अहमद पटेल ने पिछले 20 साल में कांग्रेस को अपनी आंखों के सामने पैदा किया और पुराने नेताओं की जगह नए नेता खड़े किए. इनमें भरत सिंह सोलंकी, मोडवाडिया, शक्ति सिंह, सिद्धार्थ पटेल और शंकर सिंह वाघेला शामिल हैं. इन पांचों को ही गुजरात कांग्रेस माना जाता था. गुजरात के इन चार नेताओं में भरत सोलंकी, श्री माधव सिंह सोलंकी के बेटे हैं. माधव सिंह सोलंकी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं और उन्होंने गुजरात में कांग्रेस को बहुत मजबूत बनाया था. बाद में वो देश के विदेश मंत्री भी बने. उन्हें बोफोर्स पेपर के मामले में या बोफोर्स कांड के मामले में स्वीडन के विदेश मंत्री से बात करने के आरोप में अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था. सिद्धार्थ पटेल चिमनभाई पटेल के बेटे हैं. चिमनभाई पटेल गुजरात के कई बार मुख्यमंत्री रहे. उन्हीं के समय गुजरात का मशहूर नवनिर्माण आन्दोलन शुरू हुआ था. बाद में वे जनता दल में आ गए थे और फिर उन्होंने गुजरात जनता दल बनाया.
इनमें शंकर सिंह वघेला अकेले ऐसे थे, जिनके पास जनाधार था, जिन्हें लोग सुनना चाहते थे और जिन्हें सचमुच का जननेता कह सकते हैं. बाकी चार,चाहे वो भरत सिंह सोलंकी, मोडवाडिया, शक्ति सिंह या सिद्धार्थ पटेल हों, इनके पीछे जनता नहीं है. शंकर सिंह और भरत सोलंकी के अलावा बाकी तीन नेताओं का भारतीय जनता पार्टी की सरकार के साथ बिजनेस इंटरेस्ट है, इसलिए ये भारतीय जनता पार्टी की सरकार के साथ मिलकर कांग्रेस को चला रहे थे. मोडवाडिया बड़े कॉन्ट्रेक्टर हैं. उसी तरह सिद्धार्थ पटेल भी बड़े व्यापारी हैं. शक्ति सिंह बुनियादी तौर पर लाइजन का काम करते हैं. वो सिफारिश करते हैं, काम होते हैं और उसमें उनका इंटरेस्ट होता है. अब इनकी इज्जत की बात करें. न कांग्रेस पार्टी में और न ही जनता में इनकी इज्जत है,क्योंकि इनका जनता के साथ बहुत कम रिश्ता है. पिछले चुनाव में यही नेता कांग्रेस की हार के प्रमुख कारण रहे हैं.
इनकी इज्जत अगर गुजरात में है, तो सिर्फ इसलिए कि इनके साथ पद लगे हुए हैं. कोई विधानसभा में नेता है, कोई प्रदेश का अध्यक्ष है, कोई महामंत्री है. अगर ये पद इनके नाम के आगे से हट जाएं, तो शायद गुजरात में इन्हें कोई पूछे भी नहीं. गुजरात कांग्रेस के लोग कहते हैं कि इनके पास अपने पांच आदमी भी नहीं हैं. ये अहमद पटेल के सबसे विश्वस्त लोग हैं. अहमद पटेल ने इन चारों लोगों को पिछले 20 साल से अपने इर्द-गिर्द रखा है. इन्हीं के हितों को ध्यान में रखकर उन्होंने गुजरात कांग्रेस की गतिविधियां तय की हैं. नरेश रावल और राजू परमार को अहमद पटेल दिल्ली लाए. राजू परमार कई साल से राज्य सभा के सदस्य हैं. उनके बारे में मशहूर है कि जिस दिन ये राज्यसभा से हटेंगे, उस दिन उनके साथ कितने लोग खड़े दिखाई देंगे, ये कोई नहीं जानता. उनके बारे में ये भी कहा जा सकता है कि तीन बार सदस्य रहने के बावजूद वो एक-एक जिले में घूम जाएं, हालांकि वे स्वयं दलित हैं, लेकिन अगर उनको दलित ही पहचान लें, तो ये एक आश्चर्यजनक बात होगी. कांग्रेस के लोगों का कहना है कि अहमद भाई का चुनाव ऐसे ही लोगों का चुनाव है. दरअसल उनके लिए वही व्यक्ति नेता है या उसमें आगे बढ़ने की सलाहियत है, जो उनका व्यक्तिगत वफादार है.