नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्हें समय को साध कर चुनौतियों का मुकाबला करना आता है । मैंने कहीं लिखा था कि मेरे विचार में देश के जनमानस को या तो महात्मा गांधी ने गहराई से समझा या उनके बाद सीधे नरेंद्र मोदी ने । पं. नेहरू ने समझा होता तो शायद गांधी जी प्रेरित अर्थव्यवस्था के खाके का विरोध नहीं किया होता । इंदिरा गांधी भी देश के जनमानस को उतनी गहराई से नहीं समझ सकीं जिस गहराई से उनके बाद नरेंद्र मोदी ने समझा । इसे आप मोदी और जनता के बीच की कैमिस्ट्री कहिए । काबिले गौर यह है कि नरेंद्र मोदी ने इस समझ का जितना दोहन अपने पक्ष में किया , उसी का परिणाम है कि आज (उनकी इतनी विफलताओं और आलोचनाओं के बावजूद ) 56% जनता मोदी की तथाकथित ‘विराटता’ को तहे दिल से स्वीकार कर रही है । बाकी ममता, केजरीवाल, राहुल गांधी दूर दूर तक उनके समकक्ष नहीं । दरअसल मोदी रेलगाड़ी के उस चालक की तरह हैं जिसे हर विपरीत परिस्थिति में अपनी ट्रेन को ठीक समय पर पहुंचाना आता है । अब धीरे धीरे यह साबित होता जा रहा है कि जब तक मोदी अपने वजूद में हैं तब तक वे अजेय जैसे ही हैं । उनको परास्त करने और जन सामान्य को उनकी योजनाओं और तथाकथित सफलताओं – विफलताओं की असलियत समझाने का सारा समय विपक्ष और हमारे प्रबुद्ध वर्ग के साथ से निकल चुका है । मैं जब आज सुबह लालकिले से मोदी का भाषण सुन रहा था तब मुझे ‘वायर’ की आरफा खानम शेरवानी की याद आ रही थी , कि अब उनका काम होगा कि मोदी के भाषण की चर्चा करते हुए उन बातों को सामने रखेंगी जो मोदी के उठाए मुद्दों के पीछे छिपे पहलुओं के सच को बयान करते हैं । यह कोई नहीं बात नहीं होगी । हर कोई ऐसा करता है । सब करेंगे और मैं तो कहूंगा कि सब ‘रोएंगे’ । कमोबेश रवीश कुमार का शो भी इसी बात पर हो सकता है कि असली सच्चाई तो यह है। पर जैसा पहले कहा कि जो समय निकल गया अब उस पर रोने पीटने से कुछ हासिल होने जाने वाला नहीं । हम नोटबंदी और कोविड के दौरान से यह सब देख रहे हैं । मोदी अजेय होकर निकल रहे हैं । अब तो कभी कभी शक होता है कि देश के तमाम बुद्धिजीवियों ने भी क्या ‘मोदी के होने का मतलब’ समय रहते समझा ? सच यह है कि नहीं समझा । चूकते रहे । मैं लगभग अपने हर लेख में लिखता रहा कि छोटे शहरों और गांवों में मंडलियों में जा जा कर लोगों को इस सरकार की तथाकथित योजनाओं की असलियत समझाने और उनके भीतर से मोदी ‘भगवान’ को निकालने की जरूरत है । आरएसएस संगठन जिस तरह सफल होता है उस सबको जानते समझते भी हम सोशल मीडिया के दायरों में सिमट कर रह जाते हैं । बहस और चर्चाओं तक खुद को सीमित करके खुद की जिम्मेदारियों को पूरा समझ लेते हैं । मोदी की लोकप्रियता का प्रतिशत अभी और बढ़ेगा । आज लालकिले से उन्होंने विशेषतौर पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद की बात पर विशेष जोर दिया- अंत में । याद रखिए अंत में कहीं बात दिमाग में ज्यादा देर तक टिकी रह जाती है। सब जानते हैं कि परिवारवाद की बात करके उन्होंने किसको निशाने पर लिया। सामान्य जनता के बीच इन बातों का कोई मतलब नहीं कि सारी संस्थाएं मोदी की मुठ्ठी में हैं या ईडी सिर्फ विपक्षियों को निशाने पर ले रही है या राहुल गांधी ट्विटर पर क्या बोलता जा रहा है या स्वयं वह जनता फिलहाल किस हाल में है । सामान्य जनता के पास अपेक्षित तर्क शक्ति न पहले थी और न अब बची है । मोदी के ‘जादू’ ने किसी दूसरी चीज के लिए कोई स्कोप नहीं छोड़ा । आप हैरान होंगे यह जानकर कि हर व्यक्ति हर चीज और हर बात समझ रहा है । वह समझ रहा है कि उसका जीवन नरक हो चुका है लेकिन फिर भी वह मोदी के ‘जादू’ से मुक्त नहीं हो पा रहा। पुलवामा की सच्चाई चाहे पूरा देश भली-भांति समझ रहा हो , पर सच्चाई यह भी है कि वह मुद्दा अब हवा-हवाई हो चुका है। बहुत रफ्तार से और हुनर से वक्त को तेज ‘बढ़ाया’ जा रहा है । मोदी के किये को बढ़ाना – घटाना सब आरएसएस के हाथ है । किसे टिकाना और टिकाए रखना है और किसे हवा-हवाई कर देना है यह भी आरएसएस का खेल है । आज देश की हालत नदी के उस पानी से जैसी हो गई है जो ऊपर से तो निर्मल दिखाई पड़ता है लेकिन जिसके नीचे बड़ी गंदी गाद ही गाद है । और वह जमती ही जा रही है । विपक्ष को अपनी लड़ाईयों से ही फुरसत नहीं है वहां हर नेता प्रधानमंत्री का सपना पाले हैं । मुझे तो राहुल गांधी महामूर्ख सा लगता है जो मूर्खतापूर्ण बातें करने से बाज नहीं आता । जैसे – ‘मुझे सारी ‘इंस्टीट्यूशंस’ दे दो मैं चुनाव जीत कर दिखा दूंगा!’ निहायत मूर्खतापूर्ण बात है। नीतीश का प्रकरण और बातें सब टांय टांय फिस्स होने वाली हैं । मोदी अपनी पिछड़ती हुई गाड़ी को ‘बिफोर टाइम’ पहुंचाने की कुव्वत रखते हैं । दरअसल आज देश की तमाम समस्याओं से ऊपर हो चली है मोदी की छवि । जिसे मोदी ने अच्छे बुरे किसी भी तरीके से स्वयं बनाया है । एक चाय वाले से प्रधानमंत्री तक के ‘गढ़े’ हुए सफर को कैसे ‘कैश’ करना और कराना है मोदी इसमें पारंगत हैं । ये सारी बातें किसी लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री के लिए भी न तो शोभा देतीं हैं और न अनिवार्य कार्य की शर्तें हैं । लेकिन मोदी पुतिन और शी जिनपिंग से अलग अपनी लंबी राह तय करना चाहते हैं। उनके लिए मजबूरी यह है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है । यकीनन , 2024 के बाद सम्भवतः चुनाव न हों और नयी तरीके की शासन पद्धति हो जाए । तो भी मोदी अपनी रफ़्तार और अपने तौर तरीके खुद तय करेंगे । उनके होंठों पर हमेशा लोकतंत्र रहेगा और दिमाग में हमेशा 2002 ।
राह सिर्फ एक है इस अंधे कुएं से निकलने की । एक ऐसा जनव्यापी – देशव्यापी आंदोलन हो जिसमें क्या सामान्य जनता , क्या बुद्धिजीवी, क्या बच्चे, बूढ़े , महिलाएं, क्या किसान, क्या रोजगार प्राप्त और बेरोजगार , क्या सरकारी और निजी कर्मचारी सब यानी सब और हर धर्म, जाति, वर्ग और समाज के लोग खुद को नदी की गाद समझ कर एकत्र हों और तब तक न हटें जब तक कि इस सरकार की चूलें न हिल जाएं । अगर यह भी न कर पाएंगे तो मोदी को हटाना भूल जाएं । कांग्रेस के आंदोलन एक झूठ को सच बनाने के आंदोलन हैं । काश कांग्रेस ने राहुल और सोनिया पर आयी आपत्तियों के निहितार्थ किये आंदोलनों से पहले और बहुत पहले देश की समस्याओं पर अपने आंदोलन छेड़ दिये होते । पर अफसोस आज कांग्रेस दिमाग रहित होकर भ्रमित दिशा में देख रही है । बस इसीलिए उसका हर प्रयास टांय-टांय फिस्स हो रहा है। और मोदी का कद बढ़ता जा रहा है ।

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