हाल में सामने आया तरुण तेजपाल का मामला बहुत ही दुखद और सदमा पहुंचाने वाला है. यह दुखद इसलिए है, क्योंकि वह एक प्रतिभावान लेखक और पत्रकार हैं. मैं उन्हें वर्षों से जानता हूं और एक दोस्त के रूप में देखता हूं. तहलका उस समय पहली बार प्रकाश में आया था, जब उन्होंने भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के समय में रक्षा मंत्रालय में घोटाले का भंडाफो़ड किया था.
आख़िर भारतीय महिलाओं के परिपे्रक्ष्य में ऐसा क्यों है कि उन्हें अजनबी ही नहीं, बल्कि वे लोग भी प्रता़िडत करते हैं, जिन्हें वे जानती हैं और भरोसा करती हैं? निर्भया केस दोनों ही मामलों में सदमा पहुंचाने वाला था. चाहे वह शारीरिक पी़डा की बात हो या दुष्कर्मियों द्वारा उसके प्रति की गई निर्दयता. लेकिन जैसा कि हम जानते हैं, इस मामले के बाद भी लगातार महिलाओं के साथ छे़डछा़ड, पीछा करने, दुष्कर्म करने, मार दिए जाने जैसी ख़बरें आती रहती हैं. और ज्यादातर मामलों में ऐसा उनके जानने वालों के द्वारा ही किया जाता है.
चुनावी बुखार के इस मौसम में यौन शोषण पर दावों-प्रतिदावों का मुख्य केंद्र अब पी़िडत नहीं है, बल्कि पूरा मुद्दा राजनीतिक पार्टियों के बीच झग़डे में तब्दील हो गया है. लेकिन हाल में प्रकाश में आईं दो घटनाएं यदि सत्य हैं तो ये वर्तमान में भारत में स्त्रियों के बारे में एक वीभत्स कहानी कहती हैं.
हाल में सामने आया तरुण तेजपाल का मामला बहुत ही दुखद और सदमा पहुंचाने वाला है. यह दुखद इसलिए है, क्योंकि वे एक प्रतिभावान लेखक और पत्रकार हैं. मैं उन्हें वर्षों से जानता हूं और एक दोस्त के रूप में देखता हूं. तहलका उस समय पहली बार प्रकाश में आया था, जब उन्होंने भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के समय में रक्षा मंत्रालय में घोटाले का भंडाफो़ड किया था. इस मामले ने सरकार को पंगु बना दिया और सरकार को इस बात की इजाज़त नहीं दी कि वह किसी ब़डे सुधार की दिशा में आगे ब़ढ सके. इसके बाद सरकार ने अपनी दिशा खो दी.
तहलका पर कांग्रेस के मुखपत्र की तरह काम करने के आरोप लगे थे, लेकिन बाद में ऐसी ख़बरों पर विराम लग गया. रक्षा मंत्रालय का भंडाफो़ड करने के बाद भी तहलका ने लगातार और कई ख़ुलासे किए. वास्तव में तरुण के हालिया मामले को भी किसी और ने नहीं, बल्कि तहलका ने ही सबके सामने रखा.
यह मामला और दुखदायी इसलिए है, क्योंकि पी़िडता और तरुण के बीच पिता-पुत्री की तरह संबंध थे. इस मामले में यह सिद्ध हो चुका है कि पिता भी कभी-कभी ख़ुद ही परभक्षी साबित हो जाते हैं. उक्त महिला के यौन शोषण का प्रयास एक बार नहीं, बल्कि दो बार किया गया. इसका मतलब है कि अचानक नहीं हुआ था और न ही किसी समय के आवेग में किया गया था. यह पूर्वनियोजित था. इसके बाद हुई घटनाएं और भी ख़राब हुईं. इसके बाद संस्थान की तरफ़ से यह प्रयास किया गया कि पी़िडता मामले की कोई शिकायत न करे. इसके अलावा अपनी ग़लती का एहसास करते हुए छह महीने के लिए अपना पद छो़डने जैसा क्षीण प्रयास भी तरुण के द्वारा किया गया. इस घटना की और भी निंदा इसलिए की जानी चाहिए, क्योंकि इससे यह पता चलता है कि ऐसी न जाने कितनी और महिलाएं हैं, जिनपर इस तरह का दबाव प़डता है और यह भी पता लगाने की ज़रूरत है कि इस तरह के कितने परभक्षियों ने ऐसा काम किया और पक़डे नहीं गए.
अगर भारत को प्रगति करनी है तो उसे अपने सम्मान देने के तर्कों को उलटना होगा. अब स़िर्फ नेता, उम्रदराज़ व्यक्तियों और पिताओं को ही नहीं, बल्कि भारत के नौजवान युवक और महिलाओं को इज़्ज़त दी जानी चाहिए, जो भविष्य में भारत की ज़िम्मेदारी संभालने वाले हैं. विशेष रूप से उन्हें अपने से ब़डे और पिताओं के द्वारा सम्मान दिया जाना चाहिए.
तहलका नवीन भारतीय मीडिया का हिस्सा है और इसे लोकतंत्र में जगह भी दी गई. लेकिन गुजरात सरकार और भाजपा ने क्या किया. अगर हमलोग साहिब टेप्स पर भरोसा भी करें, हालांकि अभी इसकी प्रमाणिकता सिद्ध होनी बाकी है, तो यह एक और मामला है, जहां एक महिला का पीछा किया गया और जासूसी की गई. भाजपा के अनुसार, ऐसा उस ल़डकी के पिता के आग्रह के बाद किया गया. भाजपा की कहानी के अनुसार, उस ल़डकी के पिता ने गुजरात के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर आग्रह किया था कि ल़डकी पर निगाह रखी जाए.ऐसा कहा जाता है कि वह संघ का आदमी है. इस वजह से शायद उसके सीधे व्यक्तिगत संबंध सीएम से रहे होंगे. उस ल़डकी के पिता के अनुसार, वह ऐसे काम कर रही थी जिसकी इजाजत उन्होंने उसे नहीं दी थी.
यह मामला ग़ैरक़ानूनी ज्यादा है और इसमें शारीरिक प्रता़डना कम है, लेकिन यह किसी भी रूप से कम गंभीर नहीं है. यह मामला वह क़ानूनी आधार है, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति पर सर्विलांस लगाया जाता है. भारत में इसके नियमों को लचीला बनाकर गुपचुप तरी़के से इसकी शक्ति का प्रयोग किया जाता है. हम इसे सीबीआई के क्रियाकलापों के ज़रिये देख सकते हैं कि कैसे वह नेताओं के ख़िलाफ़ के केस दायर करती है और फिर पीछे हट जाती है. ब़डा कार्य यह है कि ऐसी घटना पर निगाह रखा जाना, जो इसे ग़डब़ड बनाता है और ऐसा सोचना कि सर्विलांस अकेला पूरे भ्रष्टाचार को समाप्त कर सकता है, यह शक्ति का दुरुपयोग है. साधारणतया इसके लिए ज़िम्मेदार अधिकारी बच जाते हैं, लेकिन अगर मामला खुलता है तो उनकी भी जांच की जानी चाहिए. शक्ति का दुरुपयोग नागरिकों की स्वतंत्रता के लिए धन के घोटालों से ज्यादा भयावह हैं.
अगर भारत को प्रगति करनी है, तो उसे अपने सम्मान देने के तर्कों को उलटना होगा. अब स़िर्फ नेता, उम्रदराज़ व्यक्तियों और पिताओं को ही नहीं, बल्कि भारत के नौजवान युवक और महिलाओं को इज़्ज़त दी जानी चाहिए, जो भविष्य में भारत की ज़िम्मेदारी संभालने वाले हैं. विशेष रूप से उन्हें अपने से ब़डे और पिताओं के द्वारा सम्मान दिया जाना चाहिए.