अमेरिकी गृह युद्ध समाप्त हुए 150 साल हो चुके हैं. इस युद्ध में संघ (यूनियन) से अलग हुए कंफेडरेट को उत्तर की सेना ने पराजित कर दिया था. यह अमेरिकी मानसिकता पर लगा ऐसा ज़ख्म था, जो आज भी ताज़ा है. कंफेडरेसी का कहना था कि वह राज्य के अधिकारों की रक्षा के लिए यूनियन से अलग हुआ था, जबकि अब्राहम लिंकन और उत्तर के लोग इसे गुलामी की प्रथा से जोड़कर देख रहे थे. दक्षिण के राज्य गुलामी प्रथा को समाप्त नहीं करना चाहते थे. वे युद्ध में हार गए और युद्ध के दौरान ही लिंकन ने एमंशिपेशन (मुक्ति) डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर किए थे. पिछले दिनों डेलन स्टॉर्म रूफ नामक एक नवजवान ने पुराने कंफेडरेट स्टेट के चार्ल्सटन (साउथ कैरोलिना) के एक शांत और अलग-थलग स्थित चर्च में घुसकर बाइबिल पाठ कर रहे नौ अश्वेत श्रद्धालुओं को गोली मार दी, जबकि अश्वेतों ने चर्च में उसका स्वागत किया था. वह इस पूर्वाग्रह से ग्रसित था कि अश्वेत अमेरिका पर क़ब्ज़ा कर लेंगे. वह एक नस्ली जंग शुरू करना चाहता था. इस घटना में हताहत लोग किसी तरह की जंग की शुरुआत करने की स्थित में नहीं थे. हताहतों के रिश्तेदारों ने रूफ को मा़फ कर दिया.
अगर कोई डेलन रूफ की वेबसाइट पर जाएगा, तो वह उसे वहां कंफेडरेट झंडे के साथ मिलेगा. इससे यह ज़ाहिर होता है कि कंफेडरेट राज्यों में गुलामी प्रथा जारी रखने की इच्छा आज भी विद्यमान है. दरअसल, दक्षिण के कई राज्य यह झंडा अपने दफ्तरों पर फहराते हैं. आ़िखरकार दक्षिण कैरोलिना की गवर्नर निकी हेली ने एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें यह कहा गया है कि कैपिटल बिल्डिंग्स पर अब कंफेडरेट झंडे न फहराए जाएं. ज़ाहिर है, ऐसा करने के लिए उन्हें काफी हिम्मत जुटाने की आवश्यकता पड़ी होगी. झंडा फहराने की यह रस्म न केवल गृह युद्ध में हारे हुए पक्ष की तऱफ से हिस्सा लेने वाले बहादुर सैनिकों के सम्मान से संबंधित है, बल्कि यह श्वेत नस्लवाद की प्रतीक भी है. 1962 में सिविल राइट्स आंदोलन ने जब दक्षिणी राज्यों को प्रभावित करना शुरू किया, तो उसकी प्रतिक्रिया में इस झंडे को एक नया जीवन मिला. ज़ाहिर है, अमेरिका द्वारा नस्लवाद जिस तरह रद्द किया जा रहा था, उससे दक्षिणी राज्यों के श्वेत (सभी नहीं, लेकिन उनकी अच्छी खासी तादाद) खुश नहीं थे.
अमेरिका में नस्लवाद आज भी एक विभाजनकारी ताक़त है. जेलों की आबादी के लिहाज से या पुलिस कार्रवाई में घायल या मारे जाने के मामले में अश्वेतों की संख्या उनकी आबादी की तुलना में अधिक होने की संभावना रहती है. यहां तक कि ग़रीबी और ख़राब सेहत से पूर्व कंफेडरेट राज्य उत्तर की तुलना में अधिक प्रभावित हैं. और ये वही राज्य हैं, जहां ग़रीबों के लिए जारी ओबामा केयर (ओबामा का स्वास्थ्य कार्यक्रम) का सर्वाधिक विरोध हुआ. बहरहाल, एक ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति, जिसके माता-पिता श्वेत और अश्वेत थे, के सत्ता में आने के बावजूद अमेरिका नस्लवाद की समस्या से उबर नहीं पाया. जैसा कि अमेरिका की पहली महिला अश्वेत विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस ने कहा था कि नस्लवाद अमेरिका का पैदायशी निशान है. दरअसल, आज अश्वेत अमेरिकियों की हालत 1960 के दशक (जब मैं वहां गया था) से बहुत बेहतर है. उस समय पूरे देश में नस्ली भेदभावपूर्ण क़ानून मौजूद थे.
आज देश का बड़ा हिस्सा नस्लवाद और नस्ली भेदभाव से मुक्त है. दक्षिण से संबंध रखने के बावजूद राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने सिविल राइट्स से संबंधित क़ानून बनाने की शुरुआत की. उसके बाद के पचास वर्षों में बहुत कुछ बदल चुका है. अश्वेतों का एक मध्यम वर्ग उत्पन्न हो गया है और मध्यम वर्ग में जन्म लेने वाले बच्चों के लिए रंग और नस्ल कोई मायने नहीं रखता है. लेकिन, जहां तक ग़रीबी का सवाल है, तो अश्वेत अपनी आबादी के अनुपात में अधिक ग़रीब हैं. दरअसल, चार्ल्सटन की त्रासदी ने अमेरिकियों को अपने इतिहास पर पुनर्विचार पर मजबूर किया है. डेलन रूफ की घिनौनी हरकत की वजह से अनेक श्वेत अमेरिकी कंफेडरेट झंडे से अपनी वफादारी समाप्त कर रहे हैं. साथ ही जिस चर्च में उक्त हत्याएं हुई थीं, उसकी उदारता ने भी बहुतों के दिल पिघला दिए. दरअसल, अमेरिका में नस्लवाद का मुद्दा अभी पूरी तरह से सुलझा नहीं है. यह देश बहादुरों और स्वतंत्र लोगों का देश उस वक्त तक नहीं बन सकता, जब तक कुछ लोगों को अधिक स्वतंत्रता मिलेगी और कुछ को कम.
भारत के भी अपने जन्मजात ज़ख्म के निशान हैं. बंटवारा एक ऐसा ज़ख्म है, जो अभी तक नहीं भरा है. यह ज़ख्म अभी भी टीस पैदा करता है. संघ परिवार हमेशा मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने पर आमादा रहता है. हाल के दिनों में उन्हें पाकिस्तान भेजने का कारण योग में हिस्सा लेने से इंकार करना था. अगर कुछ लोग इस देश में ऐसे हैं, जो नाथू राम गोडसे के नाम पर मंदिर बनवाना चाहते हैं, तो उसके पीछे भी पाकिस्तान ही है, क्योंकि यह गांधी जी ही थे, जिनका मत था कि संपत्ति के बंटवारे में पाकिस्तान के साथ न्याय होना चाहिए, जिसकी वजह से नाथू राम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी. हमें आशा करनी चाहिए कि भारत अपने ज़ख्म अमेरिका से पहले किसी जान-माल के ऩुकसान के बिना भर लेगा.