राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के दलित बहुल गांवों-बस्तियों में जा रहे हैं, रातें गुज़ार रहे हैं और वहां की समस्याओं को ख़ुद देख-सुन रहे हैं. लेकिन, उत्तराखंड के गुटबाज़ कांग्रेसी नेता अपने उस प्रदेश अध्यक्ष को पद से हटाने के लिए तिक़डम भ़िडा रहे थे, जिसने आमचुनाव में पार्टी के सिर पर जीत का सेहरा बांधा था. विरोधियों को मुंह की खानी प़डी. कैसे?
विकासनगर उपचुनाव में हार के लिए कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश संगठन में व्याप्त गुटबाज़ी और अंतर्कलह को ज़िम्मेदार माना है. हाईकमान ने इसके लिए वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय मंत्री हरीश रावत को क़डी फटकार लगाई है. कांग्रेस की इस अंतर्कलह का लाभ भाजपा ने जमकर उठाया. मुख्यमंत्री निशंक ने विकासनगर सीट को अपनी प्रतिष्ठा से जो़डते हुए राज्य की सरकारी मशीनरी इस चुनाव में झोंक दी थी. नतीजतन, कांग्रेस को उसी उत्तराखंड में मुंह की खानी प़डी, जहां गत लोकसभा चुनाव में उसने सभी पांच संसदीय सीटों पर विजयश्री हासिल की थी. इस सीट पर कांग्रेस ने स्वर्गीय ब्रह्मदत्त के पुत्र एवं पूर्व मंत्री नवप्रभात को अपना प्रत्याशी बनाया था, जो अपने दंभ के चलते चुनाव हार गए. ख़ुद को कद्दावर नेता समझने वाले नवप्रभात ने इस चुनाव में अपने आचरण एवं व्यवहार में जो चूक की, उसी का ख़ामियाज़ा कांग्रेस को हार के रूप में भुगतना पड़ा. चुनाव के दौरान जिस तरह आपस में खींचतान और अनर्गल बयानबाज़ी की गई, उससे कांग्रेस अपनी जीती बाजी हार गई.
उपचुनाव में हार के बाद कांग्रेस की अंतर्कलह खुलकर सामने आ गई. कई कद्दावर नेताओं ने हार के लिए प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्या को ज़िम्मेदार मानते हुए उन्हें उनके पद से हटाने की मुहिम शुरू कर दी. वे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी के दरबार में भी दस्तक दे आए. प्रदेश अध्यक्षी के लालच में तिवारी गुट की प्रमुख नेता इंदिरा हृदयेश ने अपने धुर विरोधी हरीश रावत से हाथ मिला लिया. इस अभियान में उनका साथ दिया कुमायूं के सांसद केसी बाबा एवं राज्य में नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत ने. उधर आर्या के समर्थन में सांसदद्वय सतपाल महाराज एवं विजय बहुगुणा, तिलकराज बेह़ड और ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी मैदान में कूद प़डे. आर्या के ख़िला़फ बग़ावत हाईकमान को रास नहीं आई, नतीजतन विरोधी नेताओं को दस जनपथ से बैरंग वापस लौटना प़डा.
कांग्रेस हाईकमान ने यशपाल आर्या को प्रदेश अध्यक्ष पद का दायित्व देकर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के दलित एजेंडे का हल खोजने के साथ यह संदेश देने की कोशिश की थी कि पार्टी में आज भी दलित नेताओं का सम्मान सुरक्षित है. आर्या ने भी पूरी निष्ठा से कांग्रेस का जनाधार बढ़ाने का काम किया. उनके नेतृत्व में आम चुनाव लड़ा गया और कांग्रेस को यहां की सभी पांच संसदीय सीटों पर शानदार विजय मिली. सूबे में सत्तारूढ़ भाजपा को क़रारी हार का मुंह देखना पड़ा. इस हार का ठीकरा सूबे के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी के सिर फूटा और उन्हें सत्ता से बेदख़ल होना प़डा. यहां बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने की कहावत चरितार्थ हुई और रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बन गए.
दरअसल, आर्या को निपटाने की यह मुहिम राजपूत लॉबी के अगुवा एवं केंद्रीय मंत्री हरीश रावत और पूर्व मुख्यमंत्री एन डी तिवारी गुट की प्रमुख नेता इंदिरा हृदयेश को आगे करके चलाई जा रही है. मालूम हो कि आम चुनाव में कांग्रेस हाईकमान ने इंदिरा हृदयेश को प्रदेश की चुनाव समिति का प्रमुख बनाया था, जिससे उनकी संगठन क्षमता को पहले ही जांचा-परखा जा चुका है. रावत गुट भी मिशन 2012 के पहले ही संगठन के मुखिया के पद पर नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत को देखना चाहता है.
आर्या एवं हरीश रावत चर्चित कालाढूंगी कांड पर भी आपस में बंटे दिख रहे हैं. परिणामस्वरूप इस प्रकरण में प्रदेश स्तरीय आंदोलन शुरू होने से पहले ही बिखर गया. ग़ौरतलब है कि पिछले दिनों पिथौराग़ढ के कालाढूंगी थाने में एक अपराधी द्वारा इलाक़े के ब्लॉक प्रमुख बलवंत सिंह कन्याल की हत्या कर दी गई थी, जिससे आक्रोशित जनता ने थाने के एएसआई को पत्थरों से पीट-पीटकर मार डाला था और थाने में आगजनी के साथ लूटपाट भी की थी. इस प्रकरण में पहले तो पूरे थाने के ख़िला़फ कार्यवाही हुई, फिर पुलिस ने संजय नेगी समेत कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को झूठे मुक़दमों में फंसा दिया. इस कांड को लेकर आज भी स्थानीय कांग्रेसियों में रोष है, किंतु आर्या की घोषणा के बावजूद गुटबंदी के चलते कोई आंदोलन शुरू नहीं किया जा सका.
आर्या को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के लिए गुटों के क्षत्रपों ने कांग्रेस हाईकमान एवं राहुल गांधी के दरबार में दस्तक तो दे दी, लेकिन उन्हें अप्रत्याशित रूप से मुंह की खानी प़डी. दरअसल, राहुल का ग़रीब एवं दलित प्रेम जगज़ाहिर है. वह ज़मीनी हक़ीक़त की पड़ताल करने के लिए उत्तर प्रदेश की ग़रीब बस्तियों में अपनी रातें गुज़ारते हैं. ऐसे में आर्या को उनके पद से हटाने के लिए चलाया गया अभियान भला कैसे कामयाब होता? हाईकमान ने मिशन 2012 के मद्देनजर प्रदेश संगठन में व्याप्त गुटबाज़ी पर अंकुश लगाते हुए आर्या को परोक्ष रूप से अपना समर्थन ज़ाहिर कर दिया है. पार्टी सूत्रों का मानना है कि हाईकमान के इस क़दम से संगठन के निष्ठावान कार्यकर्ताओं में निश्चित रूप से उत्साह का संचार होगा.