तरुण तेजपाल ऐसे पत्रकार हैं, जिन्होंने राजनीतिक दलों और सरकारों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर ब़डे-ब़डे ख़ुलासे किए, जिसने सरकारों के लिए मुश्किलें ख़डी कीं. उन्होंने खेलों में मैच फिक्सिंग और रक्षा सौदे जैसे ब़डे घोटालों का पर्दाफ़ाश किया. लेकिन अब वही तरुण तेजपाल ख़ुद एक ऐसे मामले में फंसे हैं, जिसके पक्ष में स्वयं उनके पास भी कोई तर्क नहीं है. क्या दूसरों का भंडाफो़ड करने वाले तेजपाल को अपनी ही कमियां दिखना बंद हो गईं?
सभी भाजपा नेता बंगारू लक्ष्मण को इस्तीफा देने के लिए मजबूर करने वाले तरुण तेजपाल ने एक सहकर्मी के साथ यौनशोषण का आरोप लगने के बाद छह महीने के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. बंगारू को पिछले साल चार वर्ष के सश्रम कारावास की सज़ा दे दी गई, अब बारी तरुण की है. स्टिंग आपरेशन कर देश की पत्रकारिता को नई ऊंचाई देने वाले तेजपाल अब ख़ुद गर्त की ओर हैं. जैसे-जैसे समय बीत रहा है उन पर आरोपों का सिलसिला ब़ढता जा रहा है. उनपर चौतरफा हमले हो रहे हैं. वे बचाव की मुद्रा में आ गए हैं. उनके विरोधी मुखर हो रहे हैं. जो लोग कभी तेजपाल के स्टिंग आपरेशनों में फंसे थे अब वे तेजपाल को आईना दिखाने के लिए तैयार हैं.
साल 2000 में आउटलुक मैगजीन छो़डकर तहलका की स्थापना करने वाले तरुण तेजपाल ने पहली बार सुर्ख़ियां तब बटोरी थीं जब उनके साथी अनिरुद्ध बहल ने क्रिकेटर मनोज प्रभाकर के साथ मिलकर 40 घंटों का एक टेप बनाया था. मैच फिक्सिंग को लेकर बनाए गए इस टेप की वजह से उस समय काफी बवाल मचा था. उसी साल मई में एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म रिलीज हुई जिसका नाम था फालेन हीरोज : द बिट्रायल ऑफ द नेशन. इस डॉक्यूमेंट्री का देशभर में काफी असर हुआ जिसकी वजह से मामले में सीबीआई जांच हुई जिसमें तीन भारतीय खिला़िडयों को दोषी पाया गया.
साल 2001 में तहलका ने अपना सबसे ब़डा स्टिंग ‘आपरेशन वेस्ट इंड’ किया. तहलका के दो पत्रकारों, मैथ्यू सैमुअल और अनिरुद्ध बहल ने रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों का स्टिंग आपरेशन किया. ये दोनो आर्म डीलर बनकर इन अधिकारियों के पास गए थे और अधिकारियों को रिश्वत दी, जिसे अधिकारियों ने स्वीकार भी कर लिया. इस स्टिंग आपरेशन में वरिष्ठ भाजपा नेता बंगारू लक्ष्मण भी फंसे थे. पिछले साल कोर्ट ने उन्हें इस मामले में सज़ा सुनाई है. मामले में उस समय समता पार्टी की नेता जया जेटली भी फंसी थीं. उन्हें भी अपने पद से इस्तीफा देना प़डा था. तत्कालीन रक्षा मंत्री ने भी इस मामले में इस्तीफा दिया था लेकिन बाद उन्हें फिर से इस पद पर बहाल कर दिया गया था. पूरे मामले को लेकर एनडीए के घटक दल तृणमूल कांग्रेस ने सरकार से समर्थन खींच लिया था. जिसकी वजह से अटल बिहारी वाजपेई की सरकार मुश्किलों में फंस गई थी. इसके बाद विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में सरकार ने सदन में पूर्ण बहुमत साबित कर दिया था.
इसके बाद एनडीए सरकार ने तहलका फाइनेंसर समेत कई रिपोर्टर पर कार्रवाई भी की. तहलका के ऑफिस की जांच की गई. इसे लेकर नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक वी एस नायपॉल तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से मिले थे. उनसे मिलने के बाद उन्होंने कहा था कि तहलका के साथ जो कुछ हो रहा है वह दुर्भाग्यपूर्ण है और देश के लिए भी चिंताजनक है. इस पूरे प्रकरण को लेकर पत्रकार मधु त्रेहान ने साल 2009 में एक किताब भी लिखी, जिसका नाम था द तहलका मेटाफर.
साल 2007 में तहलका ने कुछ और वीडियो फुटेज जारी किए, जिसे राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा मिली. ये वीडियो फुटेज 2002 गुजरात दंगों के समय के थे, जिसमें यह दिखाया गया था कि किस तरह भाजपा नेताओं ने मिलकर मुस्लिमों की हत्या करवाई. वीडियो में बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी को दिखाया गया था, जिसके नेतृत्व में नरोदा पाटिया में 91 मुस्लिमों की हत्या कर दी गई थी.
साल में 2009 में जब मणिपुर की पुलिस ने इस बात की घोषणा की कि उसने एक आतंकवादी को मुठभे़ड में मार गिराया, तब तहलका ने 12 फोटोग्राफ जारी कर लोगों के बीच यह ख़बर पहुंचाई थी कि यह एक फ़र्ज़ी मुठभ़ेड थी. इन फोटोग्राफ में पुलिस को एक आदमी फार्मेसी के भीतर धकेल कर ले जाते दिखाया गया था. बाद में पुलिस फार्मेसी से उस आदमी की लाश लेकर बाहर निकली. इसके बाद मणिपुर में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. विशेष रूप से ये प्रदर्शन अर्धसैनिक बलों को विशेष अधिकार देने वाले क़ानून अफस्पा के विरोध में थे. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छो़डे थे. कई इलाक़ों में कर्फ्यू लगा दिया गया था. साल 2010 में तहलका ने दक्षिणपंथी संगठन श्री राम सेना के नेता प्रमोद मुतालिक का वीडियो जारी किया था. वीडियो में तहलका के एक रिपोर्टर ने संगठन को एक कला प्रदर्शनी पर हमला करने के लिए धन लेते हुए दिखाया था. इसे लेकर भी काफी बवाल हुआ था और राजनीतिक सुर्ख़ियां मिली थीं.
अब सवाल यह है कि देश में क्या नेता, क्या नौकरशाह, सभी का पर्दाफ़ाश करने वाले तरुण तेजपाल बिना किसी स्टिंग आपरेशन के ही क्यों फंस गए? उन पर जिस तरह का आरोप लगा है वह किसी भी रूप में उन आरोपों से कमज़ोर नहीं है, जिसके लिए वे दूसरों को स्टिंग करते रहे हैं. उनके साथ काम करने वाली एक युवा सहकर्मी ने उन पर गोवा में थिंकफेस्ट के दौरान यौनशोषण का आरोप लगाया. वह युवती तरुण की बेटी टिया की दोस्त भी है. वह तहलका मैगजीन में काम करती थी और उसने तरुण पर आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया. क्या ऐसा है कि दूसरों का भंडाफो़ड करने वाले तरुण तेजपाल को अपनी ही कमियां दिखना बंद हो गईं. उन्होंने अपनी बेटी जैसी सहकर्मी का एक बार नहीं, बल्कि दो बार यौनशोषण किया. इसके बाद स्वयंभू कमांडर की तरह पश्चाताप के आंसू बहाते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. क्या तहलका के स्वर्णिम युग के अंत का समय आ गया है? अगर ऐसा है तो इसके लिए ज़िम्मेदार स़िर्फ वही तरुण होंगे, जिन्होंने इसे शीर्ष पर पहुंचाया था.
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