खबर है कि संजय गांधी के पुत्र वरुण गांधी इस बार सुल्तानपुर संसदीय सीट से अपनी क़िस्मत आजमाएंगे. अगर ऐसा हुआ, तो पूरे देश की निगाहें इस तऱफ होंगी, क्योंकि इस महत्वपूर्ण सीट के अगल-बगल रायबरेली एवं अमेठी संसदीय सीटें हैं, जहां से क्रमश: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी चुनाव लड़ते हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या वरुण गांधी कोई करिश्मा दिखा पाएंगे?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में जो महत्व अमेठी एवं रायबरेली संसदीय क्षेत्र की जनता को हासिल है, उससे सुल्तानपुर की जनता हमेशा वंचित रहती है. रायबरेली सोनिया गांधी और अमेठी राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र है. सोनिया-राहुल यानी सत्ता और देश का सबसे ताक़तवर परिवार. इसीलिए इन दोनों संसदीय क्षेत्रों के लोगों की दिल्ली तक हनक और धमक है. रायबरेली एवं सुल्तानपुर न केवल सटे हुए जिले हैं, बल्कि कभी ज़िला सुल्तानपुर के अंतर्गत ही आता था अमेठी संसदीय क्षेत्र. सुल्तानपुर में दो लोकसभा क्षेत्र थे, एक सुल्तानपुर, तो दूसरा अमेठी. ज़िले के एक लोकसभा क्षेत्र को वीआईपी का दर्जा मिला हुआ था, जबकि दूसरे संसदीय क्षेत्र से गांधी परिवार के किसी सदस्य को चुनाव लड़ाने की क्षेत्रीय जनता की मांग को कभी तवज्जो ही नहीं दी गई. हां, इतना ज़रूर था कि सुल्तानपुर संसदीय सीट से कांग्रेस जिसे भी टिकट देती थी, वह दस जनपथ का वफादार होता था, भले ही उसे जीत हासिल हो या फिर हार का मुंह देखना पड़े. आज भले ही सुल्तानपुर संसदीय सीट पर कांग्रेस का कब्जा है और दस जनपथ के वफादार संजय सिंह वहां के सांसद हैं, लेकिन सच्चाई यह भी है कि 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले और 1984 के बाद से कांगे्रस यहां कभी भी जीत हासिल नहीं कर सकी. इसका कारण था सुल्तानपुर के लोगों की गांधी परिवार से नाराज़गी. दरअसल, वे सुल्तानपुर से गांधी परिवार के किसी सदस्य को चुनाव लड़ता देखना चाहते थे और जब ऐसा नहीं हुआ, तो उन्होंने कांग्रेस को वोट ही नहीं दिया. बसपा एवं भाजपा ने इसका ख़ूब फायदा उठाया और 1984 के बाद हुए लोकसभा चुनावों में तीन बार यहां से भाजपा और दो बार बसपा जीती. इससे पहले एक-एक बार यहां से जनता पार्टी और जनता दल के प्रत्याशी के सिर भी जीत का सेहरा बंधा.
क़रीब तीन दशकों से चली आ रही कार्यकर्ताओं एवं क्षेत्रीय जनता की मांग कांग्रेस आलाकमान भले कभी पूरी न कर पाया हो, लेकिन भाजपा आलाकमान अपने कार्यकर्ताओं को ही नहीं, अपनी प्रबल विरोधी कांगे्रस और क्षेत्रीय जनता को यह तोहफा देने जा रहा है. अगर सब कुछ ठीकठाक रहा, तो भाजपा के फायर ब्रांड नेता एवं वर्तमान में पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी 2014 के लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर से प्रत्याशी हो सकते हैं. इससे इतर इस चर्चा को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि कुछ कांग्रेसी नेता उत्तर प्रदेश फतह करने के लिए सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी के बाद प्रियंका गांधी को भी चुनावी राजनीति में उतारने के लिए बेताब हैं और उन्हें सुल्तानपुर से चुनाव लड़ाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं. ऐसी संभावनाएं इसलिए भी ज़्यादा बढ़ जाती हैं, क्योंकि सोनिया गांधी में अब पहले जैसी तेजी नहीं दिखती है, वहीं राहुल गांधी का जादू उत्तर प्रदेश में चल नहीं रहा है. एक सच यह भी है कि संकट की इस घड़ी से उबरने के लिए कांग्रेसियों को प्रियंका तुरुप का पत्ता नज़र आ रही हैं. और अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए कांग्रेसी किसी भी हद तक जा सकते हैं, इस बात से भला किसे इंकार हो सकता है.
वरुण के सुल्तानपुर से चुनाव लड़ने में संघ को भी फिलहाल कोई दिक्कत नज़र नहीं आ रही है. इसे इत्तेफाक ही कहा जाएगा कि जिस संजय गांधी को आपातकाल के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने क़रीब नहीं फटकने दिया था, उन्हीं के पुत्र वरुण पर वह ख़ूब प्रेम लुटा रहा है. यदि विकीलीक्स की खबरों को सही माना जाए, तो जिस संघ को कांग्रेसी सांप्रदायिक कहकर लगातार कोसते रहे और रहते हैं, उसी संघ से कांग्रेस नेत्री एवं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी आपातकाल के दौरान समझौता करना चाहते थे. हां, यह अलग बात थी कि संघ ने उस समय आपातकाल एवं अन्य कई वजहों से काफी बदनाम हो चुके संजय से हाथ मिलाने से इंकार कर दिया था. यह सब तब हो रहा था, जबकि संघ ने आपातकाल के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त आंदोलन खड़ा कर रखा था. दरअसल, संजय गांधी को पता था कि विपक्ष के नाम पर देश में संघ के अलावा कोई नहीं है. और इसीलिए वह संघ से हाथ मिलाकर इंदिरा गांधी के बाद ख़ुद प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे थे, लेकिन संघ ने उनसे हाथ मिलाने की बजाय जनता पार्टी का गठन करके सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया. अमेठी से सांसद रह चुके संजय गांधी के लिए यह एक बड़ा झटका था, लेकिन उनकी असमय मौत ने ऐसी तमाम चर्चाओं पर विराम लगा दिया.
सुल्तानपुर से वरुण भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी होंगे, इस बात का एहसास भीतर ही भीतर अब भाजपाइयों को भी होने लगा है. सुल्तानपुर संसदीय क्षेत्र में वरुण के क़रीबियों का आना-जाना और उनकी जनसभा की तैयारी से भी इस बात के संकेत मिल रहे हैं. आगामी 16 मई को सुल्तानपुर में प्रस्तावित जनसभा को भी उनकी उम्मीदवारी से जोड़कर देखा जा रहा है. अस्सी के दशक में अमेठी की राजनीति में संजय गांधी के पदार्पण के बाद से ही सुल्तानपुर के कांग्रेसी एवं क्षेत्रीय लोग गांधी परिवार के किसी सदस्य को यहां से प्रत्याशी बनाने की मांग करते रहे हैं. भाजपा सुल्तानपुर से वरुण को प्रत्याशी बनाकर एक तीर से कई निशाने साध रही है. सुल्तानपुर के बहाने वरुण की विश्वसनीयता की परीक्षा हो जाएगी और वह जीत गए, तो उसका संदेश कांगे्रसी हल्कों में बहुत ख़राब जाएगा. और अगर वरुण सुल्तानपुर फतह कर लेते हैं, तो उनका कद पार्टी ही नहीं, राजनीतिक हल्कों में भी काफी बढ़ जाएगा. ग़ौरतलब है कि सुल्तानपुर एवं रायबरेली को गांधी परिवार का गढ़ माना जाता है. अब यदि हालात अनुकूल रहे, तो रायबरेली में सोनिया गांधी और अमेठी में राहुल गांधी के बाद सुल्तानपुर में वरुण गांधी की इंट्री होगी. इसमें प्रियंका का नाम शामिल होने की संभावनाएं भी कम प्रबल नहीं हैं. वरुण पिछले छह माह से इस काम में लगे हैं. उनकी टीम क्षेत्र का दौरा करके मतदाताओं का रुख टटोल चुकी है.
हालांकि, अभी इस मुद्दे पर भाजपा के बड़े नेता खुलकर नहीं बोल रहे हैं, लेकिन पार्टी की सुल्तानपुर इकाई में वरुण को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है. वरुण की ओर से भी इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि वह सुल्तानपुर से चुनाव लड़ सकते हैं, परंतु सब कुछ आलाकमान पर छोड़कर वह इस मसले को हवा में भी लटकाए रखना चाहते हैं. वरुण की उम्मीदवारी को लेकर ज़िले में सियासी हलचल तेज हो गई है. पिता संजय गांधी की मौत के बाद वरुण गांधी 16 मई को सुल्तानपुर में चौथी बार आ रहे हैं, वहीं वह तीसरी बार यहां जनसभा करेंगे. पहली बार वह यहां 1981 में आए थे, तब संजय विचार मंच से मेनका गांधी राजीव गांधी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ी थीं. मेनका चुनाव प्रचार के दौरान अमेठी के रामलीला मैदान में वरुण को गोद में लेकर पहुंची थीं. दरअसल, पिता संजय गांधी से बैर रखने वाला संघ बेटे वरुण को सुल्तानपुर से चुनाव में उतार कर उसके साथ अपना नाता मज़बूत करना चाहता है. उधर, वर्तमान संसदीय क्षेत्र पीलीभीत से 2014 में वरुण के लिए जीत आसान नहीं दिख रही है. पिछले लोकसभा चुनाव के समय भी उनकी स्थिति ज़्यादा अच्छी नहीं थी, लेकिन ऐन मौक़े पर उनके एक विवादित बयान ने हवा का रुख़ उनकी तऱफ मोड़ दिया था. कहा यह भी जा रहा है कि अगर वरुण अपना संसदीय क्षेत्र बदलते हैं, तो मेनका गांधी भी आंवला छोड़कर अपने पुराने संसदीय पीलीभीत वापस जा सकती हैं, जहां पर उन्होंने काफी काम किया था. ग़ौरतलब है कि 2009 में वह वरुण के लिए यह सीट छोड़कर आंवला चली गई थीं.
उत्तर प्रदेश- सुल्तानपुर में होगी वरुण की परीक्षा
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