साथियों यह है हमारे बेटे डॉ कृष्णा खैरनार की फोटो है ! जिसे आज इस दुनिया में आनेके बयालीस साल होने जा रहे हैं !
फोटो में का जवान, लेकिन इस दुनिया में आनेके लिए ! मुख्य रूप से इंदूजी और कुछ हद तक हमे, काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था ! क्योंकि हमारी शादी ! मेडम इंदूजी के उम्र के तीस साल के पडाव में होने के कारण ! “मेडिकल पाँईट आँफ व्यू से”, माँकी बच्चे पैदा करने के लिए उचित नहीं होती है !
लेकिन इंदूजी को हर हाल में बच्चे चाहिए थे ! तो हमारे शादी के पंद्रह महीनों बाद 24 फरवरी 1980 के दिन कृष्णा का जन्म हुआ ! लेकिन माँ के लिए नौ महीने बच्चे को गोद में पालने से लेकर उसे इस दुनिया में आनेके सफर ! हाँ अंग्रेजी का( SUFFER)यानि सहना ! या जो कष्ट एक माँ को झेलना पड़ता है ! वह इंदूजी के आज से बयालीस साल पहले के ! आज भी याद आने से मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं !
सबसे प्रथम वह गर्भवती होने के चंद दिनों में पता चला कि प्लासेंटा प्रिविया की केस है ! इसलिए बहुत सावधानी बरतने की आवश्यकता है ! इसलिए हमने अपने सार्वजनिक क्षेत्र से संबंधित, सभी कामो से अपने आपको अलग कर लेना ही उचित समझा ! और हाऊस हज्बंड की भूमिका में आये ! चार – पांच महीने में एक बार कुछ तकलीफ हुई ! तो जवाहर नगर के, लोकल डॉक्टर की मदद ली ! (उस समय इंदूजी जवाहर नगर आर्डिनेन्स फॅक्टरी भंडारा स्थित केंद्रीय विद्यालय में कश्मीर से स्थानांतरित होकर आई थी !) तो हड़बड़ाहट में डाक्टर ने डिलीवरी का इंजेक्शन दे दिया !
तो भंडारा शहर में मेडम की बडी बहन और उनके पति का, नर्सिंग होम था ! तो तुरंत वह अपने अँबुलंन्स लेकर इंदूजी को लेकर, अपनी देखरेख में, और इलाज करने के कारण बहुत ही मुश्किल से, गर्भपात होने से बचाने में कामयाब हुए !
लेकिन उसके बाद इंदूजी को टोटल बेडरेस्ट मे अपने दोनों पाव उंचे रखने के लिए ! लोड या तकिये पर रखकर ही रहना पडा ! फिर डिलीवरी के एक महिना पहले ही ! नागपुर की मशहूर गायनिक सर्जन डॉ नलिनी तोरणे की सलाह से एक महिना पहले ही उनके नर्सिंग होम के आसपास रहने के लिए कहा गया ! तो अस्सी के दशक में, वर्धा के मित्र डॉ. तारक काटे अपनी बाँटनी की पी एच डी के लिए भरत नगर नागपुर में एक घर किराये पर लेकर रह रहे थे ! तो उन्होंने कहा कि आप लोग हमारे यहां रहिए !
कुछ समय उनके पास रहने के बाद, और इमर्जेंसी हुईं ! तो डॉक्टर ने कहा कि आप मेरे नर्सिंग होम के आसपास ही रहना चाहिए ! क्योंकि कभी भी कोई इमर्जेंसी होने से, आपको तुरंत मेडिकल हेल्प के लिए यह जरूरी है ! तो हमारे रिझर्व्ह बॅंक में नौकरी करने वाले, मराठी के मुर्धन्य कवि मित्र श्री. अनंतराव अमदाबादकर के एक सहयोगी, श्री डोरलेजी की पत्नी अपने डिलीवरी के लिए ! अपने मैके गई थी ! और उनके घर से तोरणे नर्सिंग होम कुछ मीटर की दूरी पर होने के कारण ! हम वहां शिफ्ट हो गये ! और दो – एक मकान छोड़कर डॉ सतिश गोगुलवार ! उस समय इंदिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज में, पढ़ने के लिए अपने भाई के घर रह रहे थे ! तो उन्होंने कहा कि मै अपने भाई – भाभी के तरफसे, आप दोनों को खाना खाने का इंतजाम कर दिया हूँ !
अस्सी वाले दशक में नागपुर छात्र युवा संघर्ष वाहीनी, काफी सक्रिय होने के कारण ! हमारे सभी साथियों को, हमारे लिए मदद करने के लिए काफी सक्रिय रूप से देखकर ! हमारे साडूभाई तथा मेडम खैरनार की बड़ी बहन को बहुत अचरज लगता था ! कि बगैर किसी रिश्तेदारी से भला कैसे कोई ऐसी मदद करते हैं ?


शायद डिलीवरी के, दो – तीन दिन पहले ही ! इंदूजी को तोरणे नर्सिंग होम में भर्ती होने की जरूरत हुई ! तो प्रोफेसर सु श्री पांढरीपांडे और उनकी पत्नी प्रोफेसर दमयंती पांढरीपांडे ने कहा कि अब हमारे घर से आप दोनों को टिफिन भेजने का प्रावधान किया है ! और प्रोफेसर दमयंती पांढरीपांडे की बुजुर्ग माँ श्रीमती गोखले ! बाळंतविडा(डिलीवरी हुईं महिला के लिए विशेष रूप से बनाया गया पान !) के साथ ! हमारे लिए सुबह – श्याम का भोजन लेकर आना ! और दिन में काफी समय पेशंट के सिरहाने बैठकर ! उसकी शारीरिक और मानसिक रूप से सेवा करते हुए देखकर ! हम दोनों को अपने रिश्तेदारों को ! आंतरजातीय शादी के कारण, नाराज होकर हमारे साथ संबंध तोड़ने का दुख ! भुलाने के लिए काम आया ! और हमारे मदद करने के लिए लगभग सभी जातियों के लोगों को एकसेएक बढकर एक मदद करते हुए देखकर हमारे जातीधर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण करने का संकल्प और दृढ हुआ है !
और महाराष्ट्र में दो सौ से भी अधिक सालों से ! ब्राम्हण विरोधी(पुणे के पेशवाई के अत्याचारों के कारण और महात्मा फुले के उसके खिलाफ विद्रोह के कारण ! ) तैयार हुई मानसिकता में ! मुझे नहीं जाने की एक वजह ! राष्ट्र सेवा दल से लेकर छात्र युवा संघर्ष वाहीनी जैसे, संघटनाओ में जिस तरह से ! सही मायने में डी कास्ट, डी क्लास और डीमेन-वुमेन भी होने की प्रक्रिया, काफी हदतक जारी रहने के कारण ही ! यह नजारा देखने को मिला ! और संपूर्ण क्रांति के रास्ते पर आगे बढ़ने का एहसास होता है !
24 फरवरी 1980 के दिन सुबह से ही ! डॉक्टर तोरणे ने बहुत कोशिश की है ! कि नार्मल डिलीवरी हो ! लेकिन दोपहर बाद उन्होंने कहा, “कि बेबी काफी हेल्दी होने के कारण ! और माँ की हालत देखते हुए मै अब सिजेरियन आपरेटर के निर्णय पर आई हूँ” ! और इस तरह दोपहर बाद दो से तीन के बीच हमारे बेटे कृष्णा ने इस दुनिया में प्रवेश किया ! महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कितना कष्ट सहने के बाद संतान प्राप्ति होती है ? और इसीलिये मैं हमारे बगैर बच्चे पैदा किए सहजीवन के बहस में उलझे हुए थे !
लेकिन शादी के बाद वर्धा के गोपुरी में श्री ठाकुरदास बंग – सुमनताई तथा अशोक – अभय और ! उनके राणीयोके साथ, मै और इंदूजी ठहरें थे ! और डॉ राणी बंग और अभय, सेवाग्राम मेडिकल कॉलेज तथा वर्धा के जिला सामान्य रूग्णालय के साथ जुड़े हुए थे ! तो राणी बंग को पता चला कि इंदूजी अभय बंग की क्लास वन से बीएस्सी पार्ट वन की सहपाठीन है !
तो राणी बंग ने हमारे साथ बच्चों के जन्म को लेकर, चर्चा करते हुए ! “कहा कि अगर बच्चों को जन्म नहीं देना चाहते हो तो मैं कुछ नहीं कहुंगी, लेकिन दोनों में से किसी भी एक को चाहिए ! तो यह सही समय है ! क्योंकि औरत के उम्र के तीस सालों के बाद डिलीवरी बहुत ही तकलीफ और रिस्क फॅक्टर की होती हैं” ! शायद यह चर्चा हमारे शादी की तुरंत बाद ही कुछ दिनों के भीतर ही होने के कारण फिर हमने अपने निर्णय में परिवर्तन (मैंने) किया है ! आखिर सहजीवन के मायने और क्या होता है ?
लगभग नागपुर में सभी मित्रों के सहयोग से ! दो महीने से भी अधिक समय रहे ! कृष्णा के जन्म के पहले, और बाद में भी ! वापस जवाहर नगर के सरकारी निवास स्थान पर लौटने के बाद, दरवाजे को खोल कर देखा ! तो दो महीने से ज्यादा समय तक, घर बंद रहने के कारण बहुत ही धुल और गंदगी से भरा हुआ था !
तो नव जन्म के बालक, और उसकी सिजेरियन आपरेटर होकर आई हुई माँ को ! सामने वाले लोगों को विनती करते हुए ! इंदूजी को और कृष्णा को, उनके घर में रखकर ! मैंने संपूर्ण घर की सफाई और धुलाई करने के बाद ! (क्योंकि सिजेरियन आपरेशन के कारण माँ और बच्चे के लिए विशेष रूप से सावधानी रखने के लिए !) सब कपड़े और बेड – बिस्तर ठीक – ठाक करके ही उन्हें अपने घर में लाया ! उस समय सिर्फ तीन महीने की मॅटर्निटी छुट्टी होने के कारण ! पहले ही दो – ढाई महीनों की छुट्टियों के खत्म होने के कारण ! इंदूजी का स्कूल रूटीन शुरू हो गया ! और मेरे हाऊस हज्बंड का रूटीन आज से बयालीस साल पहले !
आज कृष्णा ने अपने जीवन के बयालिस साल पूरे करने के अवसर पर ! यह बात अचानक ही मेरे मन में आई ! और आप सभी के साथ शेयर करने का मन बना ! मैंने संपूर्ण क्रांति के सफर में अपनी हिस्सेदारी घर से शुरू करने का प्रयास किया है ! आप सभी और मुख्यतः इंदूजी और कृष्णा सही लोग हैं ! जो मेरे अपने इस प्रयास में कहा कमी रही है ? यह कहना उनका अधिकार है !


कृष्णा ने अपने माँकी वजह से मायक्रोबायालाजी में एम एस्सी नागपुर विश्वविद्यालय से, प्रथम श्रेणी और प्रथम स्थान प्राप्त किया है ! और तुरंत भारत सरकार की यूजीसी फेलोशिप प्राप्त करने के बाद ! और जिपमर (जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज और संशोधन संस्थान, पुडुचेरी) से व्हायरालजी में पी एच डी किया है ! और जिस दिन पी एच डी अवार्ड दिया गया था, उसी दिन कॅनडा सरकार के आरोग्य विभाग की ओर से पोस्ट डॉक्टरल फेलोशिप की आॅफर आई ! लेकिन उसे भारत में ही इस विषय पर कुछ करना था ! क्योंकि उसका कहना था कि मुझे पी एच डी करने के समय इतने सारे महंगे यंत्र और सामग्री हमारे देश के नागरिकों के टैक्स के पैसे से ही संभव हो सका ! तो इसलिए मेरा कर्तव्य है कि मैं अपने देश के लिए विशेष रूप से, अपने ग्यान का फायदा देने के लिए, भारत के लिए कुछ योगदान देना चाहिए ! छ महीनों भारत की विभिन्न संस्थानों में कोशिश की ! पर सबसे रिग्रेट पत्र आए थे ! कि हमारे यहां आपके संशोधन के लिए संसाधन नही है !
और अंत में वह टोरंटो के कनाडा सरकार के आरोग्य विभाग की प्रयोगशाला में पांच साल रहा ! और भारत सरकारने उसे ब्रेन – गेन (यूपीए के समय में) पालीसी के तहत ! 2011 के दिसंबर के आखिरी दिन 31 दिसंबर नीरी (भारत सरकार की पर्यावरण और औद्योगिक संशोधन संस्थान में) आज व्हायरालजी के प्रमुख पद पर कार्यरत हैं !
और कोरोना के बीस लाख से अधिक टेस्ट करने के लिए ! उसने सलाईन गार्गील के द्वारा, बहुत ही सस्ते, और कम-से-कम कष्ट वाली ! टेस्टिंग किट विकसित की है ! जो वियतनाम, अफ्रीका के सभी सदस्य देशों में ! और भारत के कुछ हिस्सों में इस्तेमाल की जाने वाली किट है ! और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ! वह किट बगैर पेटेंट की रखी है ! ताकि वर्तमान कोरोना के संकट में लोगों को सस्ते दामों पर उपलब्ध हो !
और उसके अपने रूचि वाले विषय मायक्रोबायोलाजी में ! अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिकाओं में, प्रकाशित पेपरों की संख्या कम उम्र के वैज्ञानिकों में एकमात्र भारतीय हैं ! ऐसे टाइम्स ऑफ इंडिया ने प्रकाशित किया है ! मुझे अभि भी विश्वास करने में दिक्कत हो रही है ! क्योंकि 130 करोड से भी अधिक जन संख्या के देशमरके और भी कई वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे होंगे !
हमें अभिमान है ! कि इस बच्चे के जन्म के बाद ! महाराष्ट्र के समाजवादियों से लेकर गांधीवादी ! तथा 1982 के बाद कलकत्ता में प्रोफेसर अम्लान दत्त, गौरकिशोर घोष, प्रोफेसर शिवनारायण राय, समर बागची, श्यामली खस्तगिर, सावली मित्र, बादल सरकार, निरंजन हलदर, प्रोफेसर दिलीप चक्रवर्ती, मनिषा बेनर्जी, प्रोफेसर विणा आलासे, बाणी सिंह, अशोक सक्सेरिया, किशन पटनाईक, सुंदरलाल बहुगुणा तथा मेधा पाटकर से लेकर अमरनाथभाई, ठाकुरदास बंग, भाई वैद्य, एस एम जोशी, नानासाहेब गोरे, प्रो ग. प्र. प्रधान, यदुनाथ थत्ते तथा वसंतराव पळशिकर, एस पी सिंह, नारायण सुर्वे, अशोक शहाणे – रेखा शहाणे इत्यादि मित्रो के साथ ! बातचीत तथा सहवास के कारण ! उसके भी सामाजिक सरोकारों के विषय में हमारे आपके ही जैसा जुडाव है ! और हमें क्या चहीए ?


डॉ सुरेश खैरनार 24 फरवरी 2022, नागपुर

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