गांव के विकास से ही एक मजबूत राष्ट्र की कल्पना की जा सकती है. यह सुनने में चाहे जितना अच्छा लगे, लेकिन हकीकत में गांव के विकास को लेकर वर्तमान में कोई भी ईमानदार पहल करने को तैयार नहीं है. किसान कड़ी मेहनत की बदौलत अन्न उपजाता है और इसके बूते ही राष्ट्र की समृद्धि की कामना की जाती है. प्रशासन, सरकार और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाला मीडिया भी किसानों की समस्या को लेकर उदासीन रहा है. सरकारी स्तर पर प्रति वर्ष किसानों के हित में नई योजनाओं की घोषणा के साथ ही किसानों का सच्चा हितैषी होने का दंभ भी भरा जाता है. कुछ हद तक किसान लाभान्वित भी होते हैं. मगर गौर से देखा जाये तो सरकार प्रायोजित योजनाओं के तहत लाभान्वित होने वालों में गरीब तबके के किसानों की संख्या नगण्य होती है. सरकारी निर्देश के आलोक में योजनाओं के कार्यान्वयन की दिशा में पहल की जाती है.
लेकिन इस स्तर पर भी मजबूत व रसूखदार किसान को ही प्राथमिकता मिलती है. जहां तक जनप्रतिनिधियों का सवाल है तो उनकी नजर भी वैसे ही लोगों के पक्ष में टकराती है, जहां से चुनावी लाभ के अलावा अन्य सहयोग की अपेक्षा होती है. अब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने गये स्थानीय मीडिया की भूमिका पर भी चर्चा आवश्यक है. मौजूदा वक्त में मीडिया की भूमिका सरकार, प्रशासन व जनप्रतिनिधि के इर्द-गिर्द ही अधिक चक्कर लगा कर अपना दायित्व पूरा कर रही है. सीतामढ़ी जिला के किसानों के समक्ष भी समस्याओं का अम्बार लगा है. सबसे पहले पशुपालक किसानों की समस्या पर एक नजर डालते हैं.
बताते चलें कि सीतामढ़ी जिला में कुल 8 विधानसभा एवं 1 लोकसभा क्षेत्र है. 3 अनुमंडल, 1 नगर परिषद, 4 नगर पंचायत स्थित हैं. कुल 17 प्रखंड हैं. 273 पंचायत वाले इस जिला में राजस्व गांव की संख्या 845 है. जिला से होकर मुख्यत: बागमती, लखनदेई व अघवारा समूह की नदियां प्रवाहित होती हैं. गांव में रहने वाले किसानों को बहुत मायने में मूलभूत सुविधा नसीब हुई है, लेकिन जीवनयापन से संबंधित समस्याओं का अब भी अंबार लगा है. इसमें पशुपालन, सिंचाई, खाद, बीज शामिल है. जहां तक पशुपालक किसानों के समस्या की बात है तो इस जिला में पूर्व से 22 पशु चिकित्सालय कार्यरत रहे हैं.
इसके संचालन को लेकर विभागीय स्तर पर इतने ही पशु चिकित्सकों का पद भी सृजित किया गया था. सीतामढ़ी को स्वतंत्र जिला का दर्जा मिलने के करीब साढ़े चार दशक बाद भी उक्त पदों की संख्या यथावत है. इस बीच पुराने पशु चिकित्सक सेवानिवृत होते गये और स्थान रिक्त होता गया. आलम है कि वर्तमान में जिला में महज आधा दर्जन पशु चिकित्सक ही कार्यरत हैं. विभागीय स्तर पर 9 पशु चिकित्सकों को संविदा पर बहाल किया गया है. बताया जाता है कि उनका भी संविदा अवधि महज कुछ ही माह में समाप्त होने वाला है. 22 पशु चिकित्सालय के संचालन की कमान इन्हीं 15 पशु चिकित्सकों पर है.
पशु चिकित्सालयों का हाल भी बेहाल है. यकीन करें तो जिले के बैरगनिया, ढेंग, बोखडा, बथनाहा, सुप्पी, बेलाही नीलकंठ व तिलक ताजपुर में अब तक पशु चिकित्सालय को अपना भवन भी नसीब नहीं हो सका है, जबकि कई स्थानों पर जर्जर भवन तो नानपुर में किराया के मकान में चिकित्सालय का संचालन किया जा रहा है. बताया जाता है कि विभागीय स्तर पर सरकारी निर्देश के आलोक में करीब 3 साल पूर्व जिले में 9 नया पशु चिकित्सालय की स्थापना को लेकर स्वीकृति दी गयी. लेकिन अब तक इनमें एक पकटोला को छोड़कर शेष को भवन निर्माण के लिए जमीन भी उपलब्ध नहीं कराया जा सका है. इनमें बेलसंड प्रखंड का परतापुर, बैरगनिया का पचटकी जदू, परिहार का कुम्मा व नरगा, बाजपटटी का माधोपुर, पुपरी का रामपुर पचासी, डुमरा का पकटोला व राघोपुर बखरी व नानपुर में बोखडा शामिल है.
चिकित्सक के साथ अन्य कर्मियों की कमी से भी जिला पशुपालन विभाग परेशानी झेल रहा है. विभागीय सूत्रों के अनुसार, शुरुआती दौर में चतुर्थ वर्ग के कुल 65 कर्मियों का पद सृजित कर बहाली की गयी थी. कर्मियों की संख्या भी सेवानिवृत्ति के कारण घटती गयी. अब महज 14 चतुर्थवर्गीय कर्मचारी ही कार्यरत रह गये हैं. इसी प्रकार पशुधन सहायक का 24 सृजित पद पर कार्यरत कर्मी की तादाद भी घटकर वर्तमान में 7 तक पहुंच गया है.
सरकार प्रायोजित योजना के तहत जिला पशुपालन कार्यालय को मुर्गी व बकरी पालन के लिए प्राप्त अभ्यावेदन को बैंक तक पहुंचाना है. मगर लाभुकों को योजना का पता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2015 में 7-8 आवेदन ही इस कार्यालय को प्राप्त हो सका है. पशुपालक किसानों की मानें तो पिछले साल डेंगनाला जैसी बीमारी के फैलाव के कारण पशुपालकों को भारी तबाही झेलनी पड़ी थी, जबकि सर्दी में आभा और गर्मी में लू लगना व डायरिया जैसी बीमारी पशुपालक किसानों के लिए मुसीबत बनती रही है.
जिला पशुपालन पदाधिकारी डॉ मो. मंसूर आलम का कहना है कि डुमरा प्रखंड के पकटोला में चिकित्सालय के लिए जमीन उपलब्ध है, लेकिन शेष स्थानों के लिए जमीन की तलाश की जा रही है. चिकित्सक व कर्मियों की कमी को लेकर विभागीय स्तर पर मदद का आग्रह किया गया है. इन समस्याओं को नव निर्वाचित सीतामढ़ी विधायक सुनील कुमार व विधान पार्षद दिलीप राय ने भी गंभीरता से लिया है. उक्त दोनों जनप्रतिनिधियों ने विभागीय मंत्री से मिलकर समस्या का निदान कराने की दिशा में पहल करने का भरोसा दिलाया है.
समय रहते अगर चिकित्सक और कर्मियों की कमी की समस्या दूर हो जाती है तो पशुपालन विभाग के दिन बहुरेंगे, अन्यथा समस्या और भी विकराल हो जाएगी. ब़डी बात यह है कि इन समस्याओं से निजात मिल जाती है तो गांव समृद्ध हो सकेगा और समृद्ध गांव ही समृद्ध राष्ट्र की नींव रख सकता है और यह तभी संभव हो सकेगा, जब कोरे आश्वासनों के भरोसे न बैठा जाए और जिनलोगों के कंधों पर इसके विकास का दायित्व है, उनसे इसकी जवाबदेही तय कराई जाए.