उधर आईने बेचेगी इधर पत्थर थमायेगी।
सियासत हश्र तक अपनी दुकाँ यूँ ही चलायेगी…
आजकल आदर्श आचार संहिता में कितना बचा है “आदर्श”??
अकर्मण्य नेताओं ने अपनी नाकामियाँ छुपाने के लिए चुनाव का मतलब ही बदल दिया है।
आजकल चुनाव लोकतंत्र की गरिमा विश्वसनीयता और मज़बूती पर आधारित नहीं होता। बल्कि नफ़रत मतभेद वैमनस्यता भ्रष्ट आचरण शत्रुता भद्दे भाषणों भय दबाव आदि पर आधारित होता है।
आजकल चुनाव का मायने बदल गए हैं।
अब चुनाव के पहले से वोटिंग के दिन तक लगभग पचास दिन आदर्श आचार संहिता लगाने का मतलब होता है कि चुनाव के दौरान मुहब्बत की बातों की कोई गुंजाइश नहीं है!शायद इसीलिए अवामी तौर पर कविसम्मेलन और मुशायरों की परमीशन नहीं दी जाती जबकि अवामी तौर पर नेताओं द्वारा भीड़ जमा करके भड़काऊ भाषणों में कोई रोक नहीं।
अब वोटिंग होने तक (विकास नहीं) सिर्फ़ नफ़रत की बातें होंगी।अब चुनाव में बिजली सड़क पानी और बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने की बातें नहीं होती। बढ़ती बेरोज़गारी हत्याएँ बलात्कार लूट भ्रष्टाचार महंगाई राष्ट्र सुरक्षा की बातें नहीं होती।
बल्कि झूठे वादे आरोप प्रत्यारोप मंदिर मस्जिद और ख़ास तौर पर हिंदू मुसलमान हमारे ख़ास मुद्दे होते हैं जो देखा जाय तो पूर्णतः ग़ैर ज़रूरी हैं।
आश्चर्य की बात ये है कि हमारे मुल्क में जिन मुद्दों पर चुनाव होते हैं वो मुद्दे दुनिया के किसी मुल्क में कहीं और नहीं उठाये जाते!न ही कहीं उठाये जाने की ज़रूरत है।
और इस बात के लिए सिर्फ़ नेता नहीं मीडिया प्रशासन चुनाव आयोग और ख़ास तौर पर जनता भी दोषी है।
क्योंकि वो नेताओं की छल कपट नीति पर झूठे वादों पैड भड़काऊ भाषणों पर बहुत जल्द यक़ीन कर लेती है और उनका अनुसरण करने लगती है। और ये सरकारी तंत्र और जनता स्वयं विवेक से काम लेना शुरू कर दे तो नेताओं को भी सुधारा जा सकता है और ग़लत मानसिकता के लोगों को हटाकर साफ़ सुथरे ज़ेहन के लोग सरकार में चुने जा सकते हैं। आज राजनीतिक दल जीतने के लिये ग़लत हथकंडे अपनाते हैं जिसका दूरगामी परिणाम हमारी आनेवाली नस्लों पर पड़ना लाज़मी है।
आजकल नेताओं ने काम की बातें छोड़कर शॉर्टकट का रास्ता अपनाने के चक्कर में जातिवाद शत्रुता आपसी
मतभेद का रास्ता अख़्तियार कर लिया है जिससे उनके कार्यकाल में हुए घोटालों भ्रष्टाचार और नाकामियों पर पर्दा डल जाये और जातिवाद मंदिर मस्जिद हिंदू मुसलमान जैसे ग़ैर ज़रूरी मुद्दे मुखर हो जायें मंज़र ए आम पर छा जायें और ये अपना उल्लू सीधा करने में कामयाब हो जायें।
अब समय आ गया है कि जनता को समझना होगा कि इससे हमारा और आने वाली नस्लों का भला नहीं होनेवाला। हमारे मिलजुल कर ही रहने से ही मुल्क का भला होगा विकास होगा अब हमें वो सोचना होगा देखना होगा और निर्णय करना होगा जिसमें हमारी नस्लों का और देश का भला हो न कि भ्रष्ट नेताओं का।
विजय तिवारी “विजय
शायर लेखक