दिल्ली के जंतर-मंतर पर पिछले एक महीने से आयुध कारखाने (ऑर्डिनेंस फैक्ट्री) के हज़ारों पूर्व शिक्षु अप्रेंटिस (संशोधन) एक्ट-1961 की धारा-22 के तहत अप्रेंटिस भर्ती नीति लागू करने की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए हैं. केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमएसडीएस) के तहत अप्रेंटिस एक्ट-1961 की धारा 22 की उपधारा एक में संशोधन किया है. इस एक्ट की धारा 22 में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि प्रत्येक नियोक्ता ऐसे शिक्षु, जिसने उसके स्थापन में शिक्षुता प्रशिक्षण की अवधि पूरी कर ली है, को भर्ती करने के लिए अपनी स्वयं की नीति तैयार करेगा.
अप्रेंटिस (संशोधन) एक्ट-1961 को लोकसभा ने 14 अगस्त, 2014 और राज्यसभा ने 26 नवंबर, 2014 को पास किया था. उसके बाद राष्ट्रपति ने भी इस क़ानून को मंजूरी दे दी थी. क़ानून में संशोधन हुए एक साल गुज़र चुका है, लेकिन अब तक आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड, कोलकाता एक्स अप्रेंटिसों को नौकरी मुहैया कराने से संबंधित नीति नहीं बना सका. नीति निर्माण की प्रक्रिया बहुत लचर तरीके से चल रही है. सरकार द्वारा क़ानून में संशोधन के बावजूद अभी भी आएदिन खुली भर्तियां निकल रही हैं.
यह पहला मौक़ा नहीं है, जब सेमी-स्किल्ड वर्कर्स के पदों पर खुली नियुक्ति की प्रक्रिया का विरोध करते हुए ऑर्डिनेंस फैैैक्ट्री के पूर्व शिक्षु धरने पर बैठे हैं. इससे पहले भी वे पिछले साल 27 जुलाई को जंतर-मंतर पर चार दिनों तक धरने पर बैठे थे. तब समस्या के जल्द से जल्द समाधान के आश्वासन पर उन्होंने अपना धरना ़खत्म कर दिया था. उसके बाद भी चार महीने का वक्त गुज़र गया, लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. इसलिए पूर्व शिक्षुओं को इस बार अपनी मांग पूरी होने तक अनिश्चितकालीन धरने पर बैठना पड़ा. वे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं रक्षा मंत्री यानी सभी के सामने गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अब तक उनके हाथ आश्वासन के अलावा कुछ नहीं आया. रक्षा मंत्रालय प्रशिक्षित अप्रेंटिसों के साथ सौतेला व्यवहार कर रहा है.
यही वजह है कि 18 सितंबर, 2015 को रक्षा मंत्रालय द्वारा नियुक्ति के लिए एसआरओ-पीआरएस बनाने का प्रस्ताव अनुमोदित किया गया, लेकिन बोर्ड के नकारात्मक रवैये के चलते यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया है और बोर्ड खुली भर्तियां करने का काम कर रहा है, जिससे आम प्रशिक्षित अप्रेंटिसों में खासा रोष है. इस मामले की गंभीरता का अंदाज़ा शायद सरकार और नौकरशाहों को नहीं है.
नतीजतन, उन्होंने लापरवाह रवैया अपना रखा है. भारत में निजी क्षेत्रों को बहुत सीमित रक्षा संबंधी कार्य सौंपे जाते हैं. इन पूर्व शिक्षुओं को हथियार और विस्फोटक बनाने की तकनीक का बखूबी ज्ञान है. कोई आरडीएक्स का काम जानता है, कोई बारूद का, किसी को बम शेल बनाना आता है, किसी को गोली, तो कोई पिस्टल बनाना जानता है. यदि किसी एक को यह काम पूरी तरह न भी आता हो, तो सारे मिलकर हथियार बनाने की योग्यता रखते हैं. लेकिन, सरकार अपनी धुन में मस्त है. उसे किसी तरह की चिंता नहीं है. देश भर में ऐसे पूर्व शिक्षुओं की संख्या आठ से 10 हज़ार के बीच है. वे प्रशिक्षण हासिल करने के बावजूद आज खाली घूम रहे हैं. कई शिक्षु तो बिहार, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के हैं, जो नक्सल प्रभावित हैं.
केंद्र सरकार ने क़ानून में संशोधन करके अपना काम कर दिया, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उसे ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों को ही लागू करना है. यह काम नौकरशाही का है, जो इसमें बेवजह रोड़ा बन रही है. सरकार पहले युवाओं को हथियार-बम बनाने का प्रशिक्षण देती है और उसके बाद उन्हें बेरोज़गार छोड़ देती है. यदि ऐसे में वे नक्सलियों या अन्य असामाजिक तत्वों के साथ जुड़ जाते हैं, तो यह चिंता का विषय है. यह देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ का जीता-जागता उदाहरण है.
लेकिन, शुक्र है कि ऐसे युवा अभी अपनी राह से भटके नहीं हैं और लोकतांत्रिक तरीके से सरकार से रोज़गार की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी सुनवाई नहीं कर रही है. 10वीं या आईटीआई पास करने के बाद प्रतियोगी परीक्षा के ज़रिये ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों में शिक्षुओं की भर्ती होती है. 10वीं पास करके आने वाले शिक्षुओं को तीन साल और आईटीआई करके आए शिक्षुओं को एक साल तक हथियार, बारूद, आरडीएक्स, गोले, हथियारों के पार्ट्स और नाइट विजन डिवाइस बनाने जैसे कई कार्यों से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाता है.
प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्हें राष्ट्रीय शिक्षुता प्रमाण-पत्र (नेशनल अप्रेंटिसशिप सर्टिफिकेट) परीक्षा में बैठना होता है. यह परीक्षा पास करने के लिए उन्हें तीन मौक़े दिए जाते हैं. किसी भी प्रयास में परीक्षा उत्तीर्ण करने वालों को श्रम एवं रा़ेजगार मंत्रालय राष्ट्रीय शिक्षुता प्रमाण-पत्र प्रदान करता है.
पहले ऐसे शिक्षुओं को वरिष्ठता के आधार पर सेमी-स्किल्ड वर्कर्स के रूप में ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों में नियुक्त किया जाता था, लेकिन 2010 में यूपीए सरकार के दौरान इस नीति में बदलाव कर दिया गया और सेमी-स्किल्ड वर्कर्स की नियुक्तियां खुली भर्ती परीक्षा के ज़रिये होने लगीं.
ऐसी नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की खबरें भी आईं, कई बार ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों में छापे भी पड़े. पुणे के देबू रोड स्थित ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में 203 सेमी-स्किल्ड लोगों की नियुक्तियां होनी थीं, लेकिन खुली भर्ती के बाद जिन लोगों का चयन हुआ, उनमें से 41 एक ही गांव के थे. इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि खुली भर्ती में किस तरह भ्रष्टाचार हो रहा है.
इस पूरे आंदोलन का नेतृत्व कर रहे बदन सिंह कहते हैं, ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों में बहुत-से पद खाली पड़े हैं. हम भी खुली भर्ती में शामिल होते हैं, लेकिन हमें इंटरव्यू में निकाल दिया जाता है. मैंने 2010 में अप्रेंटिस पूरी कर ली थी. उसके बाद मैं खुली भर्ती में भंडारा, अमेठी, नागपुर एवं कानपुर आदि जगहों में इंटरव्यू तक पहुंचा, लेकिन अंतिम सूची में मेरा नाम नहीं आया. 2014 में सरकार ने जब क़ानून में बदलाव किया, तो हमें आशा की एक किरण नज़र आई, लेकिन वह अब तक हमारी ज़िंदगी और अरमानों को रोशन नहीं कर सकी है.
अब हम जाएं, तो जाएं कहां? हम में से अधिकांश के पास निजी क्षेत्र में काम करने का विकल्प भी नहीं है. कोई खेती कर रहा है, तो कोई परचून की दुकान चला रहा है. क्या इसी दिन के लिए हमने तकनीकी प्रशिक्षण हासिल किया था?
आयुध कारखानों में खुली भर्ती से दो तरह की परेशानियां हैं. पहली, जो व्यक्ति खुली भर्ती के ज़रिये रोज़गार हासिल करता है, उसे फैक्ट्री में दोबारा उतना ही प्रशिक्षण दिया जाता है, जितना पहले शिक्षुओं को दिया जा चुका है.
ऐसे में, सरकार के पैसों एवं संसाधनों की दोहरी बर्बादी होती है. जो प्रशिक्षित हैं, वे बाहर अन्य काम कर रहे हैं, उन्हें शिक्षु के रूप में स्टाइपेंड दिया जाता है. लेकिन, जिन अप्रशिक्षित लोगों को नियुक्त किया जाता है, उन्हें प्रशिक्षण के दौरान पूरी तनख्वाह दी जाती है, लेकिन वे इस अवधि में गुणवत्तापूर्ण कार्य नहीं कर पाते. जबकि हथियार या अन्य सुरक्षा उपकरण बनाने के लिए बेहतर कार्यकुशलता की आवश्यकता होती है. ऐसे में, निश्चित तौर पर हथियारों-उपकरणों की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है. यदि वे उस दौरान सीधे तौर पर उत्पादन प्रक्रिया में शामिल नहीं होते हैं, तो इसका बोझ सरकारी खज़ाने पर पड़ता है.
इस संबंध में संसद में भी सवाल उठ चुके हैं. 16 मार्च, 2015 को श्रम एवं रा़ेजगार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बंडारु दत्तात्रेय ने लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बताया था कि शिक्षु (अप्रेंटिस) अधिनियम-1961 में संशोधन किया गया है और इसे 22 दिसंबर, 2014 से लागू किया गया है. अधिनियम में संशोधन से पहले प्रतिष्ठानों के लिए नियमित रोज़गार में अपने कम से कम 50 प्रतिशत शिक्षुओं को काम पर रखना अनिवार्य बनाने का कोई प्रावधान नहीं था. संशोधन के बाद अधिनियम में यह प्रावधान है कि प्रत्येक नियोक्ता किसी ऐसे शिक्षु, जिसने उसके प्रतिष्ठान में शिक्षुता प्रशिक्षण की अवधि पूरी कर ली हो, को भर्ती करने के लिए अपनी स्वयं की नीति प्रतिपादित करेगा.
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद (पीएम-एनसीएसडी), केंद्रीय शिक्षुता परिषद (सीएसी), राष्ट्रीय श्रम आयोग
(एनसीएल), भारतीय श्रम सम्मेलन (आईएलसी), भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई), राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी (एनएसडीए) और अन्य हितधारकों से शिक्षु अधिनियम-1961 में संशोधन से संबंधित अनेक सुझाव/सिफारिशें प्राप्त हुई थीं.
एक अंतर-मंत्रालयीन समूह (आईएमजी), जिसमें रेल मंत्रालय, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय, ऊर्जा मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, योजना आयोग एवं एनएसडीए के प्रतिनिधि शामिल थे, में उन पर विचार-विमर्श किया गया. सीएसी, एक त्रिपक्षीय सांविधिक निकाय में आईएमजी की सिफारिशों पर चर्चा की गई और साथ-साथ उन पर आम जनता की टिप्पणियां आमंत्रित की गईं. इसके बाद ही संशोधन किए गए थे. हाल में संसद में एक बार फिर शिक्षुओं की मांग को लेकर महाराष्ट्र के रावेर संसदीय क्षेत्र की सांसद रक्षाताई खड़से ने भी सवाल उठाए थे. बावजूद इसके सरकार ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की.
कौशल विकास एवं उद्यमशीलता प्रशिक्षण महानिदेशालय ने सूचना का अधिकार क़ानून के तहत 12 जून, 2015 को दी गई जानकारी में बताया कि पहले श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय शिक्षु अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए ज़िम्मेदार था, लेकिन अब यह अधिनियम कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्रालय की निगरानी में लागू है.
इसके अलावा यह भी बताया गया कि शिक्षुता प्रशिक्षण के क्षेत्रीय निदेशालय, कोलकाता और कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्रालय की निगरानी में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र, उपक्रम आयुध निर्माणी बोर्ड कोलकाता में शिक्षुता अधिनियम संशोधन का कार्यान्वयन किया जा रहा है. धरने पर बैठने के बाद शिक्षुओं ने सात दिसंबर, 2015 को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं रक्षा मंत्री को पत्र लिखे, प्रधानमंत्री कार्यालय से 10 दिसंबर को उचित कार्रवाई करने संबंधी जवाब भी आया, लेकिन मामला आज भी जस का तस है और जंतर-मंतर पर धरना जारी है.
शिक्षुओं को रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर से मुलाकात करने के लिए बीते पांच जनवरी को समय मिला था, लेकिन पठानकोट आतंकवादी हमले की वजह से उनकी मुलाकात स्थगित हो गई. आंदोलन में शामिल होने के लिए मुंगेर-बिहार से आए रविकांत कुमार कहते हैं कि वह सरकार की नीति के चलते बेरोज़गार हैं और अब खुली भर्ती के ज़रिये नौकरी नहीं पा सकते.
रविकांत कहते हैं, हमने अपनी पढ़ाई-लिखाई का समय ट्रेनिंग में निकाल दिया. सरकार की नीति लोगों को कौशल देकर बेरोज़गार करने की है. यदि सरकार ने अपना रवैया न बदला, तो स्किल इंडिया का सपना रेत का महल साबित होगा, जहां लोग कौशल हासिल करने के बावजूद पेट भरने के लिए मज़दूरी करेंगे, परचून की दुकान चलाएंगे. वह कहते हैं कि सरकार आईटीआई के लोगों को प्रशिक्षित करती है, लेकिन खुली भर्ती में वरीयता पॉलिटेक्निक वालों को देती है. यह सरकार का दोहरा मापदंड है, जिसे बदलना चाहिए.
स्किल इंडिया और रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस स्किल इंडिया की बात करते हैं, उसका एक जीता-जागता उदाहरण रोज़गार की मांग करते ये शिक्षु हैं. यदि इसी तरह देश में बड़े पैमाने पर अंधाधुंध तरीके से युवाओं को रा़ेजगारपरक शिक्षा दी जाएगी और फिर भी उन्हें बेरा़ेजगारी का सामना करना पड़ेगा, तो निश्चित तौर पर उनके मन में सरकार
के प्रति रोष पैदा होगा. वजह, प्रधानमंत्री और उनकी सरकार ने रोज़गार के सब्जबाग तो दिखाए हैं, लेकिन उनके पास ऐसी कोई दूरदर्शी व्यवस्था फिलहाल नहीं है. आयुध कारखानों में प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षुओं ने प्रशिक्षण के बाद परीक्षा भी पास की है. ऐसे में, सरकार उन्हें कम गुणवत्ता वाला भी नहीं कह सकती, क्योंकि वे सरकार के उपक्रमों द्वारा प्रशिक्षित हैं और उन्हीं की परीक्षा की कसौटी पर खरे उतरे हैं.
लेकिन, खुली भर्ती में उनकी जगह ऐसे लोगों को भर्ती कर लिया जाता है, जो व्यवहारिक तौर पर उनसे कम जानकार होते हैं. ऐसे में शिक्षुओं द्वारा आवाज़ उठाना लाजिमी है. वहीं दूसरी तऱफ निजी क्षेत्र भी रक्षा उपकरणों के निर्माण कार्य में उतर गए हैं और सरकार ने विदेशी कंपनियों के लिए रक्षा क्षेत्र में निवेश के रास्ते खोल दिए हैं. ऐसी स्थिति में इन प्रशिक्षित लोगों को उन संस्थानों में रा़ेजगार दिलाने की व्यवस्था सरकार को करनी होगी.