संघ परिवार ने गत सौ सालों से भारत के अन्य महान विभुतीयो के जैसे ही स्वामी विवेकानंद जैसे हिमालय के जैसे व्यक्तित्व को एक हिंदु मांक के साचे मे ढालने की कोशिश की है ! और प्रगतिशील लोगों ने भी अपने आलस्य के कारण यह सब होने दिया है ! जो स्वामी विवेकानंद महात्मा फुले के उत्तर काल में बंगाल में 12 जनवरी 1863 में पैदा हुए थे और उन्होंने अपनी कालेज की पढाई के साथ ही तत्कालीन समाज में चल रही बुराईयों का विरोध प्रारंभ कर दिया था ! मैं वानगी के तौर पर रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित उनके कुछ उदाहरण दे रहा हूँ ! उदाहरण के लिए, स्वामीजीने उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम पर्व मे अपनी इस विषय पर की बातों को जैसे, हिंदु धर्म से अन्य धर्मों में होने वाले धर्मपरिवर्तन का सबसे प्रमुख कारण हिंदु धर्म में की घृणित जातीव्यवस्था को सबसे प्रमुख कारण बताया है !


नवंबर १८९४ में हरीदास बिहारीलाल देसाई को लिखे पत्र में कहा है ! की इस्लाम तथा ख्रिश्चन धर्म और मुख्यतः उन धर्मों को मानने वाले लोगों के उपर जिस तरह से संघ परिवार नियोजित ढंग से लक्ष्य कर रहा है ! तो स्वामीजी के १५९ वी जयंती के अवसर पर मै विशेष रूप से संघ के स्वयंसेवकों को याद दिलाने के लिए यह पोस्ट लिख रहा हूँ !
स्वामीजी ने कहा है कि इस देश के धर्मांतरण क्रिस्चियन या मुसलमानों के अत्याचारों के कारण नहीं हुआ है, तो उच्चवर्णीय हिंदुओं के अत्याचारों के कारण हुआ है ! उन्होंने आगे कहा है कि भारतीय गरीबोंमेंसे इतने बड़े प्रमाण में लोग मुसलमान धर्म को स्वीकार किये हैं ! सिर्फ एक हाथ में तलवार और दुसरे हाथ में कुरान को लेकर भारत में इस्लाम धर्म का फैलाव किया गया, यह सर्वस्वी गलत है ! सिर्फ तलवार के जोर पर धर्मांतरण की बात कहना महामुर्खता है ! जमिंदार, पुरोहित वर्ग के लोगों से, मतलब स्वाधीनता के लिए मुक्त होने के लिये इसिलिये हिंदु जमिंदारो की बहुसंख्या वाले बंगाल में हिंदु किसानों की तुलना में मुसलमानों की संख्या ज्यादा होने की वजह यह है ! कि लाखों दबे-कुचले वर्गों के नर-नारियों के उद्धार की चिंता किसे है ?


इसी तरह के विचार उन्होंने २० सितंबर 1892 को खेत्री निवासी पंडित शंकरलाल शर्मा को खत लिखकर बताया, कि जिस जगह पर ब्राह्मण ही सभी जमीन के मालिक हैं, और वहां की महिलाओं में राजवंश की महिलाओं को भी ब्राह्मणों की उपपत्नी रहना पड़ता है ! ऐसे त्रावणकोर राज्य में (वर्तमान केरल) और इस तरह की घिनौनी परंपरा के विद्रोह के रूप में एक चौथाई लोगों ने क्रिस्चियन धर्म अपना लिया है ! तो दोष किसका है ?
लेकिन स्वामी विवेकानंद जी ने धर्मांतरण के बाद भी लोगों की जाती खत्म हुई नहीं ! इसके तरफ भी ध्यान खींचा है ! २९ मई १८९४ को अमेरिका से केरल के धर्म गुरु रेवरंड आर ह्यूम को लिखे पत्र में कहा, कि आपने उन्हें कॅथलिक नहीं किया, उन्हें उनकी – उनकी जाति के कॅथलिक बना दिया है !


इसलिये विवेकानंद दलितों की स्थिति सुधारने के लिए लिए घरवापसी का कार्यक्रम नहीं बताते हैं ! क्योंकि घरवापसी के बाद भी उन्ही दलित जातियों में जाने का ही कार्यक्रमके वह सख्त खिलाफ थे ! धर्मों – धर्मों के बीच में, अपने विशेषाधिकार सुरक्षित रखने के लिए चल रही ईर्ष्या को रोकने के लिए प्रयास करना चाहिए ! और इसलिए उन्होंने कहा कि अन्य धार्मिक लोगो के ऊपर झूठ दोषारोपण अविलंब बंद करने के लिए कहा है ! कि खुद के अंदर झांककर देखने के लिए कहते हुए ! उन्होंने बहुत ही कड़े शब्दों में १८९५ में वराहनगर के उनके मित्र राखाल (जो बाद में स्वामी ब्रह्मानंद के रूप में जाने गए थे!) ढोंगी साधु – सन्यासी और ब्राह्मणों ने इस देश को विपत्तियों में डाला है ! बडे-बडे विशालकाय मठों की स्थापना करने के बाद खुद छप्पनभोग खा रहे हैं ! और दूसरे तरफ एक चौथाई लोग भुक से तडप – तडपकर मर रहे हैं ! आठ साल की बच्ची के साथ तीस साल के आदमी के साथ शादी करने की बात को रोकने की कोशिश करने वाले लोगों को कहते हैं कि आप धर्म डुबो रहे हो ! लड़की की शादी उसके बाली उम्र में करने वाले लोगों का कौन सा धर्म है ?
कुछ लोग कहते हैं, कि मुसलमानों के शासन में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बाल विवाह शुरू किया गया है ! अरे कितना झुठ बोलोगे ? गृहसुत्रेसे लेकर सभी ब्राह्मणों के ग्रंथों में बालविवाह के आदेश भरे पड़े हैं ! और उनके सच्चाई की विभिन्न भाष्यकारो ने उसे सही ठहराने की कोशिश करने के, बावजूद मुस्लिम शासन की आड लेते हुए शर्मनाक बात है !
स्वामी विवेकानंद सिर्फ इतना ही बोल कर रुके नही ! उन्होंने आगे कहा कि इस्लाम धर्म में की अच्छी बातों का खुले दिल से स्वागत करो ! १९ नवंबर १८९४ के दिन न्यूयॉर्क से अपने सभी शिष्यों को संबोधित करते हुए लिखा है, कि मुसलमानोंने हिंदुओं के उपर विजय प्राप्त करने के लिए क्या कारण रहे हैं ? भौतिक सभ्यता के बारे मे हिंदुओं का घोर अज्ञान यह सबसे प्रमुख कारण रहा है ! दर्जी के तरफसे कपड़े सिलवाने के बाद पहनने की कला का सबसे पहला सबक मुसलमानों ने दिया है ! इसके जैसा रस्ते पर पडा हुआ धुल से भरा हुआ खाने की जगह साफ-सफाई किया हुआ खाना खाने की आदत हिंदुओं ने मुसलमानों से सिखी होती तो कितना अच्छा होता !


इसके साथ ही वह कहते हैं कि दोनों एक-दूसरे की अच्छी बातें सिख रहे हैं यह स्वागत योग्य है ! और आगे कहा कि दोनों धर्मों ने धर्मग्रंथों से आगे जाने की जरूरत है ! उन्होंने कहा कि यह बहुत आसान है क्योंकि धर्म ग्रंथों पर अवलंबित नही है ! तो ग्रंथ धर्म के उपर अवलंबित है ! धर्म के मूलभूत तत्वों को कहने के लिए ग्रंथों का निर्माण हुआ है ! यदि वह काल की चौखट में बंद हैं तो ! धर्म के मूलभूत शाश्वत तत्वों को आजके काल के अनुसार कहने के लिए बदलने की आवश्यकता है ! १० जून १८९८ के दिन अल्मोड़ा से उन्होंने सरफराज मोहम्मद हुसैन को लिखा कि हमारे वेदांत के सिद्धांतों में कितना भी सुंदर और सुक्ष्म लिखा होगा ! लेकिन समता का संदेश सर्वप्रथम व्यवहार में लाने का काम इस्लाम ने ही किया है ! लेकिन हमें मानव जाति को ऐसी जगह पर ले जाना है जहाँ पर वेद, कुरान और बायबल नहीं रहेंगे ! और यह कार्य वेद, कुरान, बायबल के आधार लेकर ही करना पडेगा !
धर्मग्रंथों का आधार लेकर धर्मग्रंथों के बाहर आना होगा ! और इसके लिए भारत पथप्रदर्शक देश हो सकता है ! और यह कहते हुए, उन्होंने आगे कहा कि, जिस तरह से इस्लाम से समता का संदेश हिंदु धर्म ने लिया है ! उसी तरह से भारत में इस्लाम धर्म भी वेदांत्तोमेकी धार्मिक उदारता इस्लाम ने भी ली है ! और यह दोनों धर्मों की आपसी आदान प्रदान व सहयोग का उदाहरण देते हुए कहा, कि भारतीय इस्लाम का स्वरूप और अन्य देशों के इस्लाम के तुलना में अलग है !
इसलिये ३ अगस्त १८९५ के दिन अमेरिका के हॉल आफ पिस के भाषण में मोहम्मद पैगंबर साहब के उपर बोलते हुए, कहा कि आप लोग इस्लाम का सबसे ज्यादा द्वेष करते हो ! आप दोनों के बीच युद्ध हुआ तो महाप्रलय निर्माण होगा ! और अन्य धर्मों के लोगों को भी शामिल होना पडेगा, आप लोगों ने एक दूसरे को समझना चाहिए ! अगर एक अफ्रीकी अमेरिकीने इस्लाम कबुल किया तो वह इराण के बादशाह का दामाद हो सकता है ! लेकिन मैं योरप अमेरिका में इतने सारे व्याख्यान देते हुए घुम रहा हूँ, लेकिन मुझे आपके एक भी चर्च में धर्मांतरण किया हुआ अफ्रो अमेरिकी नही दिखाई दिया ! हम एक दूसरे के साथ आदान प्रदान व सहयोग करके चलने वाले हैं या आखें बंद कर के ?
१७ नवंबर १८९७ के दिन लंडनमे भाषण देते हुए बहुत ही पैनी भाषा में कहा कि सबसे बड़ी मुश्किल को हमे समझना होगा ! कि बायबल और कुरान के बिचमे कोई बिचौलिया फैसला नहीं कर सकता क्योंकि झगड़ा दोनों का है तिसरा पक्ष बिचमे पडा तो झगड़ा तीनों का होगा ! और यही झगड़ा सुलझाने का सर्वसम्मति वाली अगर कोई बात हो सकती है तो सिर्फ बुद्धि ! इससे ज्यादा और कौन-सी बात हो सकती है ? धर्म के झगड़े को बुद्धि की कसौटी पर ही परखकर लेना चाहिए ! क्या संघ परिवार के पल्ले में यह बात कभी देखा है ? उल्टा सवाल आस्था का है, नारे लगा – लगा कर देश का नर्क बनाने पर तुले हुए हैं !


सर्वधर्म परिषद के पहले और अमरीका के आखिरी भाषण अमेरिकन सोशल सायन्स के सालाना अधिवेशन में, जो भाषण दिया है उसका शिर्षक था, “हिंदुस्तान के इतिहास में इस्लाम का योगदान “! मुघल दरबार का बौद्धिक वैभव तो रहने दिजिए, उस का अंशमात्र भी पुणे और लाहौर के दरबार में (मतलब पुणे मराठा और लाहौर में शिखो के) देखने को नहीं मिलता है !
और मद्रास के भारत का भविष्य इस विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में साफ-साफ कहा है कि जन्मजात हकोके कारण विशेष अधिकार के दिन अब लद गऐ है ! यह अंग्रेजी शासन की कृपा समझीऐ और इस बात का कुछ श्रेय मुस्लिम शासन को भी जाता है ! अगर गौर से देखा जाए तो कोई भी शासन सर्वस्वी बुरा या अच्छा नहीं होता है ! भारत पर मुस्लिम शासन की वजह से गरीब और दलितों की भलाई के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है ! और कमअधिक प्रमाण में यह भारत के उपर आक्रमण करने वाले सभी आक्रामको के साथ लागू है ! क्योंकि इतिहास में इतने सारे आक्रामक भारत के अंदर आते रहे और सर्वसामान्य जनता मुकदर्शक बनी रही ! इसकी एक वजह पहले से राज्य कर रहे राज्यकर्ताओ से परेशान लोग शायद नया राज कुछ राहत दे सकता इस आशा में तटस्थ रहे होंगे और इतने सारे आक्रामक एक के बाद दुसरे आते गऐ होंगे !
स्वामीजीने सिर्फ हिंदु – मुस्लिम समस्या पर ही नहीं तो अन्य समस्याओं पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया है उदाहरण के लिए १० अक्टूबर १८९७ को स्वामी अखंडानंदजी को लिखे पत्र में कहा कि हमारे मठ में ब्राह्मण, दलितों के साथ साथ मुसलमानों के और क्रिश्चियन बच्चों को भी प्रवेश देना चाहिए और वह सभी खाना खायेंगे तो उन्हें उनकी आदत के अनुसार शुरू – शुरू में उनकी पसंद का भोजन देना चाहिए ! काश यह उदारता तथाकथित हिंदुत्ववादी लोगों के भीतर थोड़ी सी भी होती तो अखलाक से लेकर जुनैद जैसे शेकडो लोगों की जान बचाने के लिए काम आई होती ! कहा इतने उदार और सुलझे हुए स्वामी विवेकानंद और कहा उनके नाम लेकर वर्तमान समय में भारत में घोर सांप्रदायिक राजनीति करने वाले लोगों को आज के विवेकानंद जयंतीपर सद्बुद्धी प्राप्त हो इस प्रार्थना के साथ !
डॉ सुरेश खैरनार पूर्व अध्यक्ष राष्ट्र सेवा दल १२ जनवरी २०२२, नागपुर

Adv from Sponsors