सिंहस्थ को लेकर एक कहावत चर्चित है, इसके आयोजन के दौरान जो भी सत्ता में रहता है, सिंहस्थ के बाद उसकी कुर्सी चली जाती है. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यूं तो ऐसी कई मान्यताओं को झुठला चुके हैं, लेकिन प्रदेश में बन रहे राजनीतिक हालात कुछ और संकेत कर रहे हैं. संघ के तेवर को देखकर दावा किया जा रहा है कि सिंहस्थ के बाद प्रदेश की राजनीति में भूचाल आएगा. प्रदेश संगठन महामंत्री के रूप में पार्टी के शक्तिशाली पदाधिकारी अरविंद मेनन की छुट्टी से संकेत मिले हैं कि संघ और भाजपा हाईकमान कुछ और कठोर निर्णय ले सकता है.
फिलहाल प्रदेश में तूफान से आने के पहले की शांति है, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी. उज्जैन सिंहस्थ में सब ठीक नहीं चल रहा था, केवल सब कुछ ठीक होने का भ्रम रचा जा रहा था. अचानक एक दिन आए आंधी-तूफान ने सात लोगों की बलि ले ली. मेले में भारी उथल-पुथल मचा दी. प्रकृति का प्रकोप ऐसा ही होता है, क्योंकि हम भी तो लगातार प्रकृति से छेड़छाड़ करते रहते हैं.
सिंहस्थ में जो कुछ हुआ, माना जा रहा हैकि मध्यप्रदेश की राजनीति में भी बहुत जल्द ऐसा ही होने वाला है. परदे के पीछे कथानक लिखे जा चुके हैं. मध्यप्रदेश को लेकर भाजपा हाईकमान अभी तककमजोर दिख रहा था. राजनीतिक परिस्थितियों से समझौता करते हुए हाईकमान ने शांति का चोला ओढ़ रखा था. तभी तो व्यापमं जैसेे घोटाले को दबाने के लिए सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई को अभी तक मध्यप्रदेश में एक भी जांच के मामले में सफलता नहीं मिली है. शेहला मसूद हत्याकांड में तो सीबीआई हत्या का क्राइम सीन तक क्रिएट नहीं कर सकी है. इसमें शामिल राजनीतिक आरोपियों कोे इसका पूरा लाभ दिया गया और वे आरोपों के कटघरे से मीलों दूर चले गए. व्यापमं घोटाला में भी जांच सीबीआई को तो सौंप दिया गया, लेकिन एक-एक कर सभी आरोपी जेल से जमानत पर छूटते चले गए.
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जबकि माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपने विरोधी खेमे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर सबसे पहले गाज गिराने की तैयारी करेंगे, क्योंकि वे एक समय उनके सबसे बड़े विकल्प के रूप में उभर चुके हैं. राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि इस बार सीबीआई मप्र में कुछ करेगी. परंतु उसने इस मामले में भी हथियार डाल दिए. संघ भी इस घोटाले के आरोपों की जद में आने से नाराज था, परंतु कुछ कारणों से संघ शिवराज कोे माफ करता आ रहा है. परंतु अब जो सूचनाएं मिल रही हैं, उनमें दावा कियाा जा रहा है कि संघ ने मध्यप्रदेश भाजपा में आमूल-चूल परिवर्तन का कथानक लिख दिया है. इसी सिलसिले में सबसे पहला विकेट संगठन महामंत्री अरविंद मेनन का गिरा. असल में मेनन को जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर लगाम कसेंगे, परंतु मेनन उनके प्रमुख सिपहसालार बन गए . यही नहीं, हर मामले में दोनों मिलकर निर्णय करने लगे. भाजपा में कुछ कांग्रेसी नेताओं के प्रवेश की भूमिका भी मेनन द्वारा बनाई गई. यहां तक तो सब ठीक था, लेकिन संघ के पास जो सूचनाएं छनकर पहुंचीं, उससे संघ की भंवें तन गईं. मेनन पर भारी भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिसकी जांच मेनन के गृह नगर वाराणसी में भी कराई गई. आरोप सच पाए गए. यही नहीं, मेनन से एक महिला के कथित संबंधों का मामला भी संघ के पास पहुंचा था, परंतु उक्त महिला का आज तक कहीं पता नहीं चला. संघ के मुखबिरों ने भी मेनन को लेकर बहुत गंभीर रिपोर्ट सौंपी थी. इसके अनुसार मेनन प्रदेश भाजपा के लिए खतरा बनते जा रहे हैं. प्रदेश के एक वरिष्ठ भाजपा सांसद ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के सामने यहां तक कह दिया था कि मध्यप्रदेश में या तो मेनन रहेंगे या फिर भाजपा. इसके बाद मेनन की अचानक विदाई कर दी गई.
इसके बाद राजनीतिक विश्लेषकोंें की दृष्टि सिंहस्थ पर गई. सिंहस्थ को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था. सवा लाख करोड़ का सरकार के सिर पर कर्ज होने के बाद भी सिंहस्थ में जिस तरह से पानी की तरह पैसा बहाया गया, उतनी व्यवस्था वहां चुस्त-दुरुस्त नहीं दिखी. एक बड़ा हिस्सा तो मुख्यमंत्री के प्रचार में ही खर्च कर दिया गया. इसे लेकर संघ खेमे में खुसर-पुसर तेज हो गई. मेनन के स्थान पर आए संगठन महामंत्री सुहास भगत देखने में तो जितने सहज-सरल लगते हैं, उतने ही वर्तमान भाजपा नेतृत्व को लेकर उनके इरादे खतरनाक हैं. उनके नाम की घोषणा होते ही जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अचानक दिल्ली पहुंचे तो भगत ने उनसे केवल औपचारिक मुलाकात ही की. राजनीतिक मामलों पर कोई चर्चा नहीं की. इतना ही नहीं, जब प्रदेश भाजपा कार्यालय में प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, जो स्वयं प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, उनसे मिलने पहुंचे तो उन्होंने उन्हें भी खास तवज्जो नहीं दिया. उनका तेवर देख विश्लेषकों का चौंकना स्वाभाविक था. माना जाता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलने के बाद अच्छे-अच्छे विरोधियों के तेवर भी ठंडे पड़ जाते हैं, परंतु सुहास भगत पर इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है. वैसे प्रदेश के प्रभारी बनाकर भेजे गए विनय सहस्त्रबुद्धे को लेकर भी पार्टी नेतृत्व आशावान थी, पर वह कोई कमाल नहीं दिखा सके. सत्ता व संगठन पर नियंत्रण करना तो दूर, वे खुद उनके नियंत्रण में दिखने लगे. हां, सिंहस्थ में जरूर एक-दो बार उनके तेवर देखने को मिले.
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फिलहाल शिवराज खेमे में सन्नाटे का माहौल है, हालांकि इस खेमे के लोग मानकर चल रहे हैं कि मध्यप्रदेश में कोई विकल्प नहीं होने के कारण अगला विधानसभा चुनाव भी भाजपा शिवराज सिंह के नेतृत्व में ही लड़ेगी. शिवराज ने मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य के सभी दूसरी कतार के नेताओं को इतना बौना कर दिया है कि वे अपने जिले या संसदीय क्षेत्र के बाहर निकलने की बात भी नहीं सोच पा रहे हैं. पहली कतार के नेताओं को तो मार्गदर्शक बनाकर घर में बैठा दिया गया है. वहीं प्रदेश स्तर पर जिन नेताओं का प्रभाव बढ़ता दिखाई देता है, उसके पर कतर दिए जाते हैं. किसी कोे घोटाले के आरोप में उलझा दिया जाता है तो किसी को आपराधिक मामलों में. भले ही वे बाद में बेदाग निकल आएं, लेकिन तब तक उनका राजनीतिक कद बौना हो जाता है. इसके बाद वहां उनके समानांतर नेता पैदा कर दिए जाते हैं.
यही प्रक्रिया संघ के पास पहुंची रिपोर्ट में बताई गई है. संघ व्यापमं में नाम आने से वैसे ही नाराज था, अब भाजपा की प्रदेश में लगातार गिरती छवि और इसके एक तरह से कांग्रेसीकरण होने से चिंतित है. कहा जा रहा है कि भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस नेता अपने व्यावसायिक हितों के कारण यहां आए हैं. अपना हित पूरा होने के बाद वे कभी भी वापस जा सकते हैं. एक तो भाजपा में अंदरूनी तौर पर उनका विरोध है और दूसरे उनकी विचारधारा भाजपा से कतई मेल नहीं खाती. ऐसे में आगामी चुनाव के ऐन पहले यदि माहौल थोड़ा भी भाजपा के विरोध में जाता दिखा, तो ये नेता फिर घरवापसी कर सकते हैं. इसकी आशंका स्वयं भाजपा और संघ को है. ऐसी स्थिति में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है. लगातार सत्ता में रहने के कारण एंटी इनकंबेंसी फैक्टर भी बढ़ रहा है. पिछली बार कांग्रेस उसका लाभ उठाने की स्थिति में नहीं थी, इस बार कम से कम ग्रामीण क्षेत्रों की जनता तो भाजपा के विरोध में जाती दिख रही है. शहरी क्षेत्रों में भी आपसी खंीचतान बढ़ती जा रही है.
सूत्रों का कहना है कि संघ भाजपा में तुरंत नेतृत्व परिवर्तन करने का पक्षधर है. इसके तहत प्रदेश अध्यक्ष को हटाने की बात सामने आ रही है. वहीं मुख्यमंत्री के विकल्प की खोज भी शुरू कर दी गई है. मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के लिए दो नाम फिलहाल सामने आए हैं, उनमें साध्वी उमा भारती को फिर से मुख्यमंत्री की कमान देने पर विचार हो रहा है तो प्रभात झा कोे वापस संगठन में भेजने की बात कही गई है. हालांकि सूची में आधा दर्जन नाम हैं, जिनके बारे में पूरी रिपोर्ट तैयार हो रही है. संघ बहुत सोच-समझकर निर्णय लेना चाहता है, ताकि भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी बड़ा राजनीतिक नुकसान नहीं हो.