मशहूर कानूनविद अब्दुल गफूर अब्दुल मजिद उर्फ ए. जी. नूरानी आज मुंबई में अपने निवास पर 93 उम्र में इस दुनिया से विदा हो गए !

मुझे उनके साथ ( 2014 – 2015 ) के दौरान अयोध्या कंसोर्टियम में काम करने का मौका मिला था ! हमारे देश के पूर्व केबिनेट सचिव और मेरे अजिज दोस्त झफर सैफुल्ला साहब के तरफसे यह प्रक्रिया शुरू की गई थी ! जिसके सदस्यों में मेरे अलावा फ्रंटलाइन पत्रिका के संपादक श्री. एन. राम, ए. जी. नूरानी, डॉ. बी. डी. शर्मा, आचार्य जुगलकिशोर तथा हिंदुस्थान टाइम्स के संपादक थे ! इस फोरम की दो तीन बैठकों के बाद यह प्रक्रिया अचानक जफर सैफुल्ला साहब का देहांत होने के बाद ठप्प हो गई ! लेकिन इस बहाने मुझे ए. जी. नूरानी साहब को नजदीक से देखने और सुनने तथा उनके साथ वार्तालाप का मौका मिला था ! भारतीय उपमहाद्वीप के आजादी के संग्राम से लेकर सांप्रदायिकता, कश्मीर तथा सेक्युलरिज्म जैसे संवेदनशील विषयों के एन्सायक्लोपीडिया थे !


इसिलिये उन्होंने 2013 में The Kashmir Dispute – 1947-2012 के शिर्षक से बारहसौ पन्नों से अधिक दो खंडों में विभिन्न दस्तावेजों के आधार पर किताब लिखी है ! और सिर्फ आर्टिकल 370 पर भी अलग से बृहद 500 पनौ की किताब का लेखन किया है ! जिन्हें उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में 370 रद्द करने के निर्णय को चुनौती देने वाली अपनी याचिका में 2023 को अनेक्झर के साथ जमा कीया है !
उसी तरह से सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या के विवाद पर दिए गए, नवंबर 2019 के निर्णय के खिलाफ भी दस्तावेजों को इकट्ठा करने के काम में जुटे हुए थे ! 1930 में मुंबई में पैदा हुए नूरानी मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में पढाई पूरी करने के बाद मुंबई के हायकोर्ट में वकालत का पेशा करते हुए, उन्होंने शेख अब्दुल्ला के गिरफ्तारी के खिलाफ तथा आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन. टी. रामाराव और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता की केसेस मे भी वकील थे ! उसी तरह राजनीतिक विषयों पर भी बहुत ही बुध्दिमत्तापूर्व राय देने के लिए जाने जाते थे ! उदाहरण के लिए 25 जून 1975 के दिन श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपातकाल की घोषणा करने के बाद भारत के चंद लोगों में से एक ए. जी. नूरानी भी थे ! जिन्होंने श्रीमती इंदिरा गाँधी के आपातकाल की घोषणा के निर्णय का विरोध करने की हिम्मत दिखाई थी ! और एक महत्वपूर्ण बात वह खुद इस दौरान सेंसरशिप की वजह से ओपिनियन नामसे दो पनौ का एक बुलेटिन नियमित रूप से निकालते थे ! जिसमें समकालीन विषयों पर और जनतंत्र तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर रोशनी डाली है जिसे हमारे कुछ मित्रों ने बाईंडिंग करके अपने लिए रखे हुए हैं !
पेशे से वकील थे ! और मुख्य रूप से कश्मीर तथा 370 और आरएसएस तथा भाजपा, स्वाधीनता संग्राम, सांप्रदायिकता के विषयों पर उन्हें विशेष महारत हासिल थी ! फ्रंट लाईन, आउटलुक, डॉन, इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्थान टाईम्स, हिंदू जैसे अखबार तथा पत्रिकाओं में पूरे संदर्भों के साथ उनके कॉलम छपते थे !


The RSS A Menace to India शिर्षकसे आरएसएस तथा भाजपा के उपर 547 पनौ की किताब Left Word प्रकाशन से जिसमें आरएसएस की स्थापना से लेकर वर्तमान समय में भारत में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के कारनामों का विस्तृत रूप से वर्णन किया है !
तथा 1775-1947 के उपर लिखि हुई ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रकाशन से 316 पनौ की किताब में पहले व्हाईसरॉय वॉरेन हेस्टिंग्स के द्वारा की गई न्यायिक हत्या 1775 महाराजा नंद कुमार से लेकर आखिरी बादशाह बहादूरशाह जफर 1858 के उपर चले मुकदमे से लेकर ग्रेट वहाबी केस 1943 तथा लोकमान्य टिळक के उपर चले तथाकथित देशद्रोह के 1897, 1908 और 1916 के केसेस में लोकमान्य टिळक के तरफसे उनके होमरुल लिग के साथी और मशहूर कानूनविद बैरिस्टर मोहम्मद अली जीना ने जो बहस की थी उससे लेकर 1908 ऋषि अरविंद घोष का मानिकतला षडयंत्र के केस से लेकर शारदा पीठ के शंकराचार्य और अलिबंधू के साथ कराची षडयंत्र की संयुक्त केस 1921 से लेकर मौलाना आझाद के उपर चले राष्ट्रद्रोह का उसी साल का मुकदमे से लेकर महात्मा गाँधी के उपर 1922 में चले राष्ट्रद्रोह के मुकदमे से लेकर 1930 में कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के उपर चला मिरत कॉन्स्पिरसी के मुकदमे से लेकर 1945 में लाल किले में आजाद हिंद सेना के सैनिकों के साथ चला मुकदमा से अंत में शेख अब्दुल्ला के उपर चला 1946 का मुकदमे की बहुत ही समृद्ध जानकारी वाली किताब के लेखक रहे हैं !

मेरे जैसे जीवन का आधा समय सांप्रदायिकता के सवाल पर काम करने वाले एक्टिविस्ट के लिए ए जी का सानिध्य बहुत ही संभल का काम करता था ! मेरे पैतिस साल के इस विषय पर काम करने के समय मुझे अपने देश में जोभी चंद बुध्दिजीवियों ने बौद्धिक मार्गदर्शन किया है ! उसमें ए जी नूरानी का नंबर पहला स्थान का रहा है ! उन्होंने इन विषयों के उपर जो भी किताबों का लेखन किया है ! और समय-समय पर फ्रंटलाइन ईपीडब्ल्यू, आउटलुक जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों का संग्रह, मुझे हर समय किसी भी बहस या लेख लिखने के लिए मददगार साबित हो रहे हैं ! हमारे देश ने आज बेहतरीन मानवाधिकार के पैरोकार को खोया है ! मैं व्यक्तिगत रूप से अपनी तरफ से विनम्र श्रद्धांजली अर्पण करता हूँ !

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