विनायक दामोदर सावरकर ने अपने छ सोने के पन्ने (सहा सोनेरी पाने) इन मराठी कितिबो में अपने विचार प्रकट किए हैं वह पढ़ कर बड़े होने वाले हिंदुत्ववादी लोग महिलाओं तथा अल्पसंख्यक समुदायों के बारे में कुछ भी अच्छा सोचना असंभव है !


वर्तमान में मुस्लिम महिलाओं के संदर्भ में जारी विवाद देखकर मुझे याद आया कि सावरकर ने लिखा है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने कल्याण के सुभेदार की बहु को ससम्मान वापस भेजकर बहुत बड़ी गलती की है ! उन्होंने तर्क दिया है कि शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के बाद उनकी स्त्रियों के साथ बलात्कार करना चाहिए न कि उन्हें ससम्मान छोड़ना गलत है ! उसी तरह वसई की लड़ाई में चिमाजीअप्पा नामके पेशवा सरदार ने वसई की लड़ाई में पोर्तुगीज शासकों की बेटी को विजय प्राप्त करने के बाद ससम्मान वापस कर के अच्छा नहीं किया यह लिखनेवाला आदमी को भला कोई सभ्य आदमी कहां जा सकता ?


इसी तरह २६ नवंबर १९४९ को डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी ने भारत के संविधान को राष्ट्रीय संविधान सभा में पारित करने हेतु रखने के दुसरे ही दिन संघ के दिल्ली स्थित अंग्रेजी मुखपत्र आर्गनायझर में हजारों साल पहले ऋषि मनु ने लिखा हुआ मनुस्मृति जैसा आदर्श संविधान के रहते हुए इस भिमस्मृती की क्या आवश्यकता थी ? यह तो देश – विदेशी संविधानों की नकल कर के गुधडी जैसा संविधान को हम नही मानते !
जिस शाखाओं में उम्र के दस साल के बच्चे यह सब सुनकर और पढकर बडे होंगे तो आप उनसे और क्या उम्मीद कर सकते ? जब बीज ही बबुल का बोया जायेगा तो भला आम कहा से मिलेगा ! आज मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हरिद्वार से पहले भी संघ की स्थापना के बाद से ही लगातार अपप्रचार किया जा रहा है और उसे आने वाले २०२५ में सौ साल पुरे हो रहे हैं ! यह शाखाओं में अल्पसंख्यक जातियों से लेकर महिलाओं को लेकर जब सावरकर के जैसे घोर सांप्रदायिक हिंसा फैलाने वाले साहित्य को पढ़ने और सुनने के बाद भला कैसे सभ्य बनने की संभावना होगी ?

नाथूराम गोडसे उसके उम्र के पंद्रह साल पहले ही रत्नांगिरी में सावरकर की सोहबत में पला – बढा है तो विष कन्या के जैसा विष युवा तैयार किया गया था ! मराठी के नाटककार मधुकर तोडरमल ने एक दिपावली विशेषांक में गांधी जी की हत्या की शिक्षा खत्म करके आया करकरे नाम के अहमदनगर के अपराधियों में से एक का इंटरव्यू लिया था और वह बोला कि हम लोग अहमदनगर में साथ रहते हुए नथुराम के साथ नजर नहीं मिला सकते थे क्योंकि वह बारह महीनों सत्रह घंटों इस बुढ्ढे को (महात्मा गाँधी जी को) कब खत्म करूंगा इसी धुन में रहने के कारण उसकी आँखेंमे आग लगी हुई दिखाई देती थी !

(यह मनोहर मुलगांवकर के द मेन हूँ किल्ड गांधी इस किताब में दिया है!) इस तरह के लोग वर्तमान समय में भारत की केंद्रीय सरकार के सत्ता में आने के कारण और ज्यादा मुहजोर हो गये हैं ! और नहीं प्रधानमंत्री ने या गृहमंत्री ने इन बातों पर अपनी प्रतिक्रिया अबतक नही दी है और कारवाई करना तो बहुत दूर की बात है ! सैया भये कोतवाल तो डर काहेका ?
मुस्लिम महिलाओं के बारे में चल रहे ऐप के बारे में भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है तो यह सेफ्रोन डिजिटल आर्मी का नियोजित कार्यक्रम के अनुसार जारी है स्वाति चतुर्वेदी ने अपनी आई एम ए ट्रोल नाम की किताब में इस तरह के आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले लोगों को वर्तमान प्रधानमंत्री खुद फालो करने के उदाहरण देते हुए कहा कि इन में से किसी को प्रधानमंत्री आवास पर सम्मानित भी किया गया है ! आगे जाकर स्वाति के व्यक्तिगत अनुभव और अन्य लोगों को यह सेफ्रोन डिजिटल आर्मी किस तरह से कमर के निचे लिख रहे हैं इस के उदाहरण दिए हैं ! और सबसे महत्वपूर्ण बात यह डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल वर्तमान प्रधानमंत्री ने जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे उस समय २००७ में ही पहलीबार थायलंड की एक एजेंसी को हायर किया था ! तब भारत की किसी भी राजनीतिक दलों के लोगों को यह जानकारी नहीं थी !

बीजेपी भारत की पहली राजनीतिक दलों में से एक है जिसने इस तरह के ट्रोलिंग की शुरुआत की है और यह सब स्वाति चतुर्वेदी ने अपनी किताब में राम माधव से लेकर अलग – अलग ट्रोलरो के हवाले से कहा कि किस तरह से इन्हें बाकायदा बीट दिया जाता है कि तुम राहुल गांधी को फालो करो, तुम प्रियंका को इस तरह अलग अलग विरोधी दलों के नेताओं के पिछे पडकर यह सेफ्रोन डिजिटल आर्मी अपने काम को अंजाम दिया करते हैं ! शुरू में यह संख्या कुछ हजारों की संख्या थी लेकिन अब लाखों की संख्या में हैं ! और रात-दिन यह जहरीला प्रचार प्रसार करने का काम कर रहे हैं ! अब आप किनसे उम्मीद कर रहे हो कि इनके उपर कारवाई हो????

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