत्या के बाद बांग्लादेश-भारत भूमि सीमा समझौता ठप पड़ गया. वर्ष 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बांग्लादेश सरकार के साथ एक करार किया था, जो स्थल सीमा समझौता के नाम से प्रचलित है. 18 दिसंबर 2013 को संविधान के 119 वें संशोधन संबंधी एक विधेयक राज्यसभा में लाया गया. संसद की स्थायी समिति ने नवंबर 2014 में इसकी मंजूरी दी. 6 मई, 2015 को राज्यसभा में संविधान संशोधन विधेयक पारित हुआ. राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने 28 मई, 2015 को इस विधेयक पर अपने दस्तख़त किए. केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश की यात्रा पर गए. 6 जून, 2015 को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमि सीमा समझौते पर दस्तख़त किए. इस अहम समझौते के बाद भारत और बांग्लादेश की 75 सदस्यीय संयुक्त दल ने 6 जुलाई 2015 से 16 जुलाई 2015 के बीच दोनों देशों के छिटमहलों का सर्वेक्षण किया. 13 जुलाई, 2015 को संयुक्त दल की ओर से पश्र्चिम बंगाल के कूचबिहार ज़िले में मौजूद बांग्लादेश के सभी 51 छिटमहलों में एक आम सभा आयोजित किया गया. बांग्लादेशी छिटमहलों में रहने वाले इन सभी लोगों ने भारत के नागरिक बनकर यहीं रहने की बात कही. उसी तरह बांग्लादेश में मौजूद 111 भारतीय छिटमहलों में रहने वाले करीब 39,000 लोगों में से 922 लोगों छोड़कर सबों ने बांग्लादेश में रहने और वहां नागरिकता प्राप्त करने की इच्छा जताई.
पहली बार किया मतदान
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कूचबिहार जिले की दिनहाटा, सिताई, मेखिलीगंज और शीतलकुची निर्वाचन क्षेत्र में पहली बार हजारों लोगों को अपना देश नसीब हुआ है. पिछले साल भारत और बांग्लादेश के बीच हुए भूमि सीमा समझौते के बाद इन विधानसभा सीटों में 9776 नए मतदाता शामिल हुए, जिन्होंने पहली बार मतदान किया. हल्दीबाड़ी और मेखिलीगंज में भी दो राहत शिविर बनाए गए हैं. इन शिविरों में लालमुनीरहाट और पंचगढ़ (बांग्लादेश) से आए दर्जनों परिवारों को रखा गया है. अपनी ज़िंदगी में पहली बार यहां के 567 लोगों ने इसी साल पांच मई को विधानसभा चुनाव में मतदान किया. दिनहाटा विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक 5486 नए मतदाता छिटमहलवासी के रूप में जुड़े हैं. वहीं शीतलकुची में 1898, सिताई में 1241 और मेखिलीगंज में 567 नए मतदाता जुड़े हैं. कूचबिहार ज़िला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूर मध्य मसालडांगा छिटमहल (इन्कलेव) है. 1 अगस्त, 2015 से पहले यह बांग्लादेशी भू-भाग था. पांच मई को यहां रहने वाले 9209 लोगों ने पहली बार मतदान किया.
मोहम्मद असगर अली मध्य मसालडांगा के सबसे बुजुर्ग नागरिक हैं, उनकी उम्र 105 साल है. भारत और बांग्लादेश के बीच हुए छिटमहल के समझौते से वे काफी खुश हैं. वर्ष 1930 में असगर अली जब 10 साल के थे तो, अपने पिता मोहम्मद सौतू शेख के साथ जिला मैमन सिंह (अब बांग्लादेश) से रोजी-रोजगार की तलाश में कूचबिहार आए थे. असगर अली को इस बात की खुशी है कि ज़िंदगी के आखिरी समय में उन्हें भारत की नागरिकता हासिल हुई. मध्य मसालडांगा से पंद्रह किलोमीटर की दूर है पोआतुरकुटी (पूर्व में बांग्लादेशी छिटमहल) पचहत्तर वर्षीय मंसूर अली मियां के दादा 1925 में कुडीग्राम जिले से कूचबिहार आए थे.
नज़ीर पेश करेगा यह समझौता
भारत-बांग्लादेश छिटमहल विनिमय समन्वय समिति के सहायक सचिव दिप्तिमान सेन गुप्ता भूमि सीमा समझौते को ऐतिहासिक मानते हैं. अभिषेक रंजन सिंह ने उनसे विस्तारपूर्वक बातचीत की. प्रस्तुत हैं मुख्य अंश…
भारत और बांग्लादेश के बीच हुए इस समझौते से दोनों देशों को कितना फायदा होगा?
इस समझौते से लोग सोचते हैं कि भारत और बांग्लादेश के छिटमहल में रहने वाले महज 51000 लोगों का फायदा हुआ है, जबकि मेरा मानना है कि इससे करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष लाभ मिला है. दुनिया में यह पहली घटना है कि जब दो लोकतांत्रिक देश ने स्वेच्छा से अपनी भौगोलिक सीमाएं बदली हैं. यह विश्व के अन्य देशों के लिए एक मिसाल है. इससे सीख ले तो दुनिया के सभी विवादित सरहदों की समस्या सुलझाई जा सकती है. पूरी दुनिया में प्रतिदिन करीब 600 सुरक्षाकर्मी और नागरिक सरहद विवाद के चलते अपनी जान गंवाते हैं.
आपकी वर्षों पुरानी मांग पूरी हो गई है. अब आपके संगठन की क्या भूमिका होगी?
भारत और बांग्लादेश के बीच हुए इस समझौते के बाद अब हमारे संगठन का संघर्ष खत्म हो गया. हालांकि, जनता की भलाई के लिए अब सिटीजन राइट्स कॉर्डिनेशन कमेटी (सीआरसीसी) का गठन किया जाएगा. इसके तीन अंग होगें- इंडियन पार्ट, बांग्लादेशी पार्ट और माइग्रेटेड पार्ट. यह नवगठित संगठन दोनों देशों के छिटमहल वासियों के साथ संपर्क में रहेगा.