नीतीश सरकार के पहले कार्यकाल में ही सभी महादलित परिवारों को एक-एक रेडियो देने का एलान किया गया था. समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े महादलितों के बीच रेडियो का वितरण हो पाया अथवा नहीं, यह अब भी सवालों के घेरे में है. कुछ महादलित परिवारों के बीच रेडियो का वितरण हुआ भी तो रेडियो इतने दोयम दर्जे के थे कि समय से पहले ही जवाब दे गए.
रेडियो की गुणवत्ता देखकर कई परिवार के लोगों ने महज कुछ दिनों बाद ही उन्हें औने-पौने दामों पर बेच देना मुनासिब समझा. समस्तीपुुर जिले के गोरख सदा तथा खगड़िया जिले के सोनमनकी निवासी बालेश्वर चौधरी का कहना है कि बिहार के मुखिया नीतीश कुमार ने महादलितों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है.
दो जून की रोटी के लिए दर-दर की ठोंकरें खाने वाले महादलितों के ज्ञानवर्धन व मनोरंजन के लिए बिहार सरकार ने सरकारी स्तर पर रेडियो उपलब्ध कराने का एलान किया था. वर्षों बीत जाने के बाद कुछ महादलित बस्ती में रेडियो का वितरण भी किया गया, लेकिन उनका लाभ लिया जाता उससे पहले ही वे सरकारी रेडियो जवाब दे गए.
ये रेडियो कुछ दिनों तक कुछ लोगों के मनोरंजन का साधन रहे, लेकिन अधिकांश रेडियो जल्द ही खराब हो गए. नतीजतन महादलितों ने अपने पास से बैट्री तक खरीदना मुनासिब नहीं समझा. कई बस्ती के महादलित तो अब तक एक अदद सरकारी रेडियो के लिए लालायित हैं. इस संदर्भ में जब-जब प्रशासनिक पदाधिकारियों के साथ बात करने की कोशिश की जाती है तो टका सा जबाव मिलता है कि किसको कब रेडियो मिलेगा, इसके बारे में हमें जानकारी नहीं है.
एक ग्रामीण उमा देवी का कहना है कि ज्ञानवर्धन और मनोरंजन के लिए रेडियो खरीदने का शौक महादलितों को कभी नहीं था. अगर शौक था भी तो इनलोगों की माली हालत ऐसी नहीं है कि रेडियो खरीदने के लिए सोच भी सकें. लेकिन जब बिहार सरकार ने सभी महादलित परिवारों को अपनी तरफ से एक-एक रेडियो उपलब्ध कराने का वादा किया, तो महादलित परिवारों में उम्मीद की एक नई किरण जगी थी.
लेकिन ज्यादातर महादलितों को अभी तक रेडियो देखने का मौका भी नहीं मिला है. अनगिनत महादलित हैं, जिनकी शिकायतें रेडियो को लेकर है. जानकारों की बातों पर अगर भरोसा करें तो एससी-एसटी विभाग के द्वारा सभी रेडियो कम्पनियों से बकायदा इसके लिए कोटेशन (रेडियो की कीमत डिटेल) भी मांगे गए थे.
संतोष, बिप्रो और फिलिप्स कंपनियों के द्वारा उपलब्ध कराए गए कोटेशन से यह स्पष्ट हो गया था कि महादलितों के लिए रेडियो मिलने की राह आसान नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि कोटेशन उपलब्ध कराने वाली तीनों कम्पनियों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि लगभग पांच सौ से नीचे की कोई ऐसी रेडियो नहीं है, जिसे महादलितों को दिया जा सके.
जबकि यह भी जगजाहिर है कि सरकार के द्वारा सभी महादलित परिवारों को रेडियो उपलब्ध कराने के बावत सभी जिलों में बकायदा एक रेडियो मेला लगाकर चार-चार सौ के कूपन उपलब्ध कराए गए थे. हालांकि यह भी स्पष्ट कर दिया गया था कि नकद राशि का भुगतान इसलिए नहीं किया जाएगा, ताकि इस राशि का अन्यत्र उपयोग नहीं किया जा सके. लगभग 22 लाख महादलित परिवारों को इसके लिए चिन्हित भी किया गया था.
जानकारों की बातों पर अगर गौर किया जाय, तो इस तरह की योजना का आगाज किए जाने के समय ही यह समझना चाहिए था कि जिन महादलितों के घरों में दोनों शाम ठीक से चूल्हे नहीं जल पा रहे हैं, क्या वे लोग ज्ञानवर्धन और मनोरंजन के लिए रेडियो खरीदने हेतु 100 रुपये भी खर्च कर सकेंगे? इस संदर्भ में युवा शक्ति के प्रदेश संरक्षक नागेन्द्र सिंह त्यागी कहते हैं कि महादलितों को ठगने के लिए जनप्रतिनिधियों ने नए-नए खेल शुरू कर रखे हैं.
खगड़िया नगर परिषद के सभापति सह जन अधिकार पार्टी के जिलाध्यक्ष मनोहर कुमार यादव कहते हैं कि महादलितों को आशियाना उपलब्ध कराने का संकल्प तो अभी तक अधर में ही है, नीतीश सरकार ने रेडियो को भी महादलितों के लिए सपना बना दिया.
भाजपा के खगड़िया नगर अध्यक्ष सुनील कुमार चौधरी कहते हैं, नीतीश सरकार ने ऐसे तो सभी जाति के लोगों को ठगा गया है, लेकिन महादलितों के साथ घोर अन्याय किया गया है. इधर खगड़िया की जदयू विधायक पूनम देवी यादव, जदयू प्रवक्ता अरविन्द मोहन और बबलू मंडल विरोधियों के इन आरोपों को नकारते हैं. इनका कहना है कि नीतीश सरकार के द्वारा महादलितों ही नहीं, अन्य समाज के लिए भी चलायी गई योजना का लाभ जरूरतमंदो को मिला है.