भोपाल ब्यूरो : ये कैसा कानून है जो आमजन को सुरक्षा देने की बजाए उनके दमन और प्रताडऩा में लगा हुआ है… अबला महिलाओं और मासूम बच्चों पर अपना जोश और दम दिखाता है… किसी नियम के पालन के लिए खुद ही सजा देने वाले जल्लाद बन जाना कहां तक मुनासिब है….? मुख्यमंत्री जी प्रदेश की सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस जवानों की हैवानियत और वहशीपन पर नजर दौड़ाईए और इनको इनके कर्तव्य का बोध कराईए, यह सुरक्षा के लिए तैनात किए गए हैं, न कि लोगों पर जुल्म करने के लिए।

पूर्व अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री आरिफ अकील ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखी चिी में यह बात कही है। उन्होंने काजी कैम्प विवाद को लेकर मुख्यमंत्री को पूरी स्थिति से अवगत कराते हुए लिखा है कि 9 बजे होने वाले लॉक डाउन का पालन कराने रात 11 बजे पुलिस वालों को किसी से शिकायत थी, तो उनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाता, उन्हें जेल भेजा जाता और अदालत की कार्यवाही की जाती, लेकिन पुलिस का तात्कालिक सजा देने का रवैया ही इस घटना का कारण बना है। पुलिस जवानों द्वारा लोगों से झूमा-झटकी और मारपीट के दौरान उनके हाथ पर गर्म चाय गिरी है, न कि किसी दुर्भावना से उन्हें चोटिल करने का अपराध किया गया है। पुलिस की गुंडाई का सारा काला चिा उस चाय दुकान में लगे हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद था, जिसको पूरी तरह से तोडफ़ोड़ कर जवानों ने सारे सबूत नष्ट कर दिए हैं। अकील ने लिखा है कि पुलिसिया जुल्म की इंतेहा यह है कि बिना किसी महिला पुलिस की मौजूदगी में उन्होंने महिलाओं पर लाठियां बरसाना शुरू कर दीं। जिसमें शाहीन नूर, शादमा और उज्मा बुरी तरह से घायल हुई हैं, जिनका मेडिकल चैकअप कराया गया है। इस बीच पुलिस की दरिंदगी का नजारा यह है कि उन्होंने 12 साल की बच्ची कशिश को भी बेरहमी से पीटा है। अकील ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि उक्त मामले की पूरी तरह निष्पक्ष जांच किसी वरिष्ठ अधिकारी से कराई जाए और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए। साथ ही इस मामले में चाय दुकानदार जहीर और उसके बेटों के अलावा महिलाओं के खिलाफ दर्ज किए गए जबरिया मामलों को तत्काल निरस्त किए जाएं।

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विपक्ष के आयोग, खामोशी का आलम
कांग्रेस शासनकाल में नियुक्त किए गए राज्य महिला आयोग और राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पदाधिकारियों की नियुक्तियां फिलहाल लागू हैं। भाजपा शासनकाल में काम कर रहे इन आयोगों के पदाधिकारियों (शोभा ओझा और नूरी खान) के लिए यह एक बेहतर मौका था कि वे अपनी विपक्ष की भूमिका दिखाते और मामलेे को लेकर सरकार को आड़े हाथों ले सकते थे। पिछले उदाहरणों की तरह इस मामले में भी उन्हें स्वत: ही संज्ञान लेकर अपनी जांच शुरू करना चाहिए थी और इसके लिए उचित सिफारिश सरकार तक भेजना थी। लेकिन पीडि़त महिलाओं द्वारा मामले में स्वयं पेश होकर शिकायतें दर्ज कराने के बाद भी इस मामले में दोनों आयोगों की तरफ से पीडि़तों को न्याय दिलाने के लिए किसी तरह की पहल अब तक नहीं की गई है।
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अब अदालत का रुख करेंगी पीडि़ताएं
बेरहम पिटाई से आहत महिलाओं को पुलिस, सियासत, आयोगों से किसी तरह की राहत मिलते नहीं दिख रही है। जिसके चलते वे अपनी व्यथा लेकर अदालत की शरण लेने की तैयारी कर रही हैं। सूत्रों का कहना है कि पूरे मामले की तैयारी करने के बाद शहर के कुछ नामवर वकील मामले को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले हैं। जहां पीडि़त महिलाओं के लिए इंसाफ और दोषी पुलिसकर्मियों के लिए सजा की मांग की जाएगी।
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