झारखंड में जहरीली शराब से सात मौतों की वारदात के बाद शराबबंदी की मांग उठ रही है. राज्य की भाजपानीत सरकार और विपक्षी दलों का अंदरूनी संकट यह है कि शराबबंदी पर जोर देने से आदिवासी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा नाराज हो सकता है, क्योंकि हड़िया शराब उनके सांस्कृतिक जीवन का एक अहम हिस्सा है.
इस पर रोक को वे संस्कृति पर हमले के रूप में देख सकते हैं. यदि चुनाव का समय नहीं होता तो सत्ताधारी दल शराबबंदी की पहल कर सकता था, लेकिन इस समय किस समुदाय पर इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी अनुमान लगाना कठिन है. खासतौर पर तब जब सत्ता की कमान गैरआदिवासी मुख्यमंत्री के हाथ में हो.
दरअसल, हड़िया शराब को बनाने में कई दिन लग जाते हैं. लेकिन इसकी मांग इतनी अधिक है कि उसकी पूर्ति पारंपरिक उत्पादन प्रणाली से संभव नहीं है. इसलिए कारोबारी अधपकी शराब खरीद लाते हैं और उसमें केमिकल तथा टैबलेट डालकर 8-10 घंटे में तैयार करने का प्रयास करते हैं. कई बार तो सामान्य पानी में टैबलेट और केमिकल डालकर बेच दिया जाता है.
राजधानी के गोंदा थाना क्षेत्र की जिस हातमा बस्ती में 30 सितंबर की रात जहरीली शराब का कहर टूटा था, वहां कर्मा त्योहार के मौके पर सामूहिक रूप से शराब का सेवन किया गया था. सूबे के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने घटना पर दुःख व्यक्त करते हुए जांच व अवैध शराब के कारोबारियों पर लगाम कसने के निर्देश दिए.
आनन-फानन में सीआइडी ने एसआइटी का गठन किया. पुलिस और उत्पाद विभाग की तीन टीमें अवैध शराब के कारोबारियों के खिलाफ छापेमारी अभियान में लग गईं. कई नामजद कारोबारियों की गिरफ्तारी हुई. सैकड़ों टन महुआ बरामद किया गया.
विपक्षी दलों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री सुबोधकांत सहाय और झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने राज्य में पूर्ण नशाबंदी की जरूरत बताई है. झाविमो के प्रवक्ता योगेंद्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग की है. मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के महुआ माजी आदि कुछ नेताओं ने घटनास्थल का दौरा कर इसे सरकार की विफलता का परिणाम बताया है.
लेकिन कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने स्वयं कोई टिप्पणी नहीं की है. वे अभी संघर्ष यात्रा पर हैं. दरअसल, आदिवासियों के बीच गहरी पैठ रखने वाले दलों के नेता इस मामले में सीधा बयान देने से परहेज़ कर रहे हैं. भावनात्मक बयान की बात और है लेकिन झारखंड में पूर्ण नशाबंदी लागू करना टेढ़ी खीर है.