बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बाद अब बिहार का महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय सुर्खियों में है. दो शिक्षकों की बर्खास्तगी के बाद आन्दोलित शिक्षकों और छात्रों को स्थानीय लोगों व विभिन्न संगठनों का भी समर्थन मिल रहा है.
चम्पारण में सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में पूरे वर्ष कार्यक्रम चल रहा है, वैसे में महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरविन्द अग्रवाल के नादिरशाही रवैये से आतंकित छात्रों का गुस्सा तब फूट पड़ा जब दो शिक्षकों डॉ. शशिकान्त रे और डॉ. अमित रंजन को एकाएक बर्खास्तगी का पत्र थमा दिया गया. पत्र में कहा गया है कि अधिशाषी समिति द्वारा 27 सितम्बर की बैठक में कार्य की समीक्षा के दौरान महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय से बर्खास्त कर दिया गया है. बाद में बताया गया कि वर्ग में विलम्ब से आने और नियमों के पालन में लापरवाही के आरोप में हटाया गया है.
बोया जा रहा क्षेत्रीयता का जहर
कुलपति डॉ. अरविन्द अग्रवाल के व्यवहार को लेकर कभी नेताओं से तो कभी बुद्धिजीवियों और पत्रकारों से विवाद होता रहा है. शिक्षकों और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की बहाली में धांधली और नियमों को दरकिनार कर अपने चहेतों को नियुक्त करने का आरोप लगता रहा. क्षेत्रीयता को बढ़ावा देने, बिहारियों को खुलेआम विश्वविद्यालय से बाहर खद़ेडने, असंवैधानिक शब्दों का प्रयोग, महिलाकर्मियों से दुर्व्यवहार की शिकायत करवाने का भय दिखाकर इस्तीफा लेने जैसा आरोप कुलपति पर लगता रहा है. लेकिन पावर और राजनैतिक पहुंच की बदौलत ये बातें विश्वविद्यालय परिसर में ही दब के रह जाती थीं. इसके पूर्व भी एक असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. संदीप कुमार को भयाक्रांत कर उनसे जबरन इस्तीफा लेकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. गौर करने वाली बात यह है कि विश्वविद्यालय से निकाले गए तीनों शिक्षक बिहार के ही हैं.
परिचितों के लिए नियमों का उल्लंघन
वस्तुत: केविवि में व्याप्त भ्रष्टाचार को दबाने के लिये सोची-समझी रणनीति के तहत स्थानीय लोगों को हटाने की साजिश चल रही है. केविवि के भ्रष्टाचार और तीन शिक्षकों को हटाने में कुलपति डॉ. अग्रवाल के मुख्य सहयोगी डॉ. आशुतोष प्रधान और डॉ. दिनेश हुड्डा बताए जाते हैं. इन दोनों को कुलपति अपने पूर्व कार्यस्थल हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय से लेकर आए हैं. हिमाचल प्रदेश केविवि में भी डॉ. अग्रवाल के मनमाने निर्णय और कपटी व्यवहार के किस्से आम हैं. ऐसे में कुछ शीर्षस्थ राजनेताओं और केन्द्रीय मंत्रियों की छत्रछाया में डॉ. अग्रवाल निरंकुश होते चले गए.
केविवि में नियुक्त आधे से अधिक लोग डॉ. अग्रवाल के कुलपति बनने से पूर्व सम्पर्क में थे. दरअसल वे सभी मेधावी मान लिए गए, जो कुलपति के नजदीकी थेे और यस बॉस की नीति पर चलते थे. डॉ. दिनेश हुड्डा सहित कई लोग तो कुलपति के योगदान के समय भी शास्त्री भवन में मौजूद थे. सबसे अहम और जांच का विषय यह है कि वीसी सर्च पैनल के दो सदस्यों के पुत्रों को भी विवि में शिक्षक नियुक्त किया गया है. बताते हैं कि साउथ बिहार केन्द्रीय विश्विद्यालय के कुलपति हरिश्चन्द्र सिंह राठौर और हिमाचल प्रदेश केविवि के कुलपति कुलदीप अग्निहोत्री वीसी सर्च पैनल के सदस्य थे. दोनों ने ही डॉ. अग्रवाल के चयन पर सहमति जताई और इसके एवज में उनके पुत्रों को नियुक्त किया गया.