सरकार किस पार्टी की बनेगी, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इस बार राज्य विधानसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या में इज़ाफ़ा होने वाला है. फिलहाल विधानसभा में भाजपा के 11 विधायक हैं, लेकिन पिछले एक वर्ष से देश भर में जो मोदी लहर देखने को मिली है, उसका फ़ायदा जम्मू के हिंदू बहुल क्षेत्रों में भाजपा को ज़रूर मिलेगा. अगर ऐसा हुआ, तो इसका साफ़ मतलब होगा कि राज्य में महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियों में भाजपा और पीडीपी का ही भविष्य उज्ज्वल नज़र आ रहा है. पीडीपी ने अपनी चुनावी मुहिम का केंद्र बिंदु नेशनल कांफ्रेंस सरकार की असफलताओं को उछालने तक ही सीमित रखा है.
राज्य में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही तमाम राजनीति दल चुनावी अखाड़े में कूद पड़े हैं. पांच चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव 25 नवंबर से शुरू हो रहे हैं. चुनाव आयोग की ओर से घोषणा होते ही राज्य के विभिन्न राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों की मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली. कहा गया कि ऐसे समय में, जबकि घाटी, ख़ासकर श्रीनगर के बाशिंदें हाल में आई बाढ़ की मार से जूझ रहे हैं, चुनाव कराना उनके घावों पर नमक छिड़कने जैसा है. अभी यहां चुनाव की नहीं, पुनर्वास की आवश्यकता है. चुनाव की घोषणा के बाद से ही आचार संहिता लागू हो गई है. ऐसे में सरकारी स्तर पर राहत कार्य जारी रखना संभव नहीं होगा. चुनाव कराने की घोषणा पर न केवल राजनीतिक, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी कड़ी प्रतिक्रिया देखी गई. सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल कांफ्रेंस ने भी ऐसे मौ़के पर चुनाव कराने का विरोध किया है. नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता डॉ. मुस्तुफ़ा कमाल, जो मुख्यमंत्री के चाचा भी हैं, ने कहा कि इस समय तो कश्मीरी जनता, जो बाढ़ से तबाह हो गई है और जिसकी आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब है, के लिए राहत कार्यों का समय है, न कि वोट मांगने का. चुनाव कराने के लिए इतनी जल्दबाज़ी से काम क्यों लिया गया?
बहरहाल, चुनाव में हिस्सा लेने वाले राजनीतिक पार्टियां, ख़ासकर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और भाजपा उत्साहित नज़र आ रही हैं. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस के रुचि न लेने की एक वजह यह भी हो सकती है कि उसके नेतृत्व वाली राज्य सरकार बाढ़ के दौरान और उसके बाद पुनर्वास को लेकर जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी. पत्रकार रियाज़ मलिक कहते हैं कि बाढ़ आए दो महीने से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन सरकार अभी उससे होने वाले नुक़सान का भी अनुमान नहीं लगा सकी. सरकारी अमला अभी भी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सर्वे कर रहा है कि किसका कितना नुक़सान हुआ. सरकार की इस कछुआ चाल के कारण लोग बेहद आक्रोशित हैं. परिस्थितियां ऐसी हैं कि सरकार प्रभावित लोगों के लिए छत की वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं कर सकी. ऐसे में नेशनल कांफ्रेंस कौन-सा मुंह लेकर मतदाताओं के बीच जाएगी? उसे सारी स्थिति मालूम है, इसीलिए उसने चुनाव कराने के निर्णय का विरोध किया है. दिलचस्प बात यह है कि राज्य की गठबंधन सरकार में नेशनल कांफ्रेंस की सहयोगी पार्टी कांग्रेस में भी उत्साह देखने को नहीं मिल रहा है. रियाज़ कहते हैं कि राज्य कांग्रेस पर भी लोकसभा चुनाव जैसी हार का ख़तरा मंडराने लगा है. सच्चाई यह है कि विधानसभा चुनाव को लेकर सबसे ज़्यादा उत्साहित विपक्षी दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और भाजपा हैं. इन दोनों ने अपनी चुनावी गतिविधियां शुरू कर दी हैं. भाजपा के राज्य प्रवक्ता ख़ालिद जहांगीर इन दिनों बहुत उत्साहित हैं. उनका कहना है कि भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में मिशन-44 का ख्वाब देखा है, जिसके पूरा होने की प्रबल संभावना है.
उल्लेखनीय है कि भाजपा ने जम्मू- कश्मीर में अपनी सरकार बनाने के लिए यहां 87 सदस्यों वाली विधानसभा में कम से कम 55 ज़रूरी सीटें जीतने का लक्ष्य बहुत पहले ही तय कर लिया था. बीते आम चुनाव के दौरान भाजपा ने जम्मू एवं लद्दाख़ में वोट प्रतिशत में भारी बढ़त हासिल की थी. इस बार भाजपा की नज़र घाटी के उन चुनाव क्षेत्रों पर भी है, जहां पलायन करके आए कश्मीरी पंडितों का एक बड़ा वोट बैंक है, क्योंकि अलगाववादी दलों ने पहले ही चुनाव बहिष्कार का आह्वान किया है, इसलिए संभव है कि साधारण मतदाता मतदान न करें और इस प्रकार भाजपा कश्मीरी पंडितों के बल पर इन सीटों पर जीत जाए. ख़ालिद जहांगीर बताते हैं कि हम मिशन-44 की सफलता के लिए भरपूर मेहनत करेंगे. संभव है कि नरेंद्र मोदी स्वयं घाटी आकर चुनावी सभाओं को संबोधित करें. ख़ालिद को विश्वास है कि जम्मू-कश्मीर में अगली सरकार भाजपा की बनेगी.
सरकार किस पार्टी की बनेगी, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इस बार राज्य विधानसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या में इज़ाफ़ा होने वाला है. फिलहाल विधानसभा में भाजपा के 11 विधायक हैं, लेकिन पिछले एक वर्ष से देश भर में जो मोदी लहर देखने को मिली है, उसका फ़ायदा जम्मू के हिंदू बहुल क्षेत्रों में भाजपा को ज़रूर मिलेगा. अगर ऐसा हुआ, तो इसका साफ़ मतलब होगा कि राज्य में महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियों में भाजपा और पीडीपी का ही भविष्य उज्ज्वल नज़र आ रहा है. पीडीपी ने अपनी चुनावी मुहिम का केंद्र बिंदु नेशनल कांफ्रेंस सरकार की असफलताओं को उछालने तक ही सीमित रखा है. लगता है कि पीडीपी नेशनल कांफ्रेंस की उन ख़ामियों को उछालने का कोई अवसर गंवाना नहीं चाहती, जिनकी वजह से जनता नाराज़ है. पीडीपी यूथ विंग के नेता मोहम्मद ताहिर सईद ने बताया कि उनका सारा फोकस इस बात पर है कि वह जनता को नेशनल कांफ्रेंस के वे जनविरोधी कार्य याद दिलाते रहें, जिनके कारण उसे मुसीबतें झेलनी पड़ीं. उन्होंने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस की सरकार में कम से कम पांच हज़ार कश्मीरी नौजवानों के ख़िलाफ़ पथराव के आरोप में केस दर्ज किए गए. हज़ारों युवाओं की ज़िंदगी बर्बाद कर दी गई. 2010 में सड़कों और गली-कूचों में 110 लोगों, जिनमें अधिकतर बच्चे शामिल थे, को मौत के घाट उतार दिया गया. नेशनल कांफ्रेंस सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए, लेकिन वे सारे मामले दबा दिए गए. किसी एक मामले में भी दोषियों को दंडित करने की कोशिश नहीं की गई.
ज़ाहिर है, विधानसभा चुनाव के दौरान पीडीपी के लिए नेशनल कांफ्रेंस की ख़ामियां उछालना ही काफ़ी है. ऐसे में नेशनल कांफ्रेंस को क़दम-क़दम पर सफ़ाई देनी होगी, अपना बचाव करना होगा. नतीजतन, पीडीपी का पलड़ा भारी रहेगा. विधानसभा चुनाव के हवाले से जो परिस्थितियां देखने को मिल रही हैं, उनके अनुसार जम्मू एवं लद्दाख़ में सीटों की एक बड़ी संख्या भाजपा के खाते में और घाटी में पीडीपी के खाते में जाती नज़र आ रही हैं. अगर नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के हक़ में कोई करिश्मा न हुआ, तो यह लगभग तय समझा जाना चाहिए कि राज्य में अगली सरकार भाजपा और पीडीपी के गठबंधन वाली होगी.
जम्मू-कश्मीर : अगली सरकार पीडीपी-भाजपा की होगी!
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