कश्मीर फाईल्स के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने अभिव्यक्ति की आजादी की बात कही है ! और कहा” कि हर तरह के पहलुओं को जनता के सामने आने से रोका जाना ठीक नहीं है” !
तो गुजरात के दंगों के उपर बनी फिल्म परजानिया को शुरू में ही गुजरात में प्रदर्शन होने से क्यों रोका गया था ! (उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे!) उस समय नरेंद्र मोदी को अभिव्यक्ति की आजादी का ख्याल नहीं आया था ?
वैसे ही अभी अमोझान पर राना आयुब की गुजरात फाईल्स नाम कि कितबका नही मिलना ! महज टेक्निकल बात है ? या कोई बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा है ? वैसे तो यह किताब का प्रकाशन आजसे छ साल पहले ही हो चुका है ! (2016) और भारत की सभी प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है ! और अंग्रेजी और हिंदी के रेकॉर्ड ब्रेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं ! और होने भी चाहिए ! क्योंकि भारत की मिडिया की संपूर्ण विश्व में विस्वसनियता दाव पर लगीं हुई है ऐसे समय में राना आयुब के शोध पत्रकारिता ने कुछ लाज बचाने का काम किया है ! और राना ने मैथिली त्यागी का नाम लेकर अपनी जान जोखिम में डाल कर गुजरात में नौ महीने रहकर गुजरात दंगों में शामिल और उस समय के प्रशासन में शामिल जिम्मेदार लोगों को अपने आडियो – विडियो केमेरो में उतार लिया है ! जिसमें अंतिम व्यक्ति तत्कालीन मुख्यमंत्री जो आज देश के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान है ! सत्तर के दशक में अमेरिका में वाटरगेट प्रकरण से भी संगीन अपराध में लिप्त लोगों के साथ बातचीत के आधार पर लिखी गई गुजरात फाईल्स हैं ! जिसमें डा माया कोडनानी से लेकर बाबु बजरंगी तथा हरेन पंड्या की विधवा पत्नी जागृति पंड्या के अलावा गुजरात दंगों के समय प्रशासनिक अधिकारियों के साथ की बातों पर यह किताब लिखी गई है ! और सुना है कि इस किताब को इतना सब कुछ हो जाने के बाद अगर अमोजान के द्वारा उपलब्ध होने से बैन लगाने की करतूत वर्तमान सरकार कर रही होंगी तो नरेंद्र मोदी के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने क्या है ? क्योंकि गत आठ साल से बगैर सेंसरशिप से भारत के मेनस्ट्रीम मिडिया संस्थाओं ने कैसे घुटने टेक दिये यह संपूर्ण दुनिया देख रही है ! अब अमोजान, फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर, इंस्टाग्राम और सभी तरह के सोशल मीडिया पर भी वर्तमान सरकार के मनमाने ढंग से कंट्रोल करने वाले आदमी को कश्मीर फाईल्स के लिए अभिव्यक्ति की आजादी का ख्याल आया है ! सौ चुहे खाकर बिल्ली हज को चली !
कि 28 फरवरी 2002 के गोधरा कांड के बाद गुजरात के दंगों में गुजरात के पुलिस – प्रशासन की भुमिका कितनी संगीन थी ! और भारत के आजादी के बाद के हुए सांप्रदायिक हिंसा करने के लिए संपूर्ण गुजरात की जनता को बहकावे में ले जाना ! और उनके द्वारा निरिह परिवारों पर प्रायोजित प्रोगाम ! भारत के इतिहास में आजादी के बाद पहली बार किसी भारतीय राजनीतिक दल ! और उसके संबंधित संघठनो के द्वारा किया गया ! मानवता के नाम पर कलंकित कृत्य कर के ! भारत के सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बनाने की कवायद ! भारत के जनतंत्र का माखौल उड़ाने की कृती ! बिल्कुल आज से सौ साल पहले युरोपीय देशों में इटली और जर्मनी में यह प्रयोग हो चुका है ! और उसके बाद सौ साल के भीतर ही हिंदुत्व के नाम पर भारतीय भूमि पर यह खेल लगातार जारी है ! और कश्मीर फाईल्स नाम की की गई कोशिश उसी मानसिकता का परिचायक है !
शायद मैं पहला पाठक होगा ! जिसने 2016 में ही राना आयुब की गुजरात फाईल्स, किताब पढने के बाद ! तुरंत राना आयुब के उपर कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है ! क्योंकि भारत के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए आदमी (तबतक नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन चुके थे !) को सिलसिलेवार तरह से संपूर्ण किताब में 2002 के 28 फरवरी के बाद से ही कटघरे में खड़ा करती है ! और अपनी प्रस्तावना में ही लिखती हैं कि इस किताब में लिखा गया एक – एक अक्षर मेरे पास आडियो – विडियो रेकॉर्ड में बंद हैं !
लेकिन इन आठ सालों में राना आयुब के साथ-साथ, कुछ और भी किताबें तथा जांच रिपोर्ट, गुजरात के दंगों के उपर प्रकाशित हो चुके हैं !
उदाहरण के लिए, गुजरात राज्य पुलिस के सबसे बड़े पदाधिकारी पूर्व डायरेक्टर जनरल आफ पुलिस (EX.DGP) श्री. आर बी श्रीकुमार की उसी साल 2016 में छपी Gujrat Behind the Curtain नामकी किताब, और उसका मराठी अनुवाद 2019 दोनों आर बी श्रीकुमारने खुद मुझे समीक्षा के लिए विशेष रूप से अपने पत्र के साथ भेजे हैं !
और हमारी उनकी बीच-बीच में टेलिफ़ोन पर बात भी होती है ! तो नरेंद्र मोदी को एसआईटी की क्लीन चिट देने के निर्णय को लेकर, उन्होंने कोर्ट में केस दर्ज की है ! और खुद ही अपनी बेटी की मदद से कानूनी लड़ाई लड रहे हैं !
और वरिष्ठ पत्रकार श्री मनोज मित्ता की The Fiction of Fact – Finding, Modi ? Godhra तो 2014 में ही Harper Collins जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन से 259 पन्ने की किताब प्रकाशित कर चुके हैं ! और मनोज मित्ता की खासियत है कि, उन्होंने 2007 में Tree Shook Delhi यह 1984 के सिख दंगे के उपर भी सहलेखक बनकर श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी ने कहा था कि जब बडा पेड गिरता है तो उसके निचे के छोटे – मोटे पेड़ों पर भी असर पड़ता है !
और इस लिये उन्होंने किताब का टाईटल भी वही रखा है ! वैसे ही द वायर के संपादक श्री सिद्धार्थ वरदराजन की Guajrat, The Making of a Tragedy, penguin प्रकाशन की किताबों के अलावा लेफ्टिनेंट जनरल जमीरूद्दीन शाह की सरकारी मुसलमान(जिसमें उन्होंने कहा कि “28 फरवरी की रात को ही जैसलमेर सेक्टर की सेना को इकट्ठा करके जोधपुर एअरपोर्ट से चालीस फ्लाईटो के द्वारा अहमदाबाद के एअरपोर्ट पर 28 की रात और संपूर्ण एक मार्च का दिन सेना को बुलाया और उसे कानून व्यवस्था के लिए इस्तेमाल नहीं करना !
जो कि संपूर्ण राज्यक्षेत्र दंगे की चपेट में आ चुका था !
और यह सब कुछ हमारे देश के तत्कालीन रक्षामंत्री श्री. जार्ज फर्नांडिस के नाक के नीचे जारी था ! एक मुंबई के पत्रकार ने मुझे “जार्ज फर्नांडीस के इस समय और ओरिसा के मनोहरपुकुर के फादर ग्रॅहम स्टेन्स और उनके दो किशोर बच्चों को जलाने की घटना को क्लिनचिट देने के गुनाहगार फर्नांडीस के इस गलती को लिखने के कारण मुझे समाजवाद की समझ नहीं है से लेकर हालही में उन्होंने कहा कि मैं राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्षों में सबसे बोगस अध्यक्ष था !”
तो ऐसे जार्ज फर्नांडिस की गुजरात दंगों के भरी लोकसभा में समर्थन और ओरिसा के मनोहरपुकुर के फादर स्टेन्स, और उनके दो किशोर बच्चों को जलाने की घटना को ! तथाकथित जांच कर के अपराधियों की इस जधन्य कृति को देखते हुए ! उन्हें क्लिनचिट देने वाले समाजवादी को सचमुच कितना समाजवादी शब्द का अर्थ मालूम था वहीं जाने !
और भी बहुत सारी जानकारी गुजरात के बीस साल पहले के दंगे के उपर उपलब्ध है ! जिसे नरेंद्र मोदी अपने राजनीतिक प्रचार – प्रसार के लिये उपयुक्त मानते हैं ! विश्व के इतिहास में सौ साल पहले इसी मानसिकता के दो तानाशाह हुए हैं ! भारत जैसे बहुआयामी संस्कृति के देश के लिए ऐसे किसी भी राजनेता का होना भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरनाक है ! ऐसे नरेंद्र मोदी आएंगे और जायेंगे, लेकिन भारत जैसे विविधता वाला देश इस तरह के मानसिकता वाले लोगों के कारण पुनः विखंडित होने की संभावना है ! जो आदमी सिर्फ दंगों के उपर राजनीतिक करियर बनाता है ! वह कश्मीर फाईल्स जैसे सांप्रदायिक हिंसा की भूमिका बनाने के लिए उसे प्रमोशन के लिए अपनी शक्ति लगाता है ! इससे ज्यादा प्रधानमंत्री पद की गरिमा को मट्टी – पलित करने की कृती और कौन-सी हो सकती है ?
उसी तरह से Concerned Citizens Tribunal – Gujarat 2002 Two Volumes का जांच रिपोर्ट, जस्टिस कृष्ण अय्यर के नेतृत्व में जस्टिस पी बी सावंत, जस्टीस होस्बेट सुरेश, अडवोकेट के जी कन्नाबरियन, श्रीमती अरुणा राय पूर्व डीजीपी डॉ के एस सुब्रमण्यम, प्रोफेसर घनश्याम शाह तथा प्रोफेसर तनिका सरकार इन आठ लोगों ने मिलकर भारत के दंगों के बाद शायद पहली जांच रिपोर्ट होगी, जो इतनी तफसिल से और ज्यादा से ज्यादा जधन्य घटना स्थल जाकर बनाने का काम किया है ! और शेकडो लोगो का स्टेटमेंट लिए है जिसमें दंगा पिडीतो से लेकर दंगों को करने वाले विश्व हिंदु परिषद से लेकर आर एस एस तथा सत्ताधारी पार्टी के पदाधिकारियों से लेकर प्रशासन के तत्कालीन जिम्मेदार लोगों की गवाहीया लेकर रिपोर्ट बनाने का काम किया है !
और सबसे महत्वपूर्ण बात तत्कालीन मोदी सरकार में राजस्व मंत्री श्री हरेन पंड्या ने इस आयोग के समक्ष जो गवाही दी ! 27 फरवरी 2002 के श्याम की गांधी नगर के कैबिनेट मिटिंग में नरेंद्र मोदी ने कहा कि कल से हिंदुओं की तरफ से जो भी प्रतिक्रिया होगी उसे कोई भी नहीं रोकेगा ! और हरेन पंड्या ने कहा कि मैंने इस बात का विरोध किया था ! जिसकी किमत उन्हें अपनी जान गंवाने तक देनी पड़ी ! हालांकि इस आयोग ने उन्हें आगाह किया था !” कि आप को आपको गवाही देने के लिए डर नहीं लग रहा है ?” और हरेन पंड्या ने कहा” कि ज्यादा से ज्यादा मेरी जान ही जायेगी ना ? मेरे मंत्री रहते हुए हजारों की संख्या में लोग मारे गए इसका क्या ?” और उन्होंने अपनी गवाही दी !
नानावटी कमिशन को मैंने भी मेरे वकिल दोस्त मुकुल सिन्हा के साथ तीन बार अटेंड किया है ! मुकुलभाई को पहली ही बार के नानावटी के तेवर देखकर कहा था ! कि आप अपने किमती वक्त को जाया कर रहे हो ! यह बंदा तो नरेंद्र मोदी को बरी करने के लिए तुला हुआ है ! मुकुलभाई ने कहा कि मुझे इस बात का सज्ञान है ! मैं तो सिर्फ नरेंद्र मोदी को क्लिनचिट देने का समय बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूँ ! क्योंकि गुजरात दंगों के बाद यह अपने आप को हिंदु हृदय सम्राट समझने लगा है ! और अपने आपको देश का भावी प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहा है ! समय की विडम्बना देखिए मुकुल सिन्हा 2014 के मई माह में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के एक या दो दिन पहले ही इस दुनिया से विदा होकर चले गए ! आज भले ही नरेंद्र मोदी दुसरी बार प्रधानमंत्री बने होंगे और पंद्रह दिनों पहले के भारत के चार प्रदेशों में अपने पार्टी की सरकारों को दोबारा जिताने में कामयाब हुए होंगे ! लेकिन कश्मीर फाईल्स जैसे सिनेमा को प्रोजेक्ट करके वह अपने मातृ संघठन संघ के उग्र हिंदुत्व का प्रदर्शन करने का प्रयास कर रहे हैं ! 135 करोड़ आबादी के भारत में गिनकर तिस से चालिस करोड़ की आबादी अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों की है और गत तीस सालों से भी ज्यादा समय से उग्र हिंदुत्व के साथ भारत के सत्ता को हथियाने में भले ही कामयाब हो गए होंगे ! लेकिन जिस बटवारे का राग आलापते रहते हो वह पचहत्तर साल पहले क्यों हुआ ? इतना भर याद कर लो ! तो भारत की एक चौथाई आबादी के साथ खिलवाड़ करना देश की एकता और अखंडता के लिए कितनी खतरनाक स्थिति बनते जा रही है ! कोई भी व्यक्ति बहुत लंबे समय तक असुरक्षित मानसिकता में रहना ठीक नहीं है और यह तो एक मुल्क के साईजकी जनसंख्या है ! जिसे लगातार असुरक्षित मानसिकता में रखना समाजस्वास्थ के लिए खतरनाक है !
संघ की शाखा में लाख अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ जहरीला प्रचार प्रसार किया जाता होगा! लेकिन पचहत्तर साल पहले के बटवारे के बावजूद ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भारत में ही रहने का निर्णय लिया और वही बात कश्मीर के मुसलमानों को भी लागू होती है ! इसलिए अल्पसंख्यक समुदायों को आप किसी भी दंगे या लड़ाई में मार नही सकते ! तो आप लोगो को अच्छा लगे या नहीं लगे लेकिन अल्पसंख्यक समुदायों के साथ – साथ ही जीवन जीने का तरीका खोज निकालना होगा और वह उन्हें डरा – धमकाते हुए बिल्कुल भी नहीं ! प्यार – मोहब्बत से ही रहना होगा और इस तरह की फिल्मों का प्रमोशन करना अविलंब रोकना होगा !
आप लोगों को मुस्लिम समुदाय को डराने धमकाने की आदत छोडनी होगी और इस देश के असली समस्याओं के समाधान के लिए विशेष रूप से कोशिश करनी होगी ! अन्यथा चुनाव में जीत हासिल करने की साजिश उजागर होने में देरी नहीं है ! जब इंदिरा गाँधी, राजीव गांधी और सीपीएम जैसे दलों की चालिस पैतिस साल की सत्ता में रहने के बावजूद लोगों ने उन्हें सबक सिखाने का काम किया है तो आप धर्म के नाम पर कितना समय लोगों को बरगलाने का काम करोगे ?
डॉ सुरेश खैरनार 24, मार्च 2022, नागपुर