रविंद्रनाथ टागौर ने खुद यह नाम रखा क्योंकि इस बालक का जन्म शांतिनिकेतन में अपने नाना क्षितिमोहन के घर में 3 नवंबर 1933 को हुआ ! मां अमिता बंगाल की पहली भद्र बंगाली घर की लड़की जिसने स्टेजपर आधुनिक नृत्य करने की शुरुआत की है ! और आत्मरक्षार्थ जुडो – कराटे की विधिवत शिक्षा जपानी शिक्षकों के द्वारा प्राप्त की ! यह सब कुछ आजसे सौ वर्ष पहले की बात है ! अमिता के नृत्य से प्रभावित होकर रविंद्रनाथ टागौर ने अपने द्वारा लिखित गानों को, अमिता के नृत्यों के साथ स्टेजपर करने की शुरुआत की है ! जो आजकल सभी भद्र बंगाली अपनी लडकियों को रविंद्रनाथ टागौर के गितो से लेकर उनके उपर आधारित नृत्यों की विशेष शिक्षा देने की कोशिश करते हैं !लेकिन और तत्कालीन मिडिया में तारीफ कम और आलोचना ज्यादा होती थी ! क्योंकि अमिता के पहले भद्र बंगाली घर की लड़की ने स्टेजपर यह सब नहीं किया था ! उसके लिए नटी विनोदिनी जैसे खास कलावंतीण परिवार की लडकियां होती थी जैसे महाराष्ट्र – कर्नाटक गोवा में देवदासिया होती थी !


इस मां की कोख से पैदा हुआ लडका ! जिसका नाम खुद रविंद्रनाथ ने अमर्त्य रखा ! और कभी-कभी रविंद्रनाथ खुद बगैर कोई सुचना दिए अमर्त्य के नाना क्षितिमोहन के घर रोज सुबह-सुबह आकर देखते थे ! कि क्षितिमोहन अभितक सोये हुए हैं ! तो तुरंत अपने शिघ्र कवि की प्रतिभा के अनुसार रवि मतलब सूर्य आया है ! और क्षिति मतलब पृथ्वी अभितक जागी नही है ? यह सब कुछ अपनी नानी से सुना है ! और फिर रविंद्रनाथ और क्षितिमोहन सुबह की सैर के लिए निकल पड़े हैं ! जन्म के आठ साल तक रविंद्रनाथ की सोहबत और पाठाभवन में स्थापना के समय से ही विश्व स्तर के अतिथियों का आना जाना जिसमें माओ त्से तुंग के पहले चीन के सर्वेसर्वा जनरल चांग काई शेक ने पाठाभवन में आकर भाषण दिया है ! जो अमर्त्य सेन ने अपने आत्मकथा में लिखा है ! वैसे ही महात्मा गाँधी रविंद्रनाथ टागौर की 1941 में मृत्यु के चार साल बाद 1945 में आएं थे ! और रविंद्रनाथ टागौर की मृत्यु के बाद शांतिनिकेतन का क्या होगा ? इसकी चिंता अपने भाषण में कर रहे थे ! और मैंने उनका ऑटोग्राफ लिया है ! लेकिन उन्होंने उसके पहले हरिजन फंड के लिए पांच रुपए का चंदा मांगा ! और मैंने अपने पॉकेट मनी से कुछ पैसे बचाएं थे ! उसमे से मैंने दुनिया के महान शख्सियत को पांच रुपए दिए ! लेकिन उनके जैसे महान विभुतीयो के लिए यह चंदा कोई बडी बात नहीं है ! लेकिन मुझे याद है, गाँधी जी ने बहुत ही सुंदर हंसी के साथ मुझे कहा कि “यह चंदा मैंने हमारे देश की जातीव्यवस्था को खत्म करने के लिए लिया है!” और उन्होंने देवनागरी लिपि में अपना मो. क. गाँधी, हस्ताक्षर किया है !


उसी तरह पाठाभवन की पढाई में मुझे बहुत ही अच्छे दोस्तों का लाभ हुआ है ! जिसमें चीना भवन के संस्थापक प्रोफेसर तान यून शान के बेटे तान ली जो मुझसे एक साल छोटे थे ! और जिंदगी भर मेरे दोस्त रहे हैं ! और अभी हाल ही में 2017 में उसका देहांत हुआ है !
और पाठा भवन में शुरुआती शिक्षा के समय कुछ लड़कियों से भी दोस्ती थी ! जैसे लडको में साधन, शिब, चित्ता, चालुता, भेलतु, और मृणाल जो मेरी सब से करीबी मित्र थे ! और लड़कियों में मंजुला, जया, बिथि, तपति, शांता, मेरे शांतिनिकेतन के मित्रों के बारे में मेरी राय है कि हर एक के उपर एक चरित्र कथा लिखि जा सकती है ! दोस्ती करना अमर्त्य सेन की सब से प्रिय आदतों में से एक दिखाई देती है ! अपने रिश्तेदारों में भी उन्होंने कई नाम लिया है वैसे ही ट्रिनिटी कॉलेज में विद्यार्थियों से लेकर शिक्षकों के साथ जो अंतर्तम संबंध बनाए थे वह उसका लक्षण है ! उन्होंने अपनी आत्मकथा को HOME-IN-THE-WORLD-A-MEMOIR नाम देने का मतलब ही अमर्त्य सेन भले अर्थशास्त्री के रूप में विश्वविख्यात हुए हैं ! लेकिन मानवीय संबंधों को लेकर उनकी प्रतिबद्धता विलक्षण है ! भारत के विभाजन के बाद उनके विदेशी भूमि पर बने हुए पाकिस्तानी मित्रों को मिलने के लिए जिसमें महिलाओं का भी शुमार है ! और लाहौर, कराची तथा अन्य शहरों में सिर्फ मित्रो को मिलने के लिए अचानक चले जाना ! और उन मित्रो के परिवार में शामिल होने के लिए आपको वैश्विक स्तर की संवेदनशीलता चाहिए ! जो उनके पढ़ने के समय केंब्रिज के मित्रों में अंग्रेज भी थे और उसमे भी महीलाओ का समावेश है ! यह सब आजसे पचहत्तर साल पहले की दास्तानगोई की बात है !


जो भारत जैसे देश में महिलाओं को लेकर पारंपरिक गैरबराबरी के व्यवहार से मुझे बहुत चिढ थी ! और इसिलिये मेरे लिए स्री – पुरुषों के संबंध में आज भी वही चिंता का विषय है ! और अमर्त्य सेन तो पाठाभवन से प्रेसिडेंसी और बाद में केंब्रिज, ऑक्सफर्ड और एम आई टी जैसे वैश्विक स्तर पर पढने – पढाने के लिए गए हैं ! मै तो अपने गांव के जीवन शिक्षण शाला और बाद में शिंदखेडा के न्यू इंग्लिश स्कूल और फिर अमरावती के मेडिकल कॉलेज में तथा राष्ट्र सेवा दल में भी लड़कियों से लेकर लडको तक कि दोस्ती मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रही है ! कई मित्रों ने पुछा है कि तुम्हारी महिला मित्र ज्यादा है या पुरुष मित्र ? मैंने कोई लिस्ट तो नही बनाई ! लेकिन मैत्री मैत्री होती है ! और उसमें स्री – पुरुषों का भेद करना नहीं चाहिए ! यह भूमिका बचपन से ही रही है ! और अमर्त्य सेन की भी लगभग वैसे ही भुमिका देखकर लगता है ! कि यह आदमी जीवन में प्रेम करने के लिए विशेष रूप से पैदा हुआ हैं !


अमर्त्य कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज 1952 में 19 साल के उम्र में ! (अब विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है ! ) में दाखिल होता है ! उसके सामने ही ऐतिहासिक कॉफी हाउस में अपनी पढ़ाई के साथ – साथ तत्कालीन देश – दुनिया की स्थिति को लेकर अड्डा है ! उसमे तत्कालीन द्वितीय विश्व युद्ध को लेकर , तथा भारत के आजादी के आंदोलन तक और ऐतिहासिक बंगाल के अकाल को लेकर घनघोर चर्चा करते थे ! 1942-43 जिसमें सिर्फ अन्न के अभाव में लाखो लोगों की मौत हो गई है ! वैसे देखा जाए तो अन्न की कमी नहीं थी ! लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के सैनिकों के लिए भारत से जहाजों में भर – भरकर अनाज भेजा जा रहा था ! इसलिए बंगाल में मनुष्य निर्मित अकाल की स्थिति बन गई थी ! यह शतप्रतिशत तत्कालीन अंग्रेजी सल्तनत की भारत के लोगों के मुह के निवाले छिनकर जोर-जबरदस्ती से अन्न इकट्ठे करने के बाद विदेश में युद्ध भूमि पर भेजा जाता था ! और यहां कलकत्ता, ढाका के सड़कों पर हजारों लोग अन्न मिलेगा इस आशा से गांव – देहांत से आकर रस्तोपर अन्न के अभाव में मरने के दृष्य आम बात थीं !
इस तरह के अत्यंत महत्वपूर्ण विषयों पर लिखने – बोलने वाले अमर्त्य सेन की वर्तमान सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ लिखने – बोलने की बात ‘मनकि बात’ करने वाले लोगों को नागवार लगने की वजह से उन्हें अपमानित करने के लिए नये- नये हथकंडे अपनाएं जा रहे हैं ! जिससे पता चलता है कि हमारे देश में अघोषित आपातकाल और सेंसरशिप का दौर पिछले दस सालों से बदस्तूर जारी है !
डायलॉग करना जनतंत्र का प्राथमिक कार्य है ! और वर्तमान समय में मोनोलॉग मतलब ‘मण की बात’ जैसे बेसिरपैर की बातो के चलते हुए ! ‘अरग्यूमेंटिव इंडिया’ जैसे तर्क करने की कोशिश करने वाले अमर्त्य सेन को ! वर्तमान केंद्र सरकारने सबसे पहले, सत्ता मे आतेही उन्हे नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के पद से हटाने का काम किया ! और वह कम लगा तो, शांतिनिकेतन की पश्चिम दिशा में अमर्त्य सेन के पिता जी ने एक जमिन का टुकड़ा खरीदकर ,श्रीपल्ली नामके जगह पर 1942 में ‘प्रतिचि’नाम के घर का निर्माण किया है ! खुद के लिए घर बनाने के लिए जो जमीन ख़रीदकर उसपर जो घर बनाया था ! उसी घर से बाहर निकालने के लिए तत्कालीन कुलपति प्रो. विद्युत चक्रवर्ती ने ! 90 साल उम्र के आंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर अर्थशास्त्री को, मकान से निकाल बाहर करने की अत्यंत अपमानजनक कृति, पिछले कुछ दिनों से विश्वभारती के तत्कालीन कुलपति विद्युत चक्रवर्ती किसके इशरो से कर रहे थे ? जिसे परसों शिउडी के कोर्ट ने खारिज कर दिया है !


और उसी कड़ी में अमर्त्य सेन जैसे विश्व के सर्वश्रेष्ठ बुध्दिजीवियों के हिस्से में वसुधैव कुटुंबकम के नारे हवाई अड्डो से लेकर रेल्वे स्टेशन पर लगाने वाले लोगों को उन्हें अपने घर से बाहर निकालने की कृती को क्या कहेंगे ? पाखंड ? आपातकाल की घोषणा के 25-26 जून के दिन नरेंद्र मोदीजी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कैसे हरण हुआ था ! और भारत के जनतंत्र की हत्या जैसे शब्दों का प्रयोग करते हुए आपातकाल के बारे में बोलते रहते हैं ! लेकिन खुद 2014 के मई माह में सत्तारूढ़ होने के बाद भारत में बगैर कोई आपातकाल तथा सेंसरशिप की घोषणा किए आज दस सालों में उससे भी बदतर स्थिति से देश गुजर रहा है !

तथाकथित मुख्य धारा के मिडिया संस्थाओं को सरकार ने सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया है ! और उसके बावजूद अगर किसी ने कोई कोशिश की तो आज शेकडो पत्रकार जेल मे बंद कर दिए गए हैं ! कोई विदेश में रहते हुए लिखते हैं तो उन्हें भारत में आने की मनाही की जा रही है ! अतिश तासीर भारत में जन्मे एक मशहूर महिला पत्रकार तवलिन सिंह के बेटे को वर्तमान भारत की परिस्थिति पर टाइम पत्रिका में प्रकाशित लेख के वजह से उसे भारत में आने – जाने की मनाही कर दी है ! न्यूजक्लिक के सभी पत्रकारों को चायना कनेक्शन के नाम पर जेल में बंद कर दिया है ! और उसी चायना सरकार के पिपल्स डेली में वर्तमान प्रधानमंत्री के तारिफ वाले लेख का भारत में तथाकथित मुख्य धारा के मिडिया ने हाथों हाथ उठा कर खुब प्रचार प्रसार करने का प्रयास किया है ! इस चायना कनेक्शन को क्या कहेंगे ? कितना विरोधाभास चल रहा है ? वैसे ही हमारे देश के सर्वोच्च सभागार लोकसभा के विरोधी दलों के सदस्यों को सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलने की वजह से उन्हें संसद से बर्खास्त कर दिया जाता है और कुछ सदस्यों की सदस्यता तक छीन ली गई है ! हालांकि जिन मतदाताओं ने उन सदस्यों को चुन कर भेजा है यह उनका अपमान करने की कृति मानीं जानी चाहिए ! लेकिन वर्तमान सरकार इतनी उन्मत्त हो गई है उसे इस तरह की किसी भी बात की परवाह नहीं है ! उसने सभी संविधानिक संस्थाओ को अपने दल की ईकाई जैसे इस्तेमाल करते हुए उनके द्वारा भारत के सभी विरोधी दलों की सरकारों को अस्थिर करने के लिए खुले आम इस्तेमाल करना शुरू किया है ! मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पंजाब, झारखंड, कर्नाटक, तामिळनाडू, केरल मतलब जो दल भाजपा के विरोध में है उन सभी के पिछे ईडी, सीबीआई के द्वारा दबाव बनाने के लिए खुलकर इस्तेमाल किया जा रहा है ! और हमारे देश की न्यायिक प्रणाली के उपर भी जबरदस्त दबाव बनाने के दर्जन भर उदाहरण मौजूद हैं ! क्यों न इसे अघोषित आपातकाल कहा जाए जो भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 2015 के समय इस सरकार को सिर्फ एक साल होने के बावजूद आपातकाल की घोषणा के चालिस साल के उपलक्ष्य में एनडीटीवी के तरफ से वॉक वुईथ टॉक शिर्षक से एक कार्यक्रम में तत्कालीन इंडियन एक्सप्रेस के संपादक श्री शेखर गुप्ता को जो साक्षात्कार में कहा कि आप चालिस साल के आपातकाल की घोषणा के बारे में मुझे पुछ रहे हो लेकिन पिछले एक साल से हमारे देश में बगैर किसी आपातकाल की घोषणा किए जो स्थिति बन गई है उसका क्या ?

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