फरवरी में आने वाले बजट में सुधार की बातें वित्त मंत्री कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई आर्थिक नीति देखने को नहीं मिली है. पिछला बजट बहुत ही डरपोक किस्म का था. मौजूदा वित्त मंत्री को कुछ साहसिक क़दम उठाने होंगे. इसमें केवल निवेश ही नहीं, बल्कि रा़ेजगार के अवसर भी शामिल हों. कृषि क्षेत्र अभी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बना हुआ है और कृषि क्षेत्र को रियायतें या फ़ायदे देने के लिए सरकार को कुछ करना चाहिए. आप कृषि, विनिर्माण क्षेत्र या बुनियादी ढांचे के लिए जो भी करना चाहते हैं, अभी करें.
संसद, विशेष रूप से राज्यसभा, जहां विपक्षी बड़ी संख्या में हैं, सही ढंग से कार्य नहीं कर रही है. उत्तर प्रदेश से सांसद साध्वी निरंजन ज्योति (साध्वी ॠतंभरा की अनुयायी) ने राजनीतिक रूप से कुछ अस्वीकार्य टिप्पणी की है. जाहिर है, वह सरकार चलाने के लिए आवश्यक चीजों का महत्व नहीं जानती हैं. ऐसी सूचना आ रही थी कि कांग्रेस और भाजपा के बीच आर्थिक मामलों या प्रक्रियात्मक मामलों से जुड़े बिलों, जो विवादास्पद नहीं हैं, को पारित कराने के लिए एक समझौता हुआ था. दुर्भाग्य से इसमें भी ठहराव आ गया है. लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति इस सबमें ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते. हां, संसदीय मामलों के मंत्री कांग्रेस के साथ मिलकर समाधान निकाल सकते हैं. यह शर्म की बात होगी कि पिछले सत्र की तरह यह सत्र भी बिना काम किए निकल जाए.
इस बीच राजनीतिक मोर्चे पर 1989 में सत्ता में रही पार्टी जनता दल के विभिन्न गुट एक साथ आने की कोशिश कर रहे हैं. सभी जानते हैं कि इनमें से किसी के बीच कोई वैचारिक मतभेद नहीं है. यह केवल व्यक्तित्व आधारित और क्षेत्र आधारित पार्टी है. जैसे, हरियाणा में चौटाला, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह, बिहार में लालू-नीतीश और कर्नाटक में देवगौड़ा. मैं नहीं जानता कि यह सब कितनी दूर जाएगा, लेकिन यह शुभ संकेत है कि ऐसी राजनीति फिर से ज़िंदा हो रही है. ऐसा लगता है कि कांग्रेस प्रभावी विपक्ष होने की अपनी ज़िम्मेदारी को त्याग रही है. खड़गे एक सज्जन व्यक्ति हैं, लेकिन विपक्ष के नेता के रूप में वह उतने मुखर नहीं हैं.
प्रधानमंत्री विदेश यात्रा कर रहे हैं, भारत के लिए सद्भावना पैदा कर रहे हैं. यह अच्छी बात है. ऑस्ट्रेलिया से आप अपने परमाणु कार्यक्रम में मदद के लिए यूरेनियम आदि पाने की उम्मीद कर सकते हैं. ओबामा गणतंत्र दिवस के मौ़के पर यहां आ रहे हैं. एक समय में दो खास बातें हो रही हैं. पहली बार एक अमेरिकी राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस पर आ रहा है. दूसरी यह कि अमेरिकी राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के दौरान दोबारा भारत आ रहे हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. यह सब अच्छा है, लेकिन भारत को लाभ लेने के लिए काम भी करने होंगे.
अगला चुनाव पांच साल दूर है, लेकिन ग़ैर-कांग्रेस व ग़ैर-भाजपा दलों को कुछ ठोस करने के लिए एक साथ मिल जाना चाहिए. वामदल निश्चित रूप से अव्यवस्थित हैं, उन्हें आत्मविश्लेषण करना चाहिए और अपनी सभी ग़लतियां सुधारने की कोशिश करनी चाहिए. मेरी राय में वामदल भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण तत्व हैं, कम से कम पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में. ये जहां भी हैं, वहां वाम आंदोलन फिर से प्रभावी हो सकता है. उनके पास युवा हैं, उन्हें आगे आकर नेतृत्व की ज़िम्मेदारियां संभालनी चाहिए, ताकि फिर से वाम आंदोलन जीवित हो.
संपूर्ण रूप से देखें, तो भारत ग़रीबों का देश है. आबादी का आधा हिस्सा ग़रीब है. बाकी को भी अमीर नहीं कह सकते. अमीरों की संख्या बहुत ही कम है. उनकी संख्या आबादी का एक छोटा-सा अंश है. जब तक सरकार या विपक्षी दल (जब वे सरकार में आते हैं) ग़रीबों के लिए कुछ नहीं करते, तब तक इस राजनीति का कोई मतलब नहीं है. हमारे ज़्यादातर नेता और राजनीतिक दल चुनाव लड़ने वाली मशीन बनकर रह गए हैं. चुनाव जीतने के बाद वे उसी की जगह पर होते हैं, जिसे वे पराजित करते हैं. अगर यही सब कुछ केंद्र में भाजपा के साथ होता है, तो यह एक दु:खद बात होगी. वे तीस साल बाद स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में आए हैं. वे कुछ ठोस परिणाम दिखा सकते हैं. अगर वे भी अन्य सरकारों की तरह काम करते हैं, तो जल्द ही अपनी चमक खो देंगे.
प्रधानमंत्री विदेश यात्रा कर रहे हैं, भारत के लिए सद्भावना पैदा कर रहे हैं. यह अच्छी बात है. ऑस्ट्रेलिया से आप अपने परमाणु कार्यक्रम में मदद के लिए यूरेनियम आदि पाने की उम्मीद कर सकते हैं. ओबामा गणतंत्र दिवस के मौ़के पर यहां आ रहे हैं. एक समय में दो खास बातें हो रही हैं. पहली बार एक अमेरिकी राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस पर आ रहा है. दूसरी यह कि अमेरिकी राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के दौरान दोबारा भारत आ रहे हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. यह सब अच्छा है, लेकिन भारत को लाभ लेने के लिए काम भी करने होंगे. अमेरिका के लिए कुछ अधिक वीजा देने से मदद नहीं मिलने वाली है.
फरवरी में आने वाले बजट में सुधार की बातें वित्त मंत्री कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई आर्थिक नीति देखने को नहीं मिली है. पिछला बजट बहुत ही डरपोक किस्म का था. मौजूदा वित्त मंत्री को कुछ साहसिक क़दम उठाने होंगे. इसमें केवल निवेश ही नहीं, बल्कि रा़ेजगार के अवसर भी शामिल हों. कृषि क्षेत्र अभी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बना हुआ है और कृषि क्षेत्र को रियायतें या फ़ायदे देने के लिए सरकार को कुछ करना चाहिए. आप कृषि, विनिर्माण क्षेत्र या बुनियादी ढांचे के लिए जो भी करना चाहते हैं, अभी करें. परिणाम आने में पांच या दस साल लग सकते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आप काम ही न करें. आप सत्ता में आ गए हैं, कृपया अपना बेहतर दें. यह देश के हित में है. देश एक सतत चीज है. चुनाव तो हर पांच साल बाद आते हैं. इसलिए सत्ता में कौन आता है, इससे फ़़र्क नहीं पड़ता. वक्त निर्माण का है. परिणाम कुछ वर्षों के बाद आएगा, लेकिन सभी प्रयास शीघ्र किए जाने चाहिए.