सदियां आती जाती रहेंगी और फिल्मों में विकास के नए-नए प्रतिमान भी ग़ढे जाते रहेंगे, लेकिन चर्चित साहित्यकारों के उपन्यास पर आधारित हिट और कालजयी फिल्मों को लोग कभी नहीं भूल पाएंगे. दरअसल, साहित्य पर आधारित कुछ ऐसी फिल्में भी हैं, जो झपकी के बाद आई ताजगी का अहसास कराती हैं, जिनका असर नि:संदेह युगों युगों तक बना रहेगा…
बॉलीवुड में शुरू से हिंदी साहित्य पर आधारित फिल्में बनती रही हैं. यही नहीं, विदेशी लेखकों के उपन्यास और नाटकों पर आधारित फिल्में भी बनती रही हैं. जहां एक ओर शरत चंद्र, रबींद्रनाथ टैगोर, बिमल राय, के आर नारायणन, चेतन भगत जैसे कई लेखकों की रचनाओं पर अब तक काफी फिल्में बन चुकी हैं, वहीं दूसरी ओर शेक्सपियर, रस्किन बॉन्ड जैसे कई विदेशी लेखकों की रचनाओं पर भी फिल्में बन चुकी हैं. विशाल भारद्वाज की फिल्म ओमकारा और मकबूल जहां सेक्सपियर के नाटक ओथैलो और मैकबेथ पर आधारित थीं, वहीं विशाल भारद्वाज की ही एक और फिल्म सात खून माफ, रस्किन बॉन्ड की कहानी सुजैना सेवेन हसबैंड पर आधारित थी.
हालिया रिलीज फिल्म काई पो चे चेतन भगत के चर्चित उपन्यास थ्री मिस्टेक ऑफ माई लाइफ पर आधारित थी. टीवी कलाकार सुशांत सिंह राजपूत इस फिल्म में मुख्य भूमिका में थे. गुजरात दंगा और तीन दोस्तों की दोस्ती पर आधारित इस फिल्म को अपार सफलता मिली. गौरतलब है कि इसके पहले भी चेतन भगत के उपन्यासों पर आधारित दो फिल्में बन चुकी हैं. चेतन भगत वर्ष 2008 में प्रदर्शित फिल्म हैलो के स्क्रिप्ट राइटर थे और यह फिल्म उन्हीं के उपन्यास वन नाइट ऐट द कॉल सेंटर पर आधारित थी. अतुल अग्निहोत्री निर्देशित यह फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हुई. फिल्म में शरमन जोशी, सोहेल खान, ईशा कोप्पिकर, गुल पनाग और अमृता अरोड़ा मुख्य भूमिका में थे. सच तो यह है कि सलमान का गेस्ट अपियरेंस भी इस फिल्म में जान न डाल सकी, लेकिन चेतन की ही उपन्यास पर बनने वाली दूसरी फिल्म को अपार सफलता मिली. चेतन भगत के उपन्यास फाइव प्वाइंट समवन पर राजकुमार हिरानी ने थ्री इडिएट्स बनाई थी. यह फिल्म बॉलीवुड की अब तक की अकेली ऐसी हिट साबित हुई है, जिसने अब तक 200 करोड़ से अधिक की कमाई की है. हालांकि इस फिल्म में कई सारे दृश्य ऐसे थे, जो चेतन के उपन्यास में नहीं थे. वैसे, फिल्म का क्लाइमेक्स भी उपन्यास से बिल्कुल अलग हटकर था.
सबसे पहले बॉलीवुड में शरद चंद्र के उपन्यास देवदास पर आधारित फिल्म बनी थी. देवदास और परिणिता ऐसे दो उपन्यास रहे हैं, जिन पर एक से अधिक बार फिल्में बनाई गई हैं और मजे की बात तो यह है कि हर बार ये फिल्में हिट रही हैं. देवदास फिल्मकारों को इतना पसंद आया कि उस पर अब तक कई भाषाओं में 12 बार फिल्में बन चुकी हैं. इनमें यदि अनुराग कश्यप की फिल्म देवडी को भी शामिल करेंगे, तो यह संख्या और भी ब़ढ जाएगी. सबसे पहले वर्ष 1935 में निर्देशक प्रमथेश चंद्र बरुआ ने फिल्म देवदास बनाई. फिल्म में के एल सहगल ने देवदास का किरदार निभाया था. वहीं चंद्रमुखी का किरदार इस फिल्म में अभिनेत्री राजकुमारी और पारो का किरदार जमुना बरुआ ने निभाया था. देवदास उपन्यास पर बनी यह पहली फिल्म थी. इसके बाद इसी उपन्यास पर विमल रॉय ने भी वर्ष 1955 में फिल्म बनाई. फिल्म में देवदास बने थे दिलीप कुमार. जबकि वैजंतीमाला चंद्रमुखी और सुचित्रा सेन पारो की भूमिका में थीं. संजय लीला भंसाली की ब़डी हिट फिल्मों में देवदास का नाम सबसे पहले लिया जाता है. संजय ने इसी उपन्यास पर वर्ष 2002 में देवदास के नाम से फिल्म बनाई. इसमें शाहरुख खान देवदास की भूमिका में, पारो के किरदार में ऐश्वर्या रॉय और चंद्रमुखी के किरदार में माधुरी दीक्षित दिखीं. फिल्म बहुत ब़डी हिट साबित हुई. वहीं शरद चंद्र की एक और रचना परिणिता पर भी एक नहीं, कई बार फिल्में बन चुकी हैं.
सबसे पहले इस पर अजय कर ने वर्ष 1969 में परिणिता नाम से फिल्म बनाई. बांग्ला भाषा में बनी इस फिल्म में सौमित्र चटर्जी और मौसमी चटर्जी मुख्य भूमिका में थे. वर्ष 2005 में फिर प्रदीप सरकार ने परिणिता पर इसी नाम से फिल्म बनाई. फिल्म का निर्माण विधु विनोद चोपड़ा ने किया. विद्या बालन, सैफ अली खान, संजय दत्त और राइमा सेन इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे. फिल्म व्यवसायिक रूप से तो ज़्यादा स़फल नहीं हुई, लेकिन इसे दर्शकों ने बेहद सराहा.
इसके अलावा, आर के नारायण के उपन्यास गाइड पर देव आनंद के भाई विजय आनंद ने गाइड नाम से ही फिल्म बनाई. वर्ष 1965 में बनी इस फिल्म में देव आनंद और वहीदा रहमान मुख्य भूमिका में थे. फिल्म के सारे गाने हिट थे और आज भी लोकप्रिय हैं. कई अवॉर्ड जीतने वाली यह फिल्म हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की बेहतरीन फिल्मों में से एक है. फिल्म में देवआनंद राजू गाइड की भूमिका में थे, वहीं वहीदा रहमान एक कुशल नर्तकी और पति द्वारा उपेक्षित महिला रोजी की किरदार में थीं.
एक और उपन्यास पर क्यू ऐंड ए पर बनी फिल्म स्लमडॉग मिलिनेयर का़फी ब़डी हिट साबित हुई. फिल्म ने ऑस्कर भी जीता. भारतीय लेखक विकास स्वरूप के उपन्यास क्यू ऐंड ए पर स्लमडॉग मिलिनेयर नाम से ही एक फिल्म बनीं. निर्देशक थे डैनी बायल. फिल्म को पूरी दुनिया के लोगों ने पसंद किया. फिल्म में रियलिटी शो कौन बनेगा करोड़पति की तर्ज पर पूछे गए प्रश्नों को आधार बनाकर नायक की ज़िंदगी को दिखाने का प्रयास किया गया. फिल्म में अनिल कपूर, इरफान खान, देव पटेल और फ्रीडा पिंटो मुख्य भूमिका में थे. इस फिल्म की कामयाबी को देख कर विकास स्वरूप ने अपने उपन्यास का नाम बदल कर फिल्म के नाम पर स्लमडॉग मिलिनेयर रख दिया.
जानी-मानी लेखिका अमृता प्रीतम के उपन्यास पिंजर पर इसी नाम से फिल्म बनी. बंटवारे के दौरान हुए सामाजिक उथल-पुथल, प्यार और नफरत पर आधारित इस फिल्म को बेहद पसंद किया गया. निर्देशक थे चंद्र प्रकाश द्विवेदी. वर्ष 2003 में बनी इस फिल्म को तीन भाषाओं हिंदी, उर्दू और पंजाबी में बनाया गया. फिल्म के मुख्य कलाकार थे मनोज बाजपेई, उर्मिला मातोंडकर और प्रियांशु चटर्जी. व्यवसायिक दृष्टि से औसत रही इस फिल्म को लोगों ने बेहद सराहा. फिल्म में एक ऐसी हिंदू लड़की उर्मिला की कहानी दिखाई गई है, जिसका एक मुसलमान द्वारा अपहरण कर लिया जाता है. बाद में वह लड़की उस मुसलमान लड़के की अच्छाईयों से प्रभावित होकर उसी के साथ रहने लगती है और अपने घरवालों के साथ हिंदुस्तान जाने से मना कर देती है.
पाप और पुन्य की परिभाषा बताती भगवती चरण वर्मा के उपन्यास चित्रलेखा पर भी फिल्म बनी है. अब तक इस पर दो फिल्में बन चुकी हैं. इन दोनों ही फिल्मों का निर्देशन केदार शर्मा ने किया. पहली बार वर्ष 1941 में चित्रलेखा बनी. फिल्म में मिस महताब और नंदरेकर मुख्य भूमिका में थे. इसके बाद वर्ष 1964 में केदार शर्मा ने एक बार फिर से चित्रलेखा बनाई. इस बार अशोक कुमार, मीना कुमारी और प्रदीप कुमार मुख्य भूमिका में थे. यह फिल्म व्यवसायिक तौर पर सफल तो नहीं हुई, लेकिन इस फिल्म को खूब पसंद किया गया.
साहित्य पर आधारित बॉलीवुड फिल्में – झपकी के बाद ताज़गी का अहसास…
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