बात 2010 की है, अंबानी तेल घोटाले में फंस चुके थे, स्पेट्रम घोटाले की आग भी अंबानी परिवार तक पहुंच चुकी थी| कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुकेश अंबानी बार बार समय मांग रहे थे, लेकिन सोनिया समय नहीं दे रही थी|
एक दिन समय मिला, मुकेश गए भी, घंटों बैठे मुलाकात नहीं हुई. गुस्से में मुकेश लौट गए | इधर गौतम अदानी, खान और कोयला घोटाले में फंस चुके थे| संयोग से ये दोनों घोटाले पर उस वक्त पत्रकार Santosh Bhartiya
लगातार लिख रहे थे| अदानी के दिन भी खराब चल रहे थे| कांग्रेस से जो चाहत थी वो पूरी नहीं हो पा रही थी. ऐसे में अदानी ने एक नये कारोबार में निवेश किया और इस कारोबार में अदानी ने गुजरात के पांच उद्योगपतियों को अपना साझाीदार बनाया|
2011 में मुबई मेंं पांच गुजराती कोरोबारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई| उसी बैठक में मोदी में निवेश का फैसला हुआ| बैठक के अंत में गौतम अदानी ने अंग्रेजी में एक शब्द उछला.. जिसका हिंदी अनुवाद है.. अच्छे दिन आने वाले हैं..यह बैठक भारत में पूरी तरह गुप्त रही, लेकिन 2011 में ही अमेरिका की एक पत्रिका ने पूरी योजना इसी शीर्षक के साथ छापी कि अच्छे दिन आने वाले हैं.. मैं जानती हूं आप लोग इस नारे को पहली बार 2014 में सुने होंगे|
पत्रकार कुमुद सिंह
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