नामुमकिन सी बात है। फिर यह सवाल क्यों उठ रहा है कि मोदी और शाह ने अभी तक अजीत पवार को बधाई या अपना आशीर्वाद नहीं दिया है। राजनीतिक चिंतक अभय कुमार दुबे कहते हैं कि मोदी ने बारह घंटे पहले ही एनसीपी और पवारों का बिना नाम लिए कोसा था तो बारह घंटे बाद ही कैसे बधाई देते। वे देंगे जरूर लेकिन थोड़ा समय गुजरने के बाद। तो और कितना समय लेंगे। हमारा प्रश्न है कि यदि मोदी को पता था कि बारह घंटे बाद ही अजीत पवार अपनी मंडली के साथ हमारे साथ आने वाले हैं तो उन्होंने खास एनसीपी पर ही भोपाल की सभा में आक्रमण क्यों किया। सवाल वह भी है और सवाल यह भी है। एक सवाल तीसरा भी है कि 2019 में जब अजीत पवार ने सुबह पांच बजे शपथ ली थी तो तुरंत ही उनकी फाइल बंद कर दी गई थी पर इस बार ऐसा नहीं हुआ बल्कि ईडी ने उपमुख्यमंत्री बनने के बावजूद चार्जशीट दाखिल कर दी। यदि यह सब नाटक है तो यह नाटक क्यों है और कब तक के लिए है।
‘लाउड इंडिया टीवी’ के संतोष भारतीय समय समय पर लाउड ब्रेकिंग न्यूज देते रहते हैं। उन्होंने ब्रेकिंग न्यूज में रहस्योद्घाटन किया था कि एनसीपी तोड़ने और महाराष्ट्र में सत्ता के साथ आने के अजीत पवार के गेम के पीछे गौतम अडानी का हाथ है। उनके अनुसार दो माह पहले जब गौतम अडानी ने शरद पवार से उनके यहां दो घंटे से ज्यादा की मुलाकात की थी उसी दिन यह सब तय हो गया था। गौतम अडानी ने पवार से भाजपा विरोध न करने और सत्ता के साथ खड़े होने को समझाया था। उसी का प्रतिफल आज हम महाराष्ट्र में देख रहे हैं। यदि यह मान भी लिया जाए कि यह सारा खेल गौतम अडानी की मुलाकात से रचा गया तो भी यह नामुमकिन लगता है कि मोदी शाह इससे नावाकिफ रहे। पर ऊपर के सवाल तो यथावत हैं। कल अभय दुबे शो में संतोष भारतीय ने सलीके से सवालों का प्रबंधन किया। पहला सवाल अडानी और पवार की मुलाकात का प्रश्न तो था ही । साथ ही राजनीति और उद्योगपतियों के संबंधों पर भी चर्चा थी। अभय दुबे तो अनुभवी राजनीतिक चिंतक और विश्लेषक हैं ही । उन्होंने भी गहराई से इन संबंधों को रोचक बना कर पेश किया। पुराने घुटे हुए और नये उद्योगपतियों को लेकर उन्होंने एक मजेदार बात कही कि टाटा ग्रुप चलता है तो उसके पैरों की आवाज नहीं आती जबकि अडानी और अंबानी ग्रुप चलते हैं तो ज्यादा आवाज आती है।‌ चर्चा इसलिए मजेदार रही कि आजादी के समय से उद्योगपतियों और राजनीति के संबंधों पर बात हुई। टाटा, बिरला से लेकर धीरू भाई अंबानी तक। अभय दुबे का कहना था कि राजनीति, उद्योगपति और उच्च वर्ग इन तीनों का मजबूत गठजोड़ है। और यह हर सत्ता में रहा है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा भी इस गठजोड़ को नहीं तोड़ पाई। इसमें हमें राहुल गांधी द्वारा अडानी पर उठाए गए सवालों को भी जोड़ लेना चाहिए। जब तक यह गठजोड़ नहीं टूटता तब तक सुधार की गुंजाइश नहीं। कार्यक्रम के अंत में संतोष जी ने फिर अडानी और महाराष्ट्र के प्रश्न उठाए लेकिन बात वहीं की वहीं रही। हम साफ साफ यह सुनना चाहते थे कि क्या अडानी के प्रयासों के चलते अजीत पवार शरद पवार से अलग हुए और मोदी शाह को इसका इल्म नहीं रहा , जो उन्होंने भोपाल में एनसीपी पर हमला किया ??? बहरहाल, खेल तो अभी चालू है।

एक कलाकार की यात्रा कहां से शुरु होकर कहां तक होती है और कैसा होता है उसका अंत । इस बार ‘सिनेमा संवाद’ में गुरुदत्त को याद किया गया। गुरुदत्त की यात्रा हल्की फुल्की फिल्मों से शुरु होकर ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ पर जाकर खत्म हुई। बाद में गुरुदत्त ने आत्महत्या की । गुरुदत्त के जीवन, कला, उनके नजरिए और उनकी फिल्मों पर अजय ब्रह्मात्मज, कमलेश पांडेय, जवरीमल पारेख और मैथिली राव ने आकर्षक और सार्थक चर्चा की ।‌ इस चर्चा में एक गजब बात सुनने को मिली । दो लोगों के आपस की चर्चा, ‘यदि तुम्हें ‘प्यासा’ फिल्म देख कर रोना आया तो तुम ‘वेस्ट'( पश्चिम) में नहीं रह सकते।’ इस बात का जिक्र मैथिली राव ने किया। एक तथ्य और पता चला कि शायद गुरुदत्त की फिल्में यूंही चली जातीं यानी उनका कभी नोटिस नहीं लिया जाता यदि नसीर मुन्नी कबीर न होते । यह बात अजय ब्रह्मात्मज ने बताई। वे नसीर मुन्नी कबीर ही थे जिन्होंने गुरुदत्त की फिल्मों की वास्तविक और गहराई से खोज की । वे एक स्कॉलर थे । कमलेश पांडेय ने कहा ऐसा परतदार फिल्मकार कभी नहीं आया। न जाने कितनी परतें थीं उनकी फिल्मों में। दोस्तों ‘सिनेमा संवाद’ देखा कीजिए। रविवार का दिन छुट्टी का होता है और उस दिन तीन बेहतरीन कार्यक्रम आते हैं अभय दुबे शो, सिनेमा संवाद और रात को ताना बाना। बाकी को गोली मारिए। वैसे भी हफ्ते भर की चर्चाओं में अब कोई दम नहीं रहा। सब उबाऊ हो चली हैं। बावजूद इसके ‘न्यूज लॉन्ड्री’ के प्रोग्राम बहुत अच्छे होते हैं। पर समझ नहीं आता कि मनीषा पांडेय अपना प्रोग्राम ‘न्यूजसेंस’ हिंदी में क्यों नहीं देतीं । गोदी मीडिया के कार्यक्रमों , खासतौर पर अर्नब गोस्वामी वगैरह पर जितना मजेदार यह प्रोग्राम होता है उतना कोई और स्तरीय नहीं दिखाई पड़ता। लेकिन अफसोस कि न्यूज लॉन्ड्री देखने वालों की संख्या सीमित है और ‘सत्य हिंदी’ की तरह उन्हें भी पैसे के लाले पड़े हैं। लेकिन सत्य हिंदी वाले कहते हैं कि उनकी संख्या बीस लाख से ज्यादा है तो क्या ये बीस लाख में से एक चौथाई भी उन्हें आर्थिक मदद नहीं दे रहे ? शनिवार के सवाल जवाब कार्यक्रम में तो लोग डॉलर और की विदेशी मुद्राओं में काफी मदद करते हैं। फिर इस सब पैसे का क्या होता है। पैनलिस्ट को आप कुछ देते नहीं। कोई विस्तार भी नहीं दिखता। पैनलिस्ट भी घिसे घिसाए रिकार्ड जैसे। मुकेश कुमार के हफ्ते में दो या बहुत हुआ तो तीन डेली शो ही देखने की इच्छा रह गई है अब । वही वही लोग। लोगों का स्तर देखिए। इन सबकी बातें घिसी पिटी तो होती ही हैं उनमें दोहराव भी होता है। लेकिन विनोद शर्मा, नीरजा चौधरी, अभय दुबे जैसे अनुभवी लोग अपनी बातों को कभी दोहराते नहीं। आलोक जोशी के कार्यक्रम अधिकांशतः जोरदार होते हैं। हाल ही में उन्होंने फ्रांस की हिंसा पर बहुत ही बेहतरीन कार्यक्रम किया। लेकिन उन्हें एक बात सताती है कि ऐसे कार्यक्रम देखने वाले बहुत कम हैं। हमारा कहना है कि परवाह न करें। और अपना स्तर बनाए रखें। ‘वायर’ के ज्यादातर कार्यक्रम बढ़िया और जानकारी देने वाले होते हैं। बीबीसी में दिलचस्प जानकारियां होती हैं। अब सतीश के सिंह से उसका घिसा पिटा विचार कौन सुने । ‘है कि नहीं’ । लेकिन ये सज्जन हर किसी के प्यारे हैं या करीब हैं। परिचय जीटीवी के पूर्व संपादक। हर बार का एक ही परिचय। ये तो सिर्फ एक पैनलिस्ट की बात मैंने कही । लगभग रोज आने वाले सब ऐसे ही हैं। सवाल है और कहां से लाएं। जवाब है हजारों पत्रकार और विशेषज्ञ हैं आप कोशिश तो कीजिए। सत्य हिंदी की तरह ही और भी दूसरे इनके भाईबंधों के चैनल हैं। जिन पर भी यही लोग घूम फिर कर आते रहते हैं। अशोक वानखेडे तो ‘टाइगर’ हैं। आपस में ही एक दूसरे को पदवी दे देते हैं। मोदी की सत्ता पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा। इनके जो दर्शक हैं और मोदी का जो सैट किया हुआ वोटर है उसके बीच गहरी बहुत खाई है। चौबीस में मोदी की बाजी पलटने की सब आस लगाए बैठे हैं। पर क्या सब कुछ इतना आसान है ? राहुल गांधी की भूमिका एक तरफ और विपक्ष की कदमताल एक तरफ। मोदी बौखलाए जरूर दिखते हैं पर उनकी सेना निश्चिंत है। कहीं किसी चीज में कमी नहीं आई है। सुना है अब मोदी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के जरिए चुनाव लड़ेंगे। सॉफ्टवेयर तैयार हो चुका है।

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