शिव सेना के सांसद संजय राउत का यह कहना काफी अजीब सा है कि नाथूराम गोडसे ने गांधी की बजाय जिन्ना को मार डाला होता तो भारत-विभाजन शायद रूक जाता लेकिन राउत भूल गए कि गांधीजी की हत्या विभाजन के ठीक साढ़े पाँच महिने बाद हुई थी। यदि भारत-विभाजन के पहले जिन्ना को मार दिया जाता तो खून-खराब कितना ज्यादा होता, इसकी कल्पना भी किसी को है या नहीं ? खून-खराबा तो होता ही और पाकिस्तान 1947 की बजाय उसके पहले ही बन जाता। लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रुप में मनाना भी आश्चर्यजनक है। 14 अगस्त तो पाकिस्तान का स्वाधीनता दिवस है, जैसे कि 15 अगस्त हमारा है।
तो क्या इन दोनों दिवसों को हम विभीषिका-दिवस के तौर पर मनाएँ? पाकिस्तानी 15 अगस्त को और हम 14 अगस्त को! मेरे ख्याल से ये दोनों बातें गलत हैं। ये दोनों यदि विभीषिका दिवस हैं तो दोनों देशों के प्रधानमंत्री इन दिवसों पर एक-दूसरे को बधाई क्यों भेजते हैं? राउत ने मोदी से सवाल पूछा है कि आप यदि अखंड भारत चाहते हैं तो आप उसमें पाकिस्तान के मुसलमानों का क्या करेंगे ? इसमें बांग्लादेश के मुसलमानों को राउत क्यों भूल गए? सच्चाई तो यह है कि मालदीव और श्रीलंका के मुसलमान भी भारत के ही अंग थे।
यदि अखंड भारत वह है, जिस पर अंग्रेजों का राज था तो इन पड़ौसी देशों को भी उसमें जोड़ना पड़ेगा लेकिन अंग्रेजों के भारत को अखंड भारत कहना तो हमारे प्राचीन इतिहास की उपेक्षा ही है। उसके अनुसार अखंड भारत नहीं, हमें आर्यावर्त्त की बात करना चाहिए, जिसका जिक्र हमें महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, महर्षि दयानंद के कथनों और पांडवों-कौरवों तथा सम्राट अशोक के साम्राज्यों में मिलता है। यह आर्यावर्त्त अराकान (म्यांमार) से खुरासान (ईरान) और त्रिविष्टुप (तिब्बत) से मालदीव तक फैला हुआ है। इसमें मध्य एशिया के पांचों गणतंत्र भी जोड़े जा सकते हैं।
भारत को सिर्फ अंग्रेजों का 1947 का अखंड भारत ही खड़ा नहीं करना है बल्कि सदियों पुराना आर्यावर्त्त पुनर्जीवित करना है, जिसे आजकल ‘दक्षेस’ भी कहा जाता है। इस सारे दक्षिण और मध्य एशिया के क्षेत्र में यूरोप की तरह एक साझा बाजार, साझी संसद, साझी सरकार और साझा महासंघ बनाना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। ऐसा महासंघ जो फ़िरकापरस्ती, जातिवाद, संकीर्ण राष्ट्रवाद, मजहबी उन्माद और तरह-तरह के भेदभावों से मुक्त हो। उसके लिए भारत आदर्श राष्ट्र है। भारत में हम अप्रतिम सहनशीलता और उदारता देखते हैं। यदि अखंड भारत का नारा देनेवाले लोग इन्हीं गुणों को बढ़ाएं तो निश्चय ही अखंड भारत ही नहीं, अखंड आर्यावर्त्त बनने में भी देर नहीं लगेगी।