मुलायम सिंह यादव ने परिवार में कलह का चक्रव्यूह रच कर जिस तरह अपने भाई शिवपाल सिंह यादव को फंसाया और बेटे अखिलेश यादव को उठाया, उस कुटिल-कला ने आखिरकार अखिलेश यादव के राजनीतिक भविष्य को ही खतरे में डाल दिया है. मुलायम के प्रति समर्पित शिवपाल ने बड़े भ्राता के धृतराष्ट्रीय पुत्र-प्रेम के आगे खुद को कुर्बान करने से अंततः इन्कार कर दिया और समाजवादी सेकुलर मोर्चा को सामने लाकर अखिलेशवादी-सपा में उपेक्षित, तिरस्कृत, अपमानित, निष्कासित और नाराज नेताओं-कार्यकर्ताओं में एकबारगी जान फूंक दी. हालांकि मोर्चे का औपचारिक ऐलान करते हुए भी शिवपाल ने भातृ-धर्म का निर्वहन किया और कहा कि मुलायम की सहमति लेकर ही वे समाजवादी सेकुलर मोर्चा का ऐलान कर रहे हैं. एकबारगी सारे राजनीतिक दलों की निगाह मोर्चे पर टिक गई है और भारतीय जनता पार्टी का संशय-तापमान बढ़ गया है.
समाजवादी सेकुलर मोर्चा की औपचारिक घोषणा और लोकसभा चुनाव में यूपी की सभी सीटों पर मोर्चा के चुनाव लड़ने का ऐलान होते ही जिस तरह सपा में अकाल और मोर्चा में भौकाल का दृश्य सामने आने लगा, राजनीतिक समीक्षक और जानकार अखिलेश यादव के राजनीतिक भविष्य के प्रति आशंका जताने लगे. समाजवादी पार्टी के भी कई वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं का बड़ा हिस्सा शिवपाल के समाजवादी सेकुलर मोर्चे में शामिल होने जा रहा है.
अखिलेश यादव की सरकार में मंत्री रहे शारदा प्रताप शुक्ल और शादाब फातिमा, सपा से दो बार इटावा के सांसद रह चुके रघुराज सिंह शाक्य और पूर्व विधायक मलिक कमाल युसुफ जैसे नेताओं का समाजवादी सेकुलर मोर्चे के साथ आना तो महज शुरुआत है. पूर्वांचल की प्रभावशाली क्षेत्रीय पार्टी कौमी एकता दल और फूलपुर के सांसद रहे दबंग अतीक अहमद के भी मोर्चे में शामिल होने का रास्ता फिर से खुल रहा है. समाजवादी पार्टी के सभी बागी नेताओं को शिवपाल के मोर्चे में लाने की कवायद चल रही है.
समाजवादी सेकुलर मोर्चे की औपचारिक घोषणा के पहले भी शिवपाल लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रहे थे, लेकिन अब उन्होंने इसकी बाकायदा घोषणा कर दी है. भारी तादाद में समर्थकों को देखकर शिवपाल उल्लासित हैं. साथ ही मुलायम के बाद यूपी में यादवों का एकछत्र नेता होने की भी उन्होंने तारीख लिख दी है. 12 सितम्बर को श्रीकृष्ण वाहिनी के कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शरीक हुए यादव समर्थकों से शिवपाल ने अपने भतीजे अखिलेश यादव को कंस कहा और कंस के खिलाफ धर्मयुद्ध में यदुवंशियों के साथ-साथ समाज के सभी नागरिकों से शरीक होने की अपील की.
शिवपाल ने इस सभा में भी यह ऐलान किया कि समाजवादी सेकुलर मोर्चा 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगा. शिवपाल ने कार्यक्रम में मौजूद यादव समुदाय के भारी जनसमूह को देखते हुए बड़े आत्मविश्वास से कहा कि अगले चुनाव में बता दिया जाएगा कि यूपी का नौजवान अखिलेश के साथ नहीं बल्कि शिवपाल के साथ है. शिवपाल ने कहा, ‘पांडवों ने कौरवों से सिर्फ पांच गांव मांगे थे, मैंने तो केवल सम्मान मांगा था, मुझे सम्मान देना भी उन्हें गवारा नहीं हुआ.’
शिवपाल ने समाजवादी सेकुलर मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और प्रदेश कार्यकारिणी का शीघ्र गठन किए जाने की घोषणा की और कहा कि वे उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में मोर्चे का जिला अध्यक्ष नियुक्त करेंगे. प्रदेश के पिछड़ा वर्ग समुदाय में सबसे बड़ी संख्या यादव समुदाय की है. यूपी में करीब आठ प्रतिशत यादव मतदाता हैं और पिछड़ी जाति में लगभग 20 फीसदी हिस्सेदारी यादवों की है. मुलायम के राजनीतिक उभार में यादवों के एकतरफा समर्थन को नकारा नहीं जा सकता. मायावती के साथ अखिलेश की ‘बुआ-बबुआ’ पॉलिटिक्स यादव समुदाय को कभी भी रास नहीं आई.
शिवपाल ने अखिलेश यादव का कहीं भी नाम नहीं लिया, लेकिन स्पष्ट था कि उनका इशारा कहां है. शिवपाल बोले, ‘सत्ता पाकर कभी अभिमान नहीं आना चाहिए. मैंने तो कभी कोई पद नहीं मांगा. पार्टी में नेताजी के साथ तमाम उतार चढ़ाव आए, लेकिन हमने मिलकर संभाला. मैं तो नेता जी के कहने पर राजनीति में आया. नहीं तो खेती करता और नौकरी करता. मैं अपने कपड़े के साथ-साथ नेताजी के कपड़े भी धोता था.
मैंने कभी कोई पद नहीं मांगा. मुझे 1980 में टिकट मिलता तो जीत जाता. टिकट 1996 में मिला जब नेता जी दिल्ली गए. लेकिन कुछ लोगों को बिना मेहनत के ही सबकुछ मिल जाता है. लेकिन ऐसे लोग सत्ता और सम्मान मर्यादा के साथ धारण नहीं कर पाते. समाजवादी सेकुलर मोर्चे का ऐलान धर्मयुद्ध का ऐलान है, जिसमें धर्म और सत्य की ही जीत होगी.’
शिवपाल ने दावा किया कि समाजवादी सेकुलर मोर्चे के सहयोग के बिना देश में अगली सरकार बनाना संभव नहीं होगा. उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी में उपेक्षित और अपमानित होने के बाद उन्होंने मोर्चा बनाया है. उनका प्रयास है कि वे ऐसे लोगों को मोर्चे से जोड़ें जिनका समाजवादी पार्टी में सम्मान नहीं हुआ और जिन्हें तिरस्कार झेलना पड़ा. शिवपाल ने कहा कि समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में उन्होंने भी बड़े कष्ट झेले हैं, बड़ी मेहनत और जद्दोजहद की है, लेकिन उन्हें ही लगातार अपमान झेलना पड़ा. आप जानते ही हैं कि समाजवादी पार्टी का गठन चार अक्टूबर 1992 को हुआ था. संगठन को मजबूत बनाने में तमाम वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इसमें शिवपाल सिंह यादव का नाम प्रमुखता से शुमार है.
संघर्ष करने, जूझने, लाठियां खाने और जेल जाने से लेकर तमाम किस्म के उत्पीड़न झेलने वालों में शिवपाल का नाम अव्वल रहा है, लेकिन राजनीति में नवागंतुक अखिलेश ने शिवपाल का अपमान करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. परिवार में मेल-मिलाप की तमाम एकतरफा कोशिशों के बावजूद अखिलेश का रवैया और गुरूर कम नहीं होता देख कर शिवपाल यादव ने 29 अगस्त 2018 को समाजवादी सेकुलर मोर्चे के गठन की औपचारिक घोषणा कर दी. इस घोषणा के बाद शिवपाल को मिलते भारी जन-समर्थन से अखिलेश यादव को अपनी सियासी जमीन हिलती महसूस हुई. अखिलेश ने समाजवादी सेकुलर मोर्चे के गठन को भारतीय जनता पार्टी की साजिश कहना शुरू कर दिया, लेकिन राजनीतिक संसार में अखिलेश की ऐसी प्रतिक्रिया को कोई तरजीह नहीं मिली.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में शिवपाल यादव के समाजवादी सेकुलर मोर्चे की अहम भूमिका रहेगी. समाजवादी पार्टी में शिवपाल की छवि जमीनी और व्यक्तिगत-स्पर्श की सियासत करने वाले लोकप्रिय नेता की रही है. प्रदेशभर में समाजवादियों में शिवपाल की सबसे अच्छी पकड़ और पैठ रही है. इसीलिए मोर्चे को विस्तार लेने में अधिक मुश्किलें पेश नहीं आ रही हैं. समाजवादी पार्टी की अंदरूनी अराजकता समाजवादी सेकुलर मोर्चा को जबरदस्त लाभ पहुंचा रही है.
उपेक्षित और तिरस्कृत नेताओं के अलावा समाजवादी पार्टी में ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं की भी बड़ी जमात है जो अखिलेश के राहुल गांधी से हाथ मिलाने या मायावती के साथ गठबंधन करने से भीषण नाराज रहे हैं. समाजवादी पार्टी का यह सारा नाराज खेमा समाजवादी सेकुलर मोर्चे के साथ शामिल होने जा रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अगर समाजवादी पार्टी का कांग्रेस और बसपा के साथ गठबंधन रहा तो सपा, कांग्रेस और बसपा के टिकट से वंचित हुए नेता भी समाजवादी सेकुलर मोर्चे के छत्र के नीचे जमा हो जाएंगे. विश्लेषक यह मानते हैं कि ऐसी राजनीतिक रिक्तता का फायदा शिवपाल को मिलेगा, क्योंकि खास तौर पर समाजावादी पार्टी जिन नेताओं को टिकट नहीं देगी, वे मोर्चे में निश्चित तौर पर शामिल होने का प्रयास करेंगे.
शिवपाल कहते भी हैं, ‘समाजवादी पार्टी में उपेक्षित-अपमानित नेताओं की अधिकता है, मोर्चा उन्हें सम्मान देगा तो वे मोर्चे में आएंगे ही. कई बड़े नेता और कई छोटे दल हमारे सम्पर्क में हैं. उत्तर प्रदेश में चाहे सपा-बसपा गठबंधन हो या कोई दूसरा गठबंधन, अब मोर्चा को दरकिनार कर या उसकी उपेक्षा कर कोई भी दल इस हैसियत में नहीं कि वह चुनाव लड़ सके और सरकार बना सके. हम सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे.’ शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन को उसूलों का भटकाव मानते हैं.
वे कहते हैं, ‘समाजवादी पार्टी अपने मूल सिद्धांतों से भटक चुकी है. समाजवादी पार्टी से लोगों को बहुत उम्मीद थी, लेकिन सरकार में रहते हुए भी पार्टी ने कुछ नहीं किया और आम लोगों के साथ-साथ पार्टी के ही नेताओं-कार्यकर्ताओं को अपमानित किया. उनकी उपेक्षा की. समाजवादी पार्टी बहुत संघर्षों के बाद खड़ी हुई थी. समाजवादी सेकुलर मोर्चा बना कर हम फिर संघर्ष के रास्ते पर निकल पड़े हैं. जो भी समान विचारधारा वाले दल हैं, गांधीवादी हैं, लोहियावादी हैं, कर्पूरीवादी हैं, चरण सिंह के सिद्धांतों के पक्षधर हैं, सबों को एकजुट करके हम जनता के समक्ष उतरेंगे और चुनाव मैदान में शक्ति-परीक्षण करेंगे.’
जिन्हें अखिलेश ने किया था बेज़ार, अब वही रहे मठ उजाड़
अखिलेश यादव ने जिस कौमी एकता दल को बेजार कर समाजवादी पार्टी के दरवाजे से दूर किया था, अब वह शिवपाल यादव के समाजवादी सेकुलर मोर्चे में शरीक होकर पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी के समीकरणों को बेजार करेगा. मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ के सांसद हैं. अगर मुलायम मोर्चा के साथ नहीं हुए तो पूर्वांचल के इस क्षेत्र में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय कराने की पहल समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और अखिलेश सरकार के मंत्री बलराम यादव ने की थी, जिसमें शिवपाल यादव ने अपना समर्थन दिया था. अखिलेश यादव ने उस पहल में भी राजनीति ठूंसने की कोशिश की और बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया.
माफिया सरगना मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल से जुड़े होने के कारण अखिलेश ने जनता की सहानुभूति बटोरने के इरादे से कौमी एकता दल के सपा में हुए विलय को खारिज कर दिया. अखिलेश के इस रवैये से वरिष्ठ नेता बलराम यादव और शिवपाल यादव, दोनों को ही काफी अपमानित होना पड़ा. क्योंकि 21 जून 2016 को कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय की बाकायदा घोषणा कर दी गई थी.
लखनऊ में समाजवादी पार्टी के मुख्यालय में शिवपाल यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला कर विलय की औपचारिक घोषणा की थी. लेकिन सत्ता-दंभ में मदमाए अखिलेश यादव ने 25 जून को संसदीय बोर्ड की बैठक में उस विलय को खारिज करा दिया. सपा के कई नेता कहते हैं कि अखिलेश का यह आचरण सपा के ताबूत में ठीक उसी तरह का कील था, जैसा अखिलेश के ‘सखा’ राहुल गांधी ने अपनी ही पार्टी के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के फैसले की कॉपी फाड़ कर बाहें चढ़ाई थीं. इन दोनों की ऐसी ही नासमझ हरकतों के कारण सपा और कांग्रेस दोनों का भीषण नुकसान हुआ.
समाजवादी सेकुलर मोर्चा के गठन के बाद एक बार फिर पूर्वांचल में कौमी एकता दल के मोर्चे के साथ आने की चर्चाएं शुरू हो गई हैं. कौमी एकता दल के मोर्चा के साथ आने से लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल के आमजगढ़, मऊ, गाजीपुर जैसे क्षेत्रों में समाजवादी पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. सपा के ही एक नेता ने कहा कि पूर्वांचल के सपा नेता बलराम यादव के भी मोर्चे में आने की पूरी संभावना है. जिस तरह इलाहाबाद के दबंग पूर्व सांसद अतीक अहमद को मोर्चे के साथ लाने की तैयारी है, उसी तरह पूर्वांचल के दंबग मुख्तार अंसारी को भी अपने खेमे में लाने की कोशिशें मोर्चे की तरफ से शुरू हो गई हैं.
मुख्तार अंसारी के बड़े भाई पूर्व सांसद अफजाल अंसारी कौमी एकता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. पूर्वांचल में शिवपाल की अच्छी पकड़ को भांपते हुए ही भासपा (सुहेलदेव) के नेता और योगी सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर शिवपाल को पूरब से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दे चुके हैं. आजमगढ़ में हुई सभाओं में भी शिवपाल यादव पहले भी अपना भारी जन-समर्थन दिखा चुके हैं. इस वजह से समाजवादी पार्टी में चिंता है. यह चिंता तब और बढ़ेगी, अगर मुलायम मोर्चे के साथ होते हुए लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला लेते हैं. आजमगढ़ के लोग कहते हैं कि मुलायम मोर्चे के साथ चुनाव मैदान में उतरेंगे तो उनकी एकतरफा जीत होगी. अन्यथा मुलायम को अपने उसी भाई की मदद से सीट निकालनी होगी, जिनकी प्रतिष्ठा धूमिल करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी. पूर्वांचल के सपाई शिवपाल खेमे में जाने के लिए तैयार बैठे हैं.
समाजवादी सेकुलर मोर्चा के गठन की औपचारिक घोषणा के बाद बागपत और मुजफ्फरनगर में हुई दो सभाओं में शिवपाल को मिले भारी जन-समर्थन ने सियासी विश्लेषकों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी मोर्चे को मिल रहा जन-समर्थन आने वाले चुनाव में कई राजनीतिक समीकरण बनाएगा और बिगाड़ेगा. जन-समर्थन से उत्साहित शिवपाल ने प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की सार्वजनिक घोषणा की. शिवपाल की इस घोषणा से केवल समाजवादी पार्टी ही नहीं, बल्कि अन्य विपक्षी दलों में भी काफी बेचैनी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत और मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना में हुई समाजवादी सेकुलर मोर्चे की सभा ने बड़ा राजनीतिक संदेश दिया.
दोनों सभाओं में कल्कि धाम के आचार्य प्रमोद कृष्णन, गरीब नवाज फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना अंसार रजा और मायावती की मूर्ति तोड़ कर सियासी जगत को हैरान करने वाले शख्स अमित जानी की मौजूदगी और मोर्चे को समर्थन देने का उनका ऐलान प्रभावकारी माना गया. हालांकि मौलाना अंसार रजा वही शख्स हैं, जिन्होंने विधानसभा चुनाव के दरम्यान लखनऊ में एक प्रेस कान्फ्रेंस के जरिए लोगों से सपा के बजाय बसपा को वोट देने की अपील की थी. मौलाना ने यह भी कहा था कि मायावती के शासन में ही कानून व्यवस्था में सुधार आ सकता है. तब मौलाना अंसार रजा को समाजवादी पार्टी का अंदरूनी झगड़ा कतई रास नहीं आ रहा था और इसीलिए वे मुसलमानों को बसपा के पक्ष में वोट डालने की अपील कर रहे थे. मौलाना ने अखिलेश सरकार पर करारा प्रहार करते हुए कहा था कि अखिलेश के शासन में कई दंगे हुए और उन्होंने दंगा पीड़ितों को मुआवजा भी नहीं दिया. मौलाना अंसार रजा विवादास्पद बयानों के लिए मशहूर हैं. उन्होंने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को उचित ठहराते हुए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया दी थी.
मोर्चे के गठन के तुरंत बाद ही शिवपाल यादव बागपत गए थे और अपने समर्थकों के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के कई असंतुष्ट नेताओं के साथ मंत्रणा की थी. बागपत में बिनोली के दरकावदा गांव में शिवपाल ने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की थी. बागपत और मुजफ्फरनगर की सभाओं और बैठकों के बाद राजनीति के जानकार भी यह मानने लगे हैं कि समाजवादी सेकुलर मोर्चा आगामी चुनावों में हार-जीत के समीकरणों को बदलेगा और समाजवादी पार्टी का समानान्तर विकल्प बनेगा. मुलायम सिंह के नजदीक रहकर सियासी दावपेंच गहराई से सीख चुके शिवपाल ने सटीक मौके पर मोर्चे का ऐलान किया और मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ जोड़े रखने के लिए भाजपा में जाने का प्रस्ताव ठुकरा दिया.
शिवपाल के इस कदम से सियासी जगत में यह संदेश भी गया कि मुलायम भी भविष्य में सेकुलर मोर्चा से जुड़ सकते हैं. जानकार बताते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मैनपुरी, फिरोजाबाद, आगरा, मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, एटा जैसे जिलों में भी शिवपाल यादव की अच्छी पकड़ है. शिवपाल यादव खासतौर से यादवों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में सपा को नुकसान पहुंचाएंगे. भतीजे के हाथों शिवपाल के अपमान से परम्परावादी यादव समाज के लोग काफी नाराज हैं. लोग यह मानते हैं कि आने वाले समय में शिवपाल यादव का कद और बढ़ेगा और यह सपा के साथ-साथ उसके साथ होने वाले किसी भी गठबंधन को कमजोर करेगा.
समाजवादी सेकुलर मोर्चा के औपचारिक शक्ल में आने के काफी पहले से ‘शिवपाल यादव फैन्स एसोसिएशन’ अपनी मुहिम में जुटा था. एसोसिएशन काफी पहले से प्रदेशभर में युवाओं को साथ करने के अभियान में लगा था. शिवपाल के बेटे आदित्य यादव इस अभियान की देखरेख में लगे थे. आशीष चौबे एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष हैं. यूपी के 60 जिलों में एसोसिएशन की 51 सदस्यीय कार्यकारिणी का गठन पहले ही कर दिया गया था. अब यह समाजवादी सेकुलर मोर्चा के लिए जमीन बनाने का काम कर रहा है. इसी तरह शिवपाल की पहल से ही इटावा में ‘मुलायम के लोग’ नामक संगठन बनाकर अखिलेश-काल में मिली उपेक्षा से नाराज सपाइयों को एक मंच पर लाने की मुहिम पहले से जारी थी. इटावा के सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष सुनील यादव के कंधे पर इसकी जिम्मेदारी दी गई है.
समाजवादी प्रबुद्ध प्रकोष्ठ के अध्यक्ष रहे दीपक मिश्र ने भी समाजवादियों को सेकुलर मोर्चा के साथ जोड़ने की अर्सा पहले से मुहिम चला रखी है. पश्चिम के मैनपुरी, इटावा, फिरोजाबाद, संभल जैसे यादव बहुल जिलों में पूर्व सांसद रघुराज सिंह शाक्य, पूर्व विधायक सुखदेवी वर्मा, पूर्व जिलाध्यक्ष सुनील यादव, जसवंतनगर नगर पालिका के अध्यक्ष सुनील कुमार जौली समेत कई प्रमुख नेता शिवपाल को मजबूत करने की मुहिम में लगे हैं. मोर्चे के औपचारिक ऐलान के साथ ही शिवपाल ने कहा था, ‘मैंने समाजवादी सेकुलर मोर्चे का गठन किया है. मोर्चा प्रदेश में काम कर रहा है.
समाजवादी पार्टी में जिन लोगों को उपेक्षित रखा गया था, जो बिना किसी जिम्मेदारी और काम के इधर-उधर घूम रहे थे, जिनका कहीं भी सम्मान नहीं था, हमने उन्हें इकट्ठा कर के उन्हें काम पर लगाया है, उन्हें जिम्मेदारी सौंपी है. वे कार्यकर्ता अब प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर जा रहे हैं, जिलों-जिलों में जा रहे हैं, लोगों से सम्पर्क साध रहे हैं. समाजवादी सेकुलर मोर्चे के साथ हम सभी छोटे दलों को इकट्ठा करने और उन्हें साथ जोड़ने की कवायद कर रहे हैं. जितने भी लोग उपेक्षित हैं, सबको इकट्ठा करेंगे और मजबूत संगठन बना कर आएंगे सामने. भगवती सिंह जैसे वरिष्ठ नेता भी जब यह कहें कि पार्टी में उनका सम्मान नहीं रहा, तो हमारा प्राथमिक दायित्व है कि ऐसे वरिष्ठ नेताओं का हम सम्मान करें. हम तो ‘उन्हें’ भी कहेंगे कि वे वरिष्ठ नेताओं का सम्मान रखें.
वरिष्ठ नेताओं का सम्मान नहीं किया, इसीलिए तो समाजवादी पार्टी इतनी कमजोर हुई है.’ शिवपाल ने यह भी कहा था कि समाजवादी सेकुलर मोर्चा और उसके साथ इकट्ठा हुए दल एक साथ मिल कर यह तय करेंगे कि लोकसभा चुनाव में हम कैसे लड़ेंगे और हमारी भूमिका क्या होगी. राजनीति की नब्ज पर हाथ रखने वाले विशेषज्ञों का यह भी आकलन है कि शिवपाल का समाजवादी सेकुलर मोर्चा प्रदेश के छोटे-मोटे दल को एकजुट कर लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल हो सकता है. हालांकि शिवपाल यादव इस कयास को सिरे से खारिज कर देते हैं.
मुलायम ने फैलाया था रायता, नहीं तो पहले ही बन जाता मोर्चा
समाजवादी सेकुलर मोर्चा के गठन की औपचारिक घोषणा के बाद और पूर्व मंत्री शारदा प्रताप शुक्ल, शादाब फातिमा समेत कई अन्य नेताओं के मोर्चे में शरीक हो जाने के बाद अब यह बात खुल कर सामने आ रही है कि समाजवादी सेकुलर मोर्चे के गठन पर मुलायम सिंह यादव ने ही रायता फैलाया था. इस बीच एक वर्ष गुजर गया. पिछले वर्ष 25 सितम्बर को शिवपाल यादव अलग मोर्चे के गठन की घोषणा मुलायम सिंह से कराना चाहते थे. इसके लिए लखनऊ में लोहिया ट्रस्ट के दफ्तर में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी बुला ली गई थी. मुलायम के हाथ में सेकुलर मोर्चे के गठन वाला प्रेस बयान भी था, लेकिन शारदा प्रताप शुक्ल के याद दिलाने के बावजूद मुलायम ने ऐसा रंग बदला कि सारे लोग हतप्रभ रह गए. मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी के समानान्तर किसी भी पार्टी या मोर्चे के गठन की संभावनाओं पर ही पानी फेर दिया.
साल भर बाद जब समाजवादी सेकुलर मोर्चा की सुगबुगाहट दोबारा बढ़ी तो मुलायम ने फिर उसे ‘पंक्चर’ करने की कोशिश की. मुलायम फिर से शिवपाल को परिवार में एकता बनाए रखने का वास्ता देने लगे. इधर चार सितम्बर को मुलायम ने शिवपाल को अपने आवास पर बुलाया और अखिलेश यादव से हाथ मिला कर समाजवादी पार्टी के साथ बने रहने का प्रस्ताव दिया. मुलायम ने शिवपाल को मनाने की कोशिश में सारे हथकंडे अपनाए, उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में ऊंचा पद देकर सक्रिय करने का प्रलोभन भी दिया. लेकिन इस बार शिवपाल बड़े भाई के झांसे में नहीं आए और उन्होंने मुलायम का प्रस्ताव मानने से इन्कार कर दिया. आपसी सौहार्द बनाए रखने और राजनीतिक परिपक्वता का प्रदर्शन करते हुए शिवपाल ने अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव और प्रो. रामगोपाल यादव के पैर छुए. उन्हीं रामगोपाल यादव के दिशा-निर्देश पर अखिलेश यादव ने पहले अपने चाचा शिवपाल यादव को किनारे लगाया. शिवपाल के समर्थक मंत्रियों को निकाला.
शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा कर उनके कक्ष से नेमप्लेट उखड़वा कर जमीन पर रौंदवाया और फिर अपने पिता मुलायम सिंह यादव को ही हटा कर समाजवादी पार्टी के स्वयंभू राष्ट्रीय अध्यक्ष बन बैठे. इसके बाद शिवपाल के अपमान और उनकी उपेक्षा का लंबा दौर चला. आप इसके साथ ही यह भी याद करते चलें कि समाजवादी पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष फरहत हसन खान ने जून महीने में ही ‘शिवपाल यादव सेकुलर मोर्चा’ का गठन कर दिया था. लेकिन मुलायम सिंह यादव के प्रति आदर दिखाते हुए शिवपाल यादव ने इससे दूरी बनाए रखी थी. सपा नेता आजम खान के बेजा बयान पर नाराजगी जताते हुए राज्यसभा सदस्य अमर सिंह ने लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि शिवपाल को भाजपा में शरीक करने के लिए उनकी भाजपा के बड़े नेता से बात हो गई थी, लेकिन शिवपाल उनसे मिलने नहीं गए.
अमर सिंह के बयान से शिवपाल की भाजपाई-नजदीकियों की चर्चा एक बार फिर गर्म हो गई. इसके बाद ही शिवपाल ने समाजवादी सेकुलर मोर्चे के गठन की औपचारिक घोषणा करके उस चर्चा पर पानी डाल कर उसे ठंडा किया. अब तो भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शरीक होने के नाम पर भी शिवपाल बिदक उठते हैं और इसकी संभावना से इन्कार कर देते हैं. समाजवादी सेकुलर मोर्चा के गठन की औपचारिक घोषणा के अगले ही दिन मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के दफ्तर पहुंच गए और यह प्रदर्शित किया कि वे अपने बेटे अखिलेश यादव का साथ नहीं छोड़ेंगे. मुलायम से मोर्चे के बारे में पूछा भी गया तो उन्होंने कुछ कहने से इन्कार कर दिया.
नेताजी का सम्मान वापस दिलाऊंगा : शिवपाल
शिवपाल यादव ने कहा कि वे नेताजी को सम्मान दिलाने के लिए कटिबद्ध हैं. शिवपाल मुलायम के बयान का हवाला देते हुए कहते हैं, ‘नेता जी बोल रहे हैं कि उन्हें सम्मान नहीं दिया जा रहा. उनकी उपेक्षा हो रही है. मैंने नेताजी का सम्मान वापस दिलाने के लिए ही मोर्चा बनाया है. खुद भी सम्मान करूंगा और उनसे भी सम्मान दिलाऊंगा जो अभी उनका सम्मान नहीं कर रहे हैं. मैं नेता जी को भी मोर्चा से जोड़ूंगा. सपा में अपनी बेइज्जती से मैं भी बहुत आहत हो रहा हूं.’ उल्लेखनीय है कि समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता भगवती सिंह के जन्म दिवस पर लखनऊ के गांधी सभागार में आयोजित सभा में पिछले दिनों मुलायम सिंह यादव ने साफ-साफ कहा था कि अब उनका कोई सम्मान नहीं करता.
मुलायम ने भावुक होते हुए कहा था, ‘ऐसा वक्त आ गया है जब मेरा कोई सम्मान नहीं करता, अब शायद मेरे मरने के बाद ही लोग मेरा सम्मान करेंगे. राम मनोहर लोहिया के साथ भी ऐसा ही हुआ था. एक वक्त ऐसा आ गया था जब वो भी कहा करते थे कि इस देश में जिंदा रहते कोई किसी का सम्मान नहीं करता है.’ सपा के वरिष्ठ नेता भगवती सिंह ने भी खुद की उपेक्षा और असम्मान का मसला उठाया था और कहा था कि पार्टी की ऐसी नव-संस्कृति से वे बहुत दुखी हैं. मुलायम के बयान पर शिवपाल ने कहा था कि वे अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव का हमेशा सम्मान करते हैं और करते रहेंगे. शिवपाल ने कहा था, ‘आज जो लोग बड़े हुए हैं, वे नेताजी की वजह से हुए हैं. मैं हमेशा नेता जी के साथ था और रहूंगा.’ शिवपाल का यह बयान अखिलेश के लिए कटाक्ष भी था और संदेश भी.
शिवपाल ने बनाए समाजवादी सेकुलर मोर्चा के नौ प्रवक्ता
शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी सेकुलर मोर्चा के नौ प्रवक्ताओं की पहली सूची जारी की, जिसमें समाजवादी पार्टी की सरकार के दो पूर्व मंत्रियों शारदा प्रताप शुक्ला और शादाब फातिमा के नाम शामिल हैं. इनके अलावा दीपक मिश्र, नवाब अली अकबर, सुधीर सिंह, प्रो. दिलीप यादव, अभिषेक सिंह आशू, मोहम्मद फरहत रईस खान और अरविंद यादव भी समाजवादी सेकुलर मोर्चा के प्रवक्ता बनाए गए हैं.