सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार से एक बार फिर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई शुरू हो रही हैै. पिछले साल 5 दिसंबर को हुई सुनवाई में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से पूरे दस्तावेज जमा नहीं कराए जाने के कारण कोर्ट ने सुनवाई की तारीख दो महीने के लिए और बढ़ा दी थी. कोर्ट ने उस समय कहा था कि वह 8 फरवरी से इन याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू करेगी. उसने सभी पक्षों से इस बीच जरूरी संबंधित कानूनी कागजात सौंपने को कहा था.
गौरतलब है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 2010 में दिए गए उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उसने विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामलला की मूर्ति वाली जगह रामलला विराजमान को, सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को और बाकी हिस्सा मस्जिद निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया था. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड की चुनौती के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी.
उसके बाद इस मामले में खूब राजनीति होती रही. 21 जुलाई 2017 को भाजपा नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की जल्द सुनवाई की मांग की थी. इसकी सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 7 अगस्त को विशेष पीठ का गठन किया, जिसमें वर्तमान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं. उसके बाद 11 अगस्त मामले की सुनवाई हुई. लेकिन सुन्नी बक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन और अनूप चौधरी ने मांग की कि इस मामले से जुड़े हजारों पेज के दस्तावेज का अंग्रेजी में अनुवाद कराया जाय, तब सुनवाई शुरू हो. सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेज के अनुवाद के लिए 3 महीने का वक्त दिया था.
अंतत: 5 दिसंबर को सुनवाई शुरू हुई, लेकिन उस वक्त सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से दस्तावेज जमा नहीं कराए जाने के कारण सुनवाई की तारीख फरवरी तय की गई. उस समय बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल की मांग पर भी खूब राजनीति हुई थी. उन्होंने कोर्ट से कहा था कि यह केस सिर्फ भूमि विवाद नहीं, राजनीतिक मुद्दा भी है और यह चुनाव पर असर डालने वाला है, इसलिए इस मामले की सुनवाई 2019 के आम चुनाव के बाद ही की जाए. लेकिन कोर्ट ने इस दलील को बेतुका बताया था और कहा था कि कोर्ट राजनीति नहीं, केस के तथ्यों के आधार पर सुनवाई करती है.