यह अकारण नहीं है जो कुछ लोगों की शंका है कि चौबीस के बाद न केवल भारत की तस्वीर बदल जाएगी बल्कि लोकतंत्र को भयानक चोट पहुंचेगी, संविधान किसी के कब्जे में आ जाएगा और लोकसभा के चुनाव अतीत की कहानी बन जाएंगे। देश एक शासक के हाथ सिमट कर चीन के रास्ते पर निकल पड़ेगा। ऐसी आशंकाओं पर हम तब हंसते जब 2014 का समय और वातावरण होता। यह बात तब किसी ने कही होती तो उसे जरूरत से ज्यादा खौफ में डूबा हुआ आदमी कहा जाता। आज का वातावरण अलग है और कहीं ज्यादा खौफज़दा है। नेहरू के जमाने से लोकतंत्र को देखते आ रहे लोग पिछले नौ सालों को लेकर हैरान परेशान हैं। कभी कोई शासक, वह भी मुगल नहीं हिंदू शासक ऐसा भी हो सकता है जिसके सामने देश दुनिया के कोई कायदे नियम और वह भी इक्कीसवीं सदी में जब दुनिया ग्लोबल है, ठेंगे पर बैठे हों। जो हो रहा है और जो दिख रहा है उसकी हम विविधता भरे इतने बड़े देश और धर्मनिरपेक्ष समाज में कल्पना नहीं कर सकते थे। पर अब हमें अपनी सोच और समझ को 280 डिग्री के कोण से घुमा कर देखना और समझना होगा और यह भी कि चौबीस के लोकसभा चुनाव परिणाम कैसे हम अपने हक में कर सकते हैं।
कर्नाटक में जो कुछ देखा जा रहा है वह किसी अचंभे से कम नहीं है। कुछ लोग और हमारे ‘धुरंधर’ पत्रकार कह रहे हैं कि बजरंग दल को बैन करने की बात कह कर कांग्रेस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है। मैं हतप्रभ हूं इनकी सोच पर। अगर ये ही पत्रकार कांग्रेस को सलाह देने वाले होते तो यही सलाह देते कि बजरंग दल को बैन करने का मुद्दा घोषणापत्र में डालें वोट जो अपने पक्ष में तब्दील होगा। इसका मतलब यह है कि ये लोग मोदी को फिर ठीक से नहीं समझ पाए, यही कहा जाएगा। एक चोर से कहिए इस ताले में चाबी कुछ इस तरह से लगाओ कि तुम्हारी सब जगह वाहवाही हो । यह नामुमकिन काम तुम्हें मुमकिन करके दिखाना है। कांग्रेस हतप्रभ है कि चोर ने कैसे बजरंग दल को कहां से कहां जोड़ दिया। ये रसातल में गिरी उस राजनीति का मास्टरमाइंड है जिसके लिए राजनीति की शुचिता के कोई मायने नहीं हैं। इसलिए कांग्रेस को यह कहना कि उसने अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मारी है निरी बेवकूफी की बात है । किसको सपने में भी खयाल था कि बजरंग दल बजरंग बली से जोड़ दिया जाएगा। पर कुटिल बुद्धि और कुटिल नीति का खुफिया व्यक्ति ऐसा ही होता है। अब तो हमें मोदी की आदत पड़ जानी चाहिए। कर्नाटक बीजेपी के सामने मरने मारने का प्रश्न है। इसलिए कोई बड़ी बात नहीं हम जो परिणाम कर्नाटक के सोच रहे हैं उससे पलट कुछ और आएं । और अगर ऐसा हुआ तो फिर डिजिटल चैनलों में कांग्रेस और राहुल गांधी की थू थू होने लगेगी । मोदी को चौबीस का खौफ है और वोटों का डर है। क्या यह देश इसी पर चोट करने वाला हो सकता है। इस नजर से इन दिनों एक मुद्दा अच्छा गरमाया हुआ है दिल्ली के जंतर मंतर पर महिला पहलवानों के आंदोलन का । अगर बहुत सतर्कता और कायदे से इस मुद्दे को चौबीस तक बनाया रखा जाए तो मोदी का खौफ और डर साकार हो जाएगा। किसान आंदोलन ने यह करके दिखाया है। कभी कदम पीछे न करने वाले और कभी माफी न मांगने वाले मोदी को वोटों का डर सताया था। और उन्होंने माफी मांगी थी।
मैंने पिछले लेख में भी लिखा था कि 2025 में आरएसएस के सौ साल पूरे होने का जश्न मोदी का सपना है। इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जोंक की तरह चिपके रहना है। लेकिन हमें इस सपने को चकनाचूर करना है। जो लगभग नामुमकिन सा जान पड़ रहा है। क्योंकि पूरे देश की जनसंख्या के बड़े बड़े हिस्से और सबसे निचले तबके के वोटों पर किसी की सेंध नहीं लगी है। वह मोदी के पक्ष में ‘इनटैक्ट’ है। वे अभी तक मोदी से अपने अपने कारणों के चलते जुड़े हुए हैं। बीजेपी का मजबूत प्रचार तंत्र और समूची आरएसएस कोई रास्ता नहीं छोड़ती । ऐसे में किला भेदना आसान काम नहीं। जनता के लिए तो विपक्ष अपने पजामे का नाड़ा तक बांधने में सक्षम नहीं है। तो ये प्रतिबद्ध आंदोलन ही कुछ कर पाएं तो कर पाएंगे ।
चैनलों की चर्चाएं बकवास हो चुकी हैं। कितनी बार लिखा इस पर।‌ आज की तारीख में सिर्फ और सिर्फ जानकारी चाहिए पैनलिस्टों की भड़ास नहीं। ‘सत्य हिंदी’ में सिर्फ आज के अखबारों पर चर्चा, उनके बुलेटिन, कुछ हट कर किए कार्यक्रम जैसे सिनेमा संवाद, ताना बाना और किताबों पर लेखक से बातचीत आदि के अलावा सब बकवास है। और भी सभी का कमोबेश यही हाल है।
संतोष भारतीय के साथ अभय कुमार दुबे ने तीन चार विषयों पर बात की । आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या चैट जीपीटी पर बात तो सही थी लेकिन जब अभी उसका स्वयं का भविष्य तय नहीं है तो बातचीत भी किस नतीजे पर पहुंचती। इसके फायदों की बजाय खतरों पर चिंता ज्यादा होनी चाहिए। लेकिन अगर इसे ‘पोस्ट ट्रुथ’ के विस्तार में देखा जाए तब तो यह मौजूदा सत्ता के लिए बहुत ही फायदेमंद है। शायद इसीलिए मोदी सरकार अपने चैट जीपीटी पर स्वयं काम कर रही है। इसके लिए 1500 सौ करोड़ का बजट भी रखा गया है।
कर्नाटक में मोदी ने ‘केरला स्टोरी’ फिल्म का जिक्र छेड़ा। कितना अफसोसजनक और निंदनीय है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश का प्रधानमंत्री साम्प्रदायिक मुद्दों से जुड़ी और मुस्लिम विरोध की फिल्मों पर ज्यादा बात करता है, उन्हें प्रमोट भी करता है और चमचागिरी की हद तो यह है कि मप्र जैसे बीजेपी प्रदेश का मुख्यमंत्री इस फिल्म को टैक्स फ्री कर देता है। जो किसी सच्ची घटना पर नहीं बल्कि काल्पनिक कहानी पर बनी है । इसी विषय पर इस बार अमिताभ श्रीवास्तव ने ‘सिनमा संवाद’ कार्यक्रम भी किया। अजय ब्रह्मात्मज को सुनना अच्छा लगता है लेकिन हर बार एक ही पैनल , बड़ी जल्दी यह कार्यक्रम भी स्टीरियो टाइप हो जाएगा और कोई देखेगा सुनेगा नहीं। ‘सत्य हिंदी’ के दूसरे कार्यक्रमों जैसे । मैं तो अपील ही करूंगा मित्रों से कि ऐसे फालतू की चर्चाओं के कार्यक्रम देख कर अपना समय बरबाद न करें। मुकेश भाई ने राकेश टिकैत से इंटरव्यू लिया। एकदम थका, निराश और कुछ कुछ पागल सा जो बार बार अंदोलन अंदोलन करता रहा और उस पर लिखा था ‘विस्फोटक इंटरव्यू’ । ऐसे ही चाकलेटी व्यक्ति से ‘बेधड़क इंटरव्यू’ था। समझ नहीं आता इनका उद्देश्य क्या है। पर यह सब चलता रहेगा । घिसे पिटे, पिटे पिटाए पैनलिस्ट आते रहेंगे। इससे तो अच्छा ‘वायर’ की रिपोर्ट्स होती हैं। वाकई जानकारी प्रदान करने वाली । देख कर अच्छा लगता है। न्यूजलाण्ड्री की टिप्पणी और न्यूजसेंस कार्यक्रम अच्छा होता है।
कल लल्लन टॉप पर धुरंधर अभिनेता और नाटकों की दुनिया के कहिए बादशाह पीयूष मिश्रा का इंटरव्यू देखा । मैं बहुत प्रभावित रहा हूं उनसे पर कल यह भी जाना कि वे मोदी को एक राष्ट्र नेता और प्रधानमंत्री के रूप में बहुत पसंद करते हैं। वे कहते हैं बस है, पता नहीं क्यूं। तो आप मान कर चलिए कि अगर चौबीस में इस सत्ता को बेदखल नहीं किया गया किसी भी तरीके से तो आगे का निराशाजनक वही हाल होगा जो राकेश टिकैत ने मुकेश कुमार को बताया। वे बड़े ठंडे दिमाग से और मस्त होकर भविष्य के बदहाल भारत की बात कर रहे थे। महिला पहलवानों को राजनीतिक दलों से परहेज़ करके, खाप पंचायतों का साथ लेकर गांधी के आंदोलन जैसा रूप अपने आंदोलन को देना चाहिए और कम से कम उत्तर भारत के राज्य तय करें कि इस निष्ठुर सत्ता को हमेशा के लिए उखाड़ फेंका जाए । ध्यान रखिए कि मोदी को चौबीस का खौफ और वोट का डर हमेशा सिर पर मंडराता है। सवाल यही है कि क्या हम इसका फायदा उठा सकते हैं ?? संभव है यदि लोगों को हिंदू होने की बजाय सजग नागरिक और सजग वोटर बनाया जाए ।

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