महंगे इंजेक्शन और दवाओं का टोटा, बढ़ सकती है कालाबाजारी
भोपाल। सरकारी अस्पतालों में फिलहाल तैयारियों का दौर, निजी अस्पतालों की महंगी फीस और जरूरत के अनुसार उछाल पा चुके दवाओं के दाम का नतीजा यह है कि तेजी से पैर पसार रहे नए मर्ज ब्लैक फंगस का इलाज आम आदमी की पहुंच से बाहर जाता दिखाई दे रहा है। जहां कोविड इलाज के लिए बात लाख-दो लाख रुपए तक सिमट रही थी, वहीं

नई मुश्किल से पार पाने के लिए यह राशि ऊंट के मुंह में जीरे जैसी महसूस होने लगी है।
एक साल से ज्यादा समय से कोविड की मार झेल रहे लोगों को अब तक इस पर होने वाला खर्च ही महंगा महसूस हो रहा था, लेकिन महामारी की अगली किश्त के रूप में पहुंचे ब्लैक फंगस ने इस धारणा को बदल दिया है। जहां कोविड मरीजों को रेमडेसीवर इंजेक्शन और ऑक्सीजन के इंतजाम में चंद हजार रुपए खर्च करना पड़ रहे थे, वहीं अब ब्लैक फंगस से निजात पाने के लिए एंफोटेरिसिन-बी लाइपोसोमेल इंजेक्शन का डोज पूरा करने के लिए लाखों रुपए खर्च करने की नौबत आ गई है। जरूरत के अस्पताल और विशेषज्ञों की कमी की वजह से भी इसके इलाज के लिए लोगों को परेशान होना पड़ रहा है।

पूरी जिंदगी की पूंजी दांव पर

आदिल शेख एमपीईबी में नौकरी करते हुए पिछले साल सेवानिवृत्त हुए हैं। जमा पूंजी के नाम पर सेवानिवृत्ति से मिली राशि ही उनके लिए बुढ़ापे का सहारा है। कोरोना के किसी लक्षण से गुजरे बिना दो दिन पहले उन्हें ब्लैक फंगल के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। अस्पताल में दाखिले के लिए एक लाख तीस हजार रुपए जमा कराने के बाद महंगी दवाओं ने उनका साथ पकड़ लिया है।

पहले ही दिन उन्हें करीब 65 हजार रुपए की दवाएं खरीदना पड़ीं, वह भी बमुश्किल मिल पाईं। इसके बाद एमआरआई और अन्य जरूरी टेस्ट के बाद आपरेशन कराने की हिदायत उन्हें डॉक्टर्स ने दी है। आपरेशन पर होने वाले महंगे खर्च के बाद इंजेक्शन एंफोटेरिसिन-बी लाइपोसोमेल का सप्ताह भर का डोज लेना है। इंजेक्शन की शुरूआती कीमत 7 हजार रुपए बताई गई है, जो फिलहाल बाजार में उपलब्ध नहीं है। हर दिन लगने वाले इंजेक्शन के डोज के अनुसार उन्हें पूरा सप्ताह का कोर्स करने में 5 लाख रुपए से ज्यादा खर्च होने की उम्मीद है।

मुश्किल हो रही दवाओं की उपलब्धता में

रेमडेसीवर, एक्टेमरा इंजेक्शन और फेबिफ्लू जैसी कोविड दवाओं की कमी से अब तक मरीज जूझ ही रहे हैं। इसके बाद अब ब्लैक फंगस के लिए लगने वाली दवाओं की कमी छाने लगी है। दवाओं की कमी के पिछले दौर में शुरू हुई कालाबाजारी का दौर फिलहाल थमा ही नहीं है, ऐसे में नए मर्ज की दवा का बाजार से गायब हो जाना जहां कालाबाजारियों के लिए बड़े मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है, वहीं गरीब मरीजों के लिए कई मुश्किलें लेकर आ सकता है। हालांकि सरकारी तौर पर इस बात का ऐलान किया जा चुका है कि जरूरी दवाओं के लिए ठोस योजना बनाकर जरूरतमंदों तक इसको पहुंचाया जाएगा।

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सरकारी तैयारियों का दौर

ब्लैक फंगस की व्यवस्थाओं को लेकर चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा है कि ब्लैक फंगस को लेकर हमने सबसे पहले काम करना शुरू किया है। अगले 3 दिन प्रदेश में ब्लैक फंगस के प्राथमिक पहचान की मुहिम चलाई जाएगी। साथ ही मेडिकल कॉलेज में एडमिट ब्लैक फंगस के मरीजों के केस की स्टडी भी की जाएंगी। इसकी जांच नेजल एंडोस्कोपी के तहत की जाएगी। सारंग ने कहा है कि देश मे मध्यप्रदेश पहला राज्य है, जहाँ इस तरह की मुहिम चलाई जाएगी।

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