जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना 68वां जन्मदिन अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के नरूंर गांव में स्कूली बच्चों के साथ मनाया. वहां वे उनके साथ 38 मिनट तक रहे. उन्होंने बच्चों के साथ सवाल-जवाब भी किया व पास होने का सर्टिफिकेट भी खुद ही दिया. जिससे बच्चे काफी खुश व उत्साहित नज़र आए. प्रधानमंत्री ने बच्चों को ये भी कहा कि वो मैदानों में जा कर खेला करें जो की सही बात है पर अब इस बात पर सबसे बड़ा प्रश्न यही उठता है कि आखिर बच्चें खेले तो खेले कहां. हमारे देश में तकरीबन 40% स्कूल ऐसा हैं जहां पर बच्चों के लिए खेल का मैदान ही नहीं है और ये स्तिथि आज चिंताजनक भी है क्योंकि बच्चों के लिए खेल-कूद भी उतना ही ज़रूरी है जितना कि पढ़ाई-लिखाई. खेल-कूद की गतिविधियां ना होने से भी उनका विकास प्रभावित होता है.

बता दें कि हमारे देश में सिर्फ पंजाब ही एकमात्र एसा राज्य है जहां पर सभी स्कूलों में खेल के मैदान हैं. यहां 98.57% स्कूलों में खेल के मैदान हैं. वहीं दूसरी ओर कर्नाटक में 50% स्कूलों में खेल के मैदान नहीं हैं.

सीबीएसई के दिशा-निर्देशों के मुताबिक सभी स्कूलों में 200 मीटर ट्रैक और खेलने की पर्याप्त सुविधाएं होनी अनिवार्य हैं. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के मुताबिक स्कूलों के पास अपना खुद का मैदान होना ज़रूरी है. हालांकि 2012 में इस नियम में संशोधन किया गया कि अगर स्कूल के पास नगरपालिका का कोई पार्क है, जहां स्कूल बच्चों के खेलने की व्यवस्था कर सकता है तो स्कूल के अंदर मैदान बनाने की जरूरत नहीं है, लेकिन आज जो आंकड़े बता रहे हैं उससे इस पर विचार करना बहुत ज़रूरी है.

 

 

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