पाकिस्तान के पेशावर में बच्चों की हत्या को दुनिया आसानी से नहीं भूल पाएगी. हालांकि, बच्चों की हत्या अफ्रीकी देशों में भी की जाती है. बच्चों की हत्या का एक अभियान मैक्सिको में चला, ब्राजील में चला, लेकिन उनकी संख्या भी कम होती थी और उनके कारण अलग-अलग होते थे. पाकिस्तान में जिस तरह से आतंकवादियों ने बच्चों की हत्याएं कीं, वह सचमुच दिल को दहला गई. आतंकवादियों ने सारे साक्ष्य छोड़े और यह साबित किया कि वे पाकिस्तान के ही हैं. जो बच्चे बच पाए, उन्होंने कहा कि वे लोग पस्तो और अरबी में बोल रहे थे. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने उन आतंकवादियों के फोटो भी प्रेस को सौंपे, जो इस हत्याकांड में शामिल थे.
एक मज़ाक पाकिस्तान में हुआ. जिस बात को पाकिस्तान की सरकार, पाकिस्तान की फौज और पाकिस्तान की इंटेलिजेंस, प्रधानमंत्री सहित किसी ने नहीं जाना, वह बात भूतपूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को पता चल गई और वही बात हाफिज सईद को पता चल गई और इन दोनों ने कहा कि इस हत्याकांड के पीछे भारत है. इतना ही नहीं, इन लोगों ने यहां तक कहा कि अफगानिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के लोगों से हिंदुस्तान की इंटेलिजेस एजेंसी के लोगों की बातचीत हुई, जहां पर यह योजना बनी. फिर पाकिस्तान को आईएसआई और सेना की या प्रधानमंत्री के पास उपलब्ध जानकारी की ज़रूरत ही क्या रह गई, अगर हाफिज सईद और परवेज मुशर्रफ को उस सच्चाई का पता चला, जिसकी जानकारी दुनिया में किसी के पास नहीं है? यह मज़ाक इसलिए लगता है और इससे जो चीज साबित होती है, वह यह कि पाकिस्तान में कुछ ताकतें हैं, जिन्हें सत्ता में ही कुछ लोगों का समर्थन प्राप्त है और जो किसी भी क़ीमत पर नहीं चाहतीं कि पाकिस्तान से आतंकवाद का ख़ात्मा हो. जब पाकिस्तान की सेना आतंकवादियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करती है, तो उन सारे लोगों की आंखें लाल हो जाती हैं, जो आतंकवाद के समर्थक हैं. शायद वे अपने देश को या तो टूटता हुआ देखना चाहते हैं या अपने देश में आतंक की एक नई फैक्ट्री पैदा करना चाहते हैं. पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान के 90 प्रतिशत लोग इस समय आतंकवाद के ख़िलाफ़ हैं और उनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है.
पर जो सवाल इस हत्याकांड ने मीडिया के सामने प्रस्तुत किए, खासकर पाकिस्तानी मीडिया के सामने, वही हिंदुस्तान की मीडिया के सामने भी हैं. मैंने कुछ राजनेताओं से, कुछ टेलीविजन के पत्रकारों से एक छोटा-सा सवाल किया कि क्या आपको मालूम है कि परमवीर चक्र किसे दिया जाता है? उत्तर लगभग इसके आसपास था कि जो सेना में बहादुरी का काम करते हैं, उन्हें परमवीर चक्र दिया जाता है. फिर मैंने पूछा, अच्छा, वीर चक्र किसे दिया जाता है? इस सवाल पर वे खामोश हो गए. हमारे देश के बच्चों को फिल्म फेयर अवॉर्ड किसे मिला, यह तो पता है और हमारे ही
अफ़सोस इस बात का है कि हमारा पूरा मीडिया अपनी इस सामाजिक ज़िम्मेदारी से बहुत दूर चला गया है. अभी भी हमारे मीडिया को यह समझ में नहीं आ रहा कि देश के नौजवानों को देश के लिए मरने वालों के बारे में जानकारी देना उनका बुनियादी कर्तव्य है. इसे वह नहीं निभा रहा है, इसका अफ़सोस भी उसे नहीं है.
देश के बच्चों को किस फिल्मी फंक्शन में किसे सर्वश्रेष्ठ नायक और किसे सर्वश्रेष्ठ नायिका चुना गया, यह तो पता चलता है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता चलता कि हमारे देश के नायक होने के नाते किसे क्या अवॉर्ड मिला. शायद किसी को यह भी पता नहीं होगा कि हमारे पास अब तक परमवीर चक्र पाने वाले कितने लोग हैं और उनकी पहचान क्या है. यह तो निश्चित रूप से नहीं पता है कि उनके घर की हालत आज क्या है. क्या शहादत देने वाले सेना या पुलिस के जांबाजों, जिन्हें परमवीर चक्र या वीर चक्र मिल चुके हैं, उनके घरों में आज भोजन है या नहीं, उनका घर बना है या नहीं, उनकी लड़कियों की शादी हो गई या नहीं या उनके परिवार के लोग अब कहीं नौकरी कर रहे हैं या नहीं कर रहे, यह सब किसी को नहीं पता. न यह टेलीविजन का सब्जेक्ट है और न अख़बारों का विषय है.
अफ़सोस इस बात का है कि हमारा पूरा मीडिया अपनी इस सामाजिक ज़िम्मेदारी से बहुत दूर चला गया है. अभी भी हमारे मीडिया को यह समझ में नहीं आ रहा कि देश के नौजवानों को देश के लिए मरने वालों के बारे में जानकारी देना उनका बुनियादी कर्तव्य है. इसे वह नहीं निभा रहा है, इसका अफ़सोस भी उसे नहीं है.
मैं एक घटना बताता हूं. विक्टोरिया क्रॉस नाम का एक गैलिन्ट्री अवॉर्ड है, जो ब्रिटेन के लिए विश्व युद्ध में लड़ने वाले सिपाहियों को दिया जाता था. हिंदुस्तान में भी कुछ लोगों को विक्टोरिया क्रॉस मिला. 60 के दशक में लंदन में जीवित विक्टोरिया क्रॉस पाने वालों को वहां की सरकार ने बुलाया. भारत में उत्तराखंड में रहने वाले विक्टोरिया क्रॉस पाए हुए एक सज्जन पहुंच गए और वह ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट पर शाम को टहलने निकले. अचानक उन्होंने देखा कि लोगों ने सड़क खाली कर दी और वे अपनी-अपनी दुकानों से सिर निकाल कर और किनारे लाइन बनाकर उनका अभिवादन कर रहे हैं. और वह गुजर रहे हैं, तो तालियां बजा रहे हैं. वह सज्जन चौंक गए कि लगता है, ब्रिटेन का कोई बड़ा राजनेता यहां से निकलने वाला है, जिसके स्वागत में लोग खड़े हैं. तो बिना ध्यान दिए हुए वह सड़क पर चलते रहे. जब वह दो हज़ार गज आगे बढ़े, तब उन्हें कुछ हिंदुस्तानी नज़र आए और तब उनसे उन्होंने पूछा, ये क्यों और किसका इंतज़ार कर रहे हैं? तब उन हिंदुस्तानियों ने उन्हें बताया, सर ये आप ही के सम्मान में किनारे खड़े हैं अंग्रेज और यह आप ही के सम्मान में तालियां बजा रहे हैं. दरअसल, जब वह सज्जन ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट पर पहुंचे, तो
एक मज़ाक पाकिस्तान में हुआ. जिस बात को पाकिस्तान की सरकार, पाकिस्तान की फौज और पाकिस्तान की इंटेलिजेंस, प्रधानमंत्री सहित किसी ने नहीं जाना, वह बात भूतपूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को पता चल गई और वही बात हाफिज सईद को पता चल गई और इन दोनों ने कहा कि इस हत्याकांड के पीछे भारत है. इतना ही नहीं, इन लोगों ने यहां तक कहा कि अफगानिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के लोगों से हिंदुस्तान की इंटेलिजेस एजेंसी के लोगों की बातचीत हुई, जहां पर यह योजना बनी.
उनके बाईं तरफ़ विक्टोरिया क्रॉस लटका हुआ था. यह देखकर पूरी ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट पर हवा की तरह बात फैल गई कि विक्टोरिया क्रॉस पाया हुआ एक सिपाही आ रहा है और ब्रिटेन के लोगों ने उसका नेशनल हीरो की तरह स्वागत किया.
यह घटना मैं इसलिए बता रहा हूं कि हमारे यहां कोई भी गैलिन्ट्री अवॉर्ड पाने वाला पुलिस या सेना का जांबाज अगर किसी सरकारी दफ्तर में किसी मदद के लिए चला जाए, तो वहां आज भी उसका सम्मान नहीं होता. हमारे अंदर अपने देश के लिए शहादत देने वालों के प्रति कोई सम्मान नहीं है और जो शहादत दे चुके हैं, उनके परिवार वालों के लिए भी कोई सम्मान नहीं है. मैं इन लाइनों को लिख रहा हूं और जो भी पढ़ रहे हैं, खासकर मीडिया से जुड़े हुए लोग, वे अपने मन से पूछें कि उन्हें देश के गैलिन्ट्री अवॉर्ड के बारे में कुछ पता है या नहीं? और, जब उन्हें ही नहीं पता, तो देश के नौजवानों को यह बात कहां से पता चलेगी?
पाकिस्तान के मीडिया से जुड़ी हुई यासमीन मिर्जा का लेख हम इस अंक में छाप रहे हैं. पाकिस्तान के मीडिया में इसे कोई जगह नहीं मिली, लेकिन जब उसने सोशल मीडिया पर अपना वीडियो अपलोड किया, तो दुनिया के करोड़ों लोगों ने उसे देखा और उसकी तारीफ़ की, क्योंकि उसने जिस जज्बे के साथ पाकिस्तान के मीडिया के ऊपर सवाल खड़े किए, वे सवाल हिंदुस्तान के मीडिया के ऊपर हूबहू लागू होते हैं. एक गिरोह बन गया है. वही गिरोह, जिसमें कुछ दलाल हैं, कुछ पब्लिक रिलेशन वाले पत्रकार हैं, कुछ वे हैं जिन्हें जनता के दु:खों से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि वे अपने मालिकों के लिए रास्ता तैयार करते हैं. और, ये सब रात में टेलीविजन पर बैठकर देश की जनता की आकांक्षाओं के ख़िलाफ़ आचरण करते हैं. ये उसे न कोई जानकारी देते हैं, न कोई नया रास्ता बताते हैं और न कोई सपना दिखाते हैं. एंकर टेलीविजन चैनल में एक ही होता है, लेकिन शामिल होने वाले वे कभी होते ही नहीं, जिनकी तकलीफ होती है. नौजवानों के भविष्य के ऊपर बात करनी हो, तो वही चार-पांच-छह चेहरे, नौजवानों को नौकरी देनी हो, तो वही चार-पांच-छह चेहरे, ग़रीबी के ऊपर बात करनी हो, तो वही चार-पांच- छह चेहरे, अपराध की बात करनी हो, तो वही चार-पांच-छह चेहरे और अर्थव्यवस्था की बात करनी हो, तो वही चार-पांच-छह चेहरे. यासमीन मिर्जा द्वारा पाकिस्तान के मीडिया के ऊपर उठाए गए सवाल हिंदुस्तान के लोगों को सुनने चाहिए, पढ़ने चाहिए. यासमीन ने अपने यहां मौलानाओं के ऊपर, मौलवियों के ऊपर, राजनेताओं के ऊपर पत्रकारों के ऊपर जो सवाल खड़े किए हैं, वे सवाल हमारे यहां पर भी लागू हैं. शायद हम दोनों एक ही तरह की बीमारी से ग्रस्त हैं.
मुझे पूरा विश्वास है कि जैसे पाकिस्तान का मीडिया कोई सबक नहीं ले रहा है, वैसे ही हिंदुस्तान का मीडिया भी कोई सबक न ले रहा है और न लेगा. मुझे यह भी कहने में कोई संकोच नहीं है कि आजकल टेलीविजन पर दिखाई जाने वाली ज़्यादातर ख़बरों को लोग मनोरंजन के रूप में लेते हैं. शायद इसलिए, क्योंकि ख़बरों और पैनल डिस्कशन में लोगों से जुड़ी हुई कोई भी चीज नहीं होती. चूंकि लोगों के मतलब की कोई चीज नहीं होती, तो जिस तरह तीन घंटे सिनेमा देखते हैं, उसी तरह लोग तीन घंटे शाम को ख़बरें देख लेते हैं, क्योंकि अब ख़बरों में भी उन्हें काफी मनोरंजन मिलता है. चाहे मनोरंजन के चैनल हों या चाहे न्यूज के चैनल, बहुत ज़्यादा फ़़र्क उनमें नहीं बचा है.
मुझे पूरा विश्वास है कि इन सवालों से, जो लोगों के मन में उठ रहे हैं, हम कोई सबक नहीं लेंगे और हमारा मीडिया दिनोंदिन और ज़्यादा गिरावट की राह पर चलता चला जाएगा. देखते हैं, गिरने की सीमा कहां आती है.