आज कश्मीर से 370 और 35 अ हटानेका दुसरा साल पुरा होने के बावजूद एक भी कश्मीरी पंडितों का कश्मीर वापसी की वार्ता नहीं सूनी । ऊल्टा मीनाक्षी लेखी नाम की केन्द्रीय मंत्री मंडल मे अभिके विस्तार मे मंत्री बनी कह रही है कि कोरोनाके समय पलायन करने वाले मजदूर कैसे वापस अपने काम की जगहों पर लौट रहे वैसे पंडित क्यों नहीं कश्मीर वापसी कर रहे ?
मीनाक्षी जी मंत्री बनने के पहले बीजेपी की प्रवक्ताओं मे एक रही है और कश्मीरी पंडितों की तुलना प्रवासी मजदूरों के साथ कर रही है । क्या मीनाक्षी जी को तात्कालिक काम पर जाने वाले मजदूरों का अपने घर आना और वापस काम पर जाने वाली बात और तीस साल से भी ज्यादा समय हो रहा कश्मीरी पंडितों का कश्मीर से पलायन क्यों किया इस बात की कोई जानकारी नहीं है ?और उन्हें मजदूरों की वापसी और कश्मीरी पंडितों की वापसी एक जैसी लगती है ? फिर कश्मीर मे भारत के किसी भी प्रदेश की तुलना मे सबसे ज्यादा भारत की सेना क्यों तैनात है ? उल्टा 2019 के पांच अगस्त के पहले पचास हजार सैनिकों को अतिरिक्त भेजा गया है । और पहले से ही लाखों की संख्या में तैनात है वह अलग ! अगर कश्मीर से 370 और 35अ हटाने के बाद स्तिथीको सामान्य होने का दावा केंद्र सरकार बार-बार करने के बावजूद मीनाक्षी जी को पंडितों का कश्मीर वापसी का मामला कहा पर अटका है ? इसका पता सत्ता धारी दल की केन्द्रीय मंत्री मंडल की सदस्य होने के नाते पता करना आसान है ।
कश्मीर के 2,300 लोगों को यूपीए के अंतर्गत 2019 से जेलों में बंद है । इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है । और मीनाक्षी जी मजदूर जैसे काम पर लौट रहे वैसे पंडित क्यों नहीं कश्मीर वापसी कर रहे । जैसे बयानबाज़ी करके अपने असंवेदनशीलता का परिचय दिया है । हालांकि इसके पहले भी एन डी ए की सरकार सत्ता में छ साल रहने के बावजूद एक भी कश्मीरी पंडितों का कश्मीर वापसी की वार्ता नहीं है । उल्टा जो कश्मीरी पंडितों के नाम पर संपूर्ण देश मे संघ के लोग ज्यादा छाती पीटकर प्रचार-प्रसार करते रहते हैं । तो आज दो साल हो रहे हैं और जबरदस्त संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है। और उसके बावजूद एक भी कश्मीरी पंडितों का परिवार वापसी की वार्ता नहीं है ।
मीनाक्षी जी क्या आपको इतना भी काॅमन सेन्स नहीं है कि सिर्फ सुरक्षा बलों के भरोसे कश्मीरी पंडितों का कश्मीर वापसी कैसे संभव है ?
आजसे तीस साल पहले उन्होंने कश्मीर से पलायन क्यों किया ?
मै खुद इस समस्या के लिए 2006 में प्रयास किया हूँ । 2005 मे सितंबर के महीने में नागपुर में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था । जिसमें पुनुन कश्मीर के (कश्मीरी पंडितों का संगठन)और मिरवाईज उमर फारूक़ के हुरियत कांफ्रेंस के प्रतिनिधि भी उस गोष्ठि मे आये हुए थे । और उन्होंने कहा कि हम लोग कश्मीर छोडने के बाद पहली बार आमने-सामने आये है । और उस गोष्ठि की अध्यक्षता मै कर रहा था । तो मैंने आयोजन समिति को कहा कि यह एतिहासिक बात है कि दोनों की मुलाकात वह भी भारत के मध्य शहर नागपुर में । एक गोष्ठी मे हो रही है । तो आज हमारे टाईम टेबल को थोडा ढिल देना चाहिए ।
और इन दोनों प्रतिनिधियों को जितना भी बोलना है ,उतना उन्हें बोलने के हिसाब से मुझे आज का सत्र चलनेकी इजाजत दीजिए । और एक घंटे का सेशन सुबहके नौ बजे से दोपहर के लंच टाइम को और एक घंटे का बढाकर लगभग पाँच से भी ज्यादा घंटे चलाया था । और कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधियोने अपने आप को पूरा अभिव्यक्ति की । जिसमें काफी आक्रोश और गुस्सा भी था।
लेकिन सबसे आश्चर्य की बात मुझे हुरियत कांफ्रेंस के प्रतिनिधियोने कहा कि कश्मीरी पंडितों को बिल्कुल भी टोकना नहीं । और उन्हें जो भी कुछ बोलना है बोलने दीजिए । क्योंकि उनके दर्द को हम समझ सकते हैं । और उन्हें पूरा हक है कि अपने जज्बातो को अभिव्यक्त करे ।
कमाल की बात हुरियत कांफ्रेंस के प्रतिनिधि योने बिल्कुल भी टोका-टोकी नहीं की और बहुत ही पेशंससे पुनुन कश्मीर के प्रतिनिधि योंकि बाते सुनकर अपनी बात रखी । और मैंने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा था कि मुझे कश्मीर स्वतंत्र होता है या पाकिस्तान में शामिल होता है इस बात में कोई राय नहीं देना है लेकिन भारत के बीस-पच्चीस करोड़ मुसलमानों को लेकर चिंता होती है क्योंकि पाकिस्तान बनकर पैंसठ साल हो रहे आज भी उन्हें पाकिस्तान के लिए जिम्मेदार या पाकिस्तानी बोला जाता है । अगर खुदा न खास्ता कभी कश्मीर का कोई भी निर्णय होता है तो उसका खामियाजा उन्हें ही और कितने साल भुगतना पडेगा यह सोचकर मै परेशान हो जाता हूँ । क्योंकि आज पंद्रह-बीस साल मेरे जीवन के सिर्फ हिंदू-मुस्लिम समस्या पर जाया हो रहे हैं और कितने साल भुगतना पडेगा यह सोचकर मै हैरान हो रहा हूँ ।
उसके बाद मुझे हुरियत कांफ्रेंस के फोन पर फोन आने लगे कि आप कश्मीर के लिए कब समय निकाल रहे ? तो मैं मई 2006 को दो हप्ते के लिए, एक हप्ता जम्मू में कश्मीरी पंडितों के कैम्प में मिठीवाला, उधमपुर के कैम्प का आयोजन एक बहुत बडे गोदाम में दस बाय दस के जगह आपसमेही बांटकर साडी या धोतीओके लंबे-लंबे पडदे टांग कर अपने-अपने कमरे जैसे बाट लिए थे । और पांच-छ हजार फीट क्षेत्रफल के गोदाम में पजास से भी ज्यादा परिवार रह रहे थे । कपड़े के कमरे बनाकर । यह सब खस्ता हालातों रहने वाले लोगों को और मुख्यतः 1990 के बाद पैदा हुए बच्चों को मनोपर क्या असर हुआ होगा ?
इसकी मिसाल के तौर पर अंजली रैना नाम की पैतीस साल की महिला 2016 के अक्तूबर मे जब मैं भारत के इतिहास के सबसे लंबे बंद बुरहान वानी नाम के 23 साल की उम्र के युवक की सुरक्षा बलों द्वारा हत्या होने के कारण सौ से भी ज्यादा दिन हो गए थे तो राष्ट्र सेवा दल के तरफ से मुझे कश्मीर के हालात का जायजा लेने के लिए भेजा था तो मैंने पहले जम्मू से पंद्रह किलोमिटर की दूरी पर के जम्मू श्रीनगर हाय वे पर कश्मीरी पंडितों के कैम्प जागती में यूपीए के समय मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो 20,000 पंडितों के लिए 500 के आसपास बिल्कुल आधुनिक कालोनी जैसे टाउनशिप में सीमेंट-कांक्रीट के पक्के मकान बनवाकर दिये हैं। तो मैंने सोचा देखे कैम्प के पुराने घेट्टो की जगहों पर आज कैसे मकान बने हैं ।
पंडितों की हालत कैसी है ?
समय आज लगभग सभी कश्मीरी पंडितों को जिन्हें मैंने दस साल पहले अत्यंत अमानवीय स्तिथी मे रहते हुए देखा है । वह सभी जागती और नगरौटा तथा अन्य जगहों पर फ्लैटों में तब्दील कर दिया गया है । और वह किसी भी एक परिवार के लिए पर्याप्त सुविधाओं से लैस देखां हूँ । और माडर्न कालोनी जैसे मार्केट, अस्पताल, स्कूल, प्लेग्राउंड, गार्डन जैसी वेल प्लानिंग से बनाई हाउसिंग कालोनी देखी । उनमें रहने वाली अंजली रैना ने खुद होकर मुझे पुछा कि आप दस साल पहले भी आयें थे । और आपने हम सब लोगों को चलो कश्मीर के लिए प्रेरित करने की कोशिश की है । और आपने ही कहा था कि मैं आपके हालातों को देखते हुए अब वैली मे जाकर हुरियत कांफ्रेंस के नेतृत्व को कश्मीरी पंडितों को वापस वैली मे लाने के लिए कहने की कोशिश करने जा रहा हूँ । तो आप लोग तैयार रहिए । कह रहे थे । तब आप काफी लोगों के बीच में बैठकर यह सब बातें बोल रहे थे । और मै भी एक छोटी लडकी होने के कारण चुपचाप आपकी चलो कश्मीर की योजना सुनी थी । लेकिन मै अब पैतीस सालों से ज्यादा उम्र की हो गई हूँ । और मेरी बडी बेटी आपके महाराष्ट्र के पुणे में हिंजेवाडी मे आई टी कंपनी मे दो लाख से भी ज्यादा सैलेरी कमा रही है । और उसने इस फ्लैट से भी बडा फ्लेट बुक किया है । और जैसा ही वह तैयार हो जायेगा हम अगले मुलाकात मे आपको महाराष्ट्र के पुणे मे ही मिलेंगे ! हमे कश्मीर के लिए कोई खास आकर्षण नहीं है । आपका पुणे हमे कश्मीर से भी अच्छा लगता है।क्योंकि हम मुसलमानों को म्लेंच (अस्पृश्य ) मानते हैं । और उन्हें हमारे घरों के अंदर आने नहीं देते । और उन्हें कुछ चाय पानी दिया तो वह बर्तनों को अलग रखते हैं ! यह 2016 के गांधी जयंती के एक दिन पहले की बात है । जम्मू से पंद्रह किलोमिटर की दूरी पर के जम्मू-श्रीनगर हाय वे के थोड़े एकाध किलोमीटर साईडवाले कश्मीरी पंडितों के नौ साल पहले बने पुनर्वास नीति के तहत, सीमेंट-कांक्रीट के फ्लैट में बैठकर अंजली रैना के घर के सामने वाले श्री त्रिलोकी नाथ पंडित जी ,जो जागती कैम्प के अध्यक्ष या सचिव के घर पर बैठकर बात कर रहे थे । तो सामने वाले फ्लैट के तरफ देखकर त्रिलोकीनाथ पंडित जी उम्र 86 साल ने अरे भाई अंजली हमे कुछ चाय-वाय दोगी ? तो वह हाथ में ट्रे लेकर चाय, बिस्कुट लेकर आकर बैठ कर इसके पहले जो लिखा था वह साफ-साफ बोली थी ।
और त्रिलोकी नाथ पंडित के ड्राइंग रूम की दिवार पर मनमोहन सिंह जागती कैम्प के अध्यक्ष या सचिव के नाते त्रिलोकी नाथ पंडित जी ,जो स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के नेता भी थे । तो उन्हें एक प्रतिकात्मक चावी देते हुए फोटो टंगी थी । और वह उस फ्लैट में अकेले ही थे तो मुझे पूरा फ्लैट घुमाकर बताया । मुख्यतः बाथ रूम काफी बडे दिखें, दो कमरों के किचन और बैठक के कमरे के साथ, किसी भी एक परिवार के लिए पर्याप्त सुविधाओं से लैस देखां हूँ । और कंस्ट्रक्शन क्वालिटी भी उम्दा लगी । तो लगभग सभी कश्मीरी पंडितों को बसाने का प्रबंध करने की मिसाल मै खुद देखकर आया हूँ । सभी पंडितों की एक ही मांग थी कि आप हमारा कश्मीर मे ले जाने की बात छोड़ कर ! सिर्फ हमारे राशन का कोटा और हमें हर महीने विस्थापित भत्ता बढानेका काम कर दीजिये । तो मैंने कहा कि मेरे सरकार के साथ कुछ भी संबंध नहीं है । मै राष्ट्र सेवा दल का विश्वस्त हूँ ! और राष्ट्र सेवा दल के तरफ से वर्तमान हालात का जायजा लेने के लिए मुझे भेजा है । ज्यादा से ज्यादा आपके सवालों पर कश्मीर छोडने के पहले कश्मीर टाईम्स अखबार में एकाध लेख जरूर लिख सकता । लेकिन सरकार से मदद दिलाने के लिए मै असमर्थ हूँ ।
क्योंकि कश्मीर मे पैदा हुए लोगों के और विस्थापक होने के बाद पैदा होने वाले बच्चों की मानसिकता में बहुत बडा फर्क होता है । यह मैंने नब्बेके दशक तिब्बती शरणार्थियों के दिल्ली के जमुना पार शायद अशोक या बूद्धविहार नाम के तिब्बतियों के कैम्प में मुझे एक बार 1994 के फरवरी मे भारत-तिब्बत मैत्री संघ के कार्यक्रम के लिए ठहरने का मौका मिला था । तो मैंने तिब्बती युवाओं को बाकायदा बिअर बार मे देखा है । और वह भी उसी कैम्प के अंदर मार्केट में जहाँ तिब्बती लोगों के बनाये हस्तकला के सामान, स्वेटर, गर्म कपडे और अन्य सामग्री की दुकानों के साथ में । और उनकी जीवन शैली खाओ पिओ मौज करने मे मस्ती करते हुए देखा हूँ । मुझे संदेह है कि अब इन बच्चों को तिब्बत के मट्टी से कितना लगाव है ? क्योंकि जन्मस्थल मे पैदा होकर लगाव बनना और किसी और जगह पर पैदा हो कर अपने पुरखों के जगह के बारे में उतना लगाव नहीं होता है । उस कार्यक्रम के उदघाटन सत्र में शायद जार्ज फर्नांडिस को आना था लेकिन किसी कारण वह नहीं आये तो आयोजको ने अचानक मुझे ही अध्यक्ष बनाया और मैंने अपने अध्यक्षीय संबोधन में मेरे तिब्बती शरणार्थियों के दिल्ली के जमुना पार के कैम्प से लेकर कुर्ग कर्नाटक के कैम्प का नजारा देखा हुआ था और सभी तिब्बती नेताओ के भाषण में हमें चीन से कोई बैर नहीं है हम गौतम बुद्ध के अनुयायी अहिंसा मे विस्वास रखते हैं इसलिए हम अध्यात्मिक मार्ग से तिब्बतकी आजादी के लिए कोशिश कर रहे हैं । लगभग सभी वक्ता के भाषण एक जैसे ही थे । अध्यक्ष के रूप में मुझे सबसे अंतिम वक्ता के रूप में बोलने का मौका मिला तो मैंने कहा कि अध्यात्म व्यक्तियों के लिए आत्मिक शांति के लिए ठीक है लेकिन देश की आजादी अगर आप सिर्फ बुद्धम शरणम गच्छामि बोलकर और घंटा, प्रार्थना जैसे कर्मकांड करके हजार साल हो जायेंगे लेकिन नहीं मिलेगी और आप लोगों को आज भारत मे आकर पैंतालीस साल से भी ज्यादा समय हो रहा है भारत में आने के बाद आप के जो बच्चे पैदा हो रहे हैं उन्हें तिब्बत का कोई भी आकर्षण नहीं है क्योंकि जो नोस्टेल्जिया उनके माता-पिता को होता है वह बच्चों के और विस्थापक होने के कारण जिस जगह पर वह पैदा होते हैं उन्हें तिब्बत का प्रेम उतना नहीं है कि जितना आप बुजुर्गों को है । इसलिए जितना देर होगा उतना ही तिब्बत की आजादी की बात दूर होने की संभावना है । और यही बात कश्मीरी पंडितों के साथ भी लागू है ।
यह हमारे विदेशों में बसे भारतीयों को भी लागू है क्योंकि जो नोस्टेल्जिया उनके माता-पिता को होता है वह विदेश मे पैदा हुए बच्चों को नही होता है ! बिल्कुल यही बात गत तीस साल से भी ज्यादा समय हो रहा है कश्मीरी पंडितों के वैली से निकल कर कोई जम्मू तो कोई दिल्ली तथा देश के अन्य जगहों पर और कोई विदेशों में बस गये है और उनमेसे शायद ही किसी को वापस अपने पुरखों के जगह के बारे मे उतना लगाव है जितना कि उनके माता-पिता या अन्य बुजुर्गों को है !
कुछ लोग राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए कश्मीरी पंडितों का मामला उठाया करते हैं लेकिन वह भी इस मामले में कितने इमानदार है ! यह अटल बिहारी वाजपेयी के छ साल के प्रधानमंत्री के समय खुद कश्मीरी पंडितों के मुहसे मैंने बीजेपी तथा संघ परिवार के बारे मे सुना है कि इन्होंने हमारे कश्मीर छोडने की बात पर खुब राजनीति की है लेकिन जब खुद यह भारत के सत्ताधारी बने और वह भी छ साल लेकिन हमारे लिए कुछ भी नही कीये तो हम किस पर भरोसा करे ?
कठुआ, जागती के कैम्प में गया था और पंडितों के हाल देख कर दंग रह गया कि भला कोई भी इस तरह के हालात मे कैसे रह सकता है । दस बाय दस के टीन की छत वाले कमरे और एक परिवार जिसमें बुढे माबाप और जवान बहन-भाई और शादी किया हुआ जोडा भी इतनी सी जगह पर ही रह रहे वही खाना भी बना रहे और घर के सामने से गंदी नाली बह रही है । हमारी भेट देनेका महीना मई की गर्मी जम्मू में नागपुर के जैसे ही चालीस सेंटीग्रेड तापमान में रह रहे हैं । इतनी खराब हालत में 1990 से रह रहे हैं । और संपूर्ण भारत मे कश्मीरी पंडितों के नाम पर संघ का प्रचार जारी है । जोकि उनकी भी सरकार छह साल रहने के बावजूद एक भी कश्मीरी पंडितों के लिए कोई पहल नहीं की है ।
पंडितों का हाल देख कर दंग रह गया कि वैली की तरफ मुखातिब हुए । हुरियत मिरवाईज उमर फारूक़ के लोग लेने आए थे । तो उन्हें अपने अनुभव जम्मू के अगल-बगल के पंडितों के कैम्प का नजारा देखा हुआ ताजा-ताजा अनुभव थे । तो बोला कि आप कश्मीरी पंडितों को कश्मीरी मानते हो ? तो उन्होंने तपाकसे जवाब दिया कि । वह हर तरह से कश्मीरी है । तो हमने कहा कि अगर आप लोगों की बात कश्मीरीयत की है तो कश्मीरी पंडितों का उसमें स्थान है? तो उन्होंने कहा कि बिल्कुल है । तो मैंने कहा कि कश्मीर की आजादी के बाद क्या आप लोग सिर्फ मुसलमानों को लेकर कश्मीर बनाना चाहते हैं ? तो उन्होंने कहा कि बिल्कुल भी नहीं । सबसे पहली बात कश्मीर की समस्या हिंदू-मुस्लिम समस्या नहीं है । वह कश्मीरीयत की समस्या है और जिसमें कश्मीर मे सदियों से रहने वाले हिंदू, मुस्लिम, सीख, बौद्धों का पूरा स्थान है और रहेगा तो लगे हाथ मैंने कहा कि आजादी या कश्मीर को लेकर आपकी जो भी मांग है वह कब पूरी होगी मुझे नहीं मालूम लेकिन अगर कश्मीरी पंडितों को भी आप लोग कश्मीरीयत का हिस्सा मानते हो तो आज 1990 के बाद से उन्हें अपने घर छोड़कर चले जाने के लिए जो भी कारण रहे होंगे मै उसपर ज्यादा समय नहीं गवाना चाहता हूँ लेकिन आज वह जिस तरह से शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं वह बहुत ही अमानवीय और हैरान करने वाला तथ्य है । आप लोग चाहे तो उन्हें उस परिस्थिति से निजात दिलाने के लिए पहल करेंगे और उन्हें सुरक्षा की गारंटी देते हो (पुलिस या सुरक्षा बलों के भरोसे नहीं!)तो कश्मीरी पंडितों के वापस अपने अपने घरो मे ससम्मान उन्हें लाने के लिए प्रक्रिया शुरू कीजिए तो सैयद गिलानी हुरियत मिरवाईज उमर फारूक़ के तबके के युवक साथी (सीनियर गिलानी नहीं) को हमारे सामने ही वह जिम्मेदारी सौंपी थी । और उन्होंने कुछ कोशिश भी की थी लेकिन अंत में कश्मीर के हालात पल पल में बदलने के कारण हुरियत कांफ्रेंस के काफी लोगों को जेल या घरों में बंद कर दिया और इस तरह के जो भी कोशिश होती है सबको हानी होती है और यह सिलसिला मेरे जन्म साल 1953 से लगातार जारी है बय्यासी साल उम्र के शेख अब्दुल्ला की एक चौथाई से भी ज्यादा जिंदगी लगभग बाईस साल जेल में रहने में गुजर गई थी और आज दो साल हो रहे हैं 370 और 35अ हटाने के लेकिन परिस्थिति में कोई खास बदलाव दिखाई नहीं दे रहा है ।
डॉ सुरेश खैरनार 6 अगस्त 2021,नागपुर