tahalkaराष्ट्रकवि दिनकर ने कहा था कि जब सियासत लड़खड़ाती है, तो साहित्य ही उसे संभालता है. दिनकर की कही हुई यह बात आज सच साबित हो रही है. आज जहां कुछ लोग देश की राजनीति को प्रदूषित कर मानव समाज को तोड़ने और धर्म, संप्रदाय तथा जात-पात में बांटकर अपना राजनीतिक स्वार्थ साधने के प्रयास में संलिप्त हैं, वहीं अनेकता में एकता की अवधारणा पर आधरित हमारे इस महान गणतांत्रिक देश को नापाक इरादों से बचाने की कोशिशें भी त़ेज हो गई हैं. इस मुद्दे पर साहित्यकारों, पत्रकारों, समाजसेवियों और सामाजिक सौहार्द एवं समरसता के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास रखने वाले बुद्धिजीवियों की एकजुटता भी अब धीरे-धीरे सामने आने लगी है. वैसे देश का वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य इतना भयावह है कि आम लोगों के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि देश का भविष्य गांधी के पदचिन्हों पर चलेगा, या गोडसे की विचारधारा का अनुसरण करेगा. राष्ट्रीय स्तर पर दो विरोधभासी राजनीतिक विचारधाराओं के सीधे टकराव के दरम्यान पूरा देश स्तब्ध है.
देश में सिर चढ़कर बोल रही धर्म की राजनीति ने बिहार के संवेदनशील लोगों को भी हिला कर रख दिया है. स्थिति की गंभीरता के मद्देनज़र राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी यह कहने की आवश्यकता पड़ गई है कि बिहार की जनता सजग और सतर्क है, अगर किसी प्रकार की घटना होती है तो इसे निपटने के लिए समाज तैयार है. राज्य सरकार के साथ-साथ कई सामाजिक संगठनों ने भी देश में धार्मिक उन्माद पैदा कर सत्ता के शिखर पर पहुंचने का सपना देखने वालों से होशियार रहने और हर हाल में सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने के लिए अघोषित जनचेतना अभियान शुरू कर दिया है. इस अभियान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ उनके सांस्कृतिक सलाहकार पवन कुमार वर्मा भी हैं. सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरता को चुनावी जंग का हथियार बनाकर देश के सिंहासन पर बैठने की योजना के दौरान भाजपा के अचानक बिहार की सत्ता से बेदख़ल होने की घटना से भी राज्य की आम जनता, ख़ासकर सामाजिक संगठनों में उत्साह का माहौल है और गांधीवादी तथा गोडसेवादी विचारधराओं के बीच एक प्रकार की अघोषित जंग का ऐलान हो चुका है.
पिछले दिनों पटना के कृष्ण मेमोरियल हॉल में बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा कार्य विभाग द्वारा प्रायोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘जहान-ए-ख़ुसरो’ का आयोजन करके रूमी फाउंडेशन ने यह साबित कर दिया कि हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब को कोई मिटा नहीं सकता है. कार्यक्रम का उदघाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया. इस अवसर पर उन्होंने अपने संबोधन में कहा ‘जहान-ए-ख़ुसरो’ का सफ़र लखनऊ से शुरू होकर जयपुर और ब्रिटेन की राजधानी लंदन तक पहुंचा है. इस कार्यक्रम के माध्यम से इंसानियत का पैगाम अवाम तक बड़ी ख़ूबसूरती के साथ पहुंच रहा है. उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम को पटना में आयोजित करने की हमारी पहल को ‘उमराव जान’ जैसी मक़बूल फिल्म के रचनाकार और जाने-माने फिल्म निर्माता जनाब मुज़फ़्फ़र अली साहब ने स्वीकार किया. मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि ‘जहान-ए-ख़ुसरो’ का पटना संस्करण शुरू होने पर हमें हार्दिक ख़ुशी है और इस वक़्त हज़रत अमीर ख़ुसरो के पैगाम-ए-इंसानियत को सार्वजनिक किए जाने की भरपूर ज़रूरत है. पूरी दुनिया में असंतोष का वातावरण है. इससे निजात पाने की आवश्यकता है. अमीर ख़ुसरो की शायरी और उनका पैग़ाम दिलों को जोड़ कर ख़ुदा से रिश्ता कायम करने वाला है. 20 नवंबर, 2013 को पटना में आयोजित कार्यक्रम के आयोजन से पहले फिल्म निर्माता मुज़फ़्फ़र अली ने कहा कि ‘जहान-ए-ख़ुसरो’ हजरत अमीर ख़ुसरो से प्रेरित होकर तैयार किया गया है. विषम परिस्थितियों में भी ख़ुसरो ने इंसानियत के मार्ग को नहीं छोड़ा. वे अरबी, हिंदुस्तानी, ब्रज भाषा, अवधी जैसी कई भाषाओं के मिश्रण से एक ऐसी भाषा का निर्माण करते थे जो सबके दिलों में उतर जाती थी. ‘जहान-ए-ख़ुसरो’ कार्यक्रम में सूफी गीत और संगीत के माध्यम से न केवल श्रोताओं का मनोरंजन किया गया, बल्कि ख़ुसरो के पैग़ाम को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की गई.
कुछ ऐसा ही कार्यक्रम महात्मा गांधी की कर्मभूमि चंपारण के नरकटियागंज में 16 नवंबर, 2013 को आयोजित किया गया. साझी संस्कृति और साझी विरासत पर फोकस करने वाली इस संगोष्ठी तथा कवि सम्मेलन का आयोजन सांस्कृतिक संगठन बज्म-ए-कहकशां ने किया था. इस कार्यक्रम का शुभारंभ मंत्रोच्चार तथा तिलावत-ए-कलामे पाक के साथ हुआ. संगोष्ठी के माध्यम से यह बात सामने आई कि साझी संस्कृति ज़िंदा है और रहेगी. क्योंकि दिलों को जोड़ने वाले लोग हर दौर में रहे हैं और रहेंगे. चंपारण को सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन की धरती बताते हुए वक्ताओं ने कहा कि इसी सरज़मीन ने गांधी जी को वह शक्ति दी कि वह मोहनदास कर्मचंद गांधी से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हो गए. यह अलग बात है कि दिलों को तोड़ने वाले लोग भी हर दौर में रहे हैं, मगर उनकी साज़िशों से हतोत्साहित होने की ज़रूरत नहीं है. संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रो. बबुआ जी सिंह ने भारत के सांस्कृतिक इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जो इस देश की सांस्कृतिक परंपरा के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास कर रहे हैं, वह कभी कामयाब नहीं होंगे. वरिष्ठ कवि दिनेश भ्रमर ने भी अपने अध्यक्षीय संबोधन में साझी संस्कृति और साझी विरासत की वकालत की और कहा कि यह हमारे पूर्वजों की अमानत है. यदि हमने इसे सहेज कर अगली पीढ़ी के सुपुर्द नहीं किया तो इतिहास हमें कभी माफ़ नहीं कर पाएगा. साहित्यकार अर्पणा सिंह बहुरानी, ‘इंक़लाब’ पटना के संपादक अहमद जावेद, प्रो. भागवत उपाध्याय, डॉ. अब्दुस्सलाम मजहरी, मुन्ना त्यागी, इम्तियाज़ करीम आदि ने संबोधित किया. संगोष्ठी के बाद कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ. डा अब्दुस्सलाम मजहरी, अजीज रब्बानी, कमरुज्जमा कमर, डॉ. नसीम अहमद नसीम, अरुण गोपाल और अंत में दिनेश भ्रमर ने गीतों और गजलों के माध्यम से साझी संस्कृति की रोशनी बिखेरी.
इसी बीच राजधानी पटना की संस्था नवरस स्कूल ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स के तत्वावधन में, मीर तकी मीर की याद में स्थानीय प्रेमचंद रंगशाला में, साज़ो-आवाज़ की एक शानदार महफ़िल सजाई गई. इस मा़ैके पर मीर तकी मीर की गज़लों को ख़ुशबू ख़ानम और रौशन भारती ने अपनी आवाज़ से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया. हिंदी और उर्दू में मीर की ग़ज़लों वाले बड़े-बड़े होर्डिंग्स यह बता रहे थे कि मीर तकी और के क़द्रदान वे लोग भी हैं, जिनकी तालीम उर्दू में नहीं हुई. कार्यक्रम के एंकर और प्रसार भारती के वरिष्ठ पदाधिकारी एस.के.झा ने बताया कि हिन्दुस्तानी साहित्य मेंे मीर तकी मीर का वही मुकाम है जो हिन्दुस्तान में गंगा का है. उन्होंने कहा कि मीर हमारे उन साधु-संतों में से एक थे जो धार्मिक कट्टरता और आडंबर में विश्‍वास नहीं करते थे. अमीर ख़ुसरों की तरह वह सभी धर्मों का सम्मान करते थे.
अनेकता में एकता के प्रहरी केवल सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन ही नहीं हैं. वर्तमान राजनीतिक माहौल को चुनौती देने के लिए राजनीतिक पार्टी जदयू भी सामने आ गई है. पटना के सब्ज़ीबाग में पिछले 21 नवंबर को आयोजित एक मिलन समारोह में धार्मिक कट्टरता पर प्रहार करते हुए वरिष्ठ नेता और सांसद आर.सी.पी. सिंह ने कहा कि भाजपा की घृणित राजनीति से पूरा देश आतंकित है. दुनिया के सबसे बड़े और लोकतांत्रिक देश में धार्मिक कट्टरवाद के लिए कोई जगह नहीं है. इस कार्यक्रम में सभी धर्म और संप्रदाय के हज़ारों लोग शरीक थे.
देश में सामाजिक सौहार्द बनाए रखने तथा साझी विरासत को बनाए रखने के उद्देश्य से ‘नागरिक पहल’ की ओर से 26 नवंबर, 2013 को पटना में साझी विरासत और राष्ट्रीय एकता विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई. संगोष्ठी के मुख्य वक्ता व आईआईटी मुंबई के प्रो राम पुनियानी ने कहा कि धर्म के नाम पर हो रही राजनीति केवल सांप्रदायिकता तक सीमित नहीं है, यह अब फासीवाद का रूप ले रहा है. सांप्रदायिक राजनीति सबसे पहले दूसरे धर्म को मानने वालों के प्रति नफ़रत फैलाती है. धर्म लोगों को जोड़ता है जबकि धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति लोगों को बांटने का काम करती है. उन्होंने कहा कि 80 प्रतिशत लोग सूफी संतों द्वारा फैलाए गए इंसानियत के पैगाम और उनके आचार-विचार से प्रभावित होकर इस्लाम धर्म के अनुयायी बने हैं. धर्म में नफ़रत और ज़ोर-ज़बरदस्ती का कहीं काई स्थान नहीं है.

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