11वर्ष 1947 भारतीय इतिहास के पन्नों में अगर स्वर्णाक्षरों से अंकित है, तो इसी इतिहास का एक स्याह पन्ना भी इस पर दर्ज है. भारत की आज़ादी के साथ-साथ यह वर्ष बंटवारे का दर्द भी लेकर आया था. भारत और पाकिस्तान दो पड़ोसी देश अस्तित्व में आए थे. लेकिन, अपने जन्म के साथ ही इन दोनों पड़ोसी देशों का आपसी रिश्ता कभी भी सामान्य नहीं रहा. आलम यह है कि अभी तक दोनों देशों के बीच तीन लड़ाइयां हो चुकी हैं और छद्म जंग तो अक्सर चलती रहती है. कश्मीर मुद्दे से लेकर शुरू हुआ यह विवाद आज आतंकवाद तक पहुंच चुका है. दोनों के रिश्ते इस कदर खराब हैं कि 66 वर्षों से बातचीत होने के बाद भी अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है. पिछले कुछ वर्षों में संबंधों को पटरी पर लाने की भरपूर कोशिश की गई, लेकिन हर बार कोई ऐसी घटना घट जाती, जिससे वार्ता स्थगित करनी पड़ती. कई बार आतंकी घटनाओं की वजह से वार्ता स्थगित करनी पड़ी. बाद में इस बात की आलोचना भी होने लगी कि यदि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा, तो फिर उसके साथ वार्ता क्यों की जाए?
साल 2003 में इसी संदर्भ में देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि हम अपने दोस्त तो बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं. यह सच भी है. हालांकि, अब मसला इससे भी आगे निकल चुका है. उसके बाद से पाकिस्तान कई प्रधानमंत्रियों को देख चुका है. पाकिस्तान में पहली बार किसी चुनी हुई सरकार ने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया. फिलहाल नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं. उन्होंने भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में कई बयान भी दिए. भारत की बात करें, तो पिछले 10 वर्षों से यहां कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार है. अगली सरकार के चुनाव के लिए मतदान का दौर शुरू हो चुका है और 16 मई को यह साफ़ हो जाएगा कि देश की सत्ता किसके पास जाने वाली है. अगर हालिया रुझानों और मीडिया रिपोर्टों को देखें, तो देश में भाजपा के नरेंद्र मोदी की लहर बताई जा रही है.
इसी संदर्भ में पाकिस्तान का हालिया बयान आया कि भारत में आम चुनाव के बाद बनने वाली नई सरकार के साथ मिलकर काम करने के लिए वह तैयार है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता तसनीम असलम की तरफ़ से कहा गया कि भारत की जनता नए नेता का चुनाव करेगी. नई दिल्ली में किसी की भी सरकार बने, पाकिस्तान को उससे किसी तरह की समस्या नहीं है. पाकिस्तान की तरफ़ से यह बयान काफी महत्व रखता है, क्योंकि पिछले दिनों वहां के मीडिया और राजनीतिक विश्‍लेषकों में इस बात की चर्चा थी कि अगर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं, तो पाकिस्तान के साथ संबंधों में खटास का दौर शुरू हो सकता है. हालांकि, भारत की तरफ़ से ऐसा कुछ नहीं कहा गया. पाकिस्तानी मीडिया में यह बात संभवत: नरेंद्र मोदी की छवि को देखते हुए कही गई. चुनावी सभाओं के दौरान नरेंद्र मोदी ने भी कई बार पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कड़े स्वरों का इस्तेमाल किया. लेकिन, यह ग़ौर करने वाली बात है कि दोनों देशों के चुनावों में मतदाताओं को रिझाने के लिए एक-दूसरे के ख़िलाफ़ इस तरह के सख्त क़दम उठाने की बात कही जाती रही है. इससे यह मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि मोदी अगर प्रधानमंत्री बनते हैं, तो पाकिस्तान के प्रति उनका रवैया एक दुश्मन मुल्क के रूप में रहेगा.
भारत-पाकिस्तान के आपसी संबंधों को विस्तार से देखने की कोशिश करें, तो जनवरी 2013 में अमेरिकी थिंक टैंक ने दोनों देशों के 30 विशेषज्ञों की बैठक दुबई में बुलाई थी. इस बैठक का मकसद था, आपस में विचारों को साझा करना, आपसी मुद्दों एवं चुनौतियों को जानना, किन मुद्दों पर सहमति हो सकती है उनकी पहचान करना और यह भी कि नीति, रणनीति एवं शोध आदि के लिए क्या-क्या क़दम उठाए जा सकते हैं. यह बैठक दोनों देशों के साथ संबंधों को लेकर फिर वार्ता शुरू करने की दिशा में काफी अहम मानी जा रही थी. इसी बैठक के पांच महीने बाद मई में जब नवाज शरीफ प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने भी बयान दिया था कि वह भारत के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि वह भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करना चाहते हैं और भारत के साथ-साथ पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सुधार लाना चाहते हैं. नवाज शरीफ ने कहा कि भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए वह रिश्तों की उस डोर को पकड़ेंगे, जिसे 1999 में हमने छोड़ दिया था.
ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान में किसी भी नागरिक सरकार ने भारत के प्रति स्वतंत्र नीति बनाने की ठोस पहल नहीं की. उसमें सेना का हस्तक्षेप हमेशा से रहा है. आख़िरी बार 1999 में नवाज शरीफ ने दिल्ली से लाहौर के लिए बस चलाने की अनुमति के जरिये एक शुरुआत करने की कोशिश की थी. ऐसा लगा था कि दोनों देशों के संबंधों में एक नए युग की शुरुआत हो रही है, लेकिन चंद महीने के भीतर ही जनरल परवेज मुशर्रफ की अगुवाई में पाक सेना ने उसका गला घोंट दिया. करगिल की घटना हुई. अब एक बार फिर शरीफ ने भारत के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने की पहल की है. हालांकि, पाक की तरफ़ से इस तरह के बयान कई बार दिए जा चुके हैं. भारत का कहना था कि पाकिस्तान को वार्ता करने से पहले आतंकवाद जैसे मुद्दों पर ठोस कार्रवाई करके एक भरोसा पैदा करने की आवश्यकता है. बहरहाल, अगर पाकिस्तान की तरफ़ से यह बयान आता है कि आम चुनाव के बाद भारत में किसी भी पार्टी की सरकार बने, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनें या कोई और, वह साथ काम करने को तैयार है, तो इसे सकारात्मक क़दम ही माना जाना चाहिए.

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