छत्तीसगढ़ में आदिवासी संरक्षण का दावा करने वाली रमन सरकार इसी वर्ग के हितों पर कुठाराघाट करने पर आमादा है. आदिवासियों के विकास के लिए अब तक चलाए जा रहे एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम, आदिवासी विकास की परियोजना को राज्य प्रशासन ने एकाएक बंद करके इसकी दोनों ज़िला इकाइयां भंग कर दी हैं. इसके कारण पिछले सात वर्षों से आदिवासी विकास के लिए ज़िम्मेदार परियोजना के विशेषज्ञ कर्मचारी और अधिकारी बड़ी संख्या में एक साथ बेरोज़गार हो गए हैं.
कृषि विकास संबंधी गतिविधियां धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं. राज्य शासन के उपेक्षापूर्ण रवैए के कारण छत्तीसगढ़ में विकास कार्य बिल्कुल थम से गए हैं.
छत्तीसगढ़ में आदिवासी विकास कार्यक्रम (आइफाड) अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष एवं केंद्र सरकार के संयुक्त प्रयास से वर्ष 2003 से ही सरगुजा जशपुर, एवं रायगढ़ में संचालित किया जा रहा था. दो ज़िला इकाइयों जशपुर और अंबिकापुर से लगभग 52 हज़ार आदिवासी परिवार इस परियोजना से लाभांवित थे. केंद्र सरकार और अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष की सहमति से छत्तीसगढ़ के आदिवासी कल्याण विभाग ने परियोजना को दो वर्ष तक विस्तार देने का आश्वासन दिया था. छत्तीसगढ़ सरकार ने उपरोक्त परियोजना को तत्काल प्रभाव से बंद करने का निर्णय लिया है. कार्यक्रम के स्टेट प्रोग्राम डायरेक्टर द्वारा इन कर्मचारियों का दो माह का वेतन भी रोक दिया गया है. कर्मचारियों को अन्य स्थानों पर आवेदन करने के लिए आवश्यक अनुभव प्रमाण पत्र एवं अनापत्ति प्रमाण पत्र भी नहीं दिए जा रहे हैं. मानसिक रूप से प्रताड़ित परियोजना के कर्मचारी सरकार के इस मनमाने निर्णय के विरूद्ध न्यायालय की शरण लेने को बाध्य हो रहे हैं.
आदिवासी विकास संबंधी इस कार्यक्रम के साथ संबंधित स्थानों के 52 हज़ार आदिवासियों के अतिरिक्त कई एनजीओ भी कार्यरत थे. इस परियोजना को अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष से वित्तीय मदद की जाती थी. परियोजना के अंतर्गत आदिवासियों के कृषि संबंधी कार्यों को अधिक प्रभावशील बनाने के लिए विभिन्न उपायों पर परियोजना कार्य कर रही थी. छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में कृषि विकास संबंधी गतिविधियां धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं. राज्य शासन के उपेक्षा पूर्ण रवैए के कारण छत्तीसगढ़ में एक नया चरित्र विकसित हुआ है, वह है औद्योगिक विकास पर ज़्यादा ध्यान रहे, भले ही इसके कारण कृषि की उपेक्षा हो जाए. इसके कारण आदिवासियों के कृषि कार्य पर संकट पैदा होने की शुरुआत हो भी चुकी है.
इस पूरे उलटफेर के कारण राज्य के आदिवासी विकास कार्यक्रम से संबंधित ग्रामीण मज़दूरों का भुगतान भी लंबित है. वित्त विभाग और आदिवासी विभाग के बीच जारी इस खींचतान को ही इस परियोजना के अचानक बंद हो जाने का कारण माना जा रहा है.