वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2014-15 का आम बजट पेश कर दिया. बतौर वित्त मंत्री यह उनका और उनकी सरकार का पहला बजट है. लोगों ने भाजपा या नरेंद्र मोदी को इस उम्मीद के साथ लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दिलाई थी कि सरकार उनकी मूलभूत समस्याएं हल करने की पहल करेगी. आम लोगों को सरकार से अच्छी एवं सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की अपेक्षा थी. अब सवाल यह उठता है कि अरुण जेटली ने अपने बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए जो घोषणाएं की हैं, क्या वे लोगों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त हैं? क्या अब देश के ग़रीब से ग़रीब शख्स को सस्ता और सही इलाज मिल सकेगा? क्या देश के निजी सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों में ग़रीबों का इलाज हो सकेगा? 2013-14 के आर्थिक सर्वेक्षण में देश में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी की बात कही गई है, क्या उस कमी को दूर करने के लिए सरकार कोई ठोस क़दम उठाएगी?
भाजपा ने चुनाव के दौरान किए गए सबके लिए स्वास्थ्य के अपने वादे को पूरा करते हुए इस बजट में सबके लिए स्वास्थ्य अभियान की शुरुआत की घोषणा की है, जिसके तहत मरीजों को प्राथमिकता के आधार पर नि:शुल्क दवाएं देने और नि:शुल्क जांच की बात कही गई है. ज़ाहिर है कि यह एक बहुत अच्छी घोषणा है, इसका सीधा लाभ देश के ग़रीब एवं वंचित वर्ग के लोगों को मिलेगा. हालांकि, इस योजना के लिए अलग से कोई राशि आवंटित नहीं की गई है. जो आवंटन स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए किया गया है, वह इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने के लिए नाकाफी है. यूपीए सरकार ने वर्ष 2012 में सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ्त औषधि वितरण की घोषणा की थी, लेकिन उसके लिए अलग से धन आवंटित न किए जाने से योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. जेटली ने बजट भाषण में यह बात भी स्पष्ट नहीं की कि महंगी लाइफ सेविंग ड्रग्स (ज़िंदगी बचाने वाली दवाएं) मुफ्त बांटी जाने वाली दवाओं की सूची में शामिल हैं अथवा नहीं.
वित्त मंत्री ने अपने बजट में टीबी के मरीजों की शीघ्र गुणवत्ता पूर्ण डाइग्नोसिस एवं इलाज के लिए एम्स, नई दिल्ली और मद्रास मेडिकल कॉलेज, चेन्नई में दो नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एजिंग स्थपित करने की घोषणा की है. साथ ही हायर डेंटल स्टडीज के लिए राष्ट्रीय स्तर का एक अनुसंधान एवं रेफरल संस्थान बनाने की भी घोषणा की गई है. डब्ल्यूएचओ की वर्ष 2011 की रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व में टीबी के मरीज़ों की संख्या 87 लाख है, जिनमें से 20-25 लाख मरीज़ भारत में हैं. टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में टीबी की वजह से हर मिनट एक मौत हो जाती है. ऐसा नहीं है कि टीबी कोई लाइलाज मर्ज़ है, लेकिन समय पर जांच के अभाव और दवा का कोर्स पूरा न हो पाने के चलते अधिकांश मौतें होती हैं. इस लिहाज़ से बजट में टीबी के इलाज और जांच को प्राथमिकता देना एक अच्छा क़दम है.
वर्ष 2013-14 के आर्थिक सर्वेक्षण में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी दूर करने के लिए उपायों पर अमल करने की बात कही गई थी. साथ ही देश के सुदूर क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं और गुणवत्तापूर्ण इलाज का अभाव दूर करने के लिए प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) के तहत स्थापित जोधपुर, भोपाल, पटना, ऋषिकेश, भुवनेश्वर एवं रायपुर स्थित छह नए एम्स ने काम करना शुरू कर दिया है. इसी योजना के क्रम में आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र के विदर्भ एवं उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में एम्स जैसे चार और संस्थान स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया है, जिसके लिए 500 करोड़ रुपये की धनराशि अलग से आवंटित करने की बात कही गई है (यह अलग बात है कि उक्त रकम ऐसे संस्थान स्थापित करने के लिए बहुत कम है). हाल में 58 सरकारी मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी दी गई है. इस बजट में 12 और सरकारी मेडिकल कॉलेज बनाने का भी प्रस्ताव रखा गया है. ज़ाहिर है, इससे न स़िर्फ देश में चिकित्सकों की कमी दूर की जा सकेगी, बल्कि दिल्ली के एम्स जैसे अस्पतालों का बोझ भी कम किया जा सकेगा. लेकिन, साथ ही इस बात का भी ख्याल रखना ज़रूरी है कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों से पास होने वाले चिकित्सकों द्वारा एक खास अवधि तक देश के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अपनी सेवाएं देने को अनिवार्य बनाया जाए.
नई जांच प्रयोगशालाओं की स्थापना और पहले से मौजूद 31 राज्य प्रयोगशालाओं को मज़बूत बनाकर स्टेट ड्रग्स एंड फूड रेगुलेटरी सिस्टम मज़बूत करने के लिए इस बजट में पहली बार केंद्रीय सहायता देने का प्रावधान रखा गया है. इससे दवाओं की खपत में बढ़ोतरी होगी, साथ ही देश में दवा कंपनियों की पहुंच भी बढ़ेगी. और, इस प्रावधान से जो दवा कंपनियां जेनेरिक दवाएं (जो पेटेंट के दायरे से बाहर हैं) मनमाने ढंग से बेचती हैं, उन पर भी किसी हद तक शिकंजा कसा जा सकेगा. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी दूर करने के लिए मौजूदा बजट में विशेष जोर दिया गया है. यहां मर्ज़ का पता चलते-चलते अधिकांश मामलों में बहुत देर हो चुकी होती है और मरीज़ की मौत हो जाती है. इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने एवं बेहतर हेेल्थ केयर सुविधाओं के लिए सरकार प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर विशेष जोर देगी, जिसके तहत पंद्रह आदर्श ग्रामीण स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान स्थापित किए जाएंगे, जो ग्रामीण आबादी से संबंधित स्थानीय स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर अनुसंधान करेंगे. यह घोषणा इस लिहाज़ से महत्वपूर्ण है, क्योंकि देश के कई ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रामक बीमारियां फैल जाती हैं, जिससे कई लोगों की जान चली जाती है. मसलन, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में फैलने वाली इंसेफलाइटिस जैसी बीमारियों पर इस अनुसंधान के जरिये काबू पाया जा सकता है.
आयुर्वेद, योग, यूनानी एवं होम्योपैथी के मद में भी पिछले साल की तुलना में 36 फ़ीसद अधिक बजट आवंटित किया गया है, जो इन पद्धतियों के विकास के लिए एक अच्छा क़दम है. प्राइवेट हेल्थ केयर इंडस्ट्री के लिए भी सरकार ने बायोटेक्नोलॉजी अनुसंधान में निवेश के कुछ प्रावधान करने की घोषणा की है, जिसके तहत फरीदाबाद एवं बंगलुरू में बायोटेक क्लस्टर विकसित करने की योजना है. इसके अलावा, बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 26 फ़ीसद से बढ़ाकर 49 फ़ीसद करना भी एक अच्छी ख़बर है. इस बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र में आम लोगों (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों) के लिए कुछ अच्छी घोषणाएं की गई हैं. यदि इन घोषणाओं पर अमल होता है, तो इसका लाभ निश्चित रूप से देश की आम जनता को होगा. लेकिन, बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटित की गई धनराशि कोई बहुत ही खुशनुमा तस्वीर पेश नहीं कर रही है, क्योंकि इस वर्ष स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के मद में कुल 37,330 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो वर्ष 2013-14 में यूपीए सरकार द्वारा इस मद में आवंटित की गई धनराशि की तुलना में केवल 4.8 फ़ीसद अधिक है. यह बजट नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (एनआरएचएम) जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं पर खामोश है. इसमें यह भी नहीं बताया गया है कि जीडीपी का कितना फ़ीसद इस क्षेत्र को दिया जाएगा (वर्ष 2013-14 में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए जीडीपी का केवल 1.4 फ़ीसद खर्च किया गया था). इसमें यह भी साफ़ नहीं किया गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं को सबके लिए कैसे सुलभ बनाया जाएगा. अब देखना यह है कि सरकार ने देश की जनता से जो वादा किया है, उसे वह निभाएगी या पिछली सरकार की बहुत सारी घोषणाओं की तरह मोदी सरकार की घोषणाएं भी कागज़ी साबित होंगी.
आम बजट और स्वास्थ्य जो वादा किया, वह निभाना पड़ेगा
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