चार साल पूर्व दरभंगा एवं मुजफ्फरपुर में हथियारों के साथ आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली सरकार द्वारा घोषित आत्म-समर्पण लाभ पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं. ग़ौरतलब है कि भारत-नेपाल सीमा पर स्थित ज़िलों सीतामढ़ी एवं शिवहर के कई हिस्से नक्सलियों के गढ़ बन चुके हैं. यह अलग बात है कि पिछले कुछ सालों से इन ज़िलों में नक्सली गतिविधियां थमी हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनके संगठन नेस्तनाबूद हो गए हैं. सुरक्षाबल की सक्रियता नक्सलियों को कुछ करने का मौक़ा नहीं दे रही है, लेकिन घात लगते ही संगठन से जुड़े लोग वारदातें अंजाम देने से परहेज नहीं कर रहे हैं. जानकारी के अनुसार, युवाओं के समूह में दो तरह के युवा शामिल हैं. पहले वे, जो अपने परिवार के जीवनयापन के लिए राज्य से बाहर नौकरी करते हैं और दूसरे वे, जो अपने गांव-ज़िले में जी-तोड़ मेहनत करके जीवनयापन करना चाहते हैं. जब उन्हें आधुनिक रहन-सहन के लायक कमाई नहीं हो पाती, तो वे समाज विरोधी कार्यों में संलिप्त हो जाते हैं. इनमें अधिकांशत: अल्पशिक्षित हैं. बेहतर शिक्षा न मिलने के कारण ऐसे युवा समाज की मुख्य धारा से विमुख होकर कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं, जिसका लाभ समाज विरोधी ताकतों को सीधे तौर पर मिल जाता है.
समाज विरोधी कार्यों में संलिप्त नक्सली संगठनों के कार्यकर्ताओं के प्रति सरकारी और प्रशासनिक नज़रिया ग़ौर करने लायक है. बिहार में जब एनडीए-1 की सरकार बनी, तब नक्सल समस्या के निदान की दिशा में पहल की गई. नक्सलियों से समाज की मुख्य धारा में वापस आने की अपील करते हुए सरकार ने आत्म-समर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए ज़मीन एवं आवास समेत अन्य सुविधाएं देने की घोषणा की. ज़िला मुख्यालयों में योजना के बावत बड़े-बड़े पोस्टर लगाए गए. सरकार की घोषणा पर भरोसा करते हुए उत्तर बिहार के कई ज़िलों के नक्सलियों ने हथियार समेत पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर स्वयं को समाज विरोधी कार्यों से अलग रखने का संकल्प लिया. इसी कड़ी में 23 मई, 2010 को दरभंगा के तत्कालीन एसपी एम आर नायक के समक्ष सीतामढ़ी के नानपुर थाना क्षेत्र के तक़रीबन एक दर्जन नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था. इनमें गणेशी दास, रामबाबू दास, शिवजी दास, शिव नारायण दास, कल्लर दास, इंदल दास, देव नारायण दास, शंकर दास, मो. मुन्ना, मो. रेजाइल एवं राम मूर्ति मंडल आदि शामिल थे. 2012 में मुजफ्फरपुर ज़िला स्कूल मैदान में तत्कालीन एडीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय, तिरहुत रेंज के डीआईजी सुशील मान सिंह खोपड़े एवं एसएसपी राजेश कुमार की मौजूदगी में सीतामढ़ी के नानपुर के दिनेश सहनी एवं नसीरुल नदाफ ने 25 नक्सलियों के साथ आत्मसमर्पण किया था. इस कार्यक्रम में हथियार डालने वालों में मुजफ्फरपुर के कटरा थाना क्षेत्र के राम अनेक सहनी, प्रमोद सहनी, बलिराम सहनी, कैलाश राय, शंभू चौधरी, नागेश्वर साह, वीरेंद्र राय, कमलेश साह, नंदलाल महतो, नरेश साह, जगदेव सहनी, हर्षवर्द्धन पाठक एवं राम शिवेश सहनी, औराई थाना क्षेत्र के अरुण पासवान, सतन पासवान, मुकेश पासवान, शंकर पासवान, रंजीत साह, सुलोचन चौधरी, राम बिलास दास एवं सीताराम बैठा, दरभंगा के सिंहवाड़ा थाना क्षेत्र के सुशील ठाकुर एवं भुटन पासवान, सदर थाना क्षेत्र के होमू साह और पूर्वी चंपारण के शंभू पासवान शामिल थे. नक्सलियों ने 315 बोर की सात रायफलें, नाइन एमएम की एक पिस्टल, एक सिक्सर, 9 देसी कट्टे, दो पाइप कट्टे, 3 सेमी देसी रायफलें एवं 70 कारतूस भी पुलिस को सौंपे थे. उक्त नक्सलियों का आत्मसमर्पण कराने में एमसीसी के पूर्व एरिया कमांडर अवधेश पासवान, राजकुमार पितरिया एवं ललन पासवान ने अहम भूमिका निभाई थी. तब नक्सलियों ने कहा था कि अगर सरकार पुनर्वास पैकेज के तहत उन्हें बेहतर सुविधाएं मुहैया कराती है, तो उत्तर बिहार में नक्सलवाद का पतन तय है. कार्यक्रम में मौजूद पुलिस अधिकारियों ने भी हरसंभव सुविधाएं मुहैया कराने का भरोसा दिलाया था. जब सरकारी लाभ मिलने में विलंब हुआ, तब सीतामढ़ी के नानपुर निवासी समर्पणकारी नक्सली ज़िला प्रशासन के पास अपनी फरियाद लेकर पहुंचने लगे. गणेशी दास, रामबाबू दास, शिवजी दास, शिव नारायण दास, कल्लर दास, इंदल दास, देव नारायण दास, शंकर दास, मो. मुन्ना, मो. रेजाइल एवं राममूर्ति मंडल ने थक-हारकर पिछले साल एक संयुक्त आवेदन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, मुख्यमंत्री, समाहर्त्ता सीतामढ़ी, अपर पुलिस महानिदेशक मुजफ्फरपुर प्रक्षेत्र, पुलिस अधीक्षक सीतामढ़ी, अनुमंडलाधिकारी पुपरी एवं थाना प्रभारी नानपुर को देकर सरकारी लाभ दिलाने की गुहार लगाई. कई बार प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यालयों की गणेश परिक्रमा करने के बाद गणेशी दास, शिवजी दास, इंदल, देव नारायण दास एवं सेवक दास को मात्र इंदिरा आवास का लाभ नसीब हो सका. शेष को अब भी सरकारी लाभ पाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. जबकि अन्य ज़िलों में आत्म-समर्पण कर चुके नक्सलियों को बहुत हद तक सुविधाएं मुहैया करा दी गई हैं. सरकार को चाहिए कि वह समय रहते घोषणा के अनुरूप आत्म-समर्पण कर चुके शेष नक्सलियों को भी हरसंभव लाभ दिलाए, जिससे समाज में अमन-चैन कायम
रहे.
आख़िर कब मिलेगा नक्सलियों को आत्म-समर्पण का लाभ?
Adv from Sponsors