सांप्रदायिकता का आरोप झेलने वाले दल या व्यक्ति ये कैसे मान लेते हैं कि मुसलमानों का विरोध करना ही सांप्रदायिकता है या जो लोग मुसलमानों का विरोध करते हैं, वे लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट देंगे ही देंगे. क्या भारतीय जनता पार्टी ने ये घोषित कर दिया है कि उन्हें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए या उन्होंने ये घोषित कर दिया है कि 2014 के चुनाव में यदि भारतीय जनता पार्टी जीतती है तो मुसलमानों को इस देश में दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में माना जाएगा या जाना जाएगा? उन्हें जो संविधान ने हक़ दिए हैं, वो हक़ छीन लिए जाएंगे.
सांप्रदायिकता का विरोध स़िर्फ इसलिए करना क्यों कि नरेंद्र मोदी सांप्रदायिक हैं या नरेंद्र मोदी की पार्टी सांप्रदायिक है या फिर कांग्रेस का विरोध इसलिए करना क्योंकि कांग्रेस सांप्रदायिकता का विरोध कर रही है और जो सांप्रदायिकता का विरोध करते हैं, उन्हें कांग्रेस को वोट देना चाहिए. ये ऐसे तर्क हैं, जिन तर्कों पर अगर फैसले लिए जाएं तो फैसले निहायत ग़लत होंगे. सांप्रदायिकता एक ऐसा शब्द है, जिस शब्द की परिभाषा आज तक हर-एक ने अपनी-अपनी तरह से की है. लेकिन सांप्रदायिकता का रिश्ता जब एक ब़डे तबके से हो यानी हिंदुस्तान की 80 प्रतिशत या 90 प्रतिशत जनता से हो, तब सांप्रदायिकता का मतलब समझने में न केवल सावधानी बरतनी चाहिए, बल्कि उसका वही मतलब समझना चाहिए, जिस मतलब का रिश्ता 80 प्रतिशत लोगों से जु़डता हो.
सांप्रदायिकता का आरोप झेलने वाले दल या व्यक्ति ये कैसे मान लेते हैं कि मुसलमानों का विरोध करना ही सांप्रदायिकता है या जो लोग मुसलमानों का विरोध करते हैं, वे लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट देंगे ही देंगे. क्या भारतीय जनता पार्टी ने ये घोषित कर दिया है कि उन्हें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए या उन्होंने ये घोषित कर दिया है कि 2014 के चुनाव में यदि भारतीय जनता पार्टी जीतती है तो मुसलमानों को इस देश में दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में माना जाएगा या जाना जाएगा? उन्हें जो संविधान ने हक़ दिए हैं, वो हक़ छीन लिए जाएंगे. सांप्रदायिकता की पहचान लिए भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी क्या उन आर्थिक नीतियों का विरोध करते हैं, जिन्हें सांप्रदायिकता विरोध के नाम पर अपने को पेश करने वाले कांग्रेस पार्टी के लोग कर रहे हैं. क्या सांप्रदायिकता के आरोप से सनी भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी को ये अधिकार मिल जाता है कि गुजरात में कुपोषण पैदा करना या कुपोषण को अनदेखा करना उनका हक़ है? क्या भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी को इस बात का भी हक़ मिल जाता है कि किसानों के फ़सलों की क़ीमत किसानों को सीधे न मिलने देना है? क्या उनका कोई ज़िम्मा नहीं बनता? या फिर क्या नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को इस बात का भी हक़ मिल जाता है कि शिक्षा में सबको हिस्सा न मिले, इसके ऊपर उनसे कोई सवाल नहीं पूछ सकता.
लेकिन क्या ये भी नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को हक़ मिल जाता है कि वो अपनी आर्थिक नीतियां भी न स्पष्ट करें. वो ये भी न बताएं कि विकास के दायरे से 70 प्रतिशत जनता बाहर है, उसे विकास के दायरे में कैसे लेकर आएंगे या फिर वो लोगों को ये भी नहीं बताना चाहते कि उनके रिश्ते किनसे, कैसे होंगे.
इससे विपरीत सवाल कांग्रेस से पूछे जा सकते हैं कि कांग्रेस पार्टी सांप्रदायिकता विरोध के नाम पर स़डकें, शिक्षा, अस्पताल, भ्रष्टाचार जैसी चीज़ों को मुद्दा मानती है या नहीं मानती है? या केवल सांप्रदायिकता का विरोध या नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी का विरोध ही उसका एकमात्र एजेंडा है? क्या कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र को, जिसे उसने 2004 और 2009 में देश के सामने रखा, ये आंकलन पेश करेगी कि उसने इसमें से कितनी चीज़ें लागू कीं और कितनी चीज़ें नहीं लागू कीं. कांग्रेस पार्टी के सरकार के एक मंत्री कहते हैं कि सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशों को 90 प्रतिशत के आसपास लागू कर दिया गया है. ज़मीन पर कहीं कुछ दिखाई नहीं देता और समझ में तो ये भी नहीं आता कि सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशें थीं क्या? दरअसल, सच्चर कमेटी ने बीमारी की पहचान की, लेकिन उस बीमारी की दवा सुझाने का काम रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने किया. इस पूरी दौ़ड में, इस पूरे शोर में कांग्रेस पार्टी ने सच्चर कमेटी का तो नाम लिया, लेकिन कभी भी रंगनाथ मिश्रा कमीशन का नाम ही नहीं लिया. इसलिए मुझे ये लगता है कि सच्चर और रंगनाथ मिश्रा के बीच का अंतर कांग्रेस कभी पाटना भी चाहती है या नहीं पाटना चाहती और इन सवालों के ऊपर भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी को क्या कहना है? नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी ऐसे सवालों के ऊपर ख़ामोश हैं.
अगर हम देखें तो दोनों की आर्थिक नीतियां एक हैं. लोगों के प्रति कैसी जवाबदेही होनी चाहिए, उसके बारे में दोनों पार्टियां बिल्कुल एक हैं. भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य के सवाल पर दोनों पार्टियां कांगे्रेस और भारतीय जनता पार्टी ख़ामोश हैं और दोनों के ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार एक तरफ़ नरेंद्र मोदी और दूसरी तरफ़ राहुल गांधी इन सवालों को छूना ही नहीं चाहते. एक सांप्रदायिकता का विरोध करता है और दूसरा कहता है कि सांप्रदायिकता एक छद्म शब्द है. लेकिन दोनों ही चाहते हैं कि जो बुनियादी सवाल हैं, वे देश के लोगों के सामने ही न आएं. देश का छात्र और देश का नौजवान इस बाज़ीगरी में तमाशबीन बनकर ख़डा हुआ है. दोनों ही पार्टियां छात्रों और नौजवानों की 18 साल से लेकर 25 साल के उम्र तक की इस पी़ढी को एक नई अंधेरी सुरंग में धकेल रही हैं. ज़रूरत इस बात की है कि इस पी़ढी को ज़िम्मेदार लोग बताएं कि देश के बुनियादी सवाल क्या हैं और उन बुनियादी सवालों पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी का रुख़ क्या हो, इसका सवाल पूछने का नौजवानों को और छात्रों को हौसला दें, क्योंकि अगर छात्र और नौजवान ये सवाल नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी से पूछेगा तो उसे समझ में आएगा कि किसे वोट देना है, किसे नहीं वोट देना है या दोनों में से किसी को वोट नहीं देना है.
सांप्रदायिकता की राजनीति
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