दिल्ली विधानसभा चुनाव की अभी विधिवत घोषणा तो नहीं हुई है, लेकिन आम आदमी पार्टी ने पूरी जोरदारी के साथ खुद को मैदान में उतार लिया है, कुछ प्रत्याशी भी घोषित कर दिए हैं. बावजूद इसके कि इस बार 2013 वाला मौसम नहीं है, जबकि दिल्ली ने केजरीवाल एंड कंपनी को सिर-आंखों पर बैठा रखा था. आज तस्वीर दूसरी है और इसकी वजह आम आदमी पार्टी का नेतृत्व है, उसकी दिशाहीनता है, मनमानी है और ग़ैर-ज़िम्मेदारी का भाव है. उधर मोदी लहर का जलवा अभी भी कायम है, जिसने भाजपा के हौसले बुलंद कर रखे हैं. ऐसे में दिल्ली विधानसभा चुनाव की वैतरणी पार करना आम आदमी पार्टी के लिए दूर की कौड़ी नज़र आता है.
दिल्ली में विधानसभा चुुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. आम आदमी पार्टी विधानसभा भंग किए जाने को अपनी जीत के रूप में प्रचारित कर रही है. आम आदमी पार्टी ने 22 उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी कर दी है. एक तरफ़ पार्टी ने अपने 12 मौजूदा विधायकों को दोबारा चुनाव मैदान में उतारा है, वहीं पिछली बार चुनाव में असफल रहे 10 उम्मीदवारों पर एक बार फिर भरोसा जताया है. सबसे खास बात यह है कि पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके डिप्टी मनीष सिसौदिया का नाम पहली सूची में नहीं है. पार्टी ने चुनाव के लिए एक ब्लूप्रिंट भी जारी किया है. इसमें उसने यह बताया है कि वह अगले पांच सालों में दिल्ली के विकास के लिए क्या करेगी.
हिंदी में एक कहावत है, एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जगह सारा देश संभालने के चक्कर में सब कुछ गंवा दिया. 49 दिनों की सरकार में रहने के बाद इस्तीफ़ा देने का फैसला उन्हें भारी पड़ गया. उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में विधानसभा चुनाव की सफलता नहीं दोहरा सकी. इसके बाद पार्टी में असंतोष कई स्तरों पर उभर आया है. यही उनके प्रचार अभियान के लिए सबसे बड़ी बाधा बन रहा है. पार्टी को कई समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है. इन्हीं वजहों से उसके लिए विधानसभा चुनाव में राह आसान नहीं होगी.
कार्यकर्ताओं की कमी
चौथी दुनिया से बातचीत करते हुए आम आदमी पार्टी के राजस्थान, पंजाब एवं हरियाणा के कार्यकर्ताओं ने बताया कि पिछली बार पार्टी के प्रचार के लिए बहुत से कार्यकर्ता देश भर से आए थे, जिन्होंने चुनाव में हर स्तर पर पार्टी के प्रचार की ज़िम्मेदारी संभाल रखी थी. पिछली बार की तरह इस बार भी विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने कार्यकर्ताओं का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू कर
किसे कहां से टिकट
मनोज कुमार-कोंडली
जगदीप सिंह-हरि नगर
जरनैल सिंह-तिलक नगर
गिरीश सोनी-मादीपुर
विशेष रवि-करोल बाग
सोमनाथ भारती-मालवीय नगर
सौरभ भारद्वाज-ग्रेटर कैलाश
संजीव झा-बुराड़ी
बंदना कुमारी-शालीमार बाग
सत्येंद्र जैन-शकूर बस्ती
सोमदत्त-सदर बाज़ार
सुरेंद्र सिंह-दिल्ली कैंट
संदीप-सुल्तानपुरी माजरा
अनिल बाजपेयी- गांधी नगर
राजेश ऋषि-विश्वास नगर
गुलाब सिंह-मटियाला
विजेंद्र गर्ग-राजेंद्र नगर
कपिल मिश्र-करावल नगर
जितेंद्र तोमर-त्रिनगर
एनडी शर्मा-बदरपुर
भावना गौड़-पालम
दिया है, लेकिन इस बार लोग रजिस्ट्रेशन कराते नहीं दिख रहे हैं. 2013 में देश भर से कार्यकर्ता पार्टी के प्रचार के लिए अपने खर्चे पर दिल्ली आए थे और महीनों यहां रहकर पार्टी के लिए तन-मन-धन से प्रचार किया था. वैसा जोश और उत्साह इस बार दिल्ली सहित दूसरे राज्यों के पार्टी कार्यकर्ताओं में नज़र नहीं आ रहा है. सरकार बनने के बाद कार्यकर्ताओं के साथ जो व्यवहार किया गया, यह उसका ही नतीजा है.
अन्ना आंदोलन के समय जो लोग जुड़े थे, उनमें से अधिकांश लोग पार्टी छोड़ चुके हैं. आंदोलन से लेकर पार्टी और फिर सरकार बनाने तक जिन कार्यकर्ताओं ने अपना खून-पसीना बहाया, पार्टी के लिए दिन-रात एक कर दिया, वे अब अरविंद और पार्टी के साथ नहीं हैं. उन लोगों की जगह भर पाना बेहद मुश्किल काम है. यह आप के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. आम आदमी पार्टी के जिन कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ी है या जिन लोगों ने पार्टी के लिए काम किया, वे पिछली बार देश के लिए काम करने आए थे. लेकिन, पार्टी में जिस तरह का आलाकमान संस्कृति बन गई है, उससे कार्यकर्ता असंतुष्ट हैं. पार्टी देश भर में मिशन विस्तार चला रही है, लेकिन देश भर में पार्टी से कार्यकर्ताओं के टूटने की ख़बरें आ रही हैं. लोकसभा चुनाव में चार सीटें जिताकर आम आदमी पार्टी की इज्जत बचाने वाले पंजाब में भी कार्यकर्ता पार्टी छोड़ रहे हैं. पंजाब के पटियाला में पार्टी के उम्मीदवार को सांसद बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले 6 नेताओं और तक़रीबन 200 कार्यकर्ताओं ने एक साथ पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है. पार्टी छोड़ने वाले नेता कुंदन गोगिया का कहना है कि आम आदमी पार्टी अब खास आदमी पार्टी हो गई है. जो लोग आंदोलन के दौर से जुड़े हुए हैं, उन्हें दरकिनार कर नए लोगों को पार्टी की ज़िम्मेदारी दी जा रही है. इससे पार्टी कार्यकर्ता हतोत्साहित हो रहे हैं. पार्टी के अपने रास्ते से हटने और वरिष्ठ नेताओं के मनमाने तरीके से काम करने की वजह से हमने पार्टी से इस्तीफ़ा दिया है. 2013 में जहां एक-एक शहर से औसतन 50 कार्यकर्ता आए थे, वहीं इस बार यह औसत संख्या दस रहने का अनुमान है.
विद्रोह की आशंका
पार्टी के अंदर से आ रही ख़बरों के मुताबिक, मौजूदा 27 विधायकों में से छह को टिकट न दिए जाने का फैसला हुआ है. टिकट न दिए जाने वालों में तिमारपुर के विधायक हरीश खन्ना और विधानसभा अध्यक्ष रहे जंगपुरा के विधायक मनिंदर सिंह धीर के नाम भी शामिल हैं. हरीश खन्ना का कहना है कि उन्होंने पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की कमी को लेकर सवाल खड़े किए थे. उन्होंने अपने चुनाव न लड़ने के फैसले से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अवगत करा दिया था. उनसे इस फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा गया, लेकिन उन्होंने अपना ़फैसला नहीं बदला, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि निर्णय लेने में विधायकों की कोई भागीदारी नहीं है. केवल दो-तीन लोग फैसले लेकर उसे विधायकों पर थोप देते हैं. जब उन्होंने इसके ख़िलाफ़ बोलना चाहा, तो उन्हें चुप करा दिया गया. उनसे उम्मीद की गई कि वह पार्टी के कार्यक्रमों में लोगों को बस में भरकर लाएं, लोगों की भीड़ जुटाएं, तो उन्होंने कहा कि वह यह काम नहीं करेंगे. इसके बाद उन पर कोई काम न करने का आरोप जड़ दिया गया. पार्टी में असंतोष कई स्तरों पर है. इसी तरह मनिंदर सिंह धीर भी टिकट न दिए जाने की स्थिति में भाजपा में शामिल हो सकते हैं. उन्होंने कई मौक़ों पर मोदी की तारीफ़ की है. इसी तरह पिछली बार चुनाव हारने वाले उम्मीदवारों को भी टिकट न दिए जाने का ़फैसला होगा. ऐसे में स्थिति विकराल होती जाएगी. उक्त सभी नेता भाजपा की ओर रुख कर सकते हैं. इससे आप के लिए स्थिति और गंभीर हो सकती है.
नहीं मिल रहा चंदा
इस बार आम आदमी पार्टी को चुनाव के लिए चंदा भी नहीं मिल पा रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार चंदा कम मिल रहा है. देश की तस्वीर बदलने और भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना दिखाने के रास्ते पर नरेंद्र मोदी चलने लगे हैं. विदेशों में रहने वाले भारतीयों को मोदी ने मोह लिया है, उन पर अब किसी का जादू नहीं चल पा रहा है. इस वजह से आम आदमी पार्टी को चंदा नहीं मिल रहा है. पिछली बार चुनाव के पहले आप को प्रतिदिन तक़रीबन 5 से 6 लाख रुपये चंदे के रूप में मिले थे, लेकिन इस बार इसमें भारी गिरावट आई है. विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए चुनाव आयोग ने प्रति उम्मीदवार खर्च की सीमा बढ़ाकर 28 लाख रुपये कर दी है. इस हिसाब से पार्टी को 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए 19 करोड़ 60 लाख रुपये की आवश्यकता होगी. हालांकि, 14 नवंबर तक पार्टी के खाते में 19 करोड़ रुपये से ज़्यादा रकम इकट्ठा हो चुकी है. बावजूद इसके उसे चुनाव प्रचार के दौरान फंड की कमी का सामना करना पड़ सकता है. पिछली बार पार्टी ने घर-घर जाकर चंदा इकट्ठा किया था, लेकिन 49 दिनों के बाद सरकार के इस्तीफ़ा देने और अपने वादे पूरा न करने के कारण उसकी विश्वसनीयता घटी है. सरकार में आने के बाद भी आप ने शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि चुनाव के दौरान और उससे पहले वह उनके ख़िलाफ़ राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार के सुबूत होने की बात कहती रही.
मुस्लिम वोट
वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने वाले अरविंद केजरीवाल ने मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की खूब कोशिश की और वह उसमें सफल भी हुए. पिछली बार दिल्ली विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में भी उन्हें मुस्लिम वोट मिले. लेकिन, वर्तमान में परिस्थितियां बदली हुई हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया था, लेकिन त्रिलोकपुरी एवं बवाना में हुई घटनाओं के बाद मुस्लिम मतदाता आम आदमी पार्टी से नाराज़ हैं. सीमापुरी क्षेत्र के कुछ मुस्लिम मतदाताओं ने बताया कि त्रिलोकपुरी में हुई सांप्रदायिक घटना के बाद माहौल ठीक नहीं है. आम आदमी पार्टी ने इस घटना के बाद कोई सक्रियता नहीं दिखाई, जबकि क्षेत्रीय विधायक आम आदमी पार्टी का था. मुस्लिम युुवा वर्ग अभी भी आप के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है. उसका कहना है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस मिलकर आप के वजूद को ख़त्म करना चाहती हैं. इसलिए हम इस बार भी आम आदमी पार्टी को ही वोट देंगे.
खिसकता मध्यम वर्ग
मोदी ने जिस तरह मध्यम वर्ग को अपने पक्ष में खड़ा कर लोकसभा चुनाव में विजय का परचम लहराया, वह ट्रेंड अभी भी चल रहा है. देश का मध्यम वर्ग फिलहाल मोदी के साथ खड़ा दिखाई पड़ रहा है. वह अब तक के मोदी के कार्यों और योजनाओं से संतुष्ट दिखता है. महंगाई में कमी आई है. हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, महंगाई की दर 5.52 पर आ गई है. मोदी सरकार के गठन के बाद पिछले चार महीनों में महंगाई में लगातार गिरावट आई है. पेट्रोल और डीजल के दामों में भी कमी आई है, जिसका सीधा फ़ायदा मध्यम वर्ग को हुआ है. इस वजह से मध्यम वर्ग आप की बजाय भाजपा को वोट कर सकता है. लेकिन, झुग्गी झोंपड़ी और निचले वर्ग के लोगों का समर्थन अभी भी आप को हासिल है. आप की 49 दिनों की सरकार में इस वर्ग को पुलिस की तानाशाही और अवैध वसूली से राहत मिली थी. सरकार जाते ही वसूली का सिलसिला फिर से शुरू हो गया. यह वर्ग केजरीवाल को फिर से मुख्यमंत्री बनते देखना चाहता है.
कुल मिलाकर आम आदमी पार्टी की अनुभवहीनता उस पर भारी पड़ रही है. वह अपने समर्थकों को एकजुट भी नहीं रख पा रही है. सामने मोदी लहर है, जिससे पार पाना अभी आप के लिए मुश्किल लग रहा है. लेकिन यदि भाजपा मुख्यमंत्री के रूप में कोई बेहतर उम्मीदवार पेश नहीं करती है, तो आप का पलड़ा एक बार फिर भारी हो सकता है. वैसे, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के पद से हाल में हटाए जाने के बाद डॉ. हर्षवर्धन को भाजपा एक बार फिर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना सकती है. यदि ऐसा होता है, तो आप के लिए विधानसभा की राह आसान नहीं रह जाएगी.